गजल

कोई दिल लगाने को मिलता नहीं है,
मुहब्बत का गुल कोई खिलता नहीं है।
चकाचौंध दुनिया की कितनी लुभाती,
भटकता बहुत दिल ठहरता नहीं है।
गमों का समंदर न हटता हटाएं,
कोई रास्ता और दिखता नहीं है।
बने अपने पहले हुए अब पराए,
कदम दो कदम संग चलता नहीं है।
भले सींचे कितना मुहब्बत से लेकिन,
शजर प्रेम का कोई उगता नहीं है।
पहल गर करें तो मिले कामयाबी,
जलाएं बिना दीप जलता नहीं है।
बहारों का स्वागत करें आगे बढ़ के,
इशारों से मौसम बदलता नहीं है।
-नागेंद्र नाथ गुप्ता, ठाणे

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