एम. एम. सिंह
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान का प्रतिशत पहले चरण के मतदान प्रतिशत का दोहराव मात्र है। पहले चरण में १०२ सीटों पर और दूसरे चरण में ८८ सीटों पर मतदान यानी कुल मिलाकर १९० सीटों के लिए मतदान से मतदाताओं का मूड साफ दिखलाई पड़ रहा है कि अब मोदी मैजिक बीते दिनों की बात हो गई है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि सात चरणों में होनेवाले मतदान का परिणाम क्या हो सकता है। बाकी ३५३ सीटों के लिए मतदान होना है। मतदाताओं का मतदान के प्रति उदासीन होना सबसे ज्यादा सत्ताधारी दल को प्रभावित करता है। २०१४ और २०१९ में भारतीय जनता पार्टी यानी मरेंद्र मोदी के प्रति जो लहर दिख रही थी, वह अब बिल्कुल नहीं दिखाई दे रही है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं किया जा सकता कि नरेंद्र मोदी में वह दम नहीं रहा, जो मतदाताओं को मतदान वेंâद्र तक खींच लाए।
यह माना जाता रहा है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है। लेकिन इस दफा उत्तर प्रदेश में २०१९ के बनिस्बत मतदान प्रतिशत में ७-९ फीसदी की गिरावट देखी गई, बिहार में ६ फीसदी, मध्य प्रदेश में ९ फीसदी, केरल में सात फीसदी, राजस्थान में ४.५ फीसदी, महाराष्ट्र में ३-४ प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में एक फीसदी। कुल मिलाकर दूसरे चरण में पहुंचते ही भाजपा पर संकट मंडराने लगा है। चार सौ पार का बुखार उतर चुका है।
आंकड़ों पर नजर डालते हैं। उत्तराखंड में भाजपा के पास पांच सीटें हैं, जिनमें से दो सीटों पर खतरा मंडराने लगा है। असम में सात में से तीन सीट, बिहार में उसके पास एक सीट थी। भाजपा को विश्वास था कि वह नीतिश कुमार को वोटों में तब्दील करने में सफल होंगे लेकिन यह मात्र दिवास्वप्न बन कर रह गया। छत्तीसगढ़ की एक सीट का भी भरोसा नहीं रहा है। कर्नाटक की २६ सीटों में १२ सीटें खतरे में हैं। पश्चिम बंगाल की ६ सीटों पर मतदान हुआ है, वहां दो सीटों पर खतरा मंडरा रहा है। मध्य प्रदेश में ११ सीटें हैं, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र की बात की जाए तो कर्नाटक की नई सरकार के कामकाज का असर सीधे-सीधे दिखाई पड़ रहा है। लोगों की नाराजगी वहां की पुरानी सरकार से बनी हुई है, वहां १२ सीटें हैं। राजस्थान में केंद्र ने जिस तरह से वहां मुख्यमंत्री लादा है, उसकी भी नाराजगी दिखलाई पड़ रही है। हालांकि, यहां पर ११ सीटों पर वह मजबूती बनाए रखने का दावा कर रही है लेकिन कम मतदान के असर से वह वैâसे खुद को बचा सकती है? महाराष्ट्र में नागपुर जैसे इलाके में, जहां से नितिन गडकरी जैसे कद्दावर नेता भाजपा के केंडिडेट हैं और राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की गृहनगरी है, वहां भी भाजपा मतदाताओं को खींच लाने में सफल नहीं हो पाई है। विदर्भ की नाराजगी की कीमत उसे चुकानी पड़ेगी। शिंदे, अजीत पवार और भाजपा की तिकड़ी से जनता नाराज है। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राकांपा (शरदचंद्र पवार) और कांग्रेस के प्रति लोगों में भारी उत्साह है। शिंदे और अजीत पवार की गद्दारी जनता को रास नहीं आ रही है। जिसका तगड़ा असर नतीजों पर पड़ेगा।
कुल मिलाकर हालात यह है कि देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब अपने सुर बदलने पड़ रहे हैं। प्रथम चरण के मतदान के पहले उन्होंने अबकी बार चार सौ पार का नारा दिया था। मतदाताओं द्वारा मुंह फेर लिए जाने से आहत उन्होंने मुस्लिम, मछली, मटन जैसे बेहूदा मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। कांग्रेस के पुराने बयानों को तोड़-मरोड़ कर मतदाताओं को फुसलाने की पूरी-पूरी कोशिश की लेकिन वह भी कोशिश औंधे मुंह गिरती नजर आ रही है।
अब उनका यह कहना, ‘मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, आपके इस कर्ज को उतारने के लिए मैं और ज्यादा मेहनत करूंगा और तीसरे कार्यकाल में आपके हित में, देश के हित में और ज्यादा बड़े फैसले लेनेवाला हूं’ क्या इंगित करता है?
क्या माननीय मोदी जी उन मतदाताओं का कर्ज नहीं चुका पाए, जिन्होंने दो बार जिताया है? क्या उन्होंने ज्यादा मेहनत नहीं की है? क्या दो कार्यकाल में उन्होंने जनता और देश के हित में फैसले नहीं लिए हैं? यदि लिए हैं तो यह लाचारगी, बेचारगी और मान मनुहार क्यों?
दरअसल उन्हें भी लगने लगा है कि जनता को अब जुमलों की जगह काम चाहिए। वे काम जिनसे देश की बेरोजगारी दूर हो, नौकरियां मिलें। आसमान को छूते अनाज, पेट्रोल-डीजल, एलपीजी के दाम कम हों, ताकि उनके पेट की आग शांत हो। लफ्फाजी कुछ समय तक लोगों का मनोरंजन कर सकती है, कुछ समय तक लोगों को छलावे में रख सकती है, लेकिन पेट नहीं भर सकती। सूरत में चुनाव हाईजैक करना भाजपा की पहली हार है। ३५३ सीटों पर मतदान बाकी है लेकिन नतीजे चौंकानेवाले होंगे। अब वे भी समझने लगे हैं।