कविता

पढ़ो तो कविता आती है।
समझो तो कविता
खुलकर आगे बढ़ जाती है।
गतिशील करो तो कविता
क्रांति बन जाती है
उदासीन हो जाओ तो कविता
मर जाती है और तटस्थता में
कविता भ्रम फैलाती है।
वास्तविकता में जागती है ।
कभी हंसती कभी रुलाती है।
और चुपके से अपना काम
कर जाती है।
तर्कहीन समर्थन से तो
कविता चली जाती है
गुलाम होकर पक्ष में
अन्याय के और बिक जाती है
सारे बाजार बाजारू बनकर।।
-अन्वेषी

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