कविता श्रीवास्तव
चुनावी प्रचार में राजनीतिक दलों के नेता, कार्यकर्ता, समर्थक पूरे जोर-शोर के साथ डटे हुए हैं। प्रचारकों की बड़ी फौज भी अनेक स्तरों पर लगी है। विभिन्न दलों के आईटी सेल के लोग वीडियोज, मैसेजेस, मीम्स, शाट्स आदि बनाकर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं। इसी के साथ विरोधी दलों की गलतियों के पुराने वीडियो, ऑडियो, खबरें भी धड़ल्ले से पोस्ट हो रही हैं। इन सबके बीच आम जनता के विभिन्न मुद्दों पर चर्चाएं, तर्क-वितर्क और न जाने क्या-क्या सोशल मीडिया पर आ रहे हैं। उन्हें फॉरवर्ड करने वालों की भरमार है। ऐसे में मतदाता भी खूब मजे ले रहा है। हर पोस्ट और हर खबर पर भरोसा करना नामुमकिन सा है, क्योंकि एक ही मुद्दे पर सबके अलग-अलग विचार, अलग-अलग बयान और सोचने का अपना-अपना तरीका है। उसे न्यायोचित ठहरने के अपने-अपने तर्क हैं। ऐसे में ढेर सारी `फेक’ खबरें और भ्रामक जानकारियां भी आ रही हैं, पर बेबुनियादी खबरों के साथ कई छोटी-मोटी और छुटपुट घटनाओं की रोचक व ज्ञानवर्धक जानकारियां भी आ रही हैं। कई अज्ञात तथ्य सामने आ रहे हैं। इनसे मतदाता अपडेट और एडजस्ट दिखता है। डीपफेक का जलवा भी दिख रहा है। रणबीर सिंह और आमिर खान की आवाज और उनके चेहरे के नकली वीडियो चले तो मामला पुलिस तक पहुंचा है। चुनाव संबंधी सही और `फेक’ जानकारियां पोस्ट करने में व्हॉट्सऐप सबसे अग्रणी प्लेटफॉर्म बना हुआ है। उसके बाद इंस्टाग्राम, फेसबुक और अन्य प्लेटफॉर्म इस्तेमाल हो रहे हैं। हालांकि, ये सभी प्लेटफॉर्म्स जनसंपर्क के सबसे प्रबल और सबसे त्वरित माध्यम भी हैं इसलिए तमाम जानकारियां हासिल हो जाती हैं। कोई अभ्यास नहीं करना पड़ता है। सारी सही और गलत जानकारियां, विवाद, गर्म मुद्दे, अफवाहें, सारी चर्चित व रोचक बातें, नेताओं की रिपोर्ट, उनके बयान, प्रतिक्रियाएं, उन पर बनी खबरें, उनसे आगे-पीछे के जुड़े इतिहास हर चीज आदमी के मोबाइल पर सीधे पहुंच रही है। इसीलिए कुछ लोग सही खबरों के साथ-साथ भ्रामक जानकारियां भी फॉरवर्ड करते रहते हैं, ताकि किसी तरह उनके चहेते प्रत्याशी के पक्ष में लोग मतदान करने का मूड बनाएं। हालांकि, मतदाता भी बहुत चतुर और होशियार हैं। वे सही और गलत खबरों का आकलन बखूबी कर लेते हैं। बस उन बकवास और बेबुनियाद खबरों की रोचकता और उनके चटकारों का मजा लेते हैं। इस तरह की सोशल मीडिया की फेकमफाक पोस्ट के अलावा हम अक्सर नेताओं के मुख से भी ढेर सारी थोथी घोषणाबाजी सुनते आए हैं। अनेक नेताओं के झूठे वादे भी मतदाता झेलते आए हैं। इन सबके बावजूद लोकतंत्र के पर्व का आनंद तो लेना ही है। मतदान करने की अपनी जिम्मेदारी को निभाना भी है। हां, हमें अपने क्षेत्र, अपने देश और आम जनता से सरोकार रखने वाले को चुनना है। हमेशा केवल फेकने वाले को नहीं।