उड़न छू : गिरने का गणित

अजय भट्टाचार्य

बिहार में लगातार पुल गिरने के मामले सामने आ चुके हैं। हाल ही में अररिया जिले में भी एक पुल ने जल समाधि ली है। फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र के अम्हारा पंचायत के वार्ड नंबर १३ में गोपालपुर से मझुआ जाने वाले रास्ते पर बना पुल गिर गया है। इस पुल का निर्माण २०१७ में ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा करवाया गया था। विभागीय अधिकारियों को पुल निर्माण में खामियों की सूचना दी गई थी, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया। अब पुल ध्वस्त हो गया है। पुल लगभग २५ मीटर लंबा था और इसका निर्माण सीमांचल कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा किया गया था।
इससे पहले अररिया में बकरा नदी पर बना पुल भी ध्वस्त हो गया था। १२ करोड़ रुपए से इस पुल का निर्माण किया गया था। हैरानी की बात है कि उद्घाटन भी नहीं हुआ था। उससे पहले ही इसके गिरने पर काफी हंगामा मचा था। बिहार में पिछले १० साल में कई पुल गिर चुके हैं। भ्रष्टाचार को लेकर लोग कई बार आवाज उठा चुके हैं, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब सरकार से नहीं मिला। पुल गिरना कहीं न कहीं भवन निर्माण विभाग में पैâले भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। भूमि जांच में गड़बड़ी और घटिया निर्माण सामग्री के कारण पुल गिरने के कई मामले बिहार में सामने आ चुके हैं। जो सरकारी कामकाज की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हैं।
सवाल उठता है कि कोई पुल यूं ही अपने आप क्यों गिर जाता है? कोई पुल एक झटके में नहीं गिरता। गिरने की प्रक्रिया बहुत पहले से चल रही होती है। सबसे पहले नेता गिरते हैं, फिर अधिकारी गिरते हैं, उसके बाद इंजीनियर गिरता है। इन तीनों के गिरने से फिसलन हो जाती है, सो ठेकेदार भी गिर जाता है। बात यहीं नहीं रुकती, इस फिसलन को देखकर आम जनता भी खुद को रोक नहीं पाती, देखादेखी वह भी गिरने लगती है। जब इतने लोग गिर जाते हैं तो पुल को भी अपने खड़े होने पर शर्म आने लगती है तो अपने निर्माताओं का साथ देने के लिए वह भी गिर जाता है। बात खत्म। ईमानदारी से कहा जाए तो हमारे देश में गिरना कभी लज्जा का विषय नहीं रहा। व्यक्ति जितना गिरता है, उसकी प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ती जाती है। आप फेसबुक, इंस्टा पर देख लीजिए, जो जितना ही गिरता है, उसकी रील उतनी ही वायरल होती है। सिनेमा की कोई अभिनेत्री जितना गिरती है, उतना ही आगे बढ़ती जाती है। यहां तक कि एक लेखक भी जब तक गिरता नहीं, ……तब तक अकादमी वगैरह में जगह बनाने से लेकर पुरस्कार, सम्मान पाने की श्रेणी में नहीं आता! जिस कलमकार में रीढ़ बची होती है वह ‘गिरकर उठे हुए लिक्खाड़ों’ के गिरोह में नहीं मिलेगा।
वैसे राजनीति के इस भक्तिकाल में दरबारी लिक्खाड़ पुल गिरने के भी लाभ गिना देंगे। अर्थशास्त्र की व्याख्या करते हुए बताएंगे कि जब पुल गिरेगा, तभी न दोबारा बनेगा। दोबारा बनेगा तो मजदूरों को काम मिलेगा। सीमेंट, बालू, सरिया के व्यापारियों का धंधा चलेगा। नेता, अधिकारी कमीशन खाएंगे तो पैसा बाजार में ही न देंगे। इस तरह पैसा घूम फिर कर जनता तक ही जाएगा, सो पुलों का गिरना जनता के लिए लाभदायक है। जिस आत्मविश्वास से ये दरबारी समझाते हैं उससे भी यह साफ हो जाता कि वे भी कम गिरे हुए नहीं हैं। हमारे देश में हर व्यक्ति अब गिरना चाहता है। वह केवल मौका तलाश रहा है। कब मौका मिले कि वह गिरे… पुल अकेले नहीं हैं, गिरने की यात्रा में बहुत कुछ गिर रहा है। वोट के लिए अधूरे मंदिर के उद्घाटित हुए मंदिर के गर्भगृह की छत से पानी गिर रहा है। गुलामी की निशानी को मिटाने की सनक से बनी नई संसद की छत टपक रही है।
पुल नदियों के दोनों तटों को जोड़ने का काम करते हैं। हमारे यहां तो आदमी को आदमी से जोड़ने वाले पुल कबके ढह गए हैं। हम जब उस पर दुखी नहीं हुए तो इस पर क्या ही दुखी होंगे। एक गिरे हुए व्यक्ति को गिरे हुए लोग विश्वगुरु बनाने को बेताब हैं। क्यों? क्योंकि अगले ने राजनीतिक, सांस्कृतिक, शाब्दिक, आर्थिक और नैतिक गिरावट के बाद ही उच्च पद पाया है। एक समय था, जब लोग गलती से भी गिरने से बचते थे। अब गिरने के मायने बदल गए हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

स्वाद यात्रा : किफायती फूड के लिए राजा राजेश्वरी सबसे बेस्ट … साउथ इंडियन क्लासिक फूड के साथ इंडियन, चाइनीज और फास्ट फूड का भी उठाएं लुत्फ

संदीप पांडेय

मुंबई जैसे शहर में अधिकतर लोग घर के खाने की बजाय बाहर के खाने पर निर्भर रहते हैं। इसका मुख्य कारण उनके ऑफिस का समय है। कई लोग सुबह ही अपने घर से निकल जाते हैं। ऐसे में उनके लिए नाश्ता और टिफिन मिलना मुश्किल होता है। वहीं कुछ लोग अपने परिवार से दूर अकेले रह रहे हैं, जो खुद के लिए सुबह नाश्ता और खाना नहीं बना सकते हैं। आखिर में उन्हें बाहर के रेस्टोरेंट और वैâफे के भरोसे ही रहना पड़ता है। ऐसे में लोगों के सामने जो सबसे बड़ी समस्या खड़ी होती है वो है अच्छे रेस्टोरेंट का चुनाव करना। तो चलिए हम आपकी इसमें थोड़ी मदद कर देते हैं। अगर आप भी किसी अच्छे रेस्टोरेंट की तलाश कर रहे हैं तो दादर स्थित शिवाजी पार्क में वीर सावरकर मार्ग के बगल में स्थित राजा राजेश्वरी वेज रेस्टोरेंट सबसे बढ़िया विकल्प है।
गुरुवार के दिन दोपहर के समय हम शिवाजी पार्क के चैत्यभूमि में थे। जहां से हम अपनी स्वाद यात्रा पर निकल गए। हमें चैत्यभूमि के बेहद करीब पहला वेज रेस्टोरेंट राजा राजेश्वरी मिला। हमने अपनी भूख मिटाने के लिए अंदर एंट्री की। यहां पर हमने एक वेज थाली ऑर्डर की, जिसमें ३ चपाती, राइस, २ सूखी सब्जी, २ करी, दाल, कर्ड, १ स्वीट, पापड़ के साथ आचार भी था। खाना काफी स्वादिष्ट था। इस थाली के लिए हमें केवल १८० रुपए चुकाने पड़े। हमें विश्वास ही नहीं हुआ कि इतने कम दाम में इतनी वेराइटी और ऐसा स्वाद मिल जाएगा। इस रेस्टोरेंट में स्पेशल थाली भी है, जिसकी कीमत ३०० रुपए है। इसके अलावा यहां साउथ इंडियन क्लासिक फूड, इंडियन, चाइनीज और फास्ट फूड भी है। यह रेस्टोरेंट साल १९६१ से सुबह ७.३० से रात ११ बजे तक अपने कस्टमर्स की भूख मिटाता आ रहा है। इस रेस्टोरेंट में एसी और नॉन एसी की सुविधा के साथ-साथ होम डिलीवरी की व्यवस्था भी है।
यहां फास्ट रखने वालों के लिए पटैटो दही, साबूदाना वड़ा और पोटेटो चिप्स भी है।
डिश- पूरी भाजी, बटर रोटी, गार्लिक नॉन, स्टफ पराठा, कुलचा, पंजाबी पुरी, नर्गिस कोफ्ता, मलाई कोफ्ता, मशरूम मसाला, पनीर कुरमा, पनीर भुर्जी, पनीर बटर मसाला, पनीर मुगलई, रसम राइस, पनीर पुलाव, सांबर राइस, करी राइस, चीज पुलाव, डाल खिचड़ी, पालक खिचड़ी इत्यादि।
फास्ट फूड- सादा डोसा, मैसूर डोसा, चॉकलेट सादा डोसा, पाव भाजी मसाला, पनीर चीज मसाला डोसा, सैंडविच, पकौड़ा, उत्तप्पम, पिज्जा, मिसल पाव, इडली सांभर, कटलेट, उसल पाव, इत्यादि।
सूप- मंचाउ सूप, टोमैटो सूप, पालक सूप, नूडल सूप
पता- शॉप नं. ८, ९, अमरकुंज, ऑफ वीर सावरकर मार्ग, ३७७, शिवाजी पार्क, दादर-पश्चिम, मुंबई – ४०००२८
कॉन्टैक्ट नंबर-
२४४५३४७४ / ९०२२०८२२४४

१०० करोड़ के चक्कर में चले गए ५३ लाख!.. कारोबारी को कर्ज दिलाने का लालच देकर की ठगी

सामना संवाददाता / ठाणे

मुंबई के एक कारोबारी को १०० करोड़ रुपए का कर्ज लेना महंगा पड़ा गया। दरअसल, मुंबई के एक कारोबारी को १०० करोड़ रुपए का कर्ज लेना था, लेकिन एक ठग ने उन्हें १०० करोड़ रुपए का कर्ज दिलाए बिना ही उनसे ५३ लाख रुपए की ठगी कर ली। मामला ठाणे स्थित नौपाड़ा पुलिस स्टेशन में दर्ज कर लिया गया है।
बता दें कि व्यापारी की मुंबई में कंपनी है। उनका सड़क निर्माण और रियल एस्टेट का कारोबार है। करीब दो साल पहले उनके ऑफिस में एक महिला लाइजनिंग के काम से आई थी। महिला ने व्यापारी को जमीन पर कर्ज दिलाने की बात कही, वहीं व्यापारी को महिला ने जमीन के नाम पर लोन पास करने वाले व्यक्ति को व्यापारी से मिलवाया। रायगढ़ में व्यापारी के पास १०० एकड़ जमीन है। उस व्यक्ति ने व्यापारी से कहा कि इस जमीन पर लोन मिल सकता है। कर्ज देनेवाले व्यक्ति ने कर्ज वसूली प्रक्रिया के लिए ५३ लाख रुपए के रूप में ४८ लाख रुपए और वकील की फीस के रूप में ५ लाख रुपए की मांग की। इस हिसाब से उन्होंने कई चरणों में ५३ लाख रुपए भेज दिए, लेकिन दो साल बाद भी लोन स्वीकृत नहीं हुआ। व्यापारी को ठगे जाने का अंदाजा होते ही नौपाड़ा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। जिस बैंक से कर्मचारी को ऋण प्राप्त होना था। जब उस बैंक में पूछा गया तो उनके पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी। आखिरकार, इस मामले में केस दर्ज कर लिया गया है। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।

तड़का : कलेक्टर साहिबा की फजीहत!

कविता श्रीवास्तव

प्रशासन या नौकरशाही अपने कार्यक्षेत्र में स्वतंत्र और अधिकारप्राप्त व्यवस्था होती है, लेकिन हर काम में नियम-कानून ही सर्वोपरि होता है। प्रशासनिक महकमे में हम अक्सर आम लोगों की न सुने जाने और अफसरों की मनमानी की खबरें सुनते हैं, पर कानून इतना तगड़ा है कि अफसर हर जगह मनमानी नहीं कर सकते हैं। हमारे लोकतंत्र में संविधान के आधारस्तंभ कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका तीनों के कामकाज स्वतंत्र जरूर हैं। इसके बावजूद संविधान ने इनमें एक-दूसरे पर नजर रखने और गलत काम को रोकने के पर्याप्त प्रावधान बनाए हैं। प्रशासनिक अफसरों की मनमानी उनकी मुश्किलें वैâसे बढ़ा सकती हैं, यह मध्य प्रदेश में हाल ही में दिखा। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक जिला कलेक्टर को इसलिए डपटा है कि अदालत में उन्होंने हाजिरी नहीं दी और सीधे जज को चिट्ठी लिख दी। अब कलेक्टर साहिबा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। खबर है कि उनकी यह गलती उन पर भारी पड़ने वाली है। जमीन विवाद से जुड़े मामले में उन्होंने हाई कोर्ट जज को सीधे चिट्ठी लिख दी थी। कोर्ट रूम में सुनवाई के दौरान एडीएम ने जब वह चिट्ठी दिखाई तो जज साहब ने भारी नाराजगी व्यक्त की और फटकार लगाई। उन्होंने तल्ख लहजे में कहा कि अफसरों की इतनी हिम्मत बढ़ गई कि सीधे हाई कोर्ट के जज को पत्र लिखें। यह ठीक नहीं है। खबरों के मुताबिक, उन्होंने कलेक्टर को सस्पेंड करने की बात भी कही। अदालतों में सुनवाई के दौरान उपस्थित न होने के लिए निर्धारित प्रक्रिया होती है। नर्मदापुरम जिला कलेक्टर ने कोर्ट को सीधे पत्र लिखकर जमीन के मामले में पेशी से छूट मांगी थी। यह मामला जमीन में नामों की गड़बड़ी से जुड़ा था। मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि कलेक्टर, नर्मदापुरम का यह आचरण अक्षम्य है। अदालत ने एडीएम के आचरण पर भी नाराजगी जताई, जिन्होंने खुली अदालत में वह लिफाफा लहराया था। एडीएम को यह गलतफहमी थी कि चूंकि यह पत्र कलेक्टर द्वारा सीधे अदालत को संबोधित करके लिखा गया है, इसलिए अदालत बहुत प्रभावित होगी और कलेक्टर, नर्मदापुरम द्वारा लिखे गए पत्र के आगे ठंडी पड़ जाएगी। कोर्ट ने अधिकारियों के आचरण के बारे में कड़ी टिप्पणी की। इस घटना से यह समझना चाहिए कि शीर्ष पदस्थ अधिकारी भी आम जनता के सेवक के रूप में कार्यरत होते हैं। प्रशासन का अर्थ है लोगों की देखभाल करना, पदस्थ व्यक्ति द्वारा दूसरों की सेवा करना। प्रशासन का मूल अभिप्राय सामाजिक हित की दृष्टि से सरकारी सेवाएं प्रदान करना है। नौकरशाही एक सरकारी प्रशासन है। किसी भी बड़े संस्थान को नियंत्रित करने वाली प्रशासनिक प्रणाली बहुत जिम्मेवार होती है। चाहे वह सार्वजनिक रूप से स्वामित्व वाली हो या निजी स्वामित्व वाली हो। अदालतें हमारे नियम-कानून और संविधान की पालक हैं। वे उनकी रक्षक हैं। जिनके पास सबसे अधिक शक्ति है वे सबसे ऊपर हैं, लेकिन नियमों से बढ़कर कोई नहीं है। हमें अपनी न्यायिक प्रणाली और हमारी न्यायिक व्यवस्था का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह समय-समय पर नियम-कानून, संविधान के महत्व से सबको अवगत कराती रहती है।

गिरफ्तारी के डर से पूजा खेडकर भागी दुबई?..दिल्ली में एक बड़े नेता के आवास पर छुपी थीं 

मुंबई। दिल्ली के पटियाला हाउस उच्च न्यायालय ने विवादास्पद पूर्व ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर को कदाचार के आरोप में अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। सूत्रों ने जानकारी दी है कि किसी भी समय गिरफ्तार किए जाने की आशंका के कारण वह देश छोड़कर दुबई भाग गई हैं, साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि पूजा खेडकर कुछ दिनों के लिए दिल्ली में एक बड़े नेता के आवास पर रुकी थीं। बुधवार और गुरुवार दो दिन तक पटियाला हाउस हाई कोर्ट में सुनवाई चली। गुरुवार को कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पूर्व जमानत अर्जी खारिज कर दी। खेडकर किसी भी वक्त गिरफ्तार हो सकती हैं, ऐसी चर्चा शुरू हो गई। सूत्रों ने बताया कि गिरफ्तारी की सुगबुगाहट मिलते ही वह दुबई भाग गई हैं। हालांकि, इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि पूजा खेडकर के भागते वक्त पुलिस क्या कर रही थी, अन्य सिस्टम सतर्क क्यों नहीं थे? गौरतलब है कि यूपीएससी की जांच में पता चला है कि खेडकर ने बारह बार परीक्षा दी थी। केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने हाल ही में खेडकर को दस पेज का नोटिस भेजा था। उन्हें २ अगस्त तक अपना पक्ष सामने रखने की अनुमति दी गई थ

जेन जी और मिलेनियल्स को १७ तरह के कैंसर का खतरा! … शोध में हुआ खुलासा

आजकल सोशल मीडिया के एक खास आयुवर्ग के लोगों को जेन जी और मिलेनियल्स का नाम दिया गया है। इनके नाम से रील्स भी काफी वायरल होती हैं। लेकिन अब सोशल मीडिया के फेमस टर्म असल जिंदगी में एक बड़े खतरे का सामना कर सकते हैं, जो उनकी जान भी ले सकती है। दरअसल, अमेरिका की एक संस्था ने एक रिसर्च तैयार की है, जिसमें ये दावा किया गया कि जेन जी और मिलेनियल्स को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा उनकी उम्र से बड़े लोगों के मुकाबले काफी ज्यादा है और तो और ये कैंसर कुछ खास तरह के हैं।
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के शोधकर्ताओं ने शोध में इस बात का खुलासा किया है। शोध के दौरान ३४ सबसे आम तरह के कैंसर का अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि कम उम्र की पीढ़ियों में स्तन, अग्नाशय और पेट सहित १७ तरह के कैंसर का खतरा लगातार बढ़ रहा हैं। ये शोध लैंसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन में १ जनवरी, २००० से ३१ दिसंबर, २०१९ के बीच ३४ तरह के कैंसर से पीड़ित २.३० करोड़ से ज्यादा मरीजों का डेटा इस्तेमाल किया गया। इसी दौरान २५ तरह के वैंâसर से होने वाली ७० लाख से अधिक मौतों का डेटा भी देखा गया। अध्ययन में शामिल रोगी २५ से ८४ साल की उम्र के थे। इसके बाद शोधकर्ताओं ने हर जन्म समूह के लिए उम्र और समय के प्रभाव को हटाकर किसी घटना की दरों की तुलना की। इससे उन्हें यह समझने में मदद मिली कि उम्र या समय के चलने के अलावा सिर्फ जन्म समूह का प्रभाव उस घटना की दर पर कितना पड़ा है।

क्या हैं जेन जी और मिलेनियल्स?
मिलेनियल्स उन लोगों को कहा गया है जो १९८१ से १९९६ के बीच में जन्मे हैं। वहीं जेन जी वो लोग हैं जिनका जन्म १९९७ से २०१२ के बीच हुआ है।

पुस्तक समीक्षा : समाज में बदलाव का दर्पण है लघु कथा संग्रह उधेड़बुन

राजेश विक्रांत

सेवा सदन प्रसाद देश के अग्रणी लघु कथाकार हैं। टुकड़ा-टुकड़ा सच, सच का दर्पण, चेहरे पर चेहरा, अंत: प्रेरणा आदि के बाद उनकी नई पुस्तक `उधेड़बुन’ की लघु कथाओं के पात्र हमारे आस-पास के लोग हैं, जो जीवन व समाज के हर क्षेत्र में हुए बदलावों को दर्शाते हैं। आज लोगों के पास समय कम है, मोबाइल युग ने पढ़ने की आदत पर असर डाला है तो ऐसे समय में लघु कथा का दौर हवा के ताजे झोंके की तरह है, जो पाठक को पढ़ने की पूरी आजादी देता है। छोटी-छोटी कहानियां मिनटों में खत्म हो जाती हैं और साथ में दे जाती हैं सार्थक विचार या संदेश।
`एक रात के लिए’ लघुकथा पढ़िए- `नीलू, तुम आज प्रोड्यूसर से मिली।’ `हां, मिली।’ `मीटिंग हुई?’ `फिर फिल्म तो साइन कर ली होगी।’ `नहीं।’ `क्यों?’ `उनकी एक शर्त है, जो मैं पूरी नहीं कर सकती।’ `अरे फिल्म लाइन में ऑडिशन देते समय कुछ शर्तें माननी पड़ती हैं।’ `मेरे अंदर कला के प्रति सम्मान है, संघर्ष कर सकती हूं। यह वैâसा ऑडिशन कि प्रोड्यूसर के साथ इंटिमेट सीन का रियल शॉट देना होगा।’ दूसरी ओर खामोशी छा गई।
लघुकथा `किराया’ यूं है-
ऑटोरिक्शा से उतरते ही जयंत ने मीटर की ओर देखा और ड्राइवर की तरफ एक बीस का नोट बढ़ा दिया। रिक्शावाले ने कहा- `जब आपने मीटर देखकर किराया दिया है तो पूरा किराया दो न।’ `अरे! एक रुपया छुट्टा नहीं है, बीस रुपए तो दे रहा हूं न।’ `जब आपको पता है कि एक स्टेज का किराया इक्कीस रुपए है तो चेंज रखना चाहिए। दिनभर में अगर सौ सवारी एक-एक रुपया कम दिया तो मेरा कितना नुकसान होगा। मॉल में तो निन्यानवे रुपए के बदले सौ का नोट देकर चल पड़ते हैं।’ रिक्शेवाले ने तब गुस्से से रिक्शा जोर से स्टार्ट किया।
उधेड़बुन में कुल ९७ लघुकथाएं हैं। सभी का माहौल जाना-पहचाना है। पात्र हमारे परिचित हैं। उनकी सोच आज की है। अपने बन रहे पराए, असमंजस, अनुबंध, उतरन, एनकाउंटर, कुछ ऐसी भी खुशी, कमिटमेंट, खौफ, गलतफहमी, जमानत, जांच, जागरूकता, झांसा, तैश, दहशत, दाखिता, निर्णय, नेपोटिज्म, पाठक, पलायन, प्रमोशन, बहके कदम, मुखौटा, मोहभंग, लिबास, वायरस, संवेदना, सैलाब, हताशा आदि लघुकथाएं ज्यादा प्रभावित करती हैं।
`अखबारवाला’ का संदेश देखें- `सर, इस एरिया में अखबार मैं बेचता हूं। आप भी लेंगे?’ `अखबार, किसलिए?’ `सर, समाचार, मनोरंजन और साहित्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए।’
`अरे! वह सब तो मोबाइल में ही मिल जाता है फिर अलग से खर्च क्यों करूं?’ `सर मोबाइल के रिचार्ज से बड़े लोगों की कोठियों पर जश्न होता है पर एक अखबार ले लेने से किसी को रोजी-रोटी मिल जाती है।’
`उधेड़बुन’ को मुंबई हिंदी अकादमी ने प्रकाशित किया है। आवरण अनिरुद्ध शर्मा का है। १०४ पृष्ठों के हार्डबाउंड संस्करण की कीमत २५० रुपए है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के जानकार हैं।)

ब्रजभाषा व्यंग्य : खैर, अपुन कों का

नवीन सी. चतुर्वेदी

ऑफिस में काम करते-करते भए बोर है गयौ तौ सोची चलौ नेंक समाचार सुन लेंय। टीवी खोली तौ सुनाई परी- देखिए, हमारे चैनल पर सबसे पहली बार। मन में सोची ये आठवों आश्चर्य वैâसें है सवैâ, सब सों बाद में जो नींद सों जागै है वौ सब सों पहलें खबर वैâसें बताय सवैâ। खैर, अपुन कों का।
खबर हुती- भारी तबाही से जनजीवन बेहाल। हमें लग्यौ रूस और युक्रेन युद्ध की बात कर रह्यौ होयगौ। तबाही तौ है ही रही है भैया, सिगरी दुनिया कों साफ-साफ दिख हु रही है, अब यै थोरी अलग जैसी बात है कि लगभग सिगरी की सिगरी दुनिया दोउ-दोउ आँख’न वारी होते भए हू सूरदास जैसी बनी भई है। खैर, अपुन कों का।
खबरची आगें बोल्यौ- उत्तराखंड के केदारनाथ की पहाड़ियों पर भयंकर बादल फटा। बात अब नेंक समझ में आई। देखौ साब, यै बादर फटवे वारी बात है तौ भोत ही दु:ख की, यै कोउ खुसी की बात थोरें ही है, परंतु का करें जब मनुष्य नें पर्यावरण कौ बैंड बजायवे की ठान ही लीनी है तौ भैया कुदरत हू तौ अव्वल वारी डांस मास्टर है। वा नें हु मनुष्य’न सों समय-समय पै ऐसे-ऐसे कत्थक, कुचिपुड़ी और भरत नाट्यम करवाये हैं कि पूछौ ही मत। खैर, अपुन कों का।
खबरची आगें बोल्यौ- बादल के फटने से समूचा जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, लोगों के हाल बेहाल हैं। हें, या में कौन सी नई बात है। जनजीवन तौ अनादि काल सों अस्त-व्यस्त है। लोग’न के हाल का आज पहली बार बेहाल भए हैं। जब जलियावाला कांड भयौ तब हु जनजीवन अस्त-व्यस्त हुतो और लोग हाल-बेहाल, जब राम और कृष्ण कों जनम लैनों पर्यौ हुतो तब हु लोग’न कौ जीवौ दुस्वार ही हुतो, और जब वराह अवतार भयौ हुतो भैया तब हु जनार्दन जा सों कह्यौ जावै वौ जनता अत्याचार की चकिया में पिस ही रही हुती, अब कौन सी नई बात है गई। खैर, अपुन कों का।
खबरची आगें बोल्यौ- उत्तराखंड के केदानाथ धाम में बादल फटने से बेहाल हुए लोगों की सहायता के लिए सरकार ने करोड़ों रुपए की मदद का एलान किया है। हमारे अधर’न पै नेंक मुस्कान आई और मन ही मन बोले कि एक और सरकारी मदद कौ एलान। खैर, अपुन कों का।

सवाल हमारे, जवाब आपके?

रेल हादसों में हर साल सैकड़ों लोगों की मौत होती है। आखिर क्या कारण है कि तमाम प्रयासों के बावजूद इस तरह के हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं? क्या इसके लिए पूर्णतया रेलवे जिम्मेदार है या फिर व्यवस्था? इस पर आपका क्या कहना है?

कागजों पर बनती हैं योजनाएं
सरकार का ध्यान केवल चुनावी वादों पर होता है, आम जनता की सुरक्षा पर नहीं। रेलवे में सुधार की बात तो होती है, पर काम जमीन पर नहीं दिखता। सिस्टम में भ्रष्टाचार के कारण रेलवे दुर्घटनाओं में कमी नहीं आ रही। रेलवे अधिकारी केवल कागजों में योजनाएं बनाते हैं, हकीकत में कुछ नहीं होता।
– सूरज मिश्रा, मीरा रोड

जवाबदेही की है कमी
सरकारी तंत्र में जवाबदेही की कमी है इसलिए हादसे होते रहते हैं। बजट का सही उपयोग नहीं होता, सिर्फ घोषणाएं की जाती हैं। रेलवे में तकनीकी सुधार की बजाय पुराने तरीकों पर ही भरोसा किया जा रहा है।
– कविता पांडे, सांताक्रुज

नीतियों में दूरदर्शिता की कमी
सरकार की नीतियों में दूरदर्शिता की कमी है, जिससे हादसे नहीं रुकते। सुरक्षा के नाम पर केवल दिखावा किया जाता है, वास्तविक काम नहीं। निगरानी तंत्र की कमजोरी के कारण हादसे होते हैं और किसी को सजा नहीं मिलती।
– अमित मिश्रा, सांताक्रुज

रेलवे कर्मचारियों पर है अधिक दबाव
रेलवे कर्मचारियों की संख्या कम होने के कारण उन पर काम का अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। लोको पायलटों के पंद्रह फीसदी पद खाली हैं। यह रेलवे विभाग में एक महत्वपूर्ण श्रेणी का पद है। उन्हें पर्याप्त आराम नहीं मिलता है और यहां तक ​​कि अपने पारिवारिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने के लिए छुट्टियां नहीं मिलती हैं। यदि दो ट्रेनें एक ही लाइन पर आ जाएं तो दुर्घटनाओं को रोकने में मदद करने के लिए भारत में निर्मित ऑटोमेटिक ट्रेन कोलिजन प्रिवेंशन सिस्टम ‘कवच’ इस रूट पर उपलब्ध नहीं था। अब तक, १,४६५ किमी रूट और १२१ ट्रेन इंजनों में ही कवच सिस्टम इंस्टॉल हुआ है।
– किरन पांडे, दादर

नियमित रखरखाव का है अभाव
हिंदुस्थान में बीते ७० सालों के दौरान कई बार रेल हादसे सामने आए हैं। इनमें एक अहम वजह ये भी है कि तापमान के उतार-चढ़ाव के कारण धातु से बनी रेल की पटरियां गर्मी के महीनों में पैâलती हैं और सर्दियों में सिकुड़ती हैं। उन्हें नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है। थोड़ी भी लापरवाही बरतने पर ये बड़े हादसे का रूप ले लेती है। इसके अलावा रेल हादसों के लिए रखरखाव और धन की कमी भी बड़ी वजह है।
– सरिता त्रिवेदी, बोरीवली

…तो भारतीय रेल से उठ जाएगा विश्वास
हिंदुस्थान जैसे विशाल देश में जहां ढाई करोड़ लोग अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए रोज रेल मार्ग से ही यात्रा करते हैं, वहां यदि इस तरह की मानवीय अथवा तकनीकी लापरवाही या साजिश को रोका नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं, जब उनका विश्वास रेल मार्ग से यात्रा करने से उठ जाएगा और वो फिर से आदमयुग में अपने जीवन को वापस ले जाने की कल्पना करने लगेंगे।
– कल्पना दीक्षित, विक्रोली

अगले सप्ताह का सवाल?
`मध्य रेल के नए प्लान के मुताबिक हार्बर लाइन की ट्रेनें सीएसएमटी तक न जाकर सैंडहर्स्ट रोड तक ही जाएंगी। इससे सीएसएमटी तक जानेवाले यात्रियों को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ेगा। इस पर आपकी क्या राय है?
अपने विचार हमें लिख भेजें या मोबाइल नं. ९३२४१७६७६९ पर व्हॉट्सऐप करें।

करीब पहुंचकर भी नहीं जीत पाई इंडिया! …पहला एकदिवसीय मैच हुआ टाई

भारतीय क्रिकेट टीम श्रीलंका दौरे पर गई है। भारतीय टीम ने पहले टी-२० सीरीज में क्लीन स्वीप किया था। अब कल से एकदिवसीय सीरीज की शुरुआत हुई। कोलंबो में खेले गए पहले वनडे मुकाबले में श्रीलंका के कप्तान चरित असालंका ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी चुनी। श्रीलंका शुरुआत से ही लड़खड़ाती दिखी। जैसे-तैसे श्रीलंका २३० रनों तक पहुंच पाई। २३१ के जवाब में उतरी इंडिया टीम की पूरी टीम २३० पर ही आउट हो गई और मैच टाई हो गया।
बता दें कि २३० रनों के लक्ष्य के जवाब में भारत ने धमाकेदार शुरुआत की। रोहित ने ३३ गेंद में अर्धशतक पूरा किया। सलामी बल्लेबाज शुभमन गिल ३५ गेंद में १६ रन बनाकर आउट हुए। वहीं कप्तान रोहित शर्मा ने ४७ गेंद में ५८ रन बनाए। इन दोनों बल्लेबाजों को वेल्लालगे ने आउट किया। वाशिंगटन सुंदर पांच रन ही बना सके। विराट कोहली और श्रेयस अय्यर सेट होने के बाद आउट हुए। कोहली ने ३२ गेंद में २४ और श्रेयस ने २३ गेंद में २३ रन बनाए। केएल राहुल और अक्षर के बीच शानदार ५७ रन की साझेदारी हुई। राहुल ३१ और अक्षर ३३ रन बनाकर आउट हुए।
वैसे श्रीलंका ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग का पैâसला लिया था। हालांकि, श्रीलंका के लिए यह पैâसला कुछ खास साबित नहीं हुआ और तीसरे ओवर में ही श्रीलंका को पहला झटका लगा। मोहम्मद सिराज ने अपने दूसरे ही ओवर में भारत को पहली सफलता दिलाई। निसांका और मेंडिस के बीच दूसरे विकेट के लिए ३९ रन की साझेदारी हुई है। कुसल मेंडिस ३१ गेंद में १४ रन बनाकर आउट हुए। शिवम ने उन्हें आउट किया। सदीरा समरविक्रमा १८ गेंद में ८ रन ही बना सके। कप्तान चरिथ असलंका २१ गेंद में १४ रन ही बना सके।