संदीप पांडेय
जलगांव जिले के पाचोरा तालुका के रहनेवाले भगवान गोपीनाथ भंडारकर कुछ बनने की चाहत लिए मुंबई आए थे। संघर्षों से भरा जीवन होने के बावजूद कुछ कर गुजरने की चाहत और समस्याओं के आगे झुकने की बजाय उससे डटकर मुकाबला करनेवाले भगवान गोपीनाथ को उनकी हिम्मत ने एक सफल इंसान बना ही दिया। ठाणे के दिवा में रहनेवाले भगवान गोपीनाथ बताते हैं कि गांव में खेती करने के साथ ही वे एक किराना स्टोर पर नौकरी भी करते थे। कई सालों तक वहां काम करने के बाद जब उन्होंने देखा कि इससे आगे और नहीं बढ़ा जा सकता तो उन्होंने मुंबई का रुख किया। मात्र दो हजार रुपए लेकर मुंबई पहुंचनेवाले भगवान गोपीनाथ ने भांडुप में सुरक्षारक्षक की भर्ती के लिए ऑनलाइन फॉर्म भर दिया। ऊपर वाले की कृपा से वहां उनकी नियुक्ति हो गई, लेकिन सिर्फ चार हजार रुपए उन्हें मेहनताना मिलता था, जिसमें से ढाई हजार रुपए मकान के किराए में चले जाते थे और बाकी जो रकम बचती थी, उसमें घर चलाना मुश्किल हो जाता था। सुरक्षारक्षक की ड्यूटी के बाद घर चलाने के लिए वो भांडुप में ही प्लाईवुड की दुकानों का सामान बिल्डिंगों में पहुंचाने का कार्य करते। दूसरे शब्दों में कहें तो एक तरह से वो पार्ट टाइम हमाल का काम करने लगे। दिन में ड्यूटी और रात में मजदूरी करते हुए कुछ पैसा जमा हुआ तो उन्होंने वही किया जो उन्होंने पहले से सोच रखा था यानी मुंबई में अपना खुद का मकान। उन्होंने मेहनत से हार नहीं मानी और संघर्ष करते हुए एक अपना छोटा सा खुद का मकान ठाणे के दिवा में खरीद लिया। भगवान गोपीनाथ भंडारकर ने बताया कि आज उन्हें काट-पीट कर २० हजार रुपए तनख्वाह मिलती है, लेकिन मुंबई जैसे शहर का खर्चा, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, दवाई, गांव आने-जाने के कारण पैसा पूरा नहीं पड़ता। इसलिए आज भी सुरक्षारक्षक की ड्यूटी के बाद पार्ट टाइम काम करने का सिलसिला उन्होंने जारी रखा हुआ है, लेकिन भगवान गोपीनाथ अब प्लाईवुड पहुंचाने की बजाय प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन का काम करते हैं। भगवान गोपीनाथ भंडारकर का मानना है कि जीवन में किसी का भला नहीं कर सकते तो किसी को अपनी तरफ से परेशान न करो, नुकसान न पहुंचाओ। खैर, जिओ और जीने दो पर विश्वास करनेवाले भगवान गोपीनाथ का कहना है कि युवाओं को रोजगार तभी मिलेगा, जब हमारा राज्य प्रगति करेगा।