मुख्यपृष्ठस्तंभपुस्तक समीक्षा : मुक्तक परंपरा में दुर्लभ रचना है श्रीराम मुक्तकमणिमाल

पुस्तक समीक्षा : मुक्तक परंपरा में दुर्लभ रचना है श्रीराम मुक्तकमणिमाल

अमिताभ श्रीवास्तव

जो सबसे मुक्त रहता है वो सबमें रहता है। जैसे सत्य। सत्य को कोई मैला नहीं कर सकता, वो सदैव अपनी पवित्र अवस्था में प्रकाशमान रहता है। हम सबमें भी वही सत्य है। हम सबमें राम हैं। राम ही सत्य हैं। राम ही मुक्तक हैं। क्योंकि मुक्तक स्वयं में संपूर्ण होते हैं। उनमें चमत्कार की क्षमता होती है और यदि ‘श्रीराम मुक्तकमणिमाल’ की बात हो तो ठीक राम के प्रति प्रेम, भक्ति उनके दर्शन को अनुभव करने जैसा है। हिंदी साहित्य में मुक्तक की विशिष्ट परंपरा रही है। ‘अन्यै: मुक्तमं इति मुक्तकं’। जो अन्य श्लोकों या अंशों से मुक्त हो वो मुक्तक। मुक्तक मुझे राम की तरह प्रतीत होते हैं और जो राम के लिए ही रचे गए हों उनका रस कितना मधुर होगा, इसकी आप कल्पना कर सकते हैं। ये कल्पना भी राम कृपा से होगी। इसका रसपान भी राम कृपा से ही संभव है जो लेखक आशीष श्रीवास्तव ‘अश्क’ पर बरसी और उनके माध्यम से पाठकों को भी तरबतर करने के लिए प्रभु श्री राम ने ही ‘श्रीराम मुक्तकमणिमाल’ की रचना संभव की है। १०८ मुक्तक और एक बंध माला सुमेरु सहित १०९ मुक्तकों में पिरोई गई यह अद्भुत नित्य पठन योग्य पुस्तक बन गई है। उन्होंने लिखा भी है कि-
राम माध्यम हैं जगत के, प्राप्ति कारण राम हैं
लीन उनमें जगत होता, जगत धारणा राम हैं
भिन्न रहते वे जगत से, और वे ही हैं निकट
आदि से चल अंत तक का, एक पारण राम हैं।
श्री राम पर लिखी गई समस्त पुस्तकों में शायद ही कभी मुक्तक के माध्यम से भक्ति रची गई हो। यह लेखक की राम भक्ति का परिणाम है, जो आज मुक्तकों से ओत-प्रोत राम दर्शन सुलभ हुआ है। माया जगत में राम ही एक आधार हैं, जो माया से पार ले जा सकते हैं। पुस्तक में लेखक ने बड़ी सरलता व सहजता से बताया है कि-
देह माया से बनी है, मन उसी का अंग है
इसलिए माया हमेशा, रह रही नित संग है
अब लिया है जान हमने, राम के हम अंश हैं
सत्य को इस मान बदलें, हर बुरा जो ढंग है।
राम हमारे जीवन के ऐसे आदर्श पुरुष हैं, जो मर्यादा सिखाते हैं। रामचरित मानस हो या वाल्मीकि रामायण राम के जीवन से आज हम अपने जीवन को व्यवस्थित रख सकते हैं। शायद यही वजह भी है कि आज रामचरित मानस से मैनेजमेंट को बखूबी समझा जा सकता है। आशीष श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक में भी मुक्तक के जरिए जीवन के मैनेजमेंट को प्रदर्शित किया है। पिछले दिनों श्रीराम मुक्तकमणिमाल के लोकार्पण अवसर पर मौनी आश्रम उज्जैन के महामंडलेश्वर मानस भूषण श्री सुमनानंद गिरी जी ने भी इस पुस्तक के संदर्भ को व्यक्त करते हुए कहा कि यह सब राम कृपा का ही प्रतिफल है, जो ऐसी रचना संभव हुई है। संस्कृत के विद्वान कुलपति रह चुके आचार्य बालकृष्ण शर्मा जी ने भी इस पुस्तक को श्रेष्ठ रचना माना है। श्रीराम मुक्तकमणिमाल का प्रकाशन ऋषि-मुनि प्रकाशन ने किया है। पुस्तक का मूल्य १५० रुपए है और अमेजान पर भी यह उपलब्ध है।

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