शिवसेना छत्तीसगढ़ की तरफ से निकाली गई त्रिशूल यात्रा

सामना संवाददाता / रायपुर

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष छत्तीसगढ़ द्वारा प्रति वर्षों की भांति सावन माह के तीसरे सोमवार 5 अगस्त को त्रिशूल यात्रा निकाली गई। राजधानी रायपुर से हजारों शिवसैनिक त्रिशूल यात्रा में शामिल हुए।
प्रदेश प्रवक्ता संजय नाग ने कहा कि प्रत्येक वर्षों की भांति इस वर्ष भी सावन माह के तीसरे सोमवार को त्रिशूल यात्रा निकाली गई। हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे के बताए हुए मार्ग पर चलकर काम किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में सेना के पदाधिकारी और कार्यकर्ता हजारों की संख्या में शामिल हुए। इस दौरान संजय नाग, सुनील कुकरेजा, एच एन सिंह पालीवार, लोकेश ठाकुर, शशांक देशमुख, बल्लू जांगड़े, संतोष मार्कण्डे, मुरारी सोनी, प्रमोद साहू, हरीश यादव, ओम जंघेल, श्रवण साहू, साईं प्रजापति, आनंद तिवारी, लक्ष्मी कश्यप, प्रकाश यादव, बिट्टू यादव आद उपस्थित रहे।

20 अगस्त को सुनाया जाएगा ज्योतिषी डॉ.रमेशचंद्र तिवारी हत्याकांड का फैसला

सामना संवाददाता / जौनपुर

अपर सत्र न्यायाधीश चतुर्थ रूपाली सक्सेना की अदालत में सरपतहां थाना क्षेत्र के ऊंचगांव में 15 नवंबर, 2012 को ज्योतिषी रमेशचंद्र तिवारी हत्याकांड में अभियोजन की तरफ से आज जिला शासकीय अधिवक्ता सतीश पांडेय द्वारा बहस पूर्ण की गई। पत्रावली वास्ते निर्णय सुरक्षित किया गया। निर्णय की तिथि 20 अगस्त 24 न्यायालय द्वारा नियत की गई। इस अवसर पर पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता आशुतोष चतुर्वेदी एवं राहुल तिवारी, सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता आशीष सिंह, प्रदीप एवं अधिवक्ता राज नाथ, दीनानाथ मिश्र, राजेश, सरिता, विक्रम पांडेय। ज्ञातव्य है कि ज्योतिषी डॉ. रमेशचंद्र तिवारी गुरुजी को अत्याधुनिक हथियारों कार्बाइन एवं पिस्टल से दिनदहाड़े उनके घर के सामने हत्या कर दी गई थी। वर्चस्व की लड़ाई में अभियुक्त गण षडयंत्र द्वारा लोमहर्षक हत्याकांड कारित करा दिया गया था। भाई डॉ. राजेशचंद्र तिवारी को जबड़े में गोली लग कर पार हो गई एवं गोली सीने में आज भी फंसी रह गई है। जावाबी बहस के दौरान के वादी मुकदमा डॉ.उमेशचंद्र तिवारी भी उपस्थित रहे।
बताते चलें कि इस बहुचर्चित मुकदमे की विधिक कार्रवाई उच्च न्यायालय एवं वरिष्ठ उच्चाधिकारियों के संज्ञान में चल रही है।

डिलिवरी के दौरान प्रसूता की मौत से घरवाले नाराज…कार्रवाई की मांग कर परिवारीजनों ने किया सड़क जाम

मोतीलाल चौधरी / कुशीनगर

कुशीनगर जिले के पडरौना स्थित निजी अस्पताल में प्रसूता की मौत से नाराज परिवार वालों ने अस्पताल के सामने सड़क पर शव रखकर हंगामा कर दिया। मामला बढ़ता देख नवजात को अस्पताल में छोड़ डॉक्टर और संचालक पीछे के रास्ते से भाग निकले। घरवाले ऑपरेशन में लापरवाही और मौत के बाद रेफर करने का आरोप लगा रहे हैं। सूचना पर पहुंची पुलिस ने अस्पताल में मौजूद चार वर्करों को हिरासत में ले लिया और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। नवजात को पडरौना के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसकी तबीयत मेें सुधार बताया जा रहा है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
मिली जानकारी के अनुसार, रविंद्र नगर धूस थाना क्षेत्र के कोहड़ा गांव निवासी उपेंद्र यादव की 28 वर्षीया पत्नी गर्भवती थी। रविवार को भोर में करीब चार बजे प्रसव पीड़ा होने पर घरवालों ने आशा कार्यकर्ता को फोन किया। आशा कार्यकर्ता सरकारी अस्पताल में ले जाने के बजाए धरमपुर बुजुर्ग के पास मेडविन अस्पताल पर लेकर चली गई। गर्भवती को नार्मल डिलिवरी कराने की बात कह संचालक ने भर्ती कर दिया। दोपहर में बच्चे के मुंह में गंदा पानी जाने की बात कह ऑपरेशन की बात संचालक ने कहा, तो घरवाले राजी हो गए।
ऑपरेशन के बाद अधिक रक्तस्राव से प्रसूता की मौत हो गई। पीड़ित परिवार का आरोप है कि मौत के बाद प्रसूता को जिंदा बताकर गोरखपुर एक निजी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। गोरखपुर लेकर जाते समय कसया के समीप पहुंचने पर पता चला कि इसकी मौत हो चुकी है। इसके बाद परिजन अपने रिश्तेदारों और गांववालों को फोन कर सूचना दिए और शव लेकर निजी अस्पताल पर चले आए। इसी बीच संचालक और ऑपरेशन करने वाला डॉक्टर पीछे के रास्ते से भाग गए। नाराज लोगों ने प्रसूता का शव अस्पताल के सामने सड़क पर रखकर हंगामा करने लगे। दोनों तरफ वाहनों की लंबी कतारें लग गईं। सूचना पर पहुंची पुलिस ने जबरन सड़क से जाम हटाने का प्रयास किया, लेकिन लोगों का तेवर देख पुलिस बैकफुट पर आ गई।
कार्रवाई का आश्वासन मिलने के बाद नाराज लोग शांत हुए। शाम 4.30 से 5.30 तक कसया-पडरौना मार्ग पर आवागमन ठप रहा। जाम में एंबुलेंस और रोडवेज की बसों के अलावा फंसे राहगीरों को परेशानियों का सामना करना पड़ा, वहीं नवजात बच्चे को पडरौना के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसके स्वास्थ्य में सुधार बताया जा रहा है। पुलिस निजी अस्पताल में मौजूद दो युवक और दो युवतियों को हिरासत में लेकर थाने चली गई। उपेंद्र यादव ने पुलिस को डॉक्टर, संचालक के खिलाफ ऑपरेशन में लापरवाही से मौत होने की तहरीर दिया है। सीओ सिटी अभिषेक प्रताप अजेय ने बताया कि सड़क जाम की सूचना पर पुलिस गई थी। जाम खत्म कराने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। घरवाले शिकायत दिया हैं। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

नई मुंबई में ५२४ खतरनाक इमारतें… कोपरखैरने में हुआ हादसा!.. एक सप्ताह में दो इमारतें गिरीं… प्रशासन के पास अवैध निर्माणकर्ताओं पर कार्रवाई का रिकॉर्ड नहीं

-आरटीआई से हुआ खुलासा

सामना संवाददाता / मुंबई

इसमें से अधिकतर इमारतों को अभी तक खाली नहीं कराया गया है। कोपरखैरने में कल हुआ हादसा बता रहा है कि इनमें रहनेवाले लोगों की जिंदगी खतरे में है

नई मुंबई मनपा क्षेत्र में ५२४ खतरनाक इमारतें हैं। मानसून की तेज बारिश में हादसों का खतरा काफी बढ़ गया है। इसके बावजूद इसमें से अधिकतर इमारतों को अभी तक खाली नहीं कराया गया है। कोपरखैरने में कल हुआ हादसा बता रहा है कि इनमें रहनेवाले लोगों की जिंदगी खतरे में है। गत एक सप्ताह में नई मुंबई में दो इमारतों के गिरने की घटनाओं ने इस खतरे की झलक दिखा दी है।
गौरतलब है कि पिछले एक सप्ताह में नई मुंबई मनपा क्षेत्र में दो इमारतें गिर चुकी हैं। इसके बावजूद नई मुंबई मनपा गंभीर नहीं है। इस बीच आरटीआई के माध्यम से मांगी गई एक जानकारी में खुलासा हुआ है कि नई मुंबई मनपा के पास शहर में हुए अवैध निर्माणकर्ताओं पर कार्रवाई का कोई रिकॉर्ड ही नहीं है। नई मुंबई के रहने वाले एक्टिविस्ट राजीव मोहन मिश्रा ने आरटीआई के माध्यम से नई मुंबई मनपा से एमआरटीपी (अवैध निर्माण) के अंतर्गत की गई कार्रवाई की जानकारी मांगी थी।
सो रही है नई मुंबई मनपा!

पिछले सप्ताह बेलापुर में इमारत गिरने से दो लोगों की मौत हो गई थी। उस इमारत को भी खतरनाक घोषित किया गया था।

नई मुंबई में कई इमारतों को खतरनाक घोषित किया गया है। इनमें रहनेवाले लोगों की जान खतरे में है, पर प्रशासन सुस्त पड़ा है। मानसून की तेज बारिश में इमारतें गिरने लगी हैं, पर नई मुंबई मनपा सो रही है। मनपा प्रशासन ने इन इमारतों को खाली कराने का कोई प्रयास नहीं किया है। हैरानी की बात है कि नई मुंबई मनपा के पास शहर में हुए अवैध निर्माण की भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
हाल ही में नई मुंबई के रहने वाले एक्टिविस्ट राजीव मोहन मिश्रा ने आरटीआई के माध्यम से इस बारे में जानकारी मांगी थी। इसमें उन्होंने अवैध निर्माणकर्ताओं के खिलाफ दाखिल एफआईआर और कोर्ट के माध्यम से हुई सुनवाई व पैâसले की जानकारी मांगी थी, लेकिन नई मुंबई मनपा की तरफ से चौंकाने वाली जानकारी दी गई। मनपा की तरफ से दिए गए जवाब में कहा गया है कि एमआरटीपी के अंतर्गत की गई कार्रवाई की जानकारी नई मुंबई मनपा विधि विभाग के पास उपलब्ध नहीं है। इसको लेकर राजीव मोहन मिश्रा ने सवाल खड़े किए हैं। राजीव मोहन मिश्रा ने बताया कि अवैध निर्माण के खिलाफ हाई कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान अवैध निर्माण पर कार्रवाई करने का आदेश दिया था, जिसके बाद नई मुंबई सहित राज्य भर में एमआरटीपी के अंतर्गत कार्रवाई करते हुए एफआईआर दर्ज किए गए। इसके साथ ही कई इमारतों पर बुलडोजर भी चलाए गए। इसके बावजूद इसकी जानकारी रिकॉर्ड में नहीं है। ऐसे में संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि नई मुंबई मनपा जरूर कुछ न कुछ जानकारी छिपाने की कोशिश कर रही है।
गौरतलब है कि नई मुंबई मनपा की तरफ से ५२४ खरनाक इमारतों की सूची घोषित की गई है। इसके बावजूद अधिकतर लोगों ने इमारतों को खाली नहीं किया है। जिसका नतीजा है कि इमारतों के गिरने से लोगों की जान जा रही है। पिछले सप्ताह बेलापुर में इमारत गिरने से दो लोगों की मौत हो गई थी। उस इमारत को भी खतरनाक घोषित किया गया था। इस के बाद एक सप्ताह के भीतर ही शनिवार रात को कोपरखैरने में एक इमारत का छज्जा गिर गया। यह इमारत भी खतरनाक इमारतों में शामिल है।

हां, माय लॉर्ड!.. ‘तारीख पे तारीख’ से लोग थक चुके हैं

भारत के मुख्य न्यायाधीश कभी-कभार न्याय व्यवस्था पर अच्छे प्रवचन देते हैं, लेकिन ऐसे खोखले प्रवचनों से क्या होगा? इससे पहले भी कई मुख्य न्यायाधीश न्याय व्यवस्था के भ्रष्टाचार, कछुआ चाल, राजनीतिक दबाव पर व्याख्यान दे चुके हैं। इसलिए मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ साहब ने अब कोई नई जानकारी दी है, ऐसा नहीं है। लोग ‘तारीख पे तारीख’ से थक चुके हैं। वे समझौता चाहते हैं, ऐसा चंद्रचूड़ साहब ने कहा है। न्यायमूर्ति का ऐसा कहना हमारी न्याय व्यवस्था की हार है। मराठी में एक कहावत है कि ‘बुद्धिमानों को अदालत की सीढ़ियां नहीं चढ़नी चाहिए।’ चंद्रचूड़ मराठी हैं। ये कहावत तो उन्हें पता ही होगी। दूसरा यह कि कानून गधा है, ऐसा बारंबार मराठी में कहा जाता है। कानून का गधे में रूपांतरण हुआ है तो वो किन कारणों से हुआ, क्या उसके लिए ‘तारीख पे तारीख’ जिम्मेदार है? इसका आत्मचिंतन न्याय व्यवस्था को ही करना होगा। निचली अदालतों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों में लाखों मामले लंबित हैं। जनवरी २०२४ तक सुप्रीम कोर्ट में ८५ हजार मामले प्रलंबित होने की बात सामने आई है। यदि सर्वोच्च न्यायालय का यह हाल है तो जिला न्यायालयों, सत्र न्यायालयों, उच्च न्यायालयों का क्या हाल होगा? देश के उच्च न्यायालयों में लगभग साठ लाख मामले लंबित हैं और लोग अदालत की दहलीज पर अपने जूते घिसकर थक चुके हैं, कुछ की तो मौत हो चुकी है। देशभर की जिला अदालतों, मजिस्ट्रेट अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगभग साढ़े चार करोड़ है और यह संख्या न्याय व्यवस्था के लिए चौंकाने वाली है। इसका मतलब यह है कि गांवों में साढ़े चार करोड़ लोग न्याय का इंतजार कर रहे हैं और ‘तारीख पे तारीख’ के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। देश के सर्वोच्च न्यायालय और खास तौर पर मुख्य न्यायाधीश पर इस बाबत जिम्मेदारी है। चंद्रचूड़ का कहना सच ही है। लोग ‘तारीखों’ से थक चुके हैं, लेकिन ये तारीखें दे कौन रहा है? अदालत में ‘तारीख’ का मामला एक गूढ़ अंधाधुंधी है। इसलिए न्याय और कानून की गरिमा कायम नहीं है। चंद्रचूड़ ने पद संभालते समय कहा था कि हम सुप्रीम कोर्ट में ‘तारीख पे तारीख’ का चक्र बदलना चाहते हैं। चंद्रचूड़ ने कहा, वकील आते हैं और अगली तारीख मांगते हैं, लेकिन उन्हें यह एहसास नहीं होता कि जज उस मामले का अध्ययन करने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं। उनकी मेहनत पर पानी फिर जाता है। सुप्रीम कोर्ट में भी तारीखें पड़ती हैं और वह चंद्रचूड़ की अदालत में भी पड़ रही हैं। पंद्रह हजार मामले ऐसे हैं कि जिनकी दस वर्ष से सुनवाई शुरू है और उनमें एक प्रमुख मामला शिवसेना का ही है और वह न्या. चंद्रचूड़ के समक्ष ही चल रहा है। महाराष्ट्र में ढाई साल से एक संविधानेतर सरकार चल रही है, सुप्रीम कोर्ट ने उस पर मुहर लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल की तब की कार्यवाही, बहुमत परीक्षण, व्हिप, गटनेता पद पर हुआ शिंदे-मिंधे मंडल का चयन, ये सब अवैध है और सभी मामलों को निर्णय के लिए विधानसभा अध्यक्ष के पास भेज दिया, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष भी एक राजनीतिक व्यक्ति हैं और उन्होंने ही असंवैधानिक सरकार को बचाने के लिए संविधान के दसवें शेड्यूल के प्रावधानों की अनदेखी कर शिवसेना और पार्टी का चुनावचिह्न घाती गुट को दे दिया। चुनाव आयोग ने भी इस पर निष्पक्षता से काम नहीं किया। इन सभी मामलों का निपटारा सुप्रीम कोर्ट को उसी समय करके संविधान को बरकरार रखना चाहिए था, लेकिन वहां भी ‘तारीख पे तारीख’ ही चल रही है। चंद्रचूड़ साहब के नाती-पोते जब सुप्रीम कोर्ट में विराजमान होंगे तभी इस मामले में न्याय मिलेगा, ऐसा अब मजाक में कहा जाने लगा है। असंवैधानिक सरकार महाराष्ट्र में पैसों का भ्रष्ट कारोबार कर रही है। उसके लिए अदालत की ‘तारीख पे तारीख’ की नीति ही जिम्मेदार है। न्या. चंद्रचूड़ की ही अदालत में ‘तारीख पे तारीख’, वह भी असंवैधानिक सरकार के मामले में चल रही है तो लोगों का शक बढ़ जाता है। ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट पर कहीं दिल्ली के हुक्मरानों का कोई दबाव तो नहीं है? ऐसी शंका उत्पन्न होती है। क्योंकि कुल मिलाकर देश के मौजूदा वातावरण में इसकी शंका बढ़े, ऐसा ही है। संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट की है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का संविधान देश की ताकत है। यदि शासकों द्वारा इस शक्ति को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है तो मुख्य न्यायाधीश को एक चौकीदार के रूप में काम करना चाहिए। पीड़ितों, गरीबों, कमजोर लोगों को न्याय मिलना ही चाहिए। इसके साथ ही सत्ता और पैसों के बल पर संविधान को पैरों तले रौंदने वालों को सजा होना जरूरी है। लोग अब न्यायालय में जाना ही नहीं चाहते और फिर भी देश में न्यायालयों की शृंखला खड़ी है। अदालतें निष्पक्ष नहीं रही हैं और अदालतों पर दबाव है, ऐसा कई न्यायाधीशों ने सेवानिवृत्ति के बाद कहा है। निवृत्त हो चुके न्यायाधीश सरकार से राज्यपाल, उच्चायुक्त, न्यायाधिकरण का अध्यक्ष पद पाना चाहते हैं, वे लोकसभा और राज्यसभा में जाना चाहते हैं। ऐसी मनोवृत्ति वाले न्यायाधीश कानून और न्याय का पक्ष नहीं रख पाते। वे ‘तारीख पे तारीख’ के खेल में फंस जाते हैं। शिवसेना में फूट और दलबदल की सुनवाई का कोर्ट चाहे तो चार दिन में पैâसला हो जाए, दलबदलुओं को सबक मिल सकता है, ऐसा कानून कहता है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश की अदालत में तीन साल से सिर्फ तारीखें ही पड़ रही हैं। यह असंवैधानिक है। लोग ‘तारीख पे तारीख’ से थक चुके हैं माय लॉर्ड!

इच्छा शक्ति के अभाव में मोनो हो गई भंगार!

-भाजपा के सत्ता में आने के बाद से मोनो को बचाने के प्रयास केवल दिखावटी रहे
सामना संवाददाता / मुंबई

२० साल पहले धूमधाम से चलाई गई मोनोरेल अब भंगार हो गई है। इसका कारण है कि भाजपा सरकार में इसे चलाने की इच्छा शक्ति है ही नहीं। असल में जैसे ही मोनोरेल की शुरुआत हुई, सरकार बदल गई थी। भाजपा के सत्ता में आने के बाद मोनो रेल के लिए जितनी भी घोषणाएं हुईं, सब दिखावटी रहीं। यही कारण है कि न तो मोनोरेल के नए रेक आए और न ही इसकी ट्रिप्स बढ़ाए जा सके। इससे मोनो रेल का घाटा बढ़ता गया। पैसे की कमी के चलते रख- रखाव प्रभावित हुआ और मोनो भंगार होती चली गई। कल एक बार फिर मोनो रेल खराब हो गई। इस कारण जो चंद यात्री इसकी सेवा का लाभ उठाते हैं, उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।
‘मौत’ की ओर बढ़ रही है मोनो!

सरकार ने मोनोरेल को सही तरीके से चलाने के लिए अनेक दिखावटी प्रयास किए, परंतु मोनोरेल प्रति माह २५ करोड़ रुपए के घाटे में चल रही है।
ा उपेक्षा धीरे-धीरे इसे ‘मौत’ की ओर धकेल रही है। असल में मोनो रेल एक फेल टेक्नोलॉजी है। इस कारण इसमें बार-बार खराबी आती है। दूसरा, इसे ऐसे रूट पर चलाया गया , जहां यात्रियों की संख्या कम थी। ऐसे में यह घाटे की ओर बढ़ती गई, जबकि इसके आसपास ही शुरू मुंबई मेट्रो यात्रियों की भारी भीड़ के साथ सफलतापूर्वक चल रही है।
बता दें कि मोनो रेल २०१४ में चेंबूर से वडाला और फिर वडाला से जैकब सर्कल तक दो चरणों में शुरू की गई थी। मोनो ने आरंभ से ही तकनीकी समस्याओं और वित्तीय घाटे का सामना किया है। मोनो की वर्तमान स्थिति चिंता का विषय है। एमएमआरडीए के प्रयासों के बावजूद तकनीकी समस्याओं और वित्तीय घाटे ने मोनोरेल की छवि को प्रभावित किया है। सरकार ने मोनोरेल को सही तरीके से चलाने के लिए अनेक दिखावटी प्रयास किए, परंतु मोनोरेल प्रति माह २५ करोड़ रुपए के घाटे में चल रही है। कल दोपहर वडाला-सात रास्ता मार्ग पर चलने वाली मोनोरेल में तकनीकी खराबी के कारण यात्रियों को बड़ी असुविधा का सामना करना पड़ा। दोपहर १२ बजे के आस-पास हुई इस खराबी के कारण दो गाड़ियों को वडाला डिपो में लाना पड़ा, जिससे अन्य मोनोरेल सेवाओं पर भी असर पड़ा। एमएमआरडीए के अधिकारियों के अनुसार, मोनोरेल का एक ही ट्रैक होने के कारण अन्य गाड़ियों के समय पर भी इसका असर पड़ा। मोनोरेल की फ्रीक्वेंसी हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है। एक ट्रेन जाने के बाद यात्रियों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है, जिससे वे यात्रा के अन्य माध्यमों का सहारा लेते हैं। यात्रियों ने इस मुद्दे पर नाराजगी व्यक्त की है और एमएमआरडीए से फ्रीक्वेंसी बढ़ाने की मांग की है। मोनो के १० नए रेक मंगाए जाने थे ताकि फ्रीक्वेंसी बढ़ सके। पर ये अभी तक नहीं आए। एमएमआरडीए ने पिछले वर्ष के गणेशोत्सव के दौरान मोनोरेल यात्रियों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया था।

उद्योगपतियों के हाथों मुंबई को मत बेचो!…संजय राऊत की धारावी परियोजना पर कड़ी प्रतिक्रिया

सामना संवाददाता / मुंबई

मुंबई के लिए धारावी महत्वपूर्ण मैदान बन गया है। धारावी में सभी जाति-धर्म के लोगों को पांच सौ स्वॉक्यर फीट का आवास मिलना चाहिए। धारावी के पुनर्विकास परियोजना पर विरोध का कोई औचित्य ही नहीं है। यह आवास मिले, इसीलिए ही शिवसेना ने मोर्चा निकाला था। इन सबके बीच हमारा यह रुख है कि परियोजना गलत हाथों में न जाए, महाराष्ट्र-मुंबई को लूटा न जाए और इसके जरिए उद्योगपतियों को मुंबई को न बेचा जाए। धारावी में रहनेवाले लोगों का पुनर्विकास होना ही चाहिए। इस तरह का जोरदार हमला शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता व सांसद संजय राऊत ने किया। मीडिया से बातचीत में सांसद संजय राऊत ने कहा कि धारावी में सभी जाति-धर्म के लोग रहते हैं। धारावी में आठ लाख लोगों के रहने की समस्या है। धारावी में ये जमीन पांच सौ एकड़ से ज्यादा है। इसके बदले में संबंधित बिल्डर को काफी बड़ा चटई क्षेत्र मिलेगा। यह पूरी परियोजना लाभदायक है। संजय राऊत ने आरोप लगाया कि धारावी पुनर्विकास के नाम पर संबंधित लाडले बिल्डर को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, अमित शाह और नरेंद्र मोदी की चौकड़ी मुंबई की खाली २० एकड़ भूखंड दे रही है। इस भूखंड में मदर डेयरी का भूखंड, मुलुंड डंपिग ग्राउंड टोल नाका, दहिसर टोल नाका, वडाला की खार भूमि आदि आरक्षित हैं। ये जमीन धारावी के नाम पर झोली में डालेंगे तो यह धारावी पुनर्वास परियोजना नहीं, बल्कि लूटपाट है। संजय राऊत ने कहा कि धारावी के लोगों को पहले वहीं घर बढ़ाकर दो, फिर लेन-देन के बारे में बात करिए।

लुट गए मुंबईकर!..७ महीने में साइबर ठगों ने उड़ाए ` ६५० करोड़

-पुलिस के पास मदद के लिए आए ३६,००० कॉल्स

-पिछले साल आए थे ९० हजार कॉल्स

सामना संवाददाता / मुंबई

आज राह चलती लूट की घटनाएं कम नहीं हुई हैं बल्कि अब अपराध का तरीका बदल गया है। आज लुटेरे साइबर क्राइम करके लूट को अंजाम दे रहे हैं। मुंबईकर इस तरह की लूट की घटनाओं का बड़ी संख्या में शिकार हो रहे हैं। गत सात महीनों में मुंबईकरों के ६५० करोड़ रुपए साइबर लुटेरों ने उड़ा डाले हैं।
मिली जानकारी के अनुसार, इस वर्ष जनवरी से लेकर जुलाई तक ऑनलाइन फ्रॉड के शिकार हुए मुंबईकरों ने साइबर क्राइम ब्रांच के नंबर १९३० पर ३६,००० कॉल की हैं। इनके अलावा जो सबसे ज्यादा शिकायत प्राप्त हुई हैं, उनमें ट्रेडिंग से जुड़े निवेश को लेकर थी, फेडएक्स और दूसरे कोरियर स्वैâम से जुड़ी कॉलें, डिजिटल अरेस्ट, ऑनलाइन टास्क प्रâॉड और कई शिकायतें प्राप्त हुईं। अधिकारी ने आगे बताया कि प्रक्रिया के तहत पुलिस ने तुरंत नोडल अधिकारियों को सूचित किया और उनका सहयोग लिया, इसमें बैंक, वॉलेट सुविधा मुहैया कराने वालों की भी धर-पकड़ की गई। साइबर पुलिस ने १०० करोड़ रुपए से कुछ अधिक रिकवर भी किया है। ये सभी रिकवरी थर्ड पार्टी को ट्रांसफर होने से पहले की है। पिछले साल पुलिस को मुंबई में ऐसे अपराधों से जुड़ी करीब ९१,३५७ कॉल आई, जिसमें कुल २६२ करोड़ रुपए लोगों ने गंवाएं थे। अधिकारियों ने उसमें करीब २६ करोड़ रुपए थर्ड पार्टी को ट्रांसफर होने से पहले रिकवर भी किए थे।
‘गोल्डेन आवर’ में रिकवरी की संभावना ज्यादा
ऐसे अपराधों से निपटने के लिए आप बस १९३० पर कॉल करें, इसके बाद रुपयों को रिकवर करने का काम पुलिस का है। पुलिस के अनुसार, करीब ३ पुलिस अधिकारी और ५० बैकहेंड अधिकारी रोजाना तीन शिफ्ट में काम करते हैं। जैसे ही हमें कॉल आता है, वैसे ही अकाउंट को प्रâीज करने की प्रक्रिया में लग जाते हैं। इसे हम गोल्डेन ऑवर में गिनते हैं, जो कि हमारे लिए बेहद अहम है, आपको बस अपराध के दो घंटे के भीतर ट्रांसफर हुए रुपयों की जांच और उसे रिकवर करने के लिए पुलिस को कॉल करना होता है, जिसे लेकर पुलिस की प्राथमिकता रहती है कि किसी भी तरह रिकवर कर लिया जाए। इन दो घंटों से ज्यादा समय बीत जाने पर माना जाता है कि रुपयों को रिकवर करने की संभावना बहुत कम हो जाती है।

जरांगे की भविष्यवाणी… राणे पुत्र की होगी करारी हार!

सामना संवाददाता / मुंबई

मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटील ने नारायण राणे को चेतावनी दी है कि अगर मैंने उन्हें धमकी दी तो वह महाराष्ट्र में कहीं भी नहीं जा पाएंगे। इसके साथ उन्होंने कहा कि आगामी विधान सभा चुनाव में राणे पुत्र की करारी होनी तय है। बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने बयान दिया था कि मैं मराठवाड़ा जाऊंगा और देखूंगा कि जरांगे पाटील क्या कर लेते हैं। जरांगे पाटील ने राणे के बयान पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि बिना वजह मेरे से पंगा लो। उन्हेंने नीलेश राणे को मुंह संभालकर बोलने की चेतावनी देते हुए कहा कि जिससे पंगा लेना हो लो, परंतु मेरे से पंगा मत लो, वरना मराठवाडा नहीं घूम पाओगे। उन्होंने का कि मस्ती में आकर सत्ता का दुरूपयोग मत करो। नहीं तो आगामी विधान ‘ईडी’ सरकार का सूपड़ा साफ हो जाएगा। इसके लिए मराठा समाज ने कमर कस ली है। उन्होंने प्रकाश आंबेडकर को सुझाव देते हुए कहा कि आप गरीबों के नेता हैं, इसलिए आपसे अनुरोध है कि गरीबों के पक्ष में खड़े रहें और उन्हें ताकत दें। उन्होंने देवेंद्र फडणवीस पर हमला बोलते हुए कहा कि मेरे खिलाफ बोलने के लिए व्यक्ति लाए गए हैं, इससे पहले राम कदम बोलते थे। अब राणे पिता-पुत्र बोल रहे है।

मुंबई में ४३,४१२ माताओं ने किया दुग्धदान… १०,००० बच्चों को मिला जीवनदान… मनपा अस्पताल ने पश्चिम हिंदुस्थान में मदर मिल्क बैंक खोलने में दिया योगदान

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई

कई बच्चों के पैदा होते ही उनके जान पर खतरा मंडराने लगता है, तो कई का कम वजन होना उन्हें संकट में डाल देता है। इस तरह होनेवाली मौतों की दर को कम करने के लिए माताओं द्वारा दुग्धदान बहुत ही अमूल्य साबित हो रहा है। पिछले साल २,०१९ से २०२४ यानी पांच सालों में कुल ५१,२१४ माताओं को दुग्धदान के लिए परामर्श दिया गया, जिसमें से ४३,४१२ माताओं ने अपनी स्वेच्छा से दुग्धदान करते हुए १०,००० से अधिक नवजातों को जीवनदान दिया है। इसके साथ ही मनपा के सायन अस्पताल की मदद से पश्चिम हिंदुस्थान में मदर मिल्क बैंक को खोलने में भी मदद मिली है।
उल्लेखनीय है कि मनपा के माध्यम से नवजात शिशुओं को जन्म के बाद सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण मातृ दुग्ध की आपूर्ति करने की कोशिश की जा रही है। मनपा आयुक्त भूषण गगरानी ने पहले ही सायन अस्पताल में मदर मिल्क बैंक में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल करने का निर्देश दिया हुआ है, ताकि इसकी पौष्टिकता और स्वच्छता का सटीक ध्यान रखा जा सके। सायन अस्पताल के डीन डॉ. मोहन जोशी ने कहा कि मुंबई मनपा का उदाहरण लेते हुए अधिक राज्यों और महाराष्ट्र के अन्य अस्पतालों को मदर मिल्क बैंक बनाने में मदद करने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया जा रहा है।
हर साल नवजातों को की जाती है दूध की आपूर्ति
डॉ. मोहन जोशी ने कहा कि अपर्याप्त विकास और जन्म के समय कम वजन वाले शिशुओं को इस अस्पताल की नवजात गहन देखभाल इकाई में मदर मिल्क बैंक के माध्यम से दूध की आपूर्ति की जाती है। अस्पताल में हर साल औसतन १०,००० से १२,००० बच्चे पैदा होते हैं। इनमें से १५,०० से २,००० नवजात शिशुओं को इस मातृ दुग्ध बैंक के माध्यम से दूध की आपूर्ति की जाती है।
पांच सालों में एकत्रित हुए चार हजार लीटर दूध
डॉ. जोशी ने कहा कि इस दुग्धदान से पांच सालों में अस्पताल के मदर मिल्क बैंक में करीब ४,१८४ लीटर दूध एकत्रित हुआ, जिसे १०,५२३ नवजात शिशुओं को उपलब्ध कराया गया। यह दूध उन बच्चों को दिया जाता है जिनका वजन कम होता है या जो बच्चे पर्याप्त बड़े नहीं हुए हैं। इसके अलावा यह दूध उन माताओं के बच्चों को भी पिलाया जाता है जो प्रसवोत्तर जटिलताओं के कारण स्तनपान करने में असमर्थ हैं और जिन माताओं को दूध की आपूर्ति कम होती है।