सामना संवाददाता / मुंबई
पिछले कुछ महीने से मुंबई सहित आस-पास के शहर में ड्रग्स तस्करी के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। सिर्फ पिछले एक महीने में मुंबई और आस-पास के शहरों में नशे के कारोबार पर कार्रवाई करते हुए १६ किलो ड्रग्स बरामद करते हुए १६ लोगों को गिरफ्तार किया गया है। जब्त ड्रग्स की कीमत लगभग साढ़े तीन करोड़ बताई जा रही है। इसके पहले पुणे पुलिस ने नशे के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए ४,००० करोड़ रुपए की २,००० किलो एमडी ड्रग्स जब्त की थी। लगातार हो रही इस कार्रवाई को देख कहा जाने लगा है कि महाराष्ट्र उड़ता पंजाब बन रहा है।
मुंबई पुलिस की तरफ से १५ अगस्त को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है। इस बीच बुधवार भोर में ऐरोली टोल नाके के पास नाकाबंदी के दौरान पुलिस ने एमडी पावडर के साथ एक आरोपी को गिरफ्तार किया। यह आरोपी एमडी पावडर कार में रख कर ले जा रहा था। जांच में पता चला कि इसके साथ एक अन्य आरोपी भी इस कारोबार में जुड़ा हुआ है, जिसकी तलाश की जा रही है। लेकिन इस कार्रवाई के बाद लगातार मुंबई और आस पास के शहरों में ड्रग्स तस्करी के बढ़ते मामलों को देख साफ हो रहा है कि एक बार फिर मुंबई उड़ता पंजाब बनता जा रहा है। मुंबई पुलिस की एंटी-नारकोटिक्स सेल (एएनसी) ने पिछले कुछ महीने में साढ़े तीन करोड़ रुपए की अनुमानित लागत के साथ १६ किलोग्राम ड्रग्स जब्त किया है और १६ तस्करों को गिरफ्तार किया है। ये गिरफ्तारियां सहार गांव, नालासोपारा, सांताक्रूज, कुर्ला, भायखला और अन्य इलाकों से की गईं।
नमक के पैकेट में छुपाया ड्रग्स
ड्रग्स तस्करी के मामले में गिरफ्तार आरोपी पिछले साल पुणे की येरवडा सेंट्रल जेल से रिहा हुए थे। इसके बाद से दोनों ड्रग्स बेचने का काम करने लगे। आरोप है कि दोनों युवाओं और छात्रों को निशाना बनाते थे और पुणे में बड़ी मात्रा में ड्रग्स बेचते थे। पुणे में देशभर से लाखों छात्र पढ़ने के लिए आते हैं, जबकि हजारों की संख्या में बाहर से आए युवा यहां नौकरी करते हैं। आरोपियों ने पुलिस से बचने के लिए ड्रग्स को नमक के पैकेट में छिपाया था।
मुंबई टू पुणे ड्रग्स एक्सप्रेस! … महाराष्ट्र में बन रहा है `उड़ता पंजाब’
सम-सामयिक : ओलिंपिक पदक और यौन उत्पीड़न की लड़ाई!
महेश आर.
ओलिंपिक में फाइनल में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनने के बाद अयोग्य घोषित की गर्इं फोगाट अपने साथियों के साथ पिछले लंबे समय से देश के कुश्ती महासंघ में यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं। भारतीय पहलवान विनेश फोगाट को बुधवार, ७ अगस्त को चल रहे पेरिस ओलिंपिक में ५० किलोग्राम वर्ग के कुश्ती मैच के फाइनल से पहले अयोग्य घोषित कर दिया गया, जबकि उनकी लगातार दो जीतों ने उन्हें स्वर्ण पदक की दावेदारी करने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बना दिया था। २९ वर्षीय पहलवान को अयोग्य घोषित किए जाने से भारत में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है।
फाइनल मैच से ठीक पहले आई इस खबर ने, भारत में व्यापक जश्न को मातम में बदल दिया और खेलों में उनके साथ गए भारतीय अधिकारियों के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा और कई लोगों ने तो फोगाट के साथ संभावित षड्यंत्र की अटकलें लगानी शुरू कर दीं।
बुधवार को भारतीय संसद में विपक्ष के सदस्यों ने संसदीय कार्यवाही का बहिष्कार किया और सरकार पर आरोप लगाया कि वह ओलिंपिक अधिकारियों के सामने फोगाट का उचित बचाव करने में विफल रही है और यहां तक कि राजनीतिक कारणों से फोगाट की अब तक की उपलब्धियों को कमतर आंकने का प्रयास कर रही है। बुधवार को फोगाट का वजन मैच से पहले सुबह ५० किलोग्राम से मात्र १०० ग्राम अधिक पाया गया और खेल के नियमों के अनुसार उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। उन्हें रजत पदक भी नहीं दिया गया। अधिकारियों ने फाइनल मैच में क्यूबा की पहलवान युस्नेलिस गुजमैन को, जो एक दिन पहले सेमीफाइनल में फोगाट से हार गई थी, को अमेरिका की सारा हिल्डेब्रेंट से मुकाबला करने का आदेश दिया और सारा ने आखिरकार स्वर्ण पदक जीत लिया।
फाइनल की दौड़ के दौरान फोगाट ने चार बार की विश्व चैंपियन और गत स्वर्ण पदक विजेता जापान की यूई सुसाकी को हराया था, जिन्हें फोगाट के अयोग्य घोषित होने के बाद कांस्य पदक के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए कहा गया, जिसे उन्होंने जीत लिया।
फोगाट सरकार के खिलाफ एक कठिन लड़ाई लड़ रही हैं, उन्होंने अप्रैल में सोशल मीडिया पर ओलिंपिक ट्रायल शुरू होने से ठीक पहले उन्हें जरूरी सहायक स्टाफ मुहैया कराने में अधिकारियों द्वारा की गई देरी पर अपनी निराशा व्यक्त की थी। उन्होंने अधिकारियों की ओर से उनके खिलाफ संभावित षड्यंत्र के बारे में भी आशंकाएं जताई थीं। भारतीय कुश्ती महासंघ द्वारा फोगाट को उनके प्राकृतिक भार वर्ग से बहुत नीचे के वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने पर मजबूर करने पर विवाद खड़ा हुआ था। आरोप है कि वे पहले ५३ किलोग्राम वर्ग में भाग ले रही थीं, जबकि उन्हें ५० किलोग्राम वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने को कहा गया और ऐसा न करने पर पेरिस जाने का मौका गंवाने की चेतावनी दी गई। बुधवार को अयोग्य ठहराए जाने के कुछ घंटों बाद फोगाट ने कुश्ती से संन्यास की घोषणा कर दी और दावा किया कि अब उनमें कई लड़ाइयां लड़ने की ऊर्जा नहीं बची है।
मंगलवार को फोगाट की जीत ने आम भारतीयों में जोश भर दिया था। ओलिंपिक में भारत द्वारा जीते जानेवाले पदकों की दुर्लभता को देखते हुए, उनमें से प्रत्येक को देश में एक खजाने की तरह संजोया जाता है। हालांकि, फोगाट के मामले में जश्न ज्यादा जोरदार था क्योंकि वे जिन परिस्थितियों में प्रतिस्पर्धा कर रही थीं। कई लोगों ने सोचा कि संभावित स्वर्ण पदक देश में खेलों में यौन उत्पीड़न के खिलाफ उसकी लड़ाई को सही साबित करेगा। फोगाट के मित्र और ओलिंपियन बजरंग पुनिया ने कहा कि वे खेलों के बाद संन्यास लेने की योजना बना रही हैं और अपना समय देश में महिला मुक्केबाजों की भावी पीढ़ी के लिए खेलों में सुरक्षित माहौल बनाने के लिए समर्पित करेंगी।
ओलिंपिक से ठीक पहले, फोगाट और उनके साथियों का मुकाबला भारत में खेलों की एक बहुत शक्तिशाली लॉबी से था, जिसका समर्थन सत्तारूढ़ पार्टी करती है!
फोगाट, साक्षी मलिक और पुनिया (दोनों ओलिंपिक पदक विजेता पहलवान) ने पिछले साल मई-जून में राजधानी नई दिल्ली में धरना दिया था और तत्कालीन डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह सहित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। उन्होंने उन पर महिला पहलवानों के यौन शोषण मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया था।
बृजभूषण शरण सिंह, सत्तारूढ़ भाजपा की तरफ से भारतीय संसद के सदस्य भी थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद के खिलाफ कोई कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था। इसके बजाय दिल्ली में धरने पर पुलिस ने हमला किया और पहलवानों के साथ बदसलूकी की और उन्हें जबरन कार्यक्रम स्थल से हटा दिया।
सत्ताधारी पार्टी ने सोशल और मेनस्ट्रीम मीडिया दोनों पर फोगाट और अन्य पहलवानों के खिलाफ एक अभियान चलाया, जिसमें भाजपा को राजनीतिक रूप से बदनाम करने के लिए विपक्ष के साथ मिलीभगत के बेबुनियाद आरोप लगाए गए। कुछ सोशल मीडिया यूजर्स और मेनस्ट्रीम मीडिया ने पहलवानों के तौर पर उनकी साख पर भी सवाल उठाए।
हालांकि, बृजभूषण शरण सिंह ने डब्ल्यूएफआई छोड़ दी और बाद में दिल्ली की एक अदालत में उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए, फिर भी वह अपने करीबी विश्वासपात्र संजय सिंह को डब्ल्यूएफआई का नया अध्यक्ष बनवाने में सफल रहे। इसके चलते साक्षी ने कुश्ती से संन्यास की घोषणा कर दी। सरकार द्वारा बृजभूषण शरण सिंह को कथित तौर पर बचाने के विरोध में उन्होंने पहले ही अपने पदक को समर्पित कर दिया था। पुनिया ने भी डब्लूएफआई पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इन विरोधों के बावजूद भाजपा ने आगे बढ़कर बृजभूषण शरण सिंह के बेटे करण भूषण सिंह को इस साल की शुरुआत में हुए संसदीय चुनावों में टिकट दिया, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बृजभूषण की राजनीतिक ताकत कितनी है। करण सिंह चुनाव जीत गए और अब संसद के सदस्य हैं।
पेरिस खेलों में षड्यंत्र की अटकलें इस तथ्य से उपजी हैं कि अधिकारी सत्तारूढ़ पार्टी और बृजभूषण शरण सिंह के प्रभाव में काम कर रहे थे, क्योंकि यदि फोगाट तमाम बाधाओं के बावजूद पदक जीतने में सफल हो जाती तो उन्हें बहुत कुछ खोना पड़ता। यद्यपि फोगाट ने खेलों से संन्यास ले लिया है, लेकिन लैंगिक न्याय और सम्मान के लिए उनका संघर्ष आगे भी भारतीय राजनीति को प्रभावित करता रहेगा।
स्वतंत्रता दिवस विशेष : आजादी की यादों से ओझल हुआ ‘इस्सुरु’ …अंग्रेजों के चंगुल से सबसे पहले हुआ था स्वतंत्र
अरुण कुमार गुप्ता
८ अगस्त १९४२ को स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ ‘भारत छोड़ो’ का क्रांतिकारी नारा दिया था। इसके बाद पूरे ब्रिटिश भारत में ब्रिटेन के शासन के खिलाफ एक मजबूत भावना उभरी। इस भावना ने भारत के दूर-दराज के गांवों को भी प्रभावित किया। ब्रिटिश ‘करों’ और अत्याचार से त्रस्त आम आदमी ने गांधीजी के ‘भारत छोड़ो’ के नारे को एक नई उम्मीद के रूप में देखा। तब तक शांत रहने वाले इस्सुरु में भी अशांति फैल गई। कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले के शिकारीपुर तालुका के एक गांव ने न केवल ‘भारत छोड़ो’ का नारा बुलंद किया, बल्कि अपने गांव की स्वतंत्रता की घोषणा भी कर दी। यह कोई साधारण घोषणा नहीं थी। उन्होंने एक प्रांतीय सरकार भी चुनी। उन्होंने अपने गांव के नेता साहूकार बसवन्ना का समर्थन किया। इस्सुरु के किसानों के इस साहसिक फैसले की गूंज पूरे देश में सुनाई दी। लेकिन आज आजादी के बाद धीरे-धीरे इस्सुरु हमारी यादों से ओझल होता गया।
कर्नाटक के तटीय शहर उडुपी से लगभग १७६ किलोमीटर दूर खेतों से घिरा शांत और सुंदर इस्सुरु गांव बसा है। आज जब देश अपना ७८वां गणतंत्र दिवस मना रहा है, तो हरे-भरे खेतों से घिरा यह शांत और सुंदर गांव १९४२ के अगस्त महीने में वैसा नहीं था। उस समय इस्सुरु गांव में खून की नदियां बह रही थीं और जली हुई झोपड़ियां बिखरी पड़ी थीं।
गांधी टोपी पहने स्वतंत्रता के प्रति जागरूक युवाओं ने वीरभद्रेश्वर मंदिर में तिरंगा फहराया। उन्होंने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार के अधिकारी उनके गांव में प्रवेश न करें। गांव के प्रवेश द्वार पर इस तरह के पोस्टर लगाए गए। बसवन्ना के नेतृत्व में ग्रामीणों ने अपनी सरकार की भी घोषणा कर दी। १६ वर्षीय जयन्ना (तहसीलदार) और मल्लप्पा (सब इंस्पेक्टर) को गांव का प्रशासन संभालने के लिए चुना गया। साहूकार बसवन्ना ने यह पैâसला यह कहते हुए लिया कि नाबालिग होने के कारण दोनों को जेल में बंद नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही, ब्रिटिश शासन का पूरी तरह से विरोध करते हुए गांव ने अपने कुछ नियम भी बनाए। इनमें से एक था ब्रिटिश अधिकारियों के गांव में प्रवेश पर प्रतिबंध।
ग्रामीणों ने औपनिवेशिक सरकार के लिए कर वसूलने आए राजस्व विभाग के अधिकारियों को ‘अंग्रेज कुत्ते’ कहकर अपमानित किया। उन्होंने अधिकारियों से उनके कागजात छीन लिए और उन्हें फाड़ डाला। गांव में तनाव की खबर अंग्रेजों तक भी पहुंची। मामले की जांच के लिए दो दिन बाद तहसीलदार, सब इंस्पेक्टर और आठ पुलिसकर्मियों सहित १० अधिकारी गांव पहुंचे। ब्रिटिश अधिकारियों के गांव में प्रवेश करने की खबर जंगल की आग की तरह पैâल गई। सभी ग्रामीण मंदिर के पास एक खुले मैदान में जमा हो गए। इस बीच, भीड़ ने तहसीलदार और सब इंस्पेक्टर को गांधी टोपी पहनने के लिए मजबूर किया। भीड़ को देखकर सब इंस्पेक्टर केंचगौड़ा ने हवा में गोली चला दी। गोली की आवाज सुनते ही भीड़ ने ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला कर दिया। इस संघर्ष में दो ब्रिटिश अधिकारियों की मौत हो गई। चार दिन बाद, ब्रिटिश सेना ने गांव में प्रवेश किया और उन दो मौतों का बदला लेने के लिए पूरे गांव को जला दिया। ब्रिटिश सेना ने कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया। बचे हुए लोग पास के जंगलों में भाग गए। जब मामला अदालत में पहुंचा, तो अदालत ने गुराप्पा, मल्लप्पा, सूर्यनारायणचार, हलाप्पा और शंकरप्पा पर विद्रोह का नेतृत्व करने का आरोप लगाते हुए पांच लोगों को मौत की सजा सुनाई।
मामले में मैसूर के महाराजा जयचामराज वोडेयार ने हस्तक्षेप किया। उनके प्रसिद्ध शब्द थे, एसुरु कोट्टारु इस्सुरु कोडेवु। यानी ‘हम आपको बहुत से गांव देंगे, लेकिन इस्सुरु नहीं। हालांकि, जयचामराज वोडेयार मौत की सजा पाए पांच लोगों के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सके, लेकिन उनके हस्तक्षेप से कई ग्रामीणों को बरी कर दिया गया। महात्मा गांधी के अहिंसा के मार्ग से भटककर हिंसा का रास्ता अपनाने वाले इस्सुरु की स्वतंत्रता की घोषणा स्वतंत्र भारत में गुमनामी में खो गई।
अटल सेतु की एप्रोच रोड पर पड़े गड्ढे मामले में ठेकेदार स्ट्रोबैग पर १ करोड़ का जुर्माना!
सामना संवाददाता / मुंबई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटित अटल सेतु की एप्रोच रोड पर गड्ढों के मामले में ठेकेदार स्ट्रोबैग पर १ करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है, यह जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को एमएमआरडीए प्रशासन ने दी है। आरटीआई कार्यकर्ता ने एमएमआरडीए प्रशासन से अटल सेतु गड्ढे के संबंध में विभिन्न जानकारी मांगी थीं। एमएमआरडीए प्रशासन ने गलगली को सूचित किया कि जून २०२४ के तीसरे सप्ताह में किए गए निरीक्षण के दौरान पुल के रैंप ५ को जोड़ने वाली अस्थायी सड़क में कुछ छोटी दरारें पाई गर्इं, जो मुख्य पुल का हिस्सा नहीं है। इन दरारों की तुरंत मरम्मत कर दी गई है। इस संबंध में ठेकेदार स्ट्रोबैग को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। २२ जून २०२४ को एमएमआरडीए के मुख्य अभियंता डीएम चमलवार ने ठेकेदार स्ट्रोबैग को एक नोटिस जारी कर सूचित किया कि उक्त सड़क का काम ५ जनवरी २०२४ को पूरा हो चुका है।
महिला भवन पर कब्जे के खिलाफ उग्र आंदोलन का एलान … सामना में खबर छपने के बाद विधायक गीता जैन ने चेताया
प्रेम यादव / भायंदर
मीरा-भायंदर की महिलाओं के लिए महापौर निवास को महिला भवन में बदलने का उद्देश्य महिलाओं के सशक्तीकरण और प्रशिक्षण को बढ़ावा देना था। प्रशासन ने इस भवन का उपयोग महिलाओं की बेहतरी के लिए करने का दावा किया था, लेकिन वास्तविकता इससे उलट नजर आ रही है।
भवन को एक निजी संस्था को अनुबंध के तहत सौंप दिया गया, जिसमें मनपा को संस्था के मुनाफे का २० प्रतिशत हिस्सा देने की शर्त रखी गई थी। हालांकि, वहां प्रशिक्षण लेनेवालों की संख्या बेहद कम होने के कारण मनपा को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है। राज्य सरकार जहां महिलाओं के लिए कई योजनाएं चला रही है, वहीं मनपा की इस पहल का फायदा केवल निजी संस्था को होता दिख रहा है।
जब यह खबर सामना में प्रकाशित हुई तो विधायक गीता जैन ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए चेतावनी दी कि यदि महिला भवन को जल्द से जल्द मनपा के अधीन नहीं किया गया, तो वे उग्र आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेंगी। विधायक जैन ने ये भी मांग की है कि संबंधित निजी संस्था पर कानूनी कार्रवाई की जाए, जो इस भवन का व्यावसायिक रूप से उपयोग कर रही है। यह मामला अब शहर में चर्चा का विषय बन चुका है और सभी की निगाहें मनपा के अगले कदम पर टिकी हुई हैं।
घाटकोपर में ४ फीट सीसी रोड पर किया कब्जा …अतिक्रमण की वजह से हो रहा है ट्रैफिक जाम
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई महानगरपालिका के रिश्वतखोर अभियंताओं की वजह से पूरे शहर में जगह-जगह अवैध निर्माण चल रहे हैं। इसके अलावा अवैध रूप से सरकारी जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है। घाटकोपर के एन वॉर्ड के अंदर तो एक बिल्डर ने पूरे सीसी रोड पर ही कब्जा कर लिया है। मिली जानकारी के अनुसार, घाटकोपर-पश्चिम के भाजी मार्वेâट में खोत गली में एक बिल्डर द्वारा पुरानी बिल्डिंग का रिकंस्ट्रक्शन किया जा रहा है। इस बिल्डर ने खोत गली की सड़क पर करीब ४ फीट तक पत्रा लगाकर कब्जा कर लिया है। इस अवैध कब्जे की वजह से रोड पर सब्जीवालों द्वारा अतिक्रमण किया गया है। अब बिल्डर द्वारा सड़क कब्जा करने की वजह से भयंकर ट्रैफिक जाम हो जाता है तथा शाम के समय बहुत ज्यादा भीड़भाड़ हो जाती है, जिसका फायदा उठाकर मनचलों द्वारा महिलाओं से छेड़छाड़ की जाती है। इस संदर्भ में घाटकोपर मनपा एन वॉर्ड को कई बार शिकायत की गई थी, जिसके बाद भी परीक्षण विभाग के अधिकारी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। स्थानीय समाजसेवकों ने मनपा एन वॉर्ड के सहायक आयुक्त गजानन बिलाले से बिल्डर को संरक्षण दे रहे भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करते हुए सड़क को अतिक्रमण से मुक्त करने की मांग की है।
नोटिस दी गई है कार्रवाई होगी
सहायक आयुक्त के निर्देशानुसार इस अतिक्रमण को नोटिस दी गई है। शीघ्र ही इस अतिक्रमण पर कार्रवाई की जाएगी।
– भरत केदार- सहायक अभियंता, परीक्षण विभाग-एन वॉर्ड
जनता त्रस्त अधिकारी-कर्मचारी मस्त … ५० हजार रिश्वत लेते डिप्टी कलेक्टर गिरफ्तार
सामना संवाददाता / पालघर
पालघर जिले में बुलेट की रफ्तार से रिश्वतखोरी जारी है। आलम यह है कि खुद पालघर का जिला मुख्यालय भी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा है, जिससे पालघर की प्रगति को भ्रष्टाचार के दीमक खोखला किए जा रहे हैं। यहां का राजस्व विभाग तो भ्रष्टाचार के लिए बुरी तरह बदनाम है। सामान्य प्रशासन विभाग के डिप्टी कलेक्टर संजीव जाधव को मुंबई एसीबी के अधिकारियों की एक टीम ने एक मामले में ५०,००० रुपए की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया है। दिलचस्प बात यह है कि जब कुछ दिन पहले उनका तबादला हुआ था। लेकिन अभी भी वे अपने तबादले को रोकने में जुटे हुए थे। मिली जानकारी के मुताबिक, ५० वर्षीय डिप्टी कलेक्टर ने एक व्यक्ति से भूमि सौदे के लिए अनुमति देने के बदले में ५० हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी। पीड़ित व्यक्ति ने भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (एसीबी) में शिकायत दर्ज कराई। टीम ने मंगलवार देर शाम कलक्ट्रेट कार्यालय में आरोपी को शिकायतकर्ता से रिश्वत की रकम लेते हुए पकड़ लिया। आरोपी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है।
मोदी ३.० के ६७ दिन में १७ आतंकी हमले!
सामना संवाददाता / जम्मू
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आतंकवाद के खात्मे पर चाहे जितने भी दावे कर लें, लेकिन जमीनी हकीकत तो कुछ और ही है। केंद्र की भाजपा सरकार भले ही यह कहती आई हो कि उनके राज में आतंकी हमले कम हुए हैं, लेकिन पिछले १० वर्षों में हुए आतंकी घटनाओं के आंकड़ों ने मोदी सरकार के दावों की पोल खोलकर रख दी है। मोदी के ३.० कार्यकाल में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए ६७ दिन हो चुके हैं, इन ६७ दिनों में १७ आतंकी हमले हुए हैं, जिसमें १८ जवान शहीद हो चुके हैं। बुधवार को जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के अस्सर इलाके में चार आतंकवादियों के एक समूह के साथ मुठभेड़ में एक सैन्य अधिकारी शहीद हो गया।
मुंबई मिस्ट्री : मुंबई है देश की स्वातंत्र्य राजधानी
विमल मिश्र
मुंबई
देश की स्वतंत्रता के इतिहास में महाराष्ट्र सरीखा योगदान कहीं और नहीं मिलता। मुंबई तो देश की आर्थिक राजधानी ही नहीं, स्वातंत्र्य राजधानी भी है।
महाराष्ट्र ने केंद्रीय सत्ता के रूप में पहले सातवाहन व वाकाटक और फिर कलचुरी, चालुक्य, यादव, खिलजी और बहमिनी वंशों का शासन देखा, जो बाद में बिखरकर छोटी-छोटी सल्तनतों में बदल गया। मराठा राज्य का सूर्य चढ़ा १७ वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज के आगमन के साथ। छत्रपति शिवाजी महाराज और कुछ हद तक उनके पुत्र संभाजी ने बिखरी ताकतों को एकबद्ध कर तान्हाजी मालसुरे, कान्होजी आंग्रे और अपने विश्वस्त सिपहसालारों के साथ शक्तिशाली सैन्य बल का संगठन किया और निजामशाही और मुगलों से जमकर लोहा लेते रहे।
मुंबई की तस्वीर १९ वीं सदी के शुरुआती दशकों में शेष महाराष्ट्र से बिलकुल अलग थी। १८२४ और १८२८-३० के दौरान मुंबई में कोलियों की इंफेंट्री में विद्रोह जरूर हुआ था, पर कैप्टेन एलेक्जेंडर व कैप्टेन मैकिंटोश के नेतृत्व में अंग्रेजी फौजों ने उसे दबा दिया था।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मुंबई
१८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने मुंबई में भी रंग दिखाया। ब्राह्मण, बैरागियों और भिक्षुओं के दल शहर में जगह- जगह फैलने लग गए। विद्रोह की शुरुआत शहर की २९ हिंदुस्तानी रेजिमेंट व पलटनों में से तीन में असंतोष पैâलने से हुई। इनमें मरीन बटालियन की १० वीं और ११ वीं मरीन पलटनें भी थीं। भयभीत गोरों ने अपने परिवारों को एहतियातन समुद्र में नौकाओं पर भेज दिया और खुद घरों में दुबककर छिप बैठे। अनहोनी रोकने के लिए इंग्लैंड से आई अंग्रेज सैनिकों की टुकड़ियां मुंबई में दाखिल होने लगीं। इनमें १९ सितंबर को आया सर ह्यूज रोज का काफिला भी था। स्थिति काबू आते ही सभी बागियों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। १५ अक्टूबर, १८५७ को मरीन बटालियन के ड्रिल हवलदार सैयद हुसैन और १० वीं रेजिमेंट के सिपाही मंगल गुदड़िया मुश्कें कसकर आजाद मैदान के ‘फांसी तालाब’ पर घसीट लाए गए, उनकी पीठें तोप के मुंह से बांधी गर्इं और बहुत निर्ममता से उन्हें गोलों से उड़ा दिया गया। इतिहास की किताबों में इसे ‘बॉम्बे प्लॉट’ के नाम से जाना जाता है। १८५७ के बाद तो स्वतंत्रता संग्राम की कोई भी कहानी महाराष्ट्र के सपूतों की चर्चा के बिना पूरी नहीं होती। राजगुरु ने तो सांडर्स के वध में भगतसिंह और सुखदेव के साथ फांसी का फंदा चूमा।
मुंबई में राजनीतिक चेतना की शुरुआत ३१ जनवरी, १८८५ को डॉ. दादाभाई नौरोजी द्वारा बॉम्बे प्रेसिडेंसी असोसिएशन की स्थापना से हो गई थी। यही वर्ष था, जब गवालिया टैंक के पास एक हाल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। १९०५ में ‘बंग भंग’ से जब स्वदेशी आंदोलन ने जोर पकड़ा, तब उसका सबसे ज्यादा असर मुंबई पर पड़ा, जो अपनी नवस्थापित मिलों से देश के विशालतम औद्योगिक क्षेत्र के रूप में उभर रहा था। महाराष्ट्र में उसकी अगुवाई कर रहे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की २२ जुलाई, १९०८ को गिरफ्तारी से यह आंदोलन भीषण हो उठा।
तिलक और गांधी का युग
१९वीं सदी के अंतिम और २०वीं सदी के प्रारंभिक दो दशकों तक-गांधी युग के उदय से पहले तिलक ने देश की भावभूमि पर एकछत्र राज किया। गणेशोत्सव के माध्यम से महाराष्ट्रवासियों को उन्होंने प्राणवान कर दिया था। खुद पर चले राजद्रोह के मुकदमे के दौरान उन्होंने नारा दिया, ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’,जो देश के जन-जन की अभिव्यक्ति बन गया।
महात्मा गांधी १९१५ में दक्षिण अफ्रीका से लौटे, तब से अपने पांच आंदोलनों में से दो की कर्मभूमि उन्होंने मुंबई को बनाया और वर्धा को आश्रम। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन ने उन्हें विश्वनायक बना दिया। १९१७ से १९३४ तक मणिभवन ही उनका घर रहा। विनायक दामोदर सावरकर जैसे क्रांतिकारी, बाबासाहेब आंबेडकर सरीखे लोक उन्नायक और सरोजिनी नायडू व अरुणा आसफअली सरीखे महाराष्ट्र के नेताओं ने मुंबई को अपना कर्मक्षेत्र बनाया, तो जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, लाला लाजपत राय, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी जैसे बाहर के नेताओं के लिए मुंबई दूसरे घर जैसा रहा। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई देश की स्वातंत्र्य राजधानी भी है- उतनी ही, जितनी राजनीतिक राजधानी दिल्ली।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)
अजीत पवार पर दिल्ली से दो गुजरातियों का दबाव …रोहित पवार का आरोप
सामना संवाददाता / मुंबई
अजीत पवार ने माना कि सुनेत्रा पवार को उम्मीदवार बनाना एक गलती थी, लेकिन अजीत पवार पर दिल्ली में दो गुजराती नेताओं का दबाव था। इस तरह का आरोप राकांपा (शरदचंद्र पवार) के नेता और विधायक रोहित पवार ने लगाया है। रोहित पवार ने यह भी कहा कि अजीत पवार ने भाजपा की अधीनता को स्वीकार कर लिया है। उल्लेखनीय है कि अजीत पवार ने माना कि सुप्रिया सुले के खिलाफ सुनेत्रा पवार को उम्मीदवार बनाना उनकी गलती थी। इस पर रोहित पवार ने एक्स पर पोस्ट लिखकर प्रतिक्रिया दी है। रोहित पवार ने कहा कि मुझे यकीन है कि अजीत पवार सुप्रिया सुले के खिलाफ सुनेत्रा पवार को मैदान में उतारने का पैâसला नहीं कर सकते, लेकिन अजीत पवार के सहयोगी इसके उलट प्रचार कर रहे हैं कि ये पैâसला उनका था। रोहित पवार ने कहा कि भले ही आप इसे गलती कहें, लेकिन असल में यह दिल्ली में बैठे गुजरात के नेताओं का दबाव था। साथ ही रोहित पवार ने यह भी आरोप लगाया है कि विधानसभा चुनाव में मेरे निर्वाचन क्षेत्र को लेकर उन पर दबाव की भी बात कही जा रही है।