मुख्यपृष्ठनए समाचारपारेटिक्स: आस निज निज गृह जाहू एमपी के दिग्गजों पर लागू

पारेटिक्स: आस निज निज गृह जाहू एमपी के दिग्गजों पर लागू

प्रणव पारे तजहु 

सीता विवाह के समय जब बड़े-बड़े दिग्गज धनुष को उठा भी नहीं पाए थे, तब राजा जनक ने कहा था कि शायद ये पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है इसलिए आशा छोड़कर सभी दिग्गज अपने-अपने घरों को प्रस्थान करिए। मध्य प्रदेश में भी इस बार बड़े-बड़े दिग्गजों पर ये दोहा लागू होता दिखा।
कौन बनेगा मुख्यमंत्री का सस्पेंस जब खत्म हुआ तो मानो प्रदेश की सियासत में भूचाल सा आ गया। केंद्रीय नेतृत्व ने उज्जैन दक्षिण से विधायक और उच्च शिक्षामंत्री मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया। मध्य प्रदेश में किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी। इस सदमे से उबरने में प्रदेश नेतृत्व को समय लगेगा क्योंकि अब बयानों और प्रतिक्रियाओं की झड़ी लग गई है। स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के प्रेस कॉन्प्रâेंस में तेवर तल्ख दिखे, जो कि उनके स्वभाव के ठीक उलट थे। सामान्यत: शांत और विनम्र शिवराज सिंह ने पत्रकारों से कहा कि वो दिल्ली जाने से बेहतर मर जाना ठीक समझते हैं। मैं दिल्ली काम मांगने हरगिज नहीं जाऊंगा। उनके इस बयान के बाद से भोपाल की सियासत में बवाल मचा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कल राजभवन जाकर अपना त्यागपत्र भी दे दिया। उनके इस बयान के बाद से उनके समर्थक उनके पक्ष में लामबंद होते दिख रहे हैं और प्रदेश की सियासत में इसका क्या असर होगा, वो आने वाला वक्त बताएगा। दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के इतिहास में अब तक के हुए उलटफेर में ये वाला उलटफेर न सिर्फ ऐतिहासिक है, बल्कि मीडिया के अपने पूर्वाग्रहों अटकलों और कयासों के तिलस्म को तोड़ने वाला साबित हुआ है। सुबह ११ बजे के बाद भाजपा कार्यालय पर भीड़ बढ़ने लगी थी। उसके बाद जब केंद्रीय पर्यवेक्षक दल भीतर घुसा तो उसके बाद मुख्य गेट को सील कर दिया गया और केवल अधिकृत व्यक्तियों को ही अंदर जाने की अनुमति मिल पाई। यहां तक कि मीडिया के बैठने की व्यवस्था भी कार्यालय से बाहर ही की गई थी। पूरा माहौल पल-पल में बदलता देखा गया। नारेबाजी, शोरगुल और मीडिया के सामने दावेदार नेताओं के समर्थक नाचते-कूदते रहे। दोपहर तक प्रह्लाद पटेल के भोपाल आवास पर पुलिस सुरक्षा बढ़ा दी गई, जिसके बाद जबदस्त अफवाह पैâली कि प्रह्लाद पटेल का नाम तय हो गया है। उसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के भोपाल आने की खबर ने फिर माहौल को गरमा दिया, लेकिन शाम को ४ बजे के बाद मोहन यादव के नाम की घोषणा ने सभी को हक्का-बक्का कर दिया।
पीढ़ी परिवर्तन का संकेत
भाजपा आलाकमान और संघ ने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं, ऐसा दिखाई पड़ता है। पहला मध्य प्रदेश में ओबीसी मुख्यमंत्री बनेगा, इसी उम्मीद में शिवराज सिंह और प्रह्लाद पटेल आश्वस्त थे, और दूसरे ओबीसी प्रबल दावेदार कृषि मंत्री कमल पटेल हरदा से चुनाव हार गए तो ओबीसी वर्ग से संभावित दो नामों पर ही मुहर लगनी थी। दूसरी तरफ वैâलाश विजयवर्गीय भी दावेदारी में कम नहीं पड़े। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी रेस में थे तो फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक मोहन यादव का नाम सामने आ गया। जानकार बताते हैं कि मोहन यादव का नाम दिल्ली से ही बंद लिफाफे में पर्यवेक्षक लेकर आए थे। विधायक दल की बैठक किसी नाम को चुनने के लिए नहीं बल्कि इस नाम पर सहमति बनाने के लिए हुई थी। पहले दौर में संभावित नामों को लेकर चर्चा हुई फिर उनके न चुने जाने के कारणों को विस्तार से बताया गया और फिर केंद्र से लाए गए लिफाफे को अंत में खोलकर मोहन यादव के नाम पर सहमति बना दी गई।
दरअसल, ध्यान से देखने पर ये सारी रचना लोकसभा चुनावों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव समीकरणों पर भी भाजपा की नजर होगी तो मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान सौंपने में कोई बड़ा संदेश हो सकता है। दूसरी तरफ पार्टी ने बड़े-बड़े दिग्गजों को नई पीढ़ी के लिए रास्ता छोड़ देने का संदेश दे दिया है। ये सिलसिला पार्टी के संगठन में भी दिखाई पड़े तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पार्टी के दिग्गज हो सकता है इस समय सदमे में हैं और युवा नेता जोश में, तो इसका मतलब साफ है कि आने वाले तीस सालों की नए नेतृत्व को खड़ा करने का यह ठीक समय है।
क्या करेंगे दिग्गज नेता
जो कल तक मुख्यमंत्री के दावेदार थे, उनके सेटलमेंट की सुगबुगाहट भी अब सुनाई पड़ने लगी है। इसकी शुरुआत छत्तीसगढ़ में रमण सिंह और मध्य प्रदेश में नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा का स्पीकर बनाकर कर दी गई। अब तीनों ही राज्यों में कमोबेश यही करना है तो मध्य प्रदेश में कुछ दिग्गजों को नए मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है। कुछ को केंद्र सरकार में तो कुछ दिग्गजों को राज्यपाल बनाने का प्रयास हो सकता है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पहले भी अनुमान लगाया जा रहा था तो हो सकता है उन्हें ये प्रस्ताव दिया जाए। हालांकि, इसमें भी बहुत सारे पेच है।
जातीय समीकरण
साधने की कवायद
विंध्य से आने वाले कद्दावर ब्राह्मण नेता राजेंद्र शुक्ल को डिप्टी चीफ मिनिस्टर बनाकर सामान्य वर्ग को साधने की कोशिश की गई है, वहीं जगदीश देवड़ा के सहारे दलित वोटों पर निशाना लगाया गया है। बहरहाल, मध्य प्रदेश के साथ अन्य दो राज्यों के चुनाव परिणामों में मिली प्रचंड जीत के बाद भाजपा केंद्रीय नेतृत्व अब नए प्रयोगों के लिए तैयार दिख रहा है परंतु ये तो शुरुआत है। जातीय आधार पर जनगणना वाली बिसात पर कांग्रेस कितना कामयाब होगी और भाजपा अपने नए प्रयोग से इसे वैâसे रोकेगी, ये तो वक्त बताएगा।
(लेखक, साहित्यकार एवं
वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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