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संपादकीय : बढ़ती ‘रेल की बलि’!

उड़ीसा के बालासोर में हुई रेल इतिहास की सबसे भीषण दुर्घटना को चार महीने भी नहीं हुए हैं कि अब एक और दुर्घटना घट गई, जिसमें छह यात्रियों की मौत और लगभग २०० यात्री घायल हो गए हैं। यह हालिया रेल दुर्घटना बिहार के बक्सर जिले में हुई है। लगातार हो रही रेल दुर्घटना और उसमें जा रही नाहक बलि की वजह से रेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। लेकिन बक्सर की यह ताजी रेल दुर्घटना महज एक हादसा है या किसी ने इस एक्सप्रेस को लेकर साजिश रची है, यह अभी स्पष्ट होना बाकी है। दिल्ली से गुवाहाटी जानेवाली आनंद विहार कामाख्या नॉर्थ-ईस्ट एक्सप्रेस ट्रेन बुधवार रात अचानक पटरी से उतर गई। बक्सर के रघुनाथपुर स्टेशन के पास पहले एसी थ्री टायर के दो डिब्बे पलट गए। रात साढ़े नौ बजे का समय होने की वजह से यात्री सोने की तैयारी कर ही रहे थे कि भीषण आवाज के साथ डिब्बे पलटने की वजह से जोर-जोर से चीख-पुकार मच गई। इसके बाद अन्य चार डिब्बे भी पटरी से उतर गए और कुछ ही क्षणों में और भी १५ डिब्बे पटरी से नीचे आ गए। लगातार २१ पटरी से उतरने की वजह से आनंद विहार कामाख्या एक्सप्रेस के यात्रियों ने जान बचाने के लिए जोरदार हो-हल्ला मचाना शुरू कर दिया। सौभाग्य से मध्यरात्रि पूर्व का समय होने की वजह से अगल-बगल के क्षेत्र के लोगों ने तत्काल रेल पटरी से दौड़कर राहत कार्य शुरू कर दिया। बक्सर जिले के डॉक्टरों की टीम और जिला प्रशासन के राहत व बचाव की टीमें समय पर पहुंच गर्इं, जिस वजह से बलि का आंकड़ा सीमित रखा जा सका। अब इस दुर्घटना के बाद यह साजिश है या हादसा इस पर चर्चा भले ही शुरू हो गई हो, लेकिन बिहार के नक्सल प्रभावित जिलों की सूची में बक्सर के शामिल नहीं होने की वजह इस घटना को तुरंत साजिश मानने को पुलिस तैयार नहीं दिखाई दे रही है। हालांकि, जहां पर दुर्घटना घटी है उससे आगे कुछ भी दूरी पर रेल पटरी टूटी अवस्था में पाई गई है। सिर्फ एक ही जगह पर नहीं, बल्कि कई जगहों पर पटरी टूटी नजर आई, जिस वजह से यह हादसा नहीं, बल्कि साजिश होने का संदेह व्यक्त किया जा रहा है। हादसा हो या साजिश, लेकिन सबसे सुरक्षित यात्रा के रूप में जनता का विश्वास जिस रेल यात्रा का था वह विश्वास पिछले कुछ वर्षों में डगमगा गया है, इसे मानना ही पड़ेगा। किसी भी रेल दुर्घटना के बाद तकनीकी खामियां, मानवीय गलतियां या साजिश हादसे के संभावित कारणों के इर्द-गिर्द कुछ दिनों तक चर्चाएं चलती रहती हैं, जांच समिति या आयोग गठित किया जाता है, रिपोर्ट पेश की जाती है। इसमें रेल विभाग की गलतियों पर जैसे उंगली उठाई जाती है, उसी तरह से सुरक्षा के उपायों का तंत्र भी प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन ऐसे रिपोर्ट के प्रस्तुत होने तक इस दौरान नई दुर्घटना हो जाती है और फिर से वही-वही जांच और उनके रिपोर्ट की मोटी-मोटी फाइलें यही दुष्टचक्र पिछले हादसे से अगले हादसे तक सरकती रहती है। रेल सुरक्षा यंत्रणा किस कदर अत्याधुनिक कर दी गई है, इसको लेकर खुद की आरती मोदी सरकार पिछले कुछ वर्षों से उतरवा रही है। यदि यह यंत्रणा सचमुच ही इतनी आधुनिक हो गई है तो रेल दुर्घटना बार-बार वैâसे हो रही है? पहले बालासोर में तीन ट्रेनें एक-दूसरे से टकरा गर्इं, जिसमें २९५ यात्रियों की मौत हो गई, जिनमें से २८ अज्ञात शवों का तो इसी बुधवार, अर्थात चार महीने बाद अंतिम संस्कार किया गया। इन अभागे रेल यात्रियों की चिता की आग शांत होने से पहले ही अब बिहार में भी ट्रेन के २१ डिब्बे पटरी से उतर जाने की वजह से छह यात्रियों की जान चली गई। सौ से अधिक यात्री घायल हो गए। यात्रियों की जीवन यात्रा को ही समाप्त करनेवाले इस बढ़ती ‘रेल बलि’ सरकार की लापरवाही ही है या रेल प्रशासन के आधुनिकीकरण की वजह, यह अब सरकार ही बताए!

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