आज और अनुभव : भावनाओं का नहीं होता भाव …राहुल के सिले जूते लाखों के दिल जीते

कविता श्रीवास्तव

राहुल गांधी इस समय देश में चर्चित व्यक्तियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। एक तो उन्होंने पिछले १० वर्षों में मोदी शासन के एक छत्र साम्राज्य को हिलाने का काम किया है और वर्तमान सरकार दो दलों के सहयोग पर टिकी हुई है। दूसरी ओर उन्होंने आम व्यक्तियों से अपना जुड़ाव निरंतर बनाए रखा है। बीते दिनों जब वे अपने निर्वाचन क्षेत्र सुलतानपुर गए थे, तब उन्होंने राह में एक मोची की दुकान पर बैठकर उससे जूते की सिलाई के बारे में जानकारियां हासिल कीं। इतना ही नहीं उन्होंने उस दुकान में बैठकर एक जूता भी सिल दिया। इसकी तस्वीर भी खूब वायरल हुई। राहुल गांधी ने वहां एक जूता क्या सिला, कमाल ही कर दिया! अब वह जूता सिलने वाला ही एक तरह का सेलिब्रिटी बन गया है। लोग उसकी दुकान के सामने अपनी स्कूटर, कार आदि खड़ा करते हैं। वह जूता भी देखते हैं जो राहुल गांधी ने अपने हाथों से सिला था। कुछ लोगों ने उस जूते के खरीदने की पेशकश भी की। उसका दाम ५ लाख से शुरू होकर अब १० लाख तक भी पहुंच गया है, लेकिन वह दुकानदार भी कम नहीं है। वह खुद उस भाव से अभीभूत है, जो राहुल गांधी ने उसके साथ उसकी दुकान में बैठकर अभिव्यक्त किया। उसकी इलाके में पूछ बढ़ गई है। उसकी दुकानों पर ढेर सारे लोगों का आना-जाना शुरू हो गया है। लोग उसके साथ सेल्फी निकालते हैं। उसका कहना है कि राहुल गांधी के हाथों सिला हुआ जूता वह कभी नहीं बेचेगा। वह तो उसके मूल मलिक को भी नहीं देगा, बल्कि उसका दाम चुका देगा। वह उसे हमेशा अपनी दुकान में सजा कर रखेगा। उसकी इस भावना पर मुझे अपने घर में रखे हुए बेड को पाने की वह खुशी याद आती है, जो उसके पहली बार हमारे घर लाए जाने पर मुझे हुई थी। दरअसल, मेरे बेडरूम का पड़ा बेड कोई साधारण बेड नहीं है। वह एक ऐसी व्यवस्था से आया है, जिसे हम बड़े आदर, सम्मान और श्रद्धाभाव से देखते आए हैं। देश के एक अत्यंत ही प्रतिष्ठित, सम्मानित और लोकप्रिय विद्वान-कथाकार के लिए यह नया बेड लाया गया था। उनके नौ दिनों के उपयोग के बाद यह बेड उस दुकान में वापस भेजा जाना था, जहां से वह लाया गया था। लेकिन मैंने इसे पाने में सफलता पाई। दरअसल, हमारे घर से कुछ दूरी पर बहुत बड़े विशाल मैदान में एक बहुत बड़े लोकप्रिय कथावाचक की भागवत कथा का कार्यक्रम हुआ था। अनेक जानी-मानी हस्तियां उसमें शामिल हुई थीं। महाराजश्री जिस बंगले में ठहरे हुए थे, वह ९ दिनों के लिए किराए पर लिया गया था। आयोजकों ने वहां पर उनके लिए अलग से बेड व रसोर्इं सामग्रियों से लेकर और भी अनेक प्रकार के इंतजाम किए थे। सभी सामान दुकानों से नए लाए गए थे। इस दौरान अपने पति के साथ मैं कई बार महाराजश्री से मिलने उस बंगले तक गई। अनेक लोकप्रिय व नामचीन हस्तियों से भी वहां मुलाकात हुई, जो अक्सर महाराजश्री से उस बंगले में मिलने आया करते थे। आखिर वह दिन भी आया, जब कथा संपूर्ण हुई और महाराजश्री की विदाई की तैयारी होने लगी। अनगिनत श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच अनेक लोगों ने भरपूर श्रद्धाभाव से महाराजश्री को विदाई दी। उसके बाद लोग अपने-अपने घरों की ओर रवाना हो गए, लेकिन व्यवस्थापकों के साथ हमारे पति भी लगे हुए थे। उस बंगले के हर सामान को हटाया जाना था और बंगला खाली करना था। अन्य सामानों के अलावा उस बेड को भी हटाना था, जिसका महाराज श्री ने पूरे ९ दिनों तक उपयोग किया था। सभी लोग उस बेड को बड़े ही पवन भाव से निहार रहे थे। दुकानदार से एकदम सही सलामत रहने पर उसकी कुछ कीमत काट कर बाकी पैसे वापस लौटाने की शर्त पर उसे लाया गया था, तभी आयोजन समिति के प्रमुख ने कहा कि यदि हमारे में से कोई इस बेड को ले जाना चाहे तो वह ले जा सकता है। इससे पहले कि कोई कुछ कहता मेरे पति ने तपाक से हामी भर दी। हालांकि, उसके बाद कई अन्य लोगों ने उस बेड को पाने के लिए कोशिश शुरू कर दीं, क्योंकि जिस बेड पर महाराजश्री ने शयन किया था उसे प्रसाद के रूप में हर कोई अपने घर ले जाना चाहता था। लेकिन आयोजन समिति के प्रमुख ने पहले हामी भरने पर वह हमें देने पर सहमति व्यक्त कर दी। मेरे पति ने जब मुझे फोन पर यह जानकारी दी तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि भागवत कथा सुनने और महाराजश्री से जुड़ाव बनाए रखने पर मैंने ही सबसे ज्यादा जोर दिया था। मेरे कारण ही पति उस कार्यक्रम में आते-जाते थे। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि महाराजश्री ने जिस बेड का उपयोग किया है वह मेरे घर आ जाएगा। जब वह मेरे घर आया तो हमारी सासू मां, मेरे जेठ-जेठानी, देवरानी और पूरा परिवार उसे देखने आए। सब ने उस पर बैठकर, लेटकर स्वयं को धन्य सा महसूस किया। कई श्रद्धालु भी मेरे घर पर आकर उस बेड को छूकर, उस पर बैठकर गए। हम आज भी उसी बेड का उपयोग कर रहे हैं। हमने घर भी बदला, लेकिन वह बेड नहीं बदला। उससे हमारी भावना जुड़ी हुई है। ठीक उसी तरह की भावना, जो सुल्तानपुर में जूते सिलने वाले के मन में उस जूते को लेकर है, जो राहुल गांधी ने उसकी दुकान में बैठकर सिला है। उस जूते पर मिलने वाला कोई भी भाव, उस दुकानदार की भावनाओं के मूल्य की बराबरी नहीं कर सकता।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)

आदिवासियों की जिंदगी से खिलवाड़…उफनती नदी से शव ले जाने को मजबूर!.. वर्षों से प्रस्तावित पुल के निर्माण का इंतजार

सामना संवाददाता / मुंबई 

मुंबई से सटे रायगढ़ जिले के उरण विधानसभा क्षेत्र में रहनेवाले कई आदिवासी परिवारों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इस क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। आदिवासी वाड़ी में रहनेवाले एक शख्स की मौत होने पर गांव के लोगों को उफनती नदी में से शव को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट तक ले जाना पड़ा। उफनती नदी में लोग बह सकते थे, लेकिन गांववालों के पास कोई और रास्ता नहीं था। बताया जाता है कि इस नदी पर पुल निर्माण का भूमिपूजन करीब पांच-छह माह पहले ही किया गया था, लेकिन आज तक काम शुरू नहीं हो पाया है।
जान हथेली पर रखकर अंतिम संस्कार 
जानकारी के अनुसार, उरण विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले खालापुर तालुका के अरकाट वाड़ी निवासी कमल बालू चौधरी का निधन हो गया। चूंकि श्मशान घाट पिरकटवाड़ी में नदी की दूसरे तरफ है, इसलिए आदिवासियों को शव को दाह संस्कार के लिए नदी पार ले जाना पड़ता है। गर्मी या ठंडी के मौसम में तो नदी में पानी कम रहता है, जिससे लोग वैâसे भी करके नदी पार कर लेते हैं, लेकिन बारिश में पानी अधिक होने के कारण नदी पूरे उफान पर आ जाती है। इसी उफनती नदी में गांववाले शव को साथ लेकर श्मशान घाट तक पहुंचे।
वोट के लिए किया भूमिपूजन 
उंबरवाड़ी, पीरकटवाडी और आरतवाड़ी के आदिवासी समुदाय के लोग कई वर्षों से नदी पर ब्रिज बनाने की मांग रहे हैं। उनका कहना है कि क्षेत्र के बच्चे स्कूल आने-जाने के लिए नदी में से होकर जाते हैं, बीमार महिला हो या बुजुर्ग सभी नदी से होकर गुजरते हैं, जिससे जान-माल का खतरा रहता है। इसलिए नदी पर पुल की जरूरत है, लेकिन उरण विधानसभा क्षेत्र के भाजपा समर्थक विधायक ने इस पुल का भूमिपूजन सिर्फ नाम के लिए ही किया है और आज तक भी उस पुल के निर्माण के लिए यहां साधारण पत्थर तक नहीं रखा गया है।

अर्थार्थ : तकनीकी का साम्राज्यवाद

पी. जायसवाल मुंबई

अभी पिछले दिनों माइक्रोसॉफ्ट में आई एक गड़बड़ी ने दुनिया के एक बड़े हिस्से को रोक ही दिया था। हमारे समाज में तकनीक ने ऐसी जगह बना ली है कि उसके बिना हमारा सिस्टम ढहने के कगार पर आ जाता है। पिछली सदियों में जब यूरोप द्वारा लादी गई औद्योगिक क्रांति का दौर था तो चंहुओर पूंजीवाद एवं इसके दुष्प्रभावों की चर्चा थी कि वैâसे संसाधन कुछ मुट्ठियों में इकट्ठे होते जा रहे हैं, मार्क्स जैसे विचारक आए। आज धीरे-धीरे इस औद्योगिक क्रांति का स्थान बाजार और तकनीक क्रांति ने ले लिया। कॉन्ट्रैक्ट मैन्युपैâक्चरिंग और जॉब वर्क के माध्यम से पूंजीवाद ने बाजारवाद का वस्त्र पहन लिया। अब दौर तकनीक के साम्राज्यवाद का है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस ने इसे ऐसा प्यारा डर बना दिया है कि कई देश इससे डर भी रहे हैं, लेकिन लागू भी कर रहें हैं।
पहले पूंजीवाद की आलोचना इसीलिए भी होती थी कि पूंजीवाद मुनाफाखोर था। मूल्य का सिस्टम उनके हाथ में था। इस तकनीक के साम्राज्यवाद में भी वही हुआ है। इस आभासी दुनिया के मूल्यांकन का कोई भी पारदर्शी व्यवस्था नहीं है। एक ही सेवा की विभिन्न कंपनियां भिन्न-भिन्न मूल्य वसूलती हैं। मूल्यों में मानकपन है ही नहीं। शुरुआत में आईटी कंपनियों ने ऊल-जुलूल पैसे वसूले। इसका पैâलाव इतने चुपके से होता है कि कई को पता ही नहीं लगता है और सब कुछ लुट जाता है, मेरु और टैब वैâब टैक्सी सेवा को तो हवा ही नहीं लगी कि कब ओला, उबर ने उनके सारे निवेश को एक झटके में खत्म कर दिया। ठीक वैसे ही काली-पीली टैक्सी वालों को पता नहीं लगा कि कब मेरु, टैब वैâब और बाद में ओला व उबर ने उनके बाजार पर कब्जा कर लिया, आज उनका निवेश लाभ के लिए संघर्ष कर रहा है। कुछ ऐसा ही देशभर में कचहरी के बाहर पैâले झटपट स्टूडियो वालों के साथ हुआ। मोबाइल वैâमरे और आधुनिक प्रिंटर के आविष्कार ने उनकी जड़ ही खत्म कर दी, साथ में जबसे मोबाइल पर वैâमरे आने लगे, तबसे तो टूरिस्ट प्लेस के फोटोग्राफर भी ग्राहकों के लिए तरसने लगे। रील वाले वैâमरे का बाजार पहले डिजिटल वैâमरे ने छीना, बाद में इन डिजिटल वैâमरे का बाजार मोबाइल वैâमरों ने छीन लिया।
अब तो टीवी से ज्यादा समय लोग ओटीटी या मोबाइल पर खर्च करते हैं और इसने टीवी चैनलों के लिए भी नई चुनौती पैदा कर दी है। करोड़ों रुपए लगाकर न्यूज चैनल खोलने वालों के सामने हजार रुपए खर्च कर लाखों की संख्या में यूट्यूब चैनल आने लगे। वो दिन दूर नहीं, जब बड़ी संख्या में लोग थिएटर जाना बंद करके घर पर ही नई रिलीज हुई मूवी अपने स्मार्ट टीवी पर होम थिएटर सिस्टम लगाकर देखेंगे। कोरोना के बाद भी मूवी रिलीज डीटीएच सेवा प्रदाता, ओटीटी, नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम और यूट्यूब या ऐसे ही प्लेटफॉर्म पर हो और ये प्लेटफॉर्म थिएटर से ज्यादा पैसा बनाएं, इसी तरह अगली कड़ी में अगला संकट इन डीटीएच सेवा प्रदाताओं पे भी आने वाला है। तकनीक इतनी तेजी से पिछले को खत्म कर रही है कि जिसने इसके साथ कदमताल नहीं किया, उसे पता ही नहीं चलेगा कि कब उसकी दुनिया खिसक गई।
कुछ ऐसा ही भारत में सीए लोगों के साथ भी हो सकता है, जब सब कुछ ऑनलाइन नहीं था, तब उनके प्रमाणन की आवश्यकता थी। अब तो सब डिजिटल प्रमाणित आता है और समाधान विवरण के साथ हो सकता है कि कुछ साल बाद इनके प्रमाणन की आवश्यकता ही नहीं रहे। एक बिजनेस का ९० प्रतिशत हिस्सा उसका खरीद-बिक्री होता है। वह तो अब जीएसटी पोर्टल प्रमाणित कर दे रहा है। बाकी का डाटा आयकर विभाग को डाटा माइनिंग से मिल जा रहा है फिर उसे अलग से सीए का टैक्स ऑडिट प्रमाणन की जरूरत ही क्यों पड़ेगी। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के विस्तार ने कई जगहों से जहां मानवीय निर्णयन को खत्म किया है और वह डॉक्टर से लेकर कोई भी काम हो सकता है। तकनीक का जन्म एक ह्यूमन जजमेंट ने किया था, अब इसी तकनीक का मिशन हर उस जगह का स्थान लेना है जहां ह्यूमन जजमेंट प्रयोग होता है इसलिए अगर मेट्रो चालकविहीन आ रही है तो इस पर खुश होने की जरूरत नहीं है।
एक समय था बाजार में मोटोरोला और नोकिया के फोन का ही दबदबा था और वो हौले-हौले आ रही स्मार्ट फोन, एंड्रॉयड एवं एपल के कदमों की आहट सुन नहीं सके, बहुत देर में जागे, तब तक बाजार में एंड्रॉयड एवं एपल सपोर्ट मोबाइल की बाढ़ आ गई और आज बाजार में इनकी उपस्थिति नगण्य है। मोबाइल की दुनिया में एक गलती माइक्रोसॉफ्ट ने भी कर दी, वह अपने डेस्कटॉप और लैपटॉप के ऑपरेटिंग सिस्टम पे ही ध्यान देती रही और उसे देर से पता चला कि कंप्यूटर की दुनिया अब मोबाइल में सिमट गई है। अब कंप्यूटर के लगभग सारे काम मोबाइल से ही हो जा रहे हैं। मोबाइल टैबलेट भी अब बाजार से बाहर जा रहे हैं, क्योंकि अब मोबाइल ही इतने सक्षम हो गए हैं कि टैबलेट का काम करने लगे हैं।
अगला उदाहरण याहू का है, एक समय इंटरनेट मतलब याहू था, ईमेल और चैट मतलब याहू, लेकिन इसने भी बदलते वक्त के साथ अपने को बदला नहीं और जीमेल के आहट को सुन नहीं सका और आज बाजार से बाहर हो गया। आज के दौर में कुछ बिजनेस सेगमेंट ऐसे भी हैं, जो यदि समय की आहट को पहचान नहीं सके तो उनका भी पतन निश्चित है। उसमें पहला थिएटर और मल्टीप्लेक्स का बिजनेस है। जिस तरह से नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम जैसे कई ने अपना दायरा बढ़ाया है। उसके साथ ही स्मार्ट टीवी और होम थिएटर की बिक्री बढ़ी है। जियो के आने से डाटा सस्ता हुआ है, लोग अब थिएटर जाना कम कर रहे हैं। जिओ के सस्ते डेटा से फायदा भी हुआ है। गांवों, कस्बों के कई लोगों को दुनिया का डायरेक्ट बाजार मिला है।
ये तो उदाहरण है, जिसमें तकनीक ने सक्षम लोगों को धराशायी कर दिया है। जरा सोचिए जो सक्षम नहीं हैं, उसका क्या हाल होगा? अगर तकनीक इसी तरह पिछले को दमित करते हुए आगे बढ़ गई तो पृथ्वी के इस ८०० करोड़ की आबादी का क्या होगा? आज पृथ्वी पर सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या अधिकता की है और कोई भी नीति यदि इनके समायोजन को उपेक्षित करके या इन्हें रिप्लेस करने के लिहाज से बनेगी तो एक छोटे गड्ढे को भरने के लिए हम बड़ा गड्ढा खोद रहे हैं। मशीनों का इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन इतना नहीं कि आदमी ही खाली हो जाए। हमारे पास भी दिन के २४ घंटे होते हैं, लेकिन इन २४ घंटे में लगातार हम काम नहीं करते हैं। इसे हमने संतुलित घंटों में बांटा है, ताकि हम लंबी अवधि तक जीते हुए काम करते रहें। इस तकनीक का संतुलन बिंदु हमें ढूंढ़ना पड़ेगा, नहीं तो तकनीक का पूंजीवाद औद्योगिक पूंजीवाद से ज्यादा प्रभावित करने वाला है और यह जनसंख्या आधिक्य ग्लोबल वॉर्मिंग से ज्यादा खतरनाक होगा। यह सिर्फ दुनिया की चुनिंदा कंपनियों फेसबुक, व्हॉटसऐप, ट्विटर का मसला नहीं है। ये तो ऑरकुट, याहू की तरह आई है तो एक दिन इनकी जगह कोई और आ जाएगा। सबसे बड़ा खतरा हमारी नीति निर्माण की सोच है, जो यहीं से शुरू होती है की मानवीय हस्तक्षेप को खत्म करना है। अब अगर मानव व्यस्त नहीं रहेगा तो क्या करेगा? इसलिए हमें इस तकनीक के साम्राज्यवाद की काट और इसके विकास का संतुलन बिंदु खोजना पड़ेगा, नहीं तो एक दिन यही तकनीक मानव जाति की दुश्मन बन जाएगी।
(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)

चिकनगुनिया और जीका के बढ़े मामले 

मुंबई। महाराष्ट्र में लगातार बारिश हो रही है। यह बारिश कई बीमारियों को भी न्योता दे रही है। इसमें सबसे बड़ी मुसीबत चिकनगुनिया और जीका बन रहा है। प्रदेश में चिकनगुनिया के मामले तीन गुना बढ़ गए हैं, जबकि पुणे में जीका जटिल बनता जा रहा है। ये दोनों ही बीमारियां विभाग की नाक में दम कर रही हैं। इस बीच स्वास्थ्य विभाग ने मौसमी बीमारियों से सावधान रहने की सलाह दी है। राज्य में पिछले साल की तुलना में चिकनगुनिया के मामले बढ़ रहे हैं। राज्य में चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या पिछले साल की तुलना में तीन गुना बढ़ गई हैं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी से जुलाई के बीच महाराष्ट्र में चिकनगुनिया के १,०७५ मामले सामने आए हैं। इनमें से ८० फीसदी मरीज पिछले दो से ढाई महीने में सामने आए हैं। इस दौरान चिकनगुनिया से एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है। साल २०२३ में इसी अवधि के दौरान राज्य में चिकनगुनिया के ३६३ मामले सामने आए थे। दूसरी तरफ राज्य में पिछले साल जहां जीका के ६९ मरीज मिले थे, वहीं इस साल यह संख्या ६३ पर पहुंच गई है। स्वास्थ्य विभाग त्वरित बुखार सर्वेक्षण, जागरूकता और रोगियों का इलाज कर रहा है। मच्छरों के प्रजनन स्थलों की खोज की जा रही है। इसके साथ ही कृमिनाशक और गप्पी मछलियां छोड़ रहा है।

शहाड पुल पर बना बड़ा गड्ढा! … यातायात बाधित, भारी वाहनों पर रोक

सामना संवाददाता / कल्याण
कल्याण-मुरबाड मार्ग पर पहले से ही गड्ढों की समस्या गंभीर थी, लेकिन अब शहाड पुल पर एक बड़ा गड्ढा हो जाने से समस्या और भी विकट हो गई है। इसके परिणामस्वरूप इस मार्ग पर जहां यायातात बाधित हो गया है, वहीं भारी वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
कल्याण से मुरबाड और नगर की ओर जाने के लिए शहाड पुल एक महत्वपूर्ण मार्ग है। हर साल की तरह इस साल भी इस पुल की हालत खराब हो गई है और अब पुल पर बड़ा गड्ढा हो जाने से इसकी सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं। पुल के स्लैब में दरारें दिखाई दे रही हैं। इस समस्या का पता चलते ही एहतियात के तौर पर तत्काल इस पुल पर भारी वाहनों की आवाजाही को रोक दिया गया। कल्याण से जानेवाले वाहनों को टिटवाला-कल्याण और रायते-दहागांव-बदलापुर मार्ग की ओर मोड़ने के निर्देश राष्ट्रीय राजमार्ग के ठाणे उपविभाग के उप अभियंताओं ने दिए हैं। इसके परिणामस्वरूप आनेवाले कुछ दिनों में नागरिकों को गड्ढों के साथ-साथ यातायात जाम की समस्या भी झेलनी पड़ेगी। इस मामले में कार्यकारी अभियंता ज्योति शिंदे से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि पुल पर पड़े गड्ढे को कंक्रीट से भरने का काम तुरंत शुरू कर दिया गया है और शहाड पुल की मरम्मत के लिए निविदा निकाली जा रही है।

ट्रैफिक जाम के पीछे जिम्मेदार हैं सड़क पर पड़े गड्ढे! …सड़कें टूटी, खुले गटर के ढक्कन

अशोक तिवारी / मुंबई
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में विभिन्न कारणों से यातायात जाम की समस्याएं होती हैं, जिसमें एक समस्या सड़कों पर पड़े गड्ढे भी बताए जा रहे हैं। मुंबई मनपा की लापवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सड़क बीच में टूटी हुई है और सड़क पर गटर को ढकने के लिए जो ढक्कन लगाए गए हैं वह ख्ुाले हुए हैं। परिणाम स्वरूप सड़कों पर करोड़ों की कार लेकर चलनेवाले वाहन चालकों को यह पता नहीं होता है कि कब उनकी गाड़ी गड्ढे में गिरकर क्षतिग्रस्त हो जाएगी या उनके साथ जानलेवा दुर्घटना हो सकती है। महानगरपालिका के अधिकारियों एवं ठेकेदारों की मिलीभगत से सड़क निर्माण का कार्य पूरे शहर में घटिया स्तर पर किया गया है। जिसका खामियाजा वाहन चालक और पैदल चलने वाले यात्री भुगत रहे हैं। नागरिकों के चलने के लिए फुटपाथ का निर्माण तो किया गया है, लेकिन उन फुटपाथों पर फेरी वालों ने कब्जा कर लिया है। कालीना से सांताक्रुज एयरपोर्ट जानेवाली सड़क पर जगह-जगह गड्ढे ही गड्ढे हैं, जिसकी वजह से स्पीड में आ रहे वाहन चालक इन गड्ढों की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। इसके अलावा लंबे ट्रैफिक जाम में भी फंस जा रहे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि कालीना से सांताक्रुज एयरपोर्ट की सड़क पर पिछले १५ दिनों से गड्ढे हैं। इस संदर्भ में एच पूर्व मनपा में शिकायत भी की गई है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इसी तरह सांताक्रुज (पूर्व) से गोलीबार रोड जानेवाली सड़क पर बीचों-बीच गटर का मैनहोल पिछले चार दिनों से टूट गया है। इस मैनहोल में गिरकर दर्जनों दो पहिया वाहन चालक घायल हो चुके हैं।
बता दें कि बांद्रा और खार से प्रतिदिन लाखों लोग इस रोड से गुजरते हैं, जो दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। लोगों ने ऑनलाइन और ट्वीट कर मनपा को शिकायत की है, लेकिन मनपा के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है। स्थानीय नागरिकों ने वाहन चालकों की सुरक्षा के लिए टूटे हुए गटर के ऊपर एक झंडा लगा दिया है, ताकि वाहन चालकों को पता चल सके कि इस गटर का ढक्कन टूटा हुआ है। टूटे हुए गटर के ढक्कन की वजह से क्षेत्र में लंबा जाम लग जाता है। इसकी वजह से अपने गंतव्य तक पहुंचने में यात्रियों को न सिर्फ देरी होती है, बल्कि रोज हजारों-लाखों रुपए का पेट्रोल और डीजल बर्बाद हो रहा है।

उड़न छू : गिरने का गणित

अजय भट्टाचार्य

बिहार में लगातार पुल गिरने के मामले सामने आ चुके हैं। हाल ही में अररिया जिले में भी एक पुल ने जल समाधि ली है। फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र के अम्हारा पंचायत के वार्ड नंबर १३ में गोपालपुर से मझुआ जाने वाले रास्ते पर बना पुल गिर गया है। इस पुल का निर्माण २०१७ में ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा करवाया गया था। विभागीय अधिकारियों को पुल निर्माण में खामियों की सूचना दी गई थी, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया। अब पुल ध्वस्त हो गया है। पुल लगभग २५ मीटर लंबा था और इसका निर्माण सीमांचल कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा किया गया था।
इससे पहले अररिया में बकरा नदी पर बना पुल भी ध्वस्त हो गया था। १२ करोड़ रुपए से इस पुल का निर्माण किया गया था। हैरानी की बात है कि उद्घाटन भी नहीं हुआ था। उससे पहले ही इसके गिरने पर काफी हंगामा मचा था। बिहार में पिछले १० साल में कई पुल गिर चुके हैं। भ्रष्टाचार को लेकर लोग कई बार आवाज उठा चुके हैं, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब सरकार से नहीं मिला। पुल गिरना कहीं न कहीं भवन निर्माण विभाग में पैâले भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। भूमि जांच में गड़बड़ी और घटिया निर्माण सामग्री के कारण पुल गिरने के कई मामले बिहार में सामने आ चुके हैं। जो सरकारी कामकाज की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हैं।
सवाल उठता है कि कोई पुल यूं ही अपने आप क्यों गिर जाता है? कोई पुल एक झटके में नहीं गिरता। गिरने की प्रक्रिया बहुत पहले से चल रही होती है। सबसे पहले नेता गिरते हैं, फिर अधिकारी गिरते हैं, उसके बाद इंजीनियर गिरता है। इन तीनों के गिरने से फिसलन हो जाती है, सो ठेकेदार भी गिर जाता है। बात यहीं नहीं रुकती, इस फिसलन को देखकर आम जनता भी खुद को रोक नहीं पाती, देखादेखी वह भी गिरने लगती है। जब इतने लोग गिर जाते हैं तो पुल को भी अपने खड़े होने पर शर्म आने लगती है तो अपने निर्माताओं का साथ देने के लिए वह भी गिर जाता है। बात खत्म। ईमानदारी से कहा जाए तो हमारे देश में गिरना कभी लज्जा का विषय नहीं रहा। व्यक्ति जितना गिरता है, उसकी प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ती जाती है। आप फेसबुक, इंस्टा पर देख लीजिए, जो जितना ही गिरता है, उसकी रील उतनी ही वायरल होती है। सिनेमा की कोई अभिनेत्री जितना गिरती है, उतना ही आगे बढ़ती जाती है। यहां तक कि एक लेखक भी जब तक गिरता नहीं, ……तब तक अकादमी वगैरह में जगह बनाने से लेकर पुरस्कार, सम्मान पाने की श्रेणी में नहीं आता! जिस कलमकार में रीढ़ बची होती है वह ‘गिरकर उठे हुए लिक्खाड़ों’ के गिरोह में नहीं मिलेगा।
वैसे राजनीति के इस भक्तिकाल में दरबारी लिक्खाड़ पुल गिरने के भी लाभ गिना देंगे। अर्थशास्त्र की व्याख्या करते हुए बताएंगे कि जब पुल गिरेगा, तभी न दोबारा बनेगा। दोबारा बनेगा तो मजदूरों को काम मिलेगा। सीमेंट, बालू, सरिया के व्यापारियों का धंधा चलेगा। नेता, अधिकारी कमीशन खाएंगे तो पैसा बाजार में ही न देंगे। इस तरह पैसा घूम फिर कर जनता तक ही जाएगा, सो पुलों का गिरना जनता के लिए लाभदायक है। जिस आत्मविश्वास से ये दरबारी समझाते हैं उससे भी यह साफ हो जाता कि वे भी कम गिरे हुए नहीं हैं। हमारे देश में हर व्यक्ति अब गिरना चाहता है। वह केवल मौका तलाश रहा है। कब मौका मिले कि वह गिरे… पुल अकेले नहीं हैं, गिरने की यात्रा में बहुत कुछ गिर रहा है। वोट के लिए अधूरे मंदिर के उद्घाटित हुए मंदिर के गर्भगृह की छत से पानी गिर रहा है। गुलामी की निशानी को मिटाने की सनक से बनी नई संसद की छत टपक रही है।
पुल नदियों के दोनों तटों को जोड़ने का काम करते हैं। हमारे यहां तो आदमी को आदमी से जोड़ने वाले पुल कबके ढह गए हैं। हम जब उस पर दुखी नहीं हुए तो इस पर क्या ही दुखी होंगे। एक गिरे हुए व्यक्ति को गिरे हुए लोग विश्वगुरु बनाने को बेताब हैं। क्यों? क्योंकि अगले ने राजनीतिक, सांस्कृतिक, शाब्दिक, आर्थिक और नैतिक गिरावट के बाद ही उच्च पद पाया है। एक समय था, जब लोग गलती से भी गिरने से बचते थे। अब गिरने के मायने बदल गए हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

स्वाद यात्रा : किफायती फूड के लिए राजा राजेश्वरी सबसे बेस्ट … साउथ इंडियन क्लासिक फूड के साथ इंडियन, चाइनीज और फास्ट फूड का भी उठाएं लुत्फ

संदीप पांडेय

मुंबई जैसे शहर में अधिकतर लोग घर के खाने की बजाय बाहर के खाने पर निर्भर रहते हैं। इसका मुख्य कारण उनके ऑफिस का समय है। कई लोग सुबह ही अपने घर से निकल जाते हैं। ऐसे में उनके लिए नाश्ता और टिफिन मिलना मुश्किल होता है। वहीं कुछ लोग अपने परिवार से दूर अकेले रह रहे हैं, जो खुद के लिए सुबह नाश्ता और खाना नहीं बना सकते हैं। आखिर में उन्हें बाहर के रेस्टोरेंट और वैâफे के भरोसे ही रहना पड़ता है। ऐसे में लोगों के सामने जो सबसे बड़ी समस्या खड़ी होती है वो है अच्छे रेस्टोरेंट का चुनाव करना। तो चलिए हम आपकी इसमें थोड़ी मदद कर देते हैं। अगर आप भी किसी अच्छे रेस्टोरेंट की तलाश कर रहे हैं तो दादर स्थित शिवाजी पार्क में वीर सावरकर मार्ग के बगल में स्थित राजा राजेश्वरी वेज रेस्टोरेंट सबसे बढ़िया विकल्प है।
गुरुवार के दिन दोपहर के समय हम शिवाजी पार्क के चैत्यभूमि में थे। जहां से हम अपनी स्वाद यात्रा पर निकल गए। हमें चैत्यभूमि के बेहद करीब पहला वेज रेस्टोरेंट राजा राजेश्वरी मिला। हमने अपनी भूख मिटाने के लिए अंदर एंट्री की। यहां पर हमने एक वेज थाली ऑर्डर की, जिसमें ३ चपाती, राइस, २ सूखी सब्जी, २ करी, दाल, कर्ड, १ स्वीट, पापड़ के साथ आचार भी था। खाना काफी स्वादिष्ट था। इस थाली के लिए हमें केवल १८० रुपए चुकाने पड़े। हमें विश्वास ही नहीं हुआ कि इतने कम दाम में इतनी वेराइटी और ऐसा स्वाद मिल जाएगा। इस रेस्टोरेंट में स्पेशल थाली भी है, जिसकी कीमत ३०० रुपए है। इसके अलावा यहां साउथ इंडियन क्लासिक फूड, इंडियन, चाइनीज और फास्ट फूड भी है। यह रेस्टोरेंट साल १९६१ से सुबह ७.३० से रात ११ बजे तक अपने कस्टमर्स की भूख मिटाता आ रहा है। इस रेस्टोरेंट में एसी और नॉन एसी की सुविधा के साथ-साथ होम डिलीवरी की व्यवस्था भी है।
यहां फास्ट रखने वालों के लिए पटैटो दही, साबूदाना वड़ा और पोटेटो चिप्स भी है।
डिश- पूरी भाजी, बटर रोटी, गार्लिक नॉन, स्टफ पराठा, कुलचा, पंजाबी पुरी, नर्गिस कोफ्ता, मलाई कोफ्ता, मशरूम मसाला, पनीर कुरमा, पनीर भुर्जी, पनीर बटर मसाला, पनीर मुगलई, रसम राइस, पनीर पुलाव, सांबर राइस, करी राइस, चीज पुलाव, डाल खिचड़ी, पालक खिचड़ी इत्यादि।
फास्ट फूड- सादा डोसा, मैसूर डोसा, चॉकलेट सादा डोसा, पाव भाजी मसाला, पनीर चीज मसाला डोसा, सैंडविच, पकौड़ा, उत्तप्पम, पिज्जा, मिसल पाव, इडली सांभर, कटलेट, उसल पाव, इत्यादि।
सूप- मंचाउ सूप, टोमैटो सूप, पालक सूप, नूडल सूप
पता- शॉप नं. ८, ९, अमरकुंज, ऑफ वीर सावरकर मार्ग, ३७७, शिवाजी पार्क, दादर-पश्चिम, मुंबई – ४०००२८
कॉन्टैक्ट नंबर-
२४४५३४७४ / ९०२२०८२२४४

१०० करोड़ के चक्कर में चले गए ५३ लाख!.. कारोबारी को कर्ज दिलाने का लालच देकर की ठगी

सामना संवाददाता / ठाणे

मुंबई के एक कारोबारी को १०० करोड़ रुपए का कर्ज लेना महंगा पड़ा गया। दरअसल, मुंबई के एक कारोबारी को १०० करोड़ रुपए का कर्ज लेना था, लेकिन एक ठग ने उन्हें १०० करोड़ रुपए का कर्ज दिलाए बिना ही उनसे ५३ लाख रुपए की ठगी कर ली। मामला ठाणे स्थित नौपाड़ा पुलिस स्टेशन में दर्ज कर लिया गया है।
बता दें कि व्यापारी की मुंबई में कंपनी है। उनका सड़क निर्माण और रियल एस्टेट का कारोबार है। करीब दो साल पहले उनके ऑफिस में एक महिला लाइजनिंग के काम से आई थी। महिला ने व्यापारी को जमीन पर कर्ज दिलाने की बात कही, वहीं व्यापारी को महिला ने जमीन के नाम पर लोन पास करने वाले व्यक्ति को व्यापारी से मिलवाया। रायगढ़ में व्यापारी के पास १०० एकड़ जमीन है। उस व्यक्ति ने व्यापारी से कहा कि इस जमीन पर लोन मिल सकता है। कर्ज देनेवाले व्यक्ति ने कर्ज वसूली प्रक्रिया के लिए ५३ लाख रुपए के रूप में ४८ लाख रुपए और वकील की फीस के रूप में ५ लाख रुपए की मांग की। इस हिसाब से उन्होंने कई चरणों में ५३ लाख रुपए भेज दिए, लेकिन दो साल बाद भी लोन स्वीकृत नहीं हुआ। व्यापारी को ठगे जाने का अंदाजा होते ही नौपाड़ा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। जिस बैंक से कर्मचारी को ऋण प्राप्त होना था। जब उस बैंक में पूछा गया तो उनके पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी। आखिरकार, इस मामले में केस दर्ज कर लिया गया है। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।

तड़का : कलेक्टर साहिबा की फजीहत!

कविता श्रीवास्तव

प्रशासन या नौकरशाही अपने कार्यक्षेत्र में स्वतंत्र और अधिकारप्राप्त व्यवस्था होती है, लेकिन हर काम में नियम-कानून ही सर्वोपरि होता है। प्रशासनिक महकमे में हम अक्सर आम लोगों की न सुने जाने और अफसरों की मनमानी की खबरें सुनते हैं, पर कानून इतना तगड़ा है कि अफसर हर जगह मनमानी नहीं कर सकते हैं। हमारे लोकतंत्र में संविधान के आधारस्तंभ कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका तीनों के कामकाज स्वतंत्र जरूर हैं। इसके बावजूद संविधान ने इनमें एक-दूसरे पर नजर रखने और गलत काम को रोकने के पर्याप्त प्रावधान बनाए हैं। प्रशासनिक अफसरों की मनमानी उनकी मुश्किलें वैâसे बढ़ा सकती हैं, यह मध्य प्रदेश में हाल ही में दिखा। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक जिला कलेक्टर को इसलिए डपटा है कि अदालत में उन्होंने हाजिरी नहीं दी और सीधे जज को चिट्ठी लिख दी। अब कलेक्टर साहिबा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। खबर है कि उनकी यह गलती उन पर भारी पड़ने वाली है। जमीन विवाद से जुड़े मामले में उन्होंने हाई कोर्ट जज को सीधे चिट्ठी लिख दी थी। कोर्ट रूम में सुनवाई के दौरान एडीएम ने जब वह चिट्ठी दिखाई तो जज साहब ने भारी नाराजगी व्यक्त की और फटकार लगाई। उन्होंने तल्ख लहजे में कहा कि अफसरों की इतनी हिम्मत बढ़ गई कि सीधे हाई कोर्ट के जज को पत्र लिखें। यह ठीक नहीं है। खबरों के मुताबिक, उन्होंने कलेक्टर को सस्पेंड करने की बात भी कही। अदालतों में सुनवाई के दौरान उपस्थित न होने के लिए निर्धारित प्रक्रिया होती है। नर्मदापुरम जिला कलेक्टर ने कोर्ट को सीधे पत्र लिखकर जमीन के मामले में पेशी से छूट मांगी थी। यह मामला जमीन में नामों की गड़बड़ी से जुड़ा था। मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि कलेक्टर, नर्मदापुरम का यह आचरण अक्षम्य है। अदालत ने एडीएम के आचरण पर भी नाराजगी जताई, जिन्होंने खुली अदालत में वह लिफाफा लहराया था। एडीएम को यह गलतफहमी थी कि चूंकि यह पत्र कलेक्टर द्वारा सीधे अदालत को संबोधित करके लिखा गया है, इसलिए अदालत बहुत प्रभावित होगी और कलेक्टर, नर्मदापुरम द्वारा लिखे गए पत्र के आगे ठंडी पड़ जाएगी। कोर्ट ने अधिकारियों के आचरण के बारे में कड़ी टिप्पणी की। इस घटना से यह समझना चाहिए कि शीर्ष पदस्थ अधिकारी भी आम जनता के सेवक के रूप में कार्यरत होते हैं। प्रशासन का अर्थ है लोगों की देखभाल करना, पदस्थ व्यक्ति द्वारा दूसरों की सेवा करना। प्रशासन का मूल अभिप्राय सामाजिक हित की दृष्टि से सरकारी सेवाएं प्रदान करना है। नौकरशाही एक सरकारी प्रशासन है। किसी भी बड़े संस्थान को नियंत्रित करने वाली प्रशासनिक प्रणाली बहुत जिम्मेवार होती है। चाहे वह सार्वजनिक रूप से स्वामित्व वाली हो या निजी स्वामित्व वाली हो। अदालतें हमारे नियम-कानून और संविधान की पालक हैं। वे उनकी रक्षक हैं। जिनके पास सबसे अधिक शक्ति है वे सबसे ऊपर हैं, लेकिन नियमों से बढ़कर कोई नहीं है। हमें अपनी न्यायिक प्रणाली और हमारी न्यायिक व्यवस्था का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह समय-समय पर नियम-कानून, संविधान के महत्व से सबको अवगत कराती रहती है।