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सुदर्शन चक्र पर बसा है अयोध्या

डॉ. बी. के. मल्लिक

अयोध्या केवल भगवान राम का जन्मस्थान ही नहीं, बल्कि अयोध्या के बारे में शास्त्र और पुराणों में भी इसका विशेष उल्लेख किया गया है। अथर्ववेद के अनुसार, अयोध्या को देवताओं का स्वर्ग कहा जाता है। सरयू नदी के तट पर बसा अयोध्या के बारे में स्कंद पुराण में लिखा है कि ब्रम्हा, विष्णु और महेश ने पवित्र असली अयोध्या को कहा है। अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताते हैं। इसकी तुलना स्वर्ग से की गई है। स्कंद पुराण के अनुसार, अयोध्या का अ कार का शब्द ब्रम्हा य कार शब्द विष्णु और ध कार रुद्र स्वरूप है। महर्षि बाल्मीकि ने अपने रामायण में अयोध्या को अवध के रूप में जिक्र किया है।
स्कंद पुराण के अनुसार, अयोध्या नगरी भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र पर बसी हुई है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने ब्रह्मा, मनु, देव शिल्पी विश्वकर्मा और महर्षि वशिष्ठ को अपने रामावतार के लिए भूमि चयन करने के लिए भेजा था, जिसके बाद भगवान विश्वकर्मा ने इस नगर का निर्माण किया। अयोध्या पर राज करने वाले राजा दशरथ अयोध्या के 63वें शासक थे। अयोध्या का क्षेत्रफल अयोध्या का विस्तार से वर्णन वाल्मीकि रामायण के 5 वें सर्ग में मिलता है। अयोध्या का क्षेत्रफल 2,522 वर्ग किमी है। यहां अवधी भाषा बोली जाती है।
अयोध्या भारत के सबसे पवित्र शहरों में से एक है। हालांकि, ऐसा हो भी क्यों न यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि जो है। यह शहर पवित्र सरयू नदी के तट पर स्थित है, जिसे कभी साकेत के नाम से भी जाना जाता था। ‘गंगा बड़ी गोदावरी, तीर्थ बड़ों प्रयाग, सबसे बड़ी अयोध्या नगरी, जहां राम लियो अवतार…’ भगवान श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश राज्य की सबसे प्रसिद्ध नगरी है। मथुरा-हरिद्वार, काशी, उज्जैन, कांची और द्वारका की तरह अयोध्या को भी हिंदुओं के प्राचीन सात पवित्र स्थलों यानी सप्तपुरियों में से एक माना गया है। अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर कहा गया है, जिसकी तुलना स्वर्ग से की गई है।
धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार, अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी, जो कई वर्षों तक रघुवंशी राजाओं की राजधानी भी रही। सरयू नदी के पूर्वी तट पर बसे अयोध्या नगरी का प्राचीन नाम साकेत है। तो चलिए आपको फिर इस ऐतिहासिक जगह के बारे में बताते हैं।
धार्मिक कथाओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम के धाम जाने के बाद अयोध्या नगरी वीरान हो गई थी। ऐसा इसलिए, क्योंकि भगवान राम के साथ अयोध्या के कीट-पतंगे तक भी उनके साथ चले गए थे। ऐसे में भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने अयोध्या नगरी को दोबारा बसाया था। इसके बाद सूर्यवंशी की अगली 44 पीढ़ियों ने अयोध्या का अस्तित्व बरकरार रखा। मान्यताएं तो ऐसी भी हैं कि महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या एक बार फिर वीरान हो गई थी।
मध्यकाल में अयोध्या नगरी मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रही। यहां पर महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की थी। 1526 ई. में बाबर के सेनापति ने 1528 ई. में अयोध्या में आक्रमण किया और यहां मस्जिद का निर्माण करवाया, जिसे 1992 राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान ध्वस्त कर दिया गया।
अयोध्या में त्रेता के ठाकुर-छोटी छावनी, तुलसी स्मारक भवन, बहू बेगम का मकबरा, दंत धावन कुंड, गुप्तार घाट, हनुमानगढ़ी और सरयू नदी का दीदार करना बिल्कुल न भूलें।
अयोध्या में राम प्राण प्रतिष्ठा को लेकर तैयारियां खूब जोरों-शोरों पर हैं, लेकिन लोगों की एक दुविधा है कि आम लोगों के लिए दर्शन की व्यवस्था आखिर क्यों 25 जनवरी 2024 को की गई है। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के लिए हजार से ज्यादा वीआईपी को शामिल किया गया है। इनमें दिग्गज संत, फिल्मी सितारे, क्रिकेटर्स और समाज के कई लोग इस कार्यक्रम में शिकरत करेंगे। 22 जनवरी को मंदिर प्रांगण में दोपहर के 2 बजे तक प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम आयोजित होगा। इसके बाद कपाट बंद कर दिए जाएंगे और फिर कोई भी दर्शन नहीं कर सकता।
प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के अनुसार, 15 जनवरी से 24 जनवरी तक खास अनुष्ठान किया जाएगा, वहीं 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होगी, जिसकी वजह से आम जनता 20 जनवरी से तीन दिन रामलला के दर्शन नहीं कर पाएगी। हालांकि, ये व्यवस्था, केवल आम लोगों के लिए ही नहीं है, बल्कि हर राज्यों के राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और राजदूत के लिए भी रहेगी। प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन मंदिर परिसर में स्थित वीआईपी ही रामलला के दर्शन कर पाएंगे। आम लोगों के लिए इस दिन सामने से दर्शन करने की व्यवस्था नहीं की गई है। लोगों से अपील की गई की है कि वो अपनी जगह के किसी भी मंदिर में एक साथ मिलकर भजन-कीर्तन कर सकते हैं।

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