बचके रहना रे बाबा… बारिश में बच्चों पर अटैक कर रहा खतरनाक वायरस!

गुजरात में वायरल एन्सेफलाइटिस ने ली ५९ की जान
गुजरात में वायरल एन्सेफलाइटिस के कारण ५९ लोगों की मौत हो गई है। व् ाायरल एन्सेफलाइटिस तेज बुखार का कारण बन सकता है और कई मामलों में दिमाग को प्रभावित करता है। मानसून के मौसम में भारत के कई हिस्सों में ये बीमारी पैâलती है। एन्सेफलाइटिस अधिकतर १५ साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, इस साल जून व जुलाई महीने में गुजरात में १५-वर्ष से कम आयु के बच्चों में ऐक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के १४० मामले सामने आए, जो पूरे देश में सर्वाधिक हैं। इस सिंड्रोम से प्रभावित ५९ लोगों की मौत हो गई है, जिनमें से ५१ मामलों में चांदीपुरा वायरस की पुष्टि हुई है। स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी एन्सेफलाइटिस के मामलों की निगरानी कर रहे हैं और जिन क्षेत्रों में मामले सामने आए हैं, वहां निगरानी बढ़ा दी गई है। वायरल एन्सेफलाइटिस के मामले सबसे पहले पिछले महीने गुजरात के दो उत्तरी जिलों में सामने आए थे। हालांकि, अब तक दो दर्जन से अधिक जिलों में अधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं। इनमें से कुछ चांदीपुरा वायरस के मामले भी हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। ज्यादातर लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है, ताकि लक्षण के आधार पर इसका ट्रीटमेंट किया जा सके। इससे बचाव के लिए वैक्सीन उपलब्ध है। एक साल से कम उम्र के बच्चों और ५५ साल से ज्यादा के बुजुर्गों को इसका खतरा अधिक रहता है, इसलिए कीड़े-मकोड़े वाली जगह पर जाने से बचें। लंबी बाजू के कपड़े पहनें और हेल्दी डाइट लें।

मेहनतकश : व्यापार के साथ कर रहे हैं समाज सेवा

राधेश्याम सिंह

जब कोई नेकदिल इंसान सच्चे मन और कड़ी मेहनत से कोई कर्म करता है तो भाग्य भी उसका साथ देता है। अपनी मेहनत के बलबूते अपना कारोबार खड़ा करनेवाले शहजाद मलिक अपने पिता के साथ धारावी में रहते थे। २००५ में रोजी-रोटी की तलाश में नालासोपारा आए शहजाद मलिक ने कभी सपने में नहीं सोचा था कि एक दिन वे कंस्ट्रक्शन का व्यवसाय करने के साथ ही समाजसेवा करेंगे। मलिक ने बताया जब वे नालासोपारा आए तब रोजी-रोटी की तलाश में संघर्ष करते हुए बतौर इंडस्ट्रीयल कॉन्ट्रेक्टर अपना काम शुरू किया। कंस्ट्रक्शन व्यवसाय में मेहनत कर मलिक अपनी किस्मत को बुलंद करना चाहते थे। अत: उन्होंने प्रॉपर्टी लाइन में अपनी किस्मत को आजमाया और वे कामयाब हो गए। मलिक इंडस्ट्रीयल गाले बनाते और बेचते गए। इसके साथ वो जमीन खरीदने और बेचने का भी व्यवसाय करते रहे। ‘जय हो फाउंडेशन’ संस्था में बतौर पालघर जिला अध्यक्ष नियुक्त होते ही वे अपने व्यापार के साथ-साथ समाजसेवा करने लगे। जरूरतमंदों को अन्न देकर उनकी सहायता करनेवाले मलिक आर्थिक मजबूरी के कारण पढ़ाई न कर पानेवाले बच्चों की पढ़ाई से संबंधित खर्च उठाकर उसकी हर तरह से मदद करते हैं। मालिक ने बताया कि वे कांग्रेस पार्टी के बोईसर विधान सभा के मैनुवर्टी विभाग के जिला उपाध्यक्ष थे। उसके बाद २०२२ में वे कांग्रेस पार्टी के नालासोपारा ब्लॉक अध्यक्ष के तौर पर चुनकर आए। समय-समय पर फ्री ब्लड चेकअप कैंप, ब्लड डोनेशन कैंप, फ्री आई चेकअप, फ्री में चश्मा वितरण कैंप लगा चुके हैं। शहजाद मलिक कहते हैं कि लोगों से मैं अनुरोध करता हूं कि जिससे जितना भी हो सके उतना गरीब और बेसहारा लोगों को अन्न देकर उनकी मदद करें। मानवता का यही धर्म है। एक बेटा और एक बेटी के पिता शहजाद मलिक अपने दोनों बच्चों को पढ़ा-लिखाकर उन्हें होनहार बनाना चाहते हैं। शहजाद मलिक चाहते हैं कि जिस तरह वो जरूरत मंदों की मदद कर रहे हैं उनके बच्चे बड़े होकर लोगों की मदद करते रहें।

 

ऑस्ट्रेलियन ब्लफ!

प्रियंका चोपड़ा ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक दिल को छू लेने वाला पल शेयर किया है। ऑस्ट्रेलिया में अपनी नई फिल्म, ‘द ब्लफ’ की शूटिंग के बीच उन्होंने ब्रेक लिया और अपनी बेटी मालती मैरी की एक प्यारी सी तस्वीर साझा की है।

शादी न बाबा न…

अभिनेत्री जरीन खान इन दिनों खबरों में छाई हुई हैं। सलमान खान के साथ जिस हीरोइन का करियर शुरू हुआ हो, वह मामूली तो हो नहीं सकती। पर कटरीना वैâफ के जैसे चेहरेवाली ने जरीन का खेल खराब कर दिया। खैर, वो तो तब की बात थी। अब मसला यह है कि जरीन शादी नहीं करना चाहतीं। जरीन ने हाल ही में कहा, ‘मेरी जिंदगी की यही सच्चाई है कि मैं कभी शादी नहीं करना चाहती। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे क्या कहते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘आजकल जिस तरह से लोग मोबाइल फोन पर खाना स्वाइप कर घर मंगा रहे हैं, उसी तरह से इंसान भी स्वाइप करके घर बुला रहे हैं।’ आप समझ गए न जरीन का इशारा किधर है!

छोटी सी उमर में लग गया रोग

छोटी सी उमर में लग गया रोग… ये गाना तो सायरा बानू ने पर्दे पर गाया था, तो फिर डिंपल कपाडिया का इससे क्या लेना-देना? बात तो सही है। पर यहां जिक्र गाने का नहीं हो रहा है। यहां जिक्र डिंपल का ही हो रहा है। असल में जब डिंपल छोटी थीं तो उन्हें एक गंभीर रोग हो गया था, जिससे बड़ी मुश्किल से वे ठीक हुई थीं। हाल ही में डिंपल ने बताया है कि १२ साल की उम्र में उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। इसके लक्षण मेरी कोहनी पर दिखे थे…एक शख्स ने कहा था कि मुझे स्कूल से निकाल दिया जाएगा।’ बकौल डिंपल, उसी के कुछ दिन बाद उनकी मुलाकात राज कपूर से हुई और उन्हें फिल्म ‘बॉबी’ के लिए कास्ट किया गया।

सुंदर नहीं दिखा सकते भंसाली

संजय लीला भंसाली की फिल्में बड़ी खूबसूरत होती हैं। उनके हीरो-हीरोइन के तो कहने ही क्या। ऐसा लगता है मानों सीधे इंद्रलोक से तशरीफ लेकर आए हों। पर भंसाली की फिल्मों में मनोज बाजपेयी जैसे अभिनेताओं का काम नहीं है। ऐसा हम नहीं खुद मनोज ही कह रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कहा है, ‘वह भंसाली के साथ काम करना चाहते हैं लेकिन शायद वे उन्हें कास्ट नहीं करेंगे, भंसाली जैसी फिल्में बनाते हैं, उन्हें मेरे जैसे ऐक्टर्स की जरूरत नहीं है। वह मुझे वैâसे सुंदर दिखाएंगे।? फिल्म में मुझमें दिखाने के लिए कुछ भी नहीं होगा।’ अब बंदे की बात में दम तो है।

रोहित पाजी, तोंद क्यों छिपाई?

भारत के कप्तान रोहित शर्मा फिटनेस को लेकर हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं। इस बार भी वे अपनी बढ़ी तोंद को लेकर चर्चा में हैं। `हिटमैन’ रोहित शर्मा पर बड़ा आरोप लगा है। ये आरोप फोटो के साथ छेड़छाड़ करने का है। हालांकि, इन आरोपों में कितना दम है उसकी हम पुष्टि नहीं कर सकते। लेकिन, सोशल मीडिया पर रोहित शर्मा पर हमला इसी बात को लेकर किया गया है कि उन्होंने फोटो से छेड़छाड़ की है। दरअसल, रोहित शर्मा एक सोशल मीडिया पोस्ट को डिलीट करने के कारण चर्चाओं में घिर गए हैं। भारतीय कप्तान रोहित शर्मा ने इंस्टाग्राम पर ट्रेनिंग की तस्वीर शेयर की थी, लेकिन कुछ ही घंटों में यह फोटो `हिटमैन’ के लिए मुसीबत का सबब बन बैठी थी। इसी कारण उन्हें इस तस्वीर को डिलीट करना पड़ा है। रोहित शर्मा ने सोशल मीडिया पर टी-२० सीरीज जीतने की बाद की एक फोटो शेयर करते हुए बधाई दी। उन्होंने फोटो के कैप्शन में लिखा, `परफेक्ट स्टार्ट वेल डन टीम।’ लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि रोहित पर आरोप जीत की इसी तस्वीर से छेड़छाड़ करने का लगा है तो आप गलत हैं। उन पर जिस फोटो के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप है, वो उनकी खुद की है। फोटो को लेकर रोहित पर इल्जाम लगा है कि उन्होंने उसके साथ छेड़छाड़ की है। वैसे रोहित पाजी…आप तोंद क्यों छिपा रहे हो…?

आलिया के रोमांस से नहीं पड़ता फर्क

फिल्मी दुनिया पर्दे पर सारा कारोबार ही रोमांस पर टिका होता है। ऐसे में अगर पति-पत्नी दोनों हीरो-हीरोइन हों तो मुश्किल हो ही सकती है। अब दीपिका दूसरे से पर्दे पर रोमांस करेंगी तो रणवीर सिंह का दिल नहीं जलेगा क्या? खैर, रणवीर का तो पता नहीं पर रणबीर कपूर का तो नहीं जलेगा। रणबीर ने आलिया भट्ट के दूसरे हीरो संग रोमांटिक सीन्स करने को लेकर कहा है, ‘मैं इनसिक्योर पार्टनर नहीं हूं। दूसरे शख्स के साथ आलिया ने पर्दे पर कई बार रोमांस किया है, उसे देखकर मैं कभी इनसिक्योर नहीं हुआ।’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर १० साल पहले मेरा पार्टनर ऐसा कुछ कर रहा होता…तो शायद मैं इनसिक्योर होता।’ बंदा वाकई काफी समझदार है।

मेगा ऑक्शन पर मचमच! … एक-दूसरे से भिड़े शाहरुख और नेस वाडिया

बीसीसीआई अधिकारियों की आईपीएल टीम के मालिकों के साथ मीटिंग चर्चा का विषय बनी हुई है। यह मीटिंग बुधवार ३१ जुलाई को मुंबई में बीसीसीआई हेडक्वार्टर्स में होनी थी और अब एक मीडिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि मीटिंग में मेगा ऑक्शन को करवाए जाने पर ही सवाल उठा दिए गए हैं। दरअसल, कोलकाता नाइट राइडर्स के सह-मालिक शाहरुख खान समेत कुछ लोग मेगा ऑक्शन को न करवाने के पक्ष में हैं। इस बीच शाहरुख, पंजाब किंग्स के सह-मालिक नेस वाडिया से भी जा भिड़े। एक स्पोर्ट्स रिपोर्ट्स की मानें तो शाहरुख खान मेगा ऑक्शन को करवाए जाने के बिल्कुल भी पक्ष में नहीं हैं। बीसीसीआई के एक सूत्र ने बताया कि खान एक समय पंजाब किंग्स के सह-मालिक नेस वाडिया के साथ तीखी बहस भी करने लगे थे। उनकी बहस का कारण ये था कि कितने खिलाड़ियों को रिटेन किया जाना चाहिए। एक तरफ खान ज्यादा खिलाड़ियों को रिटेन करने के पक्ष में दिखे, लेकिन वाडिया नहीं चाहते कि टीमों को ज्यादा प्लेयर्स को रिटेन करने की अनुमति मिले।

दिल्ली डिस्पैच : कांच के पिंजरे में बंद प्रेस और राहुल की आवाज!

एम.एम.सिंह

राहुल गांधी आजकल बोलते हैं खूब बोलते ह बेधड़क। फालतू और बेवजह नहीं, मुद्दों को उठाते हैं बजट सेशन में उन्होंने आम आदमी की बात की, लेकिन उन्होंने एक मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और वह मुद्दा था संसद में कांच के पिंजरे में बंद प्रेस का।
दरअसल, सोमवार की सुबह १० बजे जब पत्रकार नए संसद भवन पहुंचे तो उन्हें ये उम्मीद नहीं थी कि सुरक्षा अधिकारियों द्वारा उन्हें मकर द्वार पर जाने से रोक दिया जाएगा, जहां पर संसद में प्रवेश करते और बाहर निकलते समय सांसद मीडिया से बात करते हैं। पत्रकारों को परिसर के भीतर एक कांच के पिंजरेनुमा घेर यानी ‘मीडिया कंटेनर’ में रहने और केवल १० कदम की दूरी के भीतर ही बातचीत करने के निर्देश दिए गए। इन सबसे खफा पत्रकारों ने विरोध दर्ज करवाने के लिए किसी भी सांसद से बात न करने का पैâसला किया। इस मुद्दे पर अखिलेश यादव, प्रियंका चतुर्वेदी, डेरेक ओ-ब्रायन और मनोज झा जैसे विपक्षी नेता भी पत्रकारों से कंटेनर में मिलने गए थे।
उधर संसद बजट पर अपने ४९ मिनट के भाषण के अंत में राहुल गांधी ने स्पीकर से कहा, ‘आपने मीडियाकर्मियों को पिंजरे में बंद कर दिया है। उन्हें बाहर निकालिए।’ राहुल के मीडियाकर्मियों को बेचारा कहते ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें टोकते हुए कहा, ‘बेचारे नहीं हैं वो। उनके लिए इस शब्द का इस्तेमाल न करें।’ गांधी ने जवाब दिया, ‘नॉन-बेचारे मीडिया वालों ने मुझसे हाथ जोड़कर कहा है कि आप उन्हें बाहर निकाल दें. वे बहुत परेशान हैं।’ बिरला ने उनसे कहा कि वे उनके चेंबर में आकर उनसे बात करें। आखिर में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक पत्र लिखा गया। इसके बाद स्पीकर ने मुलाकात की, प्रतिबंध हटाए और यहां तक ​​कि कोविड के बाद बंद किए गए वार्षिक पास की व्यवस्था को फिर से शुरू करने की संभावना पर विचार करने का वादा भी किया।
मीडियाकर्मियों के एक तबके का मानना है कि राहुल गांधी के हस्तक्षेप के कारण बिरला ने इस मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई की। एक मीडियाकर्मी का कहना है कि राहुल गांधी ने इस मुद्दे को इतने बड़े पैमाने पर उठाया कि बिरला को इसे हल करने में बमुश्किल चार घंटे लगे, जबकि पत्रकार संसद में अपनी प्रतिबंधित पहुंच के मुद्दे को कई बार उठा चुके हैं, प्रेस संस्थाओं ने भी हस्तक्षेप किया है, लेकिन उन्हें इससे पहले तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। गौरतलब है कि पिछले चार सालों से कई पत्रकार संगठन और विपक्षी दल मांग कर रहे हैं कि मीडियाकर्मियों को संसदीय कार्यवाही को कवर करने की अनुमति दी जाए। महामारी के दौरान सदन में मीडिया की पहुंच पर लगाए गए प्रतिबंध अभी भी पूरी तरह से हटाए नहीं गए हैं। वर्तमान में स्थायी वार्षिक पास के लिए पात्र पत्रकारों को भी केवल मौसमी और अस्थायी पास दिए जाते हैं। पत्रकारों का आरोप है कि ये सीमित पास भी ‘मनमाने तरीके’ से दिए जाते हैं। इस मामले में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा ओम बिड़ला को लिखा गया पत्र काबिले गौर है। वे बिरला को बताते हैं, ‘पत्रकारों तक निर्बाध पहुंच’ संविधान सभा तक जाती है: जब अन्य लोकतंत्र कोविड के बाद वापस आ गए, तो भारत क्यों रुका हुआ है? लोकतंत्र को तटस्थ चश्मदीदों की जरूरत है।