गजल

भला कैसे मुहब्बत को मेरा हमदम निभाएगा l
अभी वो पास आएगा कभी वो दूर जाएगा ll
कि आंखों में नहीं पानी नमी तो इनमें गम की है l
भरा है दर्द का दरिया इसे कैसे बहाएगा ll
ढंकी गुरबत अभी तो रेशमी चादर के पर्दे सेl
मगर हैं छेद लाखों तो इसे कैसे बिछाएगाll
छिपे लाचारियों के साथ बेटी के लिए सपने l
नहीं कोई वसीला है उसे कैसे पढ़ाएगाll
बचा लो जीस्त को बेचो न बाजारों में ईमां को l
खजाना कीमती है ये इसे कैसे लुटाएगा ll
उनींदे नैन में जागी न जाने याद रातों की l
थकी आंखों को तू अपनी भला कैसे सुलाएगाll
घटा काली नहीं छाती कभी इस दिल के सेहरा में l
मगर अरमान है बादल सुहाना आके छाएगाll
नहीं आंसू निकालो अब किसी मजलूम के दिल सेl
खुदा का खौफ तुमको सैकड़ों आंसू रुलाएगाll
नहीं चाहत कनक को दौलत-ए-अंबार की अब है l
बिना जेवर बिना तेवर बदन कैसे सजाएगाll
-डॉ. कनक लता तिवारी

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