लोकसभा चुनाव के सात में से दो चरण पूरे हो चुके हैं। अभी पांच चरणों का मतदान बाकी है। लेकिन चुनाव के पहले दो चरणों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार का स्तर गिरा ही दिया है, उनके भाषण के मुद्दे भी बेहद निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री पद की एक गरिमा या प्रतिष्ठा होती है। ऐसे सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति अपने पद की गरिमा बनाए रखने के अनुरूप बोले, इस तरह का एक संकेत या शिष्टाचार होता है। लेकिन जिनके आचरण में ही गजब का घमंड है, उनसे हम यह उम्मीद वैâसे कर सकते हैं? देश में आज तक जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, उन सभी ने अपनी वाणी एवं आचरण से इस पद की गरिमा तथा एक राष्ट्रप्रमुख के रूप में संयम से बोलने के शिष्टाचार को बड़े जतन से बनाए रखा। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इन सभी संकेतों को धरातल पर उतारकर इस पद की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने मोदी की इस भाषा पर उंगली उठाई है। लालू यादव राजनीति के प्रतीक हैं। उन्हें अपनी विशिष्ट शैली में तंज कसने, अपने अंदाज में हंसी उड़ाकर गुदगुदाने और अच्छे अच्छों को पानी पिलाने में महारत हासिल है। फिलहाल, वे सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव नहीं हैं। लेकिन मोदी के दो चरण की प्रचार सभाओं और उनके बेतुके भाषणों को देखते हुए लालू मोदी पर चुटकी लेने का प्रलोभन नहीं छोड़ सके इसलिए जब से चुनाव की घोषणा हुई है तब से बिना ताल के बोलने वाले प्रधानमंत्री मोदी की भाषा को लेकर लालू ने सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर एक पोस्ट किया और नेटिजन्स ने भी इसे हाथों-हाथ लिया। इस पोस्ट के जरिए मोदी की खिल्ली उड़ाते हुए लालू कहते हैं, ‘हिंदी भाषा में आज करीब डेढ़ लाख शब्द हैं। इसके अलावा अगर सभी शाखाओं के पाठ्यक्रम और तकनीकी शब्दों को मिला दें तो शब्दों की संख्या करीब-करीब साढ़े छह लाख तक बढ़ जाती है। इतनी विशाल शब्दावली उपलब्ध होने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पसंदीदा शब्द क्या हैं, ‘पाकिस्तान, श्मशान, कब्रिस्तान, हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, मछली-मुगल, मंगलसूत्र और गाय-भैंस।’ लालू आगे कहते हैं, उपरोक्त शब्दों की सूची केवल चुनाव के पहले दो चरणों के लिए है। सातवें चरण का प्रचार खत्म होने तक प्रधानमंत्री की शब्दावली में ऐसे दो-चार शब्द और बढ़ सकते हैं। प्रधानमंत्री देश के महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे नौकरी-रोजगार, गरीबी, कृषि, महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, विकास, निवेश, विद्यार्थी, विज्ञान और देश के युवा को भूल गए हैं। यानी लालू के पोस्ट का आशय ये है कि प्रधानमंत्री ने देश के मुख्य मुद्दों से बचकर इतने सारे शब्द याद किए हैं जो सिर्फ धार्मिक उन्माद बढ़ाते हैं। प्रधानमंत्री के कम से कम शब्दों में लालू प्रसाद यादव ने जो किया है वह सभी देशवासियों की भावना है। ‘अगर कांग्रेस सत्ता में आती है हिंदुओं का धन जिन लोगों के अधिक बच्चे हैं उन्हें बांट देगी। तुम्हारे मंगलसूत्र खींच लिए जाएंगे और हिंदुओं का धन मुसलमानों में बांट दिया जाएगा’, इस तरह के जहरीले वक्तव्य देना, वह भी देश के प्रधानमंत्री का, इससे ज्यादा और क्या दुर्भाग्य हो सकता है। मछली खाने और मटन खाने जैसे भोजन की स्वतंत्रता के मुद्दों को चुनाव प्रचार में लाकर मांसाहारियों को सीधे तौर पर मुगलों से जोड़ना इसे वैचारिक दरिद्रता कहा जाना चाहिए। देश के प्रधानमंत्री एकता की बजाय देश में हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत पैदा करनेवाले भाषण देते हैं और उनके घरेलू बन चुके चुनाव आयुक्त उस भाषा को बर्दाश्त करते हैं। कुल मिलाकर, इस तरह का तमाशा लोकतंत्र व चुनाव के नाम पर देश में फिलहाल चल रहा है। ‘काला पैसा वापस लाएंगे’, ‘हर साल २ करोड़ लोगों को रोजगार देंगे’, ‘स्मार्ट सिटी बनाएंगे’, ‘बहुत हो गई महंगाई की मार’ जैसे खोखले नारे देकर सत्ता में आए प्रधानमंत्री मोदी अब इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक भी बार मुंह खोलते नहीं दिखाई देते। वे जहां भी प्रचार करने जाते हैं, केवल हिंदू-मुसलमान, पाकिस्तान और पवित्र मंगलसूत्र के नाम पर धार्मिक उन्माद फैला रहे हैं। वे मनमाने ढंग से बेतुके बोल से देश में अशांति फैला रहे हैं। मोदी की डिक्शनरी में इन नफरत भरे शब्दों पर लालू प्रसाद यादव के चाबुक को सही कहा जाना चाहिए। क्या देश के मुखिया को ही वोट के लिए देशवासियों के मन में नफरत बोनी चाहिए? क्या प्रधानमंत्री ऐसा होना चाहिए? फैसला अब देशवासियों को ही करना है!