नशा कोई भी हो सेहत के लिए ठीक नहीं होता। एंग्जाइटी की समस्या के चलते माही विज ने शराब और काफी छोड़ दी। माही ने बताया कि कार्डिएक अरेस्ट से उनकी मामी का देहांत हो जाने के बाद वे काफी डिप्रेस्ड हो गई थीं। डॉक्टर के पास जाने पर उन्होंने उन्हें कॉफी और अल्कोहल छोड़ने के लिए कहा। माही ने बताया कि वे ओवरथिंकर हैं और ६ महीने से उन्होंने इसे हाथ तक नहीं लगाया क्योंकि इससे एंग्जाइटी ट्रिगर होती है। माही ने कहा कि कॉफी, एल्कोहल और एरेटेड ड्रिंक्स एकदम नहीं पीना चाहिए क्योंकि ये एंग्जाइटी ट्रिगर करते हैं, दिल की समस्या होती है और लीवर इश्यू हो जाता है।
पेरिस ओलिंपिक में बवाल …पुरुष खिलाड़ी बन गया महिला!
अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक समिति (आईओसी) ने अल्जीरियाई बॉक्सर इमान खलीफ के पेरिस ओलिंपिक्स में महिला बॉक्सिंग वर्ग में भाग लेने के निर्णय का बचाव किया है। आईओसी के अनुसार, पिछले ओलंपिक्स की बॉक्सिंग प्रतियोगिताओं की तरह, एथलीट्स के पासपोर्ट पर लिखे जेंडर और उम्र को ही मान्यता दी गई है। खलीफ, जो एक `बायोलॉजिकल मेल’ हैं, पिछले साल जेंडर एलिजिबिलिटी टेस्ट में फेल हो गई थीं। हालांकि, उनके उच्च टेस्टोस्टेरोन स्तर के कारण जेंडर टेस्ट में असफलता के बावजूद, उन्हें महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति दी गई है। यह विवाद तब और बढ़ गया जब `हैरी पॉटर’ की लेखिका जेके रोलिंग ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने ट्वीट किया, `मनोरंजन के लिए एक मर्द द्वारा औरत की सरेआम पिटाई आपको क्यों ठीक लगती है?… यह मर्दों द्वारा औरतों पर ताकत आजमाए जाने की नुमाइश है।’
इस विवाद ने `डिफरेंसेस इन सेक्स डेवलेपमेंट’ (डीएसडी) पर भी ध्यान खींचा है। डीएसडी जीन, हार्मोन और जननांगों से जुड़ी दुर्लभ कंडिशन्स का एक ग्रुप है। डीएसडी के तहत महिला माने जाने वाले कुछ लोगों र्में ेंभ् सेक्स क्रोमोसोम होते हैं और ब्लड टेस्टोस्टेरोन का लेवल पुरुषों जैसा होता है। खलीफ का मामला इसी श्रेणी में आता है, जिससे उनकी भागीदारी पर विवाद गहराता जा रहा है। आईओसी के निर्णय और खलीफ की भागीदारी ने खेल जगत में जेंडर और समानता के मुद्दों पर एक नई बहस छेड़ दी है। आने वाले पेरिस ओलंपिक्स में यह मुद्दा और भी चर्चा में रहेगा, जहां खेल के नियमों और जेंडर एलिजिबिलिटी पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।
हार के बाद छलका दर्द …भूखी-प्यासी रही निकहत!
भारत की सबसे मजबूत पदक संभावनाओं में से एक मानी जा रही मुक्केबाज निकहत नॉर्थ पेरिस एरेना में शीर्ष वरीयता प्राप्त चीनी मुक्केबाज के खिलाफ ०-५ से दिल तोड़ने वाली हार के बाद ओलिंपिक से बाहर हो गर्इं। इस हार के बाद निकहत का दर्द छलक आया। निकहत ने कम से कम पांच बार कहा, ‘मैं मजबूत वापसी करूंगी।’ यह स्पष्ट है कि यह हार उन्हें लंबे समय तक परेशान करेगी। यू ने मुकाबले में दबदबा बनाए रखा, जबकि निकहत ने दूसरे दौर में वापसी की कोशिश की लेकिन वह पर्याप्त नहीं थी। ‘क्या मुझे थोड़ा पानी मिल सकता है।’ निकहत ने अपने कोच की ओर इशारा करते हुए कहा और फिर आधी भरी बोतल से एक घूंट लिया। उन्होंने कहा, ‘माफ करना दोस्तों, मैं देश के लिए पदक नहीं जीत सकी। मैंने यहां तक पहुंचने के लिए बहुत त्याग किए हैं। मैंने इस ओलिंपिक के लिए खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से अच्छी तरह से तैयार किया था।’ निकहत ने कहा, ‘मैंने पिछले दो दिनों से कुछ नहीं खाया था, मुझे अपना वजन नियंत्रित रखना था। मैंने पानी भी नहीं पिया था और वजन मापने के बाद ही मैंने पानी पिया, लेकिन मेरे पास उबरने का समय नहीं था, मैं आज रिंग में सबसे पहले उतरी।’
ओलिंपिक पदक जीतने के बाद स्वप्निल को मिला प्रमोशन
इंडियन शूटर स्वप्निल कुसाले ने एक अगस्त को पेरिस ओलिंपिक्स के ५० मीटर थ्री पोजिशन राइफल इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीता। इस जीत के बाद उनको बड़ा तोहफा मिला है। बता दें कि स्वप्निल २०१५ से सेंट्रल रेलवे में टीटीई के पद पर काम कर रहे हैं। अब उनका प्रमोशन हुआ है। हालांकि, इस प्रमोशन के लिए उन्हें लगभग दशक भर का इंतजार करना पड़ा, वो बात अलग है। अब इंडियन रेलवे के ओएसडी बनाए गए हैं। २०१५ में सेंट्रल रेलवे में शामिल होने के बाद स्वप्निल ने बार-बार प्रमोशन की मांग की, लेकिन उनका प्रमोशन हो ही नहीं पाया। मिली जानकारी के अनुसार, इंडियन रेलवे द्वारा यात्रा टिकट परीक्षक (टीटीई) स्वप्निल कुसाले को ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) के पद पर प्रमोट किया गया है। ये नियुक्ति मुंबई के स्पोर्ट्स सेल में हुई है। सेंट्रल रेलवे के चीफ पब्लिक रिलेशन ऑफिसर स्वप्निल नीला ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि प्रमोशन का आदेश जारी कर दिया गया है।
क्लीन बोल्ड : जेकोविच का जज्बा
अमिताभ श्रीवास्तव
इसे कहते हैं देश के लिए जीतना। हिंदुस्थानी खिलाड़ियों को सीखना चाहिए यह जज्बा, जो टेनिस के नोवाक जेकोविच में है। जेकोविच सितसिपास से भिड़ रहे थे। ६-३ से पहला सेट जीतने के बाद दूसरे सेट में चोटिल हो गए। ऐसे समय जब वो सितसिपास से यह मैच लगभग हारने की कगार पर थे। सर्बिया के दर्शक एकदम खामोश हो गए। जेकोविच की हालत इस मैच को छोड़ देने जैसी हो चुकी थी। उनके चिकित्सक ने आकर कुछ राहत दी तो जेकोविच कोर्ट में फिर उतरे, मगर अबके तो दर्द से कराह उठे। सर्बिया के दर्शक जो अब तक जोकोविच के लिए उत्साहवर्धन कर रहे थे, उनके छुके सिर और आंखों में आंसू थे कि जेकोविच का अब खेलना कठिन है। यह जेकोविच ने देखा और अपने चिकित्सक से पेन किलर दवा ली। दवा लेकर वो अपने देश के लिए कोर्ट में फिर उतरे और अबकी बार अपने विरोधी को टाई ब्रेकर में जाकर मात दी। अपना मैच लगभग गंवा चुके जेकोविच ने अपने देश के दर्शकों के लिए चोट की परवाह किए बिना मैच खेला और जीता। यह होता है देश के लिए खेलना और उसका जज्बा।
यह तो अन्याय है
पेरिस ओलिंपिक के जरिए विश्व में यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया, क्योंकि यह मुक्केबाजी में महिलाओ के प्रति अन्याय है। अब इस संदर्भ में तर्क जो भी दे दिए जाएं, किंतु यह सरासर अन्याय है कि एक महिला खिलाड़ी से पुरुष खिलाड़ी भिड़े वो भी महिला बनकर। दरअसल, मामला यौन परिवर्तन का है, जो मान्य किया गया किंतु है सरासर गलत। मुक्केबाजी स्पर्धा में एक बायोलॉजिकल पुरुष इमान खलीफ को एक महिला खिलाड़ी के साथ मुकाबले की अनुमति देने का मामला सामने आया। ओलिंपिक में एक बायोलॉजिकल पुरुष इमान खलीफ को पेरिस में एक महिला के रूप में लड़ने की अनुमति दी गई। मुकाबले में इमान ने कथित तौर पर इटली की महिला मुक्केबाज एंजेला वैâरिनी की नाक तोड़ दी। वैâरिनी ने खलीफ से २ जोरदार मुक्के खाने के बाद ४६ सेकंड के भीतर मुकाबला छोड़ दिया। उसने कहा ओलिंपिक मुक्केबाजी में यह असामान्य है। वैâरिनी ने अपना हेलमेट फर्श पर फेंक दिया और चिल्लाई- यह अन्याय है। पेरिस ओलिंपिक में हुई इस घटना को लेकर पुरी दुनिया सन्न है। हैरी पॉटर की लेखिका जेके राउलिंग ने एक्स पर पोस्ट डालकर पेरिस ओलिंपिक में हुई इस घटना की निंदा करते हुए इसे ‘अपमानजनक’ बताया। इस लिस्ट में एलन मस्क भी शामिल हुए।
खत्म होती चुनौतियां
ओलिंपिक में हिंदुस्थानी चुनौतियां धीरे-धीरे खत्म होने के कगार पर पहुंच रही हैं। वहीं जो मेडल हैं, वो केवल शूटिंग में दर्ज हुए हैं। शूटिंग के अलावा जिनसे तगड़ी उम्मीद थी जैसे तिरंदाजी, मुक्केबाजी, बैडमिंटन उसमें हिंदुस्थानी एथलीट लगभग बाहर हो चुके हैं। अब भाला फेंक, गोला फेंक और कुश्ती से बड़ी आस है। ऐसा आखिर क्यों होता है कि हम हर ओलिंपिक में केवल उम्मीदें टूटती हुई देखते हैं। सैकड़ों एथलीट खेलते हैं, गिनती के जीतते हैं और वो जिनसे उम्मीद भी नहीं होती। दरअसल, यह सारा हमारे ओलिंपिक के लिए तैयारी कराने तथा फेडरेशन द्वारा सिलेक्शन की खामियां हैं। हालांकि, पिछले वर्षों से आज खेलों में बहुत विकास हुआ है, धन लगा है और सुविधाओं के मामले में भी जबरदस्त विकास है। इसके बावजूद कुछ खिलाड़ियों के प्रति उदारता और केवल ओलिंपिक के लिए खिलाड़ी न बनाने की मुहिम की कमी से यह हालत होती है। समय रहते इस कमी के बड़े गड्डे को भरते हुए हिंदुस्थान को ओलिंपिक के लिए ही तैयार करना चाहिए खिलाड़ी, वरना हर बार चुनौतियों को इसी तरह खत्म होते हुए ही देखेंगे।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)
आज और अनुभव : भावनाओं का नहीं होता भाव …राहुल के सिले जूते लाखों के दिल जीते
कविता श्रीवास्तव
राहुल गांधी इस समय देश में चर्चित व्यक्तियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। एक तो उन्होंने पिछले १० वर्षों में मोदी शासन के एक छत्र साम्राज्य को हिलाने का काम किया है और वर्तमान सरकार दो दलों के सहयोग पर टिकी हुई है। दूसरी ओर उन्होंने आम व्यक्तियों से अपना जुड़ाव निरंतर बनाए रखा है। बीते दिनों जब वे अपने निर्वाचन क्षेत्र सुलतानपुर गए थे, तब उन्होंने राह में एक मोची की दुकान पर बैठकर उससे जूते की सिलाई के बारे में जानकारियां हासिल कीं। इतना ही नहीं उन्होंने उस दुकान में बैठकर एक जूता भी सिल दिया। इसकी तस्वीर भी खूब वायरल हुई। राहुल गांधी ने वहां एक जूता क्या सिला, कमाल ही कर दिया! अब वह जूता सिलने वाला ही एक तरह का सेलिब्रिटी बन गया है। लोग उसकी दुकान के सामने अपनी स्कूटर, कार आदि खड़ा करते हैं। वह जूता भी देखते हैं जो राहुल गांधी ने अपने हाथों से सिला था। कुछ लोगों ने उस जूते के खरीदने की पेशकश भी की। उसका दाम ५ लाख से शुरू होकर अब १० लाख तक भी पहुंच गया है, लेकिन वह दुकानदार भी कम नहीं है। वह खुद उस भाव से अभीभूत है, जो राहुल गांधी ने उसके साथ उसकी दुकान में बैठकर अभिव्यक्त किया। उसकी इलाके में पूछ बढ़ गई है। उसकी दुकानों पर ढेर सारे लोगों का आना-जाना शुरू हो गया है। लोग उसके साथ सेल्फी निकालते हैं। उसका कहना है कि राहुल गांधी के हाथों सिला हुआ जूता वह कभी नहीं बेचेगा। वह तो उसके मूल मलिक को भी नहीं देगा, बल्कि उसका दाम चुका देगा। वह उसे हमेशा अपनी दुकान में सजा कर रखेगा। उसकी इस भावना पर मुझे अपने घर में रखे हुए बेड को पाने की वह खुशी याद आती है, जो उसके पहली बार हमारे घर लाए जाने पर मुझे हुई थी। दरअसल, मेरे बेडरूम का पड़ा बेड कोई साधारण बेड नहीं है। वह एक ऐसी व्यवस्था से आया है, जिसे हम बड़े आदर, सम्मान और श्रद्धाभाव से देखते आए हैं। देश के एक अत्यंत ही प्रतिष्ठित, सम्मानित और लोकप्रिय विद्वान-कथाकार के लिए यह नया बेड लाया गया था। उनके नौ दिनों के उपयोग के बाद यह बेड उस दुकान में वापस भेजा जाना था, जहां से वह लाया गया था। लेकिन मैंने इसे पाने में सफलता पाई। दरअसल, हमारे घर से कुछ दूरी पर बहुत बड़े विशाल मैदान में एक बहुत बड़े लोकप्रिय कथावाचक की भागवत कथा का कार्यक्रम हुआ था। अनेक जानी-मानी हस्तियां उसमें शामिल हुई थीं। महाराजश्री जिस बंगले में ठहरे हुए थे, वह ९ दिनों के लिए किराए पर लिया गया था। आयोजकों ने वहां पर उनके लिए अलग से बेड व रसोर्इं सामग्रियों से लेकर और भी अनेक प्रकार के इंतजाम किए थे। सभी सामान दुकानों से नए लाए गए थे। इस दौरान अपने पति के साथ मैं कई बार महाराजश्री से मिलने उस बंगले तक गई। अनेक लोकप्रिय व नामचीन हस्तियों से भी वहां मुलाकात हुई, जो अक्सर महाराजश्री से उस बंगले में मिलने आया करते थे। आखिर वह दिन भी आया, जब कथा संपूर्ण हुई और महाराजश्री की विदाई की तैयारी होने लगी। अनगिनत श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच अनेक लोगों ने भरपूर श्रद्धाभाव से महाराजश्री को विदाई दी। उसके बाद लोग अपने-अपने घरों की ओर रवाना हो गए, लेकिन व्यवस्थापकों के साथ हमारे पति भी लगे हुए थे। उस बंगले के हर सामान को हटाया जाना था और बंगला खाली करना था। अन्य सामानों के अलावा उस बेड को भी हटाना था, जिसका महाराज श्री ने पूरे ९ दिनों तक उपयोग किया था। सभी लोग उस बेड को बड़े ही पवन भाव से निहार रहे थे। दुकानदार से एकदम सही सलामत रहने पर उसकी कुछ कीमत काट कर बाकी पैसे वापस लौटाने की शर्त पर उसे लाया गया था, तभी आयोजन समिति के प्रमुख ने कहा कि यदि हमारे में से कोई इस बेड को ले जाना चाहे तो वह ले जा सकता है। इससे पहले कि कोई कुछ कहता मेरे पति ने तपाक से हामी भर दी। हालांकि, उसके बाद कई अन्य लोगों ने उस बेड को पाने के लिए कोशिश शुरू कर दीं, क्योंकि जिस बेड पर महाराजश्री ने शयन किया था उसे प्रसाद के रूप में हर कोई अपने घर ले जाना चाहता था। लेकिन आयोजन समिति के प्रमुख ने पहले हामी भरने पर वह हमें देने पर सहमति व्यक्त कर दी। मेरे पति ने जब मुझे फोन पर यह जानकारी दी तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि भागवत कथा सुनने और महाराजश्री से जुड़ाव बनाए रखने पर मैंने ही सबसे ज्यादा जोर दिया था। मेरे कारण ही पति उस कार्यक्रम में आते-जाते थे। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि महाराजश्री ने जिस बेड का उपयोग किया है वह मेरे घर आ जाएगा। जब वह मेरे घर आया तो हमारी सासू मां, मेरे जेठ-जेठानी, देवरानी और पूरा परिवार उसे देखने आए। सब ने उस पर बैठकर, लेटकर स्वयं को धन्य सा महसूस किया। कई श्रद्धालु भी मेरे घर पर आकर उस बेड को छूकर, उस पर बैठकर गए। हम आज भी उसी बेड का उपयोग कर रहे हैं। हमने घर भी बदला, लेकिन वह बेड नहीं बदला। उससे हमारी भावना जुड़ी हुई है। ठीक उसी तरह की भावना, जो सुल्तानपुर में जूते सिलने वाले के मन में उस जूते को लेकर है, जो राहुल गांधी ने उसकी दुकान में बैठकर सिला है। उस जूते पर मिलने वाला कोई भी भाव, उस दुकानदार की भावनाओं के मूल्य की बराबरी नहीं कर सकता।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)
आदिवासियों की जिंदगी से खिलवाड़…उफनती नदी से शव ले जाने को मजबूर!.. वर्षों से प्रस्तावित पुल के निर्माण का इंतजार
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई से सटे रायगढ़ जिले के उरण विधानसभा क्षेत्र में रहनेवाले कई आदिवासी परिवारों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इस क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। आदिवासी वाड़ी में रहनेवाले एक शख्स की मौत होने पर गांव के लोगों को उफनती नदी में से शव को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट तक ले जाना पड़ा। उफनती नदी में लोग बह सकते थे, लेकिन गांववालों के पास कोई और रास्ता नहीं था। बताया जाता है कि इस नदी पर पुल निर्माण का भूमिपूजन करीब पांच-छह माह पहले ही किया गया था, लेकिन आज तक काम शुरू नहीं हो पाया है।
जान हथेली पर रखकर अंतिम संस्कार
जानकारी के अनुसार, उरण विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले खालापुर तालुका के अरकाट वाड़ी निवासी कमल बालू चौधरी का निधन हो गया। चूंकि श्मशान घाट पिरकटवाड़ी में नदी की दूसरे तरफ है, इसलिए आदिवासियों को शव को दाह संस्कार के लिए नदी पार ले जाना पड़ता है। गर्मी या ठंडी के मौसम में तो नदी में पानी कम रहता है, जिससे लोग वैâसे भी करके नदी पार कर लेते हैं, लेकिन बारिश में पानी अधिक होने के कारण नदी पूरे उफान पर आ जाती है। इसी उफनती नदी में गांववाले शव को साथ लेकर श्मशान घाट तक पहुंचे।
वोट के लिए किया भूमिपूजन
उंबरवाड़ी, पीरकटवाडी और आरतवाड़ी के आदिवासी समुदाय के लोग कई वर्षों से नदी पर ब्रिज बनाने की मांग रहे हैं। उनका कहना है कि क्षेत्र के बच्चे स्कूल आने-जाने के लिए नदी में से होकर जाते हैं, बीमार महिला हो या बुजुर्ग सभी नदी से होकर गुजरते हैं, जिससे जान-माल का खतरा रहता है। इसलिए नदी पर पुल की जरूरत है, लेकिन उरण विधानसभा क्षेत्र के भाजपा समर्थक विधायक ने इस पुल का भूमिपूजन सिर्फ नाम के लिए ही किया है और आज तक भी उस पुल के निर्माण के लिए यहां साधारण पत्थर तक नहीं रखा गया है।
अर्थार्थ : तकनीकी का साम्राज्यवाद
पी. जायसवाल मुंबई
अभी पिछले दिनों माइक्रोसॉफ्ट में आई एक गड़बड़ी ने दुनिया के एक बड़े हिस्से को रोक ही दिया था। हमारे समाज में तकनीक ने ऐसी जगह बना ली है कि उसके बिना हमारा सिस्टम ढहने के कगार पर आ जाता है। पिछली सदियों में जब यूरोप द्वारा लादी गई औद्योगिक क्रांति का दौर था तो चंहुओर पूंजीवाद एवं इसके दुष्प्रभावों की चर्चा थी कि वैâसे संसाधन कुछ मुट्ठियों में इकट्ठे होते जा रहे हैं, मार्क्स जैसे विचारक आए। आज धीरे-धीरे इस औद्योगिक क्रांति का स्थान बाजार और तकनीक क्रांति ने ले लिया। कॉन्ट्रैक्ट मैन्युपैâक्चरिंग और जॉब वर्क के माध्यम से पूंजीवाद ने बाजारवाद का वस्त्र पहन लिया। अब दौर तकनीक के साम्राज्यवाद का है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस ने इसे ऐसा प्यारा डर बना दिया है कि कई देश इससे डर भी रहे हैं, लेकिन लागू भी कर रहें हैं।
पहले पूंजीवाद की आलोचना इसीलिए भी होती थी कि पूंजीवाद मुनाफाखोर था। मूल्य का सिस्टम उनके हाथ में था। इस तकनीक के साम्राज्यवाद में भी वही हुआ है। इस आभासी दुनिया के मूल्यांकन का कोई भी पारदर्शी व्यवस्था नहीं है। एक ही सेवा की विभिन्न कंपनियां भिन्न-भिन्न मूल्य वसूलती हैं। मूल्यों में मानकपन है ही नहीं। शुरुआत में आईटी कंपनियों ने ऊल-जुलूल पैसे वसूले। इसका पैâलाव इतने चुपके से होता है कि कई को पता ही नहीं लगता है और सब कुछ लुट जाता है, मेरु और टैब वैâब टैक्सी सेवा को तो हवा ही नहीं लगी कि कब ओला, उबर ने उनके सारे निवेश को एक झटके में खत्म कर दिया। ठीक वैसे ही काली-पीली टैक्सी वालों को पता नहीं लगा कि कब मेरु, टैब वैâब और बाद में ओला व उबर ने उनके बाजार पर कब्जा कर लिया, आज उनका निवेश लाभ के लिए संघर्ष कर रहा है। कुछ ऐसा ही देशभर में कचहरी के बाहर पैâले झटपट स्टूडियो वालों के साथ हुआ। मोबाइल वैâमरे और आधुनिक प्रिंटर के आविष्कार ने उनकी जड़ ही खत्म कर दी, साथ में जबसे मोबाइल पर वैâमरे आने लगे, तबसे तो टूरिस्ट प्लेस के फोटोग्राफर भी ग्राहकों के लिए तरसने लगे। रील वाले वैâमरे का बाजार पहले डिजिटल वैâमरे ने छीना, बाद में इन डिजिटल वैâमरे का बाजार मोबाइल वैâमरों ने छीन लिया।
अब तो टीवी से ज्यादा समय लोग ओटीटी या मोबाइल पर खर्च करते हैं और इसने टीवी चैनलों के लिए भी नई चुनौती पैदा कर दी है। करोड़ों रुपए लगाकर न्यूज चैनल खोलने वालों के सामने हजार रुपए खर्च कर लाखों की संख्या में यूट्यूब चैनल आने लगे। वो दिन दूर नहीं, जब बड़ी संख्या में लोग थिएटर जाना बंद करके घर पर ही नई रिलीज हुई मूवी अपने स्मार्ट टीवी पर होम थिएटर सिस्टम लगाकर देखेंगे। कोरोना के बाद भी मूवी रिलीज डीटीएच सेवा प्रदाता, ओटीटी, नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम और यूट्यूब या ऐसे ही प्लेटफॉर्म पर हो और ये प्लेटफॉर्म थिएटर से ज्यादा पैसा बनाएं, इसी तरह अगली कड़ी में अगला संकट इन डीटीएच सेवा प्रदाताओं पे भी आने वाला है। तकनीक इतनी तेजी से पिछले को खत्म कर रही है कि जिसने इसके साथ कदमताल नहीं किया, उसे पता ही नहीं चलेगा कि कब उसकी दुनिया खिसक गई।
कुछ ऐसा ही भारत में सीए लोगों के साथ भी हो सकता है, जब सब कुछ ऑनलाइन नहीं था, तब उनके प्रमाणन की आवश्यकता थी। अब तो सब डिजिटल प्रमाणित आता है और समाधान विवरण के साथ हो सकता है कि कुछ साल बाद इनके प्रमाणन की आवश्यकता ही नहीं रहे। एक बिजनेस का ९० प्रतिशत हिस्सा उसका खरीद-बिक्री होता है। वह तो अब जीएसटी पोर्टल प्रमाणित कर दे रहा है। बाकी का डाटा आयकर विभाग को डाटा माइनिंग से मिल जा रहा है फिर उसे अलग से सीए का टैक्स ऑडिट प्रमाणन की जरूरत ही क्यों पड़ेगी। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के विस्तार ने कई जगहों से जहां मानवीय निर्णयन को खत्म किया है और वह डॉक्टर से लेकर कोई भी काम हो सकता है। तकनीक का जन्म एक ह्यूमन जजमेंट ने किया था, अब इसी तकनीक का मिशन हर उस जगह का स्थान लेना है जहां ह्यूमन जजमेंट प्रयोग होता है इसलिए अगर मेट्रो चालकविहीन आ रही है तो इस पर खुश होने की जरूरत नहीं है।
एक समय था बाजार में मोटोरोला और नोकिया के फोन का ही दबदबा था और वो हौले-हौले आ रही स्मार्ट फोन, एंड्रॉयड एवं एपल के कदमों की आहट सुन नहीं सके, बहुत देर में जागे, तब तक बाजार में एंड्रॉयड एवं एपल सपोर्ट मोबाइल की बाढ़ आ गई और आज बाजार में इनकी उपस्थिति नगण्य है। मोबाइल की दुनिया में एक गलती माइक्रोसॉफ्ट ने भी कर दी, वह अपने डेस्कटॉप और लैपटॉप के ऑपरेटिंग सिस्टम पे ही ध्यान देती रही और उसे देर से पता चला कि कंप्यूटर की दुनिया अब मोबाइल में सिमट गई है। अब कंप्यूटर के लगभग सारे काम मोबाइल से ही हो जा रहे हैं। मोबाइल टैबलेट भी अब बाजार से बाहर जा रहे हैं, क्योंकि अब मोबाइल ही इतने सक्षम हो गए हैं कि टैबलेट का काम करने लगे हैं।
अगला उदाहरण याहू का है, एक समय इंटरनेट मतलब याहू था, ईमेल और चैट मतलब याहू, लेकिन इसने भी बदलते वक्त के साथ अपने को बदला नहीं और जीमेल के आहट को सुन नहीं सका और आज बाजार से बाहर हो गया। आज के दौर में कुछ बिजनेस सेगमेंट ऐसे भी हैं, जो यदि समय की आहट को पहचान नहीं सके तो उनका भी पतन निश्चित है। उसमें पहला थिएटर और मल्टीप्लेक्स का बिजनेस है। जिस तरह से नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम जैसे कई ने अपना दायरा बढ़ाया है। उसके साथ ही स्मार्ट टीवी और होम थिएटर की बिक्री बढ़ी है। जियो के आने से डाटा सस्ता हुआ है, लोग अब थिएटर जाना कम कर रहे हैं। जिओ के सस्ते डेटा से फायदा भी हुआ है। गांवों, कस्बों के कई लोगों को दुनिया का डायरेक्ट बाजार मिला है।
ये तो उदाहरण है, जिसमें तकनीक ने सक्षम लोगों को धराशायी कर दिया है। जरा सोचिए जो सक्षम नहीं हैं, उसका क्या हाल होगा? अगर तकनीक इसी तरह पिछले को दमित करते हुए आगे बढ़ गई तो पृथ्वी के इस ८०० करोड़ की आबादी का क्या होगा? आज पृथ्वी पर सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या अधिकता की है और कोई भी नीति यदि इनके समायोजन को उपेक्षित करके या इन्हें रिप्लेस करने के लिहाज से बनेगी तो एक छोटे गड्ढे को भरने के लिए हम बड़ा गड्ढा खोद रहे हैं। मशीनों का इस्तेमाल होना चाहिए, लेकिन इतना नहीं कि आदमी ही खाली हो जाए। हमारे पास भी दिन के २४ घंटे होते हैं, लेकिन इन २४ घंटे में लगातार हम काम नहीं करते हैं। इसे हमने संतुलित घंटों में बांटा है, ताकि हम लंबी अवधि तक जीते हुए काम करते रहें। इस तकनीक का संतुलन बिंदु हमें ढूंढ़ना पड़ेगा, नहीं तो तकनीक का पूंजीवाद औद्योगिक पूंजीवाद से ज्यादा प्रभावित करने वाला है और यह जनसंख्या आधिक्य ग्लोबल वॉर्मिंग से ज्यादा खतरनाक होगा। यह सिर्फ दुनिया की चुनिंदा कंपनियों फेसबुक, व्हॉटसऐप, ट्विटर का मसला नहीं है। ये तो ऑरकुट, याहू की तरह आई है तो एक दिन इनकी जगह कोई और आ जाएगा। सबसे बड़ा खतरा हमारी नीति निर्माण की सोच है, जो यहीं से शुरू होती है की मानवीय हस्तक्षेप को खत्म करना है। अब अगर मानव व्यस्त नहीं रहेगा तो क्या करेगा? इसलिए हमें इस तकनीक के साम्राज्यवाद की काट और इसके विकास का संतुलन बिंदु खोजना पड़ेगा, नहीं तो एक दिन यही तकनीक मानव जाति की दुश्मन बन जाएगी।
(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)
चिकनगुनिया और जीका के बढ़े मामले
मुंबई। महाराष्ट्र में लगातार बारिश हो रही है। यह बारिश कई बीमारियों को भी न्योता दे रही है। इसमें सबसे बड़ी मुसीबत चिकनगुनिया और जीका बन रहा है। प्रदेश में चिकनगुनिया के मामले तीन गुना बढ़ गए हैं, जबकि पुणे में जीका जटिल बनता जा रहा है। ये दोनों ही बीमारियां विभाग की नाक में दम कर रही हैं। इस बीच स्वास्थ्य विभाग ने मौसमी बीमारियों से सावधान रहने की सलाह दी है। राज्य में पिछले साल की तुलना में चिकनगुनिया के मामले बढ़ रहे हैं। राज्य में चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या पिछले साल की तुलना में तीन गुना बढ़ गई हैं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी से जुलाई के बीच महाराष्ट्र में चिकनगुनिया के १,०७५ मामले सामने आए हैं। इनमें से ८० फीसदी मरीज पिछले दो से ढाई महीने में सामने आए हैं। इस दौरान चिकनगुनिया से एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है। साल २०२३ में इसी अवधि के दौरान राज्य में चिकनगुनिया के ३६३ मामले सामने आए थे। दूसरी तरफ राज्य में पिछले साल जहां जीका के ६९ मरीज मिले थे, वहीं इस साल यह संख्या ६३ पर पहुंच गई है। स्वास्थ्य विभाग त्वरित बुखार सर्वेक्षण, जागरूकता और रोगियों का इलाज कर रहा है। मच्छरों के प्रजनन स्थलों की खोज की जा रही है। इसके साथ ही कृमिनाशक और गप्पी मछलियां छोड़ रहा है।
शहाड पुल पर बना बड़ा गड्ढा! … यातायात बाधित, भारी वाहनों पर रोक
सामना संवाददाता / कल्याण
कल्याण-मुरबाड मार्ग पर पहले से ही गड्ढों की समस्या गंभीर थी, लेकिन अब शहाड पुल पर एक बड़ा गड्ढा हो जाने से समस्या और भी विकट हो गई है। इसके परिणामस्वरूप इस मार्ग पर जहां यायातात बाधित हो गया है, वहीं भारी वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
कल्याण से मुरबाड और नगर की ओर जाने के लिए शहाड पुल एक महत्वपूर्ण मार्ग है। हर साल की तरह इस साल भी इस पुल की हालत खराब हो गई है और अब पुल पर बड़ा गड्ढा हो जाने से इसकी सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं। पुल के स्लैब में दरारें दिखाई दे रही हैं। इस समस्या का पता चलते ही एहतियात के तौर पर तत्काल इस पुल पर भारी वाहनों की आवाजाही को रोक दिया गया। कल्याण से जानेवाले वाहनों को टिटवाला-कल्याण और रायते-दहागांव-बदलापुर मार्ग की ओर मोड़ने के निर्देश राष्ट्रीय राजमार्ग के ठाणे उपविभाग के उप अभियंताओं ने दिए हैं। इसके परिणामस्वरूप आनेवाले कुछ दिनों में नागरिकों को गड्ढों के साथ-साथ यातायात जाम की समस्या भी झेलनी पड़ेगी। इस मामले में कार्यकारी अभियंता ज्योति शिंदे से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि पुल पर पड़े गड्ढे को कंक्रीट से भरने का काम तुरंत शुरू कर दिया गया है और शहाड पुल की मरम्मत के लिए निविदा निकाली जा रही है।