मुख्यपृष्ठग्लैमरदुआओं में बहुत असर होता है!-दीपिका पादुकोण

दुआओं में बहुत असर होता है!-दीपिका पादुकोण

मॉडलिंग के बाद अभिनय के क्षेत्र में शिरकत करनेवाली दीपिका पादुकोण ने साबित कर दिया कि बिना किसी फिल्मी बैकग्राउंड और बिना कोई एक्टिंग ट्रेनिंग के भी सुपर स्टारडम पाया जा सकता है। फिल्म ‘ओम शांति ओम’ से बॉलीवुड में डेब्यू करनेवाली दीपिका के फिल्मी करियर को १८ वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म ‘फाइटर’ में दीपिका पहली बार हृत्विक रोशन के अपोजिट नजर आ रही हैं। पेश है, दीपिका पादुकोण से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
-लगातार दो हिट फिल्मों ‘पठान’ और जवान’ के बाद ‘फाइटर’ की रिलीज पर आपने कितना प्रेशर फील किया?
मैंने कोई प्रेशर फील नहीं किया। ‘पठान’ और ‘जवान’ की शूटिंग के दौरान मैंने कोई प्रेशर महसूस नहीं किया। अगर सफलता के प्रति मैं अपने दिल में कोई प्रेशर रखूंगी तो मुझसे अच्छा परफॉर्मेंस नहीं हो पाएगा। जिन फिल्मों को मैं स्वीकार करती हूं या जिस फिल्म में मुझे कास्ट किया जाता है, मैं उसमें कॉन्टेंट और किरदार ढूंढ़ती हूं। फिल्म का निर्माण हो या नए-पुराने रिश्तों को सहेजना उनमें ऑनेस्टी चाहिए। फिल्म ‘फाइटर’ को भी मेहनत के साथ बनाया गया है। जीवन की तरफ देखने का मेरा नजरिया ही इस किरदार ने बदल दिया।
– फिल्म ‘फाइटर’ के लिए ट्रेनिंग के दौरान क्या मुश्किलें आई थीं?
मैं ट्रेनिंग को मुश्किलें नहीं कहूंगी। यह किरदार निभाने के लिए प्रैक्टिस थी। बहुत फख्र महसूस हो रहा था जब ट्रेनिंग के लिए हमें सचमुच के फाइटर्स दिए गए थे, जो हमें सावधानीपूर्वक सिखा रहे थे। बैडमिंटन खेलना और सुबह ५ बजे उठकर कसरत करना भी हमारी ट्रेनिंग का एक हिस्सा था। हमारी ट्रेनिंग और वहां के माहौल के बारे में गोपनीयता के कारण हम उसे शेयर नहीं कर सकते। हम सभी लोग मिलिट्री के मेस में खाना खाया करते थे, हवाई जहाज को कैसे उड़ाते हैं यह भी सीखा। अलग से बॉडी लैंग्वेज भी सिखाई गई थी। मुझे लगता है कि यह ट्रेनिंग बेहद कमाल की थी, जो सिर्फ फिल्म की शूटिंग के लिए ही नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में हम सभी के ग्रोथ में कारगर है।
-फिल्म ‘फाइटर’ के लिए यूनिफॉर्म पहनने का अनुभव कैसा रहा?
यूनिफॉर्म पहनना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का एहसास देता है। यह एहसास है खुद में ऊर्जा पाने का। असम में शूटिंग के दौरान हमने वहां फाइटर विमानों और फौजियों की ट्रेनिंग सब कुछ खुद देखा। हर ५ मिनटों में एक सुखोई जहाज को उड़ते देखा। यह प्रत्यक्ष ट्रेनिंग ही बहुत कुछ सिखा गई।
-आपने अपने जीवन में कभी रियल फाइटर्स का सामना किया है?
मेरे माता-पिता ने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया और हर कठिनाई को चुनौती समझकर आगे बढ़ते गए। मेरे जीवन में उनकी मिसाल किसी ज्योति की तरह है। १६ वर्ष की उम्र में मैंने मॉडलिंग बंगलुरु में शुरू की। मॉडलिंग में सफल होने के बाद खुद अकेले ही मैंने मुंबई आने का निर्णय लिया, जो आसान नहीं था। मुंबई में एक भी व्यक्ति से मेरी पहचान नहीं थी और जीरो से मैंने शुरुआत की। पेइंग गेस्ट के रूप में रही फिर किराए का फ्लैट लिया। इस तरह आगे बढ़ती रही। पूरा दिन स्ट्रगल करने के बाद घर का सारा काम भी मैंने खुद किया। फिल्म ‘ओम शांति ओम’ की कामयाबी से मेरी रात खत्म हुई और दिन के उजाले ने मुझे नई उम्मीद दी। मैं अपने आपको फाइटर मानती हूं।
– क्या कभी आपके फाइटिंग स्पिरिट ने आपका मनोबल बढ़ाया?
जीवन में ऐसे कई मौके आते हैं, जब एक नॉर्मल इंसान टूट जाता है। लेकिन टूटे नहीं इसके लिए आपके अपने लोग आपके इर्द-गिर्द होने चाहिए। २०१४ में मुझे एक्यूट डिप्रेशन ने घेर लिया था, जिसके लिए मुझे दवाइयों के साथ ही थेरेपी दी जा रही थी। उस कठिन समय में मेरी मां, बहन अनिशा और मेरे पिता ने मुझे मानसिक संबल दिया। उनकी पॉजिटिविटी मुझ पर गहरा असर करती रही। २०१५ में मम्मी मेरे साथ मुंबई आकर रहने लगीं। वक्त के साथ मैं ठीक हो गई और डिप्रेशन की बीमारी को मैंने उड़न छू कर दिया।
– अपनी उपलब्धियों पर आप कैसा महसूस करती हैं?
मेरे दिल में सिर्फ और सिर्फ ग्रैटिट्यूड है और कुछ नहीं। यह सेंस ऑफ ग्रैटिट्यूड अपने परिवार, फिल्म मेकर्स, मेरे गुरु, मेरा ट्रीटमेंट करनेवाले डॉक्टर्स, पादुकोण और भवनानी परिवार सहित सभी के लिए है। मेरा विश्वास है कि दुआओं में बहुत असर होता है।

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