सामना संवाददाता / भिवंडी
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे को पुन: मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना मेरा सपना है। इसके लिए आगामी विधानसभा चुनाव में अपने लोकसभा क्षेत्र में भरपूर मेहनत करूंगा। इस प्रकार जोरदार मत भिवंडी लोकसभा क्षेत्र के महाआघाडी के सांसद सुरेश म्हात्रे उर्फ बाल्या मामा ने भगवा सप्ताह के समापन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि भिवंडी ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में शिवसेनापक्षप्रमुख द्वारा जिस उम्मीदवार को उम्मीदवारी दी जाएगी, उसके लिए वह कड़ी मेहनत करेंगे। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के भिवंडी सांसद सुरेश म्हात्रे उर्फ बाल्या मामा ने कहा कि मेरी जीत ने दिखाया है कि भिवंडी लोकसभा क्षेत्र में शिवसेना की ताकत कितनी अधिक है।
भिवंडी ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार से महाविकास आघाड़ी को कई हजार ज्यादा मत मिले थे, जिसके माध्यम से भिवंडी ग्रामीण में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) की ताकत साबित हो चुकी है। कार्यक्रम की शुरुआत में तालुका प्रमुख कुंदन पाटील ने सांसद बाल्या मामा से भिवंडी लोकसभा में विकास कार्य करते समय स्थानीय शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के पदाधिकारियों को विश्वास में लेने की अपील की थी। भगवा सप्ताह के समापन के अवसर पर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) भिवंडी तालुकाप्रमुख कुंदन पाटील, युवासेना संगठन के पंकज घरात, महिला संगठन की फशीताई पाटील द्वारा एक सम्मान कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना मेरा सपना … महाआघाड़ी सांसद सुरेश म्हात्रे ने व्यक्त किया मत
बेटी के सम्मान में पालघर बंद! … युवती से छेड़छाड़ और मारपीट के विरोध में बुलाया गया बंद
योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर
सफाले रेलवे स्टेशन पर छेड़छाड़ का विरोध करने पर एक समाजसेविका की पिटाई के विरोध में स्थानीय लोगों, राजनीतिक पार्टियों और विभिन्न संगठनों ने मंगलवार को बंद बुलाया था। बेटी के सम्मान में ग्रामीणों के मैदान में उतरने के बाद इलाके में सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे। व्यापारियों ने भी इसमें शामिल होकर बंद का समर्थन किया, जिससे दुकानें एवं अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठान सुबह से लेकर शाम पांच बजे तक बंद रखे गए। इस दौरान सड़कों पर वाहन भी न के बराबर दिखे। हालांकि, बंद के दौरान आवश्यक सेवाएं जारी रखी गई। बंद किसी भी अप्रिय घटना के बिना शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। बंद देखते हुए स्थानीय पुलिस और रेलवे पुलिस द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के कड़े प्रबंध किए गए थे। बता दें कि २६ साल की समाजसेविका १ अगस्त की शाम बोईसर से लौटकर जब सफाले रेलवे स्टेशन के पार्किंग एरिया में खड़ी अपनी गाड़ी लेने गई तभी एक आरोपी ने उससे अश्लील हरकत कर दी।
संजय सिंह का पीएम पर निशाना …वरना लोग चौकीदार को ही चोर समझेंगे
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने हिंडनबर्ग की नई रिसर्च रिपोर्ट आने के बाद एक बार फिर देश के पीएम नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया है। उन्होंने कहा है कि मोदी जी बेनामी कंपनी में सेबी प्रमुख की निवेश की जांच जेपीसी से कराओ, वरना लोग गलत समझेंगे। संजय सिंह ने अपने `एक्स’ पोस्ट पर कहा, `मोदी जी की ईमानदारी देखिए, उन्होंने उस माधबी बुच को सेबी प्रमुख बनाया, जो बरमुडा और मारीशस के बेनामी फंड में निवेश करती हैं। बेनामी मतलब ऐसी कंपनियां, जिसके न तो कर्मचारी का पता है, न ही आय के स्रोत का, लेकिन वो कंपनियां भारत में अडानी की कंपनी में हजारों करोड़ रुपए लगाकर फर्जी तरीके से शेयर का दाम बढ़ाती हैं।’
उन्होंने आगे कहा, `इसी घोटाले की जांच सेबी प्रमुख को करनी थी, इसी बेनामी फंड में खुद उनका निवेश है। मोदी जी जेपीसी से जांच कराओ वरना लोग समझेंगे ‘चौकीदार ही चोर है।’ दो दिन पहले संजय सिंह ने इस मसले पर कहा था कि `हिंडनबर्ग खुलासे की भनक मोदी सरकार को लग गई थी। यही वजह है कि तीन दिन पहले पीएम मोदी ने संसद का सत्र समाप्त कर दिया। मोदी सरकार सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबी है। अपने पूंजीपति दोस्त को बचाने के लिए पीएम मोदी ने उसी सेबी अध्यक्ष से जांच कराई, जिसने घोटाला किया। सुप्रीम कोर्ट अपने पैâसले पर पुनर्विचार करे।’
ए..आती क्या मेलबर्न
रानी मुखर्जी को खंडाला की सैर काफी पसंद है। आमिर खान का वो ‘आती क्या खंडाला’ गाना याद है न। खैर, तब से अबतक काफी मौसम और माहौल बदल चुका है। अब सुनने में आया है कि वे मेलबर्न जा रही हैं। जी हां, रानी मुखर्जी व निर्देशक करण जौहर मेलबर्न जा रहे हैं। यही नहीं, वे १५वें इंडियन फिल्म फेस्टिवल ऑफ मेलबर्न (आईएफएफएम) से पहले ऑस्ट्रेलिया की संसद को संबोधित करेंगे। रानी ने कहा, ‘सिनेमा के जरिए ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच बढ़ते सांस्कृतिक संबंधों पर भाषण देना सम्मान की बात होगी।’ बकौल करण, यह क्षण भारतीय सिनेमा के सांस्कृतिक प्रभाव के विस्तार का प्रमाण है।
सम-सामयिक : कोलकाता रेप-मर्डर केस … अस्पतालों में सबके लिए जरूरी है सुरक्षा
नौशाबा परवीन
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में एक युवा डॉक्टर के क्रूर बलात्कार व हत्या के विरोध में १२ अगस्त २०२४ को देशभर के अनेक सरकारी अस्पतालों में प्रदर्शन हुए, जिससे बड़े पैमाने पर बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) की सेवाएं व रूटीन सर्जरी प्रभावित हुर्इं। दिल्ली व कोलकाता के सरकारी अस्पताल सबसे अधिक प्रभावित हुए, क्योंकि यही दोनों शहर विरोध-प्रदर्शनों का केंद्र बने हुए हैं। फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फाइमा) के प्रवक्ता का कहना है कि आज (१३ अगस्त २०२४) से और भी अस्पताल विरोध-प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं और उन्होंने ओपीडी व इलेक्टिव सर्जरी स्थगित कर दी हैं। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि घटना की सीबीआई द्वारा जांच कराई जाए और हेल्थकेयर वर्कर्स के विरुद्ध हिंसा को रोकने के लिए तुरंत केंद्रीय कानून लागू किया जाए। दूसरी ओर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ३१ वर्षीय पीड़िता पीजी ट्रेनी डॉक्टर के परिवार से भेंट करने के बाद राज्य पुलिस को १८ अगस्त २०२४ तक जांच मुकम्मल करने का अल्टीमेटम दिया है और अगर ऐसा नहीं होता है तो जांच सीबीआई को सौंप दी जाएगी।
गौरतलब है कि यह घटना ९ अगस्त २०२४ की है और इसके दो दिन बाद इस मामले में संदिग्ध पुलिस वालंटियर संजय रॉय (३३) को गिरफ्तार किया गया। यह केस गहन तफ्तीश मांगता है। सोचने की बात है कि जब नर्स व अन्य लोग वहां मौजूद थे तो यह भयावह घटना वैâसे हो गई? क्या कोई ‘अंदरूनी’ व्यक्ति भी इसमें शामिल था? इन सब सवालों के जवाब तो जांच पूरी होने के बाद ही सामने आ सकेंगे। फिलहाल संदिग्ध संजय रॉय के संदर्भ में कुछ चौंकाने वाले तथ्य प्रकाश में आए हैं। नियमित पुलिसकर्मी न होने के बावजूद वह खुद को कोलकाता पुलिस का अधिकारी बताता था और अपनी टी-शर्ट पर केपी (कोलकाता पुलिस) लिखकर घूमता था। वह अनेक विवाह कर चुका है, जो सभी असफल रहे। पुलिस को उसके मोबाइल फोन पर पोर्न कंटेंट मिला है। पुलिस वेलफेयर बोर्ड में वालंटियर होने के कारण वह अस्पताल में बिना रोकटोक घूमता रहता था।
बहरहाल, इस कोलकाता हॉरर के कारण अस्पतालों में महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा एक बार फिर से फोकस में आ गया है। हेल्थ वर्कर्स की सुरक्षा के लिए एक केंद्रीय कानून की मांग की जा रही है। अनेक राज्यों में पहले से ही इस संदर्भ में सख्त कानून मौजूद हैं इसलिए यह प्रश्न प्रासंगिक है कि क्या हेल्थ वर्कर्स पर हमलों के लिए विशिष्ट कानून का अभाव जिम्मेदार है? फिर इस बहस में वह खतरा पूर्णत: लुप्त है, जिसका सामना महिला रोगियों को करना पड़ता है। प्रदर्शनकारी डॉक्टर जो ‘याचिका’ सर्वुâलेट कर रहे हैं, उसे देखने के बाद एहसास होता है कि केवल कानून आवश्यक सुरक्षा प्रदान नहीं करा सकता। इस ‘याचिका’ में मार्च २०२२ की सूरत की एक घटना का संदर्भ दिया गया है कि इमरजेंसी वार्ड के एक रोगी ने लोहे की मेज से नर्स पर हमला कर दिया था। नर्स को तीन टांके लगवाने पड़े थे। ‘याचिका’ में कहा गया है, ‘नर्स ने एफआईआर दर्ज कराई और रोगी पर आईपीसी की धारा ३३२ के तहत मुकदमा लिखा गया। लेकिन इसके बाद कोई सूचना नहीं है कि अस्पताल या पुलिस ने क्या एक्शन लिया।’ अगर कोई व्यक्ति सरकारी कर्मचारी को अपनी ड्यूटी करने से रोकने के लिए चोट पहुंचाता है तो इस धारा के तहत उसे तीन वर्ष तक की वैâद और/या जुर्माना से दंडित किया जा सकता है। यह संज्ञेय अपराध है यानी आरोपी को बिना वॉरंट के गिरफ्तार किया जा सकता है। यह गैर-जमानती व गैर-शमनीय (वह प्रावधान जो आमतौर से जघन्य अपराधों में लगाया जाता है) भी है यानी अदालती प्रक्रिया तब भी जारी रहेगी, जब पीड़ित व आरोपी निजी तौर पर समझौता कर लेते हैं।
सूरत मामले में सख्त कानून का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन इस मामले में आगे क्या हुआ, इसकी कोई सूचना न होने का अर्थ यही है कि अस्पताल की तरफ से अपर्याप्त फोलो-अप हुआ या न्यायिक व्यवस्था की परंपरागत सुस्ती जारी रही। अगर नया केंद्रीय कानून आ जाता है तो भी यह दोनों समस्याएं बरकरार रहेंगी, क्योंकि मसलन कानून का नहीं बल्कि उसे लागू करने का है। अधिकतर राज्यों में पहले से ही मेडिकेयर सर्विस पर्संस एंड मेडिकेयर सर्विस इंस्टीट्यूशंस (प्रिवेंशन ऑफ वायलेंस एंड डैमेज/लोस टू प्रॉपर्टी) एक्ट मौजूद हैं, जिसके तहत अस्पतालों में हेल्थकेयर वर्कर्स व हेल्थ इन्प्रâास्ट्रक्चर को सुरक्षित रखने व आरोपियों को दंड देने के प्रावधान हैं, लेकिन अध्ययनों से मालूम होता है कि इन राज्यों में भी इस कानून के तहत अदालत में पहुंचने के बावजूद भी १० प्रतिशत से कम मामलों की ही पैरवी की गई। क्या नए कानून से इस सबमें परिवर्तन आ जाएगा?
हालांकि ‘याचिका’ में सभी हेल्थ वर्कर्स की सुरक्षा की बात कही गई है, लेकिन जिस किस्म का गुस्सा व विरोध-प्रदर्शन कोलकाता की पीड़ित रेजिडेंट डॉक्टर के लिए है (जो कि सही भी है) वैसा उस समय दिखाई नहीं देता, जब नर्सों व निचले क्रम के अस्पताल स्टाफ पर हिंसक हमले होते हैं। अनेक नर्सें भयावह बलात्कार व हत्या की शिकार हुई हैं, लेकिन उनके लिए न्याय हेतु लड़ाई उनके परिवारों के लिए छोड़ दी गई। स्वास्थ्य व्यवस्था में सबसे कमजोर नर्स होती हैं, उन्हीं पर ही सबसे ज्यादा खतरा मंडराता रहता है। उन्हें रोगियों के तीमारदारों की गालियां व धक्का-मुक्की बर्दाश्त करनी पड़ती हैं और यौन उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ जाता है। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। उनके पास केवल सामान्य कानूनों का सहारा है, जो कार्यस्थल पर सभी महिलाओं के लिए हैं।
नर्सों से भी अधिक कमजोर स्थिति में महिला रोगी हैं। अस्पतालों में २०२४ में अस्पतालों में यौन हमलों की घटनाएं रिपोर्ट हुर्इं, उनमें हर पांच मामलों में से चार महिला रोगियों से संबंधित थे। पिछले दस वर्षों में भारत के अस्पतालों में दो दर्जन से अधिक महिला रोगियों के साथ बलात्कार की घटनाएं प्रकाश में आई हैं। अस्पतालों में हिंसा से सुरक्षित रहने के लिए क्या रोगियों के पास विशेष कानून हैं? महिलाओं को प्रसूति हिंसा से सुरक्षित रखने के लिए भी कोई कानून नहीं है, जबकि यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि लेबर रूम में उन्हें अक्सर गालियों व चांटों का सामना करना पड़ता है। रोगियों व उनके परिवारों पर जो उपचार का मोटा बिल देकर ‘आर्थिक हमला’ किया जाता है, उससे सुरक्षित रहने के लिए भी कोई विशेष कानून नहीं है। हेल्थ वर्कर्स के विरुद्ध हिंसा पर अनेक अध्ययन हैं, लेकिन रोगियों के खिलाफ हिंसा से संबंधित कोई अध्ययन कम से कम इस लेखिका के सामने नहीं आया है, जबकि स्वास्थ्य व्यवस्था में रोगी की ही स्थिति सबसे दयनीय है।
यह सही है कि ग्लोबली सामान्य कार्यस्थल के प्रोफेशनल्स की तुलना में हेल्थ वर्कर्स के विरुद्ध चार गुना अधिक हिंसा होती है और रोगियों के खिलाफ इससे भी ज्यादा, जिनकी न सिर्फ पीड़ा बढ़ सकती है बल्कि वह मर भी सकते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि हेल्थ वर्कर्स की सुरक्षा के लिए कदम न उठाए जाएं बल्कि बात यह है कि अस्पतालों में सभी के लिए सुरक्षित वातावरण उत्पन्न करने के लिए कानूनों को सख्ती से लागू करने के अतिरिक्त कुछ आउट-ऑफ-द-बॉक्स उपायों पर भी मंथन किया जाए।
कॉलम ३ : मध्य प्रदेश भाजपा में वर्चस्व की लड़ाई!
प्रमोद भार्गव
मध्य प्रदेश में मोहन यादव जैसे-तैसे मुख्यमंत्री जरूर बन गए हैं, लेकिन सत्ता की बागडोर उनके हाथ में कितनी है, यह मुख्यमंत्री बनने के ९ माह बाद भी तय नहीं हो पाया है। इसीलिए अब तक धीमी चाल से चलते हुए वे लाभदायी योजनाओं की घोषणाएं तो निरंतर कर रहे हैं, लेकिन जिलों के प्रभारी मंत्रियों से लेकर नगरीय निकाय और मंडलों के अध्यक्ष नियुक्त करने में उन्हें खुली छूट नहीं मिली है। ऐसा माना जा रहा था कि बहुप्रतीक्षित प्रभारी मंत्री उनकी इच्छा के मुताबिक, जिलों में तैनात कर दिए जाएंगे, लेकिन हाल ही में जो सूची आई है, उससे साफ है कि उनके सभी प्रतिद्वंद्वी अपने-अपने नुमाइंदों को प्रभारी मंत्री बनाने में सफल रहे। ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि मूल भाजपाइयों की नाराजी के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुना संसदीय क्षेत्र और ग्वालियर अंचल में उनकी नाममात्र चलेगी, लेकिन जो सूची आई है, उससे पुष्टि होती है कि सिंधिया का वर्चस्व बना रहेगा।
सिंधिया के खास माने जानेवाले और गंदी नालियों में उतरने के विशेषज्ञ तथा प्रदेश सरकार में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर को शिवपुरी और पांढुर्णा का प्रभारी मंत्री बनाया गया है। इसी तरह सिंधिया के खास गोविंद सिंह राजपूत को गुना और नरसिंहपुर तथा तुलसी सिलावट को ग्वालियर और बुरहानपुर का मंत्री बना दिया गया है। लेकिन ग्वालियर-चंबल अंचल में अन्य जिलों में सिंधिया की नहीं चली। गुना संसदीय क्षेत्र के ही अशोकनगर जिले का प्रभारी मंत्री उपमुख्यमंत्री राकेश शुक्ल को बनाया गया है। शुुक्ल का सिंधिया से कोई सीधा वास्ता नहीं है। विंध्य क्षेत्र में उनका अपना वर्चस्व है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार में भी लगातार मंत्री रहे थे। अतएव सिंधिया शुक्ल को निर्देश देने की स्थिति में नहीं हैं। शुक्ल निरंतर चुनाव भी जीतते रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान श्योपुर जिले के विजयपुर से कांग्रेस विधायक रहे सिंधिया विरोधी रामनिवास रावत का कद भाजपा में आने के बाद लगातार बढ़ रहा है। उनके द्वारा इस्तीफा देने के साथ ही उन्हें वैâबिनेट मंत्री का दर्जा देकर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का प्रभार दे दिया गया और अब उन्हें मंडला और दमोह जिलों का प्रभारी मंत्री बना दिया गया। इसी तरह भिंड का प्रभारी मंत्री पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रल्हाद पटेल को बनाया गया है। बुंदेलखंड में अपना वर्चस्व रखने वाले पटेल अपनी राह खुद बनाकर आगे बढ़ते हैं। अतएव सिंधिया को भिंड में झटका लगा है। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने मुरैना और सिवनी का प्रभारी मंत्री करण सिंह वर्मा को बनवाया है। वर्मा सिंधिया से तालमेल बनाकर चलेंगे यह कहना मुश्किल है।
दरअसल ग्वालियर-चंबल अंचल में नरेंद्र सिंह तोमर सिंधिया के समानांतर अपना कद लगातार बनाए हुए हैं। तोमर ही रामनिवास रावत को कांग्रेस से भाजपा में लाए थे। उन्हें लोकसभा चुनाव के दौरान मुरैना से भाजपा उम्मीदवार मंगल सिंह तोमर को जिताने के लिए लाया गया था। तभी उन्हें आश्वस्त कर दिया गया था कि चुनाव के बाद आपको वैâबिनेट मंत्री बनाया जाएगा। दरअसल मुरैना में भाजपा उम्मीदवार की हालत अत्यंत दयनीय थी। इस स्थिति को जब नरेंद्र सिंह तोमर ने भांप लिया तो वे रावत को बरगलाने में सफल रहे। नरेंद्र सिंह का आकलन सही था, क्योंकि मंगल सिंह केवल ४७ हजार वोट से जीते हैं। अतएव इस जीत में रावत की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। एक समय रावत पहले माधवराव सिंधिया के और फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास सिपहसालार थे। किंतु सिंधिया के साथ नैतिक दुहाई देते हुए रावत तब भाजपा में नहीं गए, लेकिन २०२३ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद रावत की नैतिकता डोल गई और वे सत्ता के लालच में भाजपा की गोद में जा बैठे। अब उनकी बल्ले-बल्ले है। सिंधिया से उन्होंने भाजपा में आने के बाद अभी तक किसी प्रकार का तालमेल बिठाने की कोशिश नहीं की। बावजूद ग्वालियर-अंचल में रावत अपना वर्चस्व बनाए रखने में कामयाब रहे हैं।
ऐसी भी अटकलें अब तेज हो रही है कि प्रदेश में निगम और मंडलों में जो राजनैतिक नियुक्तियां मनोनयन के आधार पर होनी है, उनमें भी सिंधिया की कम चल पाएगी। सिंधिया समर्थक ही नहीं कांग्रेस से जो अन्य नेता भाजपा में आए हैं, उन्हें सत्ता में भागीदारी से दूर रखेगी। भाजपा अब मूल भाजपाइयों की भागीदारी सुनिश्चित करने की तैयार में जुट गई है। वरिष्ठ नेताओं की भोपाल में हुई एक बैठक में तय किया गया है कि पिछली सरकार में जिस तरह से निगम और मंडल के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष मनोनीत होने वाले नेताओं में सिंधिया समर्थकों की बड़ी संख्या थी। इन्हें मंत्रीपद का दर्जा भी दे दिया गया था। किंतु अब भाजपा अपने मूल कार्यकताओं को निराश नहीं करेगी। संघ से भाजपा में आए लोगों को भी महत्व दिया जाएगा। दरअसल, भाजपा को उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोकसभा चुनाव में जो झटका लगा है, उससे अब भाजपा सबक ले रही है। २०२३ के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को मूल भाजपाइयों और संघ के कार्यकर्ताओं की नाराजी झेलनी पड़ी थी। वह तो भला हो लाडली बहनों का कि उन्हें जो नगद मुद्रा की जो रेवड़ियां मिलीं, उससे शिवराज सिंह वैतरणी पार करने में सफल हो गए। इसी का असर लोकसभा चुनाव में दिखाई दिया। अतएव भाजपा कांग्रेसियों से दूरी बना रही है तो यह उसी के हित में है।
डेटिंग की अफवाहों पर कृति निराश
सितारों को अगर बॉलीवुड में रहना है तो डेटिंग-वेटिंग की खबरें आपके आसपास मंडराएंगी ही। आमतौर पर सितारे इस पर ध्यान नहीं देते, पर अब सोशल मीडिया के जमाने में पब्लिक रिएक्शन अन्हें परेशान कर देती है। इन दिनों अभिनेत्री कृति सेनन और कारोबारी कबीर बहिया के बीच डेटिंग की खबरें काफी गर्म है। मीडिया के गॉसिप सेक्शन ने इसे हवा दे दी है। अब कृति ने इस डेटिंग की खबरों को अफवाह बताते हुए कहा है, ‘जब मेरे बारे में गलत नकारात्मक जानकारी प्रकाशित की जाती है तो यह न सिर्फ मेरे लिए निराशाजनक होती है बल्कि मेरे परिवार पर भी असर डालती है।’ उन्होंने कहा कि लोग अक्सर कहानियां फैलाने से पहले तथ्यों को सत्यापित करने की जहमत नहीं उठाते हैं।
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी लाइब्रेरी! …दीवारों से टपकने लगा पानी … फडणवीस ने किया था २ साल पहले उद्घाटन
सामना संवाददाता / भायंदर
मीरा-भायंदर में स्थित गोल्डन नेस्ट की इंद्रबहादुर सिंह लाइब्रेरी और भायंदर-पश्चिम के नगर भवन की लाइब्रेरी दोनों ही बुरी हालत में हैं। दीवारों से हो रहे लीकेज और सीलन की समस्या ने इन लाइब्रेरियों को बर्बाद कर दिया है। दो साल पहले ही उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हाथों उद्घाटित इंद्रबहादुर सिंह लाइब्रेरी में लीकेज की समस्या ने भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर कर दिया है। सिर्फ दो साल में ही इतनी महंगी और प्रतिष्ठित लाइब्रेरी की दीवारों से पानी टपकने लगा है, जिससे किताबें खराब हो रही हैं और लाइब्रेरी के अंदर दुर्गंध फैल रही है।
सीलन से भरी दीवारों में खुले बिजली के तारों से करंट फैल रहा है, जिससे लाइब्रेरी में अध्ययन करने आने वाले सैकड़ों विद्यार्थियों की जान खतरे में है। इंद्रबहादुर सिंह लाइब्रेरी के संचालक संतोष दुबे बताते हैं कि कई बार दीवारों में करंट आ जाने की वजह से लाइब्रेरी को बंद करना पड़ जाता है। यह स्थिति न सिर्फ प्रशासन की लापरवाही को दर्शाती है, बल्कि भविष्य में किसी गंभीर हादसे का भी संकेत देती है।
भायंदर-पश्चिम स्थित नगर भवन की लाइब्रेरी, जो कि शहर की सबसे पुरानी लाइब्रेरी है, भी लीकेज और सीलन की समस्या से जूझ रही है। नगर भवन की ३० साल पुरानी इमारत में ऊपर के शौचालय से हो रहे लीकेज के कारण लाइब्रेरी की दीवारें खराब हो रही हैं। सीलन से न केवल लाइब्रेरी के फर्नीचर को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि वहां अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय नेता रवि व्यास ने इस मुद्दे को उठाया है, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
धर्मग्रंथों से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं
टीवी की दुनिया में धार्मिक ग्रंथों पर न जाने कितने सीरीयल बन चुके हैं। मगर जब चर्चा होती है तो उसमें रामानंद सागर के रामायण और बीआर चोपड़ा के महाभारत का कोई मुकाबला ही नहीं है। बाद में कई लोगों ने कोशिशें की पर वे इनके आसपास भी नहीं पहुंच पाए। एकता कपूर ने भी एक महाभारत बनाई थी। अब बीआर वाले महाभारत के भीष्म पितामह मुकेश खन्ना ने एक पॉडकास्ट में ‘महाभारत’ सीरियल को लेकर कहा है कि कई लोगों ने इसे रीक्रिएट करने की कोशिश की लेकिन कोई आसपास नहीं पहुंच पाया। उन्होंने एकता कपूर की ‘कहानी हमारे महाभारत की’ सीरीज पर कहा, ‘कुछ लोग धर्मग्रंथों से खिलवाड़ करते हैं, द्रौपदी को टैटू लगवा दिया और पांडव बगैर शर्ट के मॉडल लग रहे थे।’
बांग्लादेश में हिंदुओं को नहीं बचा पा रही है मोदी सरकार!
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
बांग्लादेश से हिंसक घटनाओं के बीच लगातार हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा है। कहीं उनके मकानों को आग के हवाले किया जा रहा है तो कहीं दुकानों को निशाना बनाया जा रहा है। इस बीच उनकी हत्या, हिंदू महिलाओं के साथ अत्याचार और लूट-खसोट मचाई जा रही है। अब तक ३०० से अधिक ऐसी घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिसमें हिंदू परिवार को तबाह किया गया है। ऐसे में ज्यादातर हिंदू भारत में आने के लिए बॉर्डर पर सरकारी पैâसले के इंतजार में खड़े हैं। भारत सरकार की ओर से बांग्लादेशी हिंदुओं के बचाव में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने से हिंदू समाज में खासी नाराजगी है। लोग सवाल उठाने लगे हैं कि खुद को हिंदुओं की सरकार कहनेवाली मोदी सरकार हिंदुओं को ही नहीं बचा पा रही है।
बता दें कि बांग्लादेश में हिंदुओं का अच्छी-खासी आबादी है। करीब ५० ऐसे जिले हैं, जहां हिंदू आबादी बड़ी संख्या में है। जब से वहां तख्तापलट हुआ है, वहां हिंदुओं के खिलाफ हिंसा का दौर खत्म नहीं हो रहा है। बांग्लादेश के पंचगढ़ में भी हिंदुओं को आग के हवाले कर दिया गया है, जहां बड़ी संख्या में हिंदू घबरा गए हैं। दंगाइयों की भीड़ हिंदू समाज से जुड़े लोगों को वहां ढ़ूढ़ रही है। एक स्थानीय दुर्गा मंदिर समिति का प्रमुख नवजोत अपनी पत्नी, ११ साल के बेटे और एक साल की बेटी के साथ अपना घर छोड़कर भाग गया और पिछले एक हफ्ते से छिपकर रह रहा था। राज बोगसी बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगों में से एक हैं, जिन्हें पिछले सप्ताह हमलों का सामना करना पड़ा है।