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मेहनतकश : मेहनत और ईमानदारी के बलबूते बज रहा है परिवार का डंका

अनिल मिश्र

लोग कहते हैं कि माता-पिता द्वारा किए गए सत्कर्मों और उनकी अच्छी नीयत का फल उनकी संतान को मिलता है। हिंदुस्थान और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद माता-पिता ने मेहनत और ईमानदारी से परिश्रम किया। ये उसी का फल है कि आज जहां सभी भाई-बहन सुखी हैं और पूरा परिवार विकास की राह पर है, वहीं बच्चे देश-विदेश में विकास का डंका बजा रहे हैं। ऐसा कहना है पेपर के बॉक्स व्यवसायी उत्तम भगतसिंह रामरख्यानी का।
उत्तम रामरख्यानी बताते हैं कि उनके पिता भगत सिंह रामरख्यानी हिंदुस्थान-पाकिस्तान बंटवारे के बाद हिंदुस्थान स्थित कल्याण छावनी जो बाद में उल्हासनगर बना, उसमें आए। उनके पिता को सरकार ने रेलवे में नौकरी दी। प्यून के पद पर काम करते हुए उनके पिता आगे चलकर एक अधिकारी बन सेवानिवृत्त हुए। घर में मां पापड़ बनाती थीं और पिता उसे रेलवे में ले जाकर अपने सहयोगियों की मांग के अनुसार उन्हें पापड़ बेचते थे। इतना ही नहीं, माता-पिता सहित चार भाई और एक बहन मिलकर कुछ न कुछ काम करते थे। पिता इतने ईमानदार थे कि पहले पापड़ वजन करते उसके बाद कागज के खोके में उस पापड़ को रखकर लोगों को देते थे। उत्तम रामरख्यानी बताते हैं कि दसवी की पढ़ाई करते हुए उन्होंने उल्हासनगर में एक, दो, तीन नंबर का बॉक्स बनाने के कारखाने में बीस रुपए महीने पर उन्होंने काम किया। उसके बाद उन्होंने हजार दो हजार रुपए की पूंजी लगाकर अपने खुद के घर में ही बॉक्स बनाना शुरू किया। भाड़े पर दुकान लेकर उन्होंने अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाया। इसके बाद उन्होंने कटिंग मशीन के साथ ही पेंटिंग मशीन भी खरीदी। आज भी उनका व्यापार भाड़े के गाले में शुरू है। उनके इस काम में उनकी बेटी व दामाद उनका हाथ बंटा रहे हैं। आज ६५ साल के होने के बाद उत्तम रामरख्यानी काम कर रहे हैं। उत्तम रामरख्यानी दो बच्चों के पिता हैं। स्वीडन में काम करनेवाला उनका बेटा दो साल से खुद की सॉफ्टवेयर कंपनी चला रहा है। एमेजॉन कंपनी अमेरिका में उनकी बेटी काम कर रही है और ९ वर्ष का उनका नाती विदेश पढ़ रहा है। उत्तम रामरख्यानी के बड़े भाई आयकर विभाग में सहआयुक्त पद से तो छोटा भाई एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) में सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत हुए हैं। चौथा भाई उल्हासनगर-३ मध्यवर्ती अस्पताल के सामने किराने की दुकान चलाते हैं। दो भाई और एक बहन ठाणे में रहते हैं। गरीबी को काफी नजदीक से उन्होंने देखा हैं और संघर्ष से उन्होंने गरीबी को मात दिया है। आज उनका पूरा परिवार विकास के मार्ग पर है। बेटे से मिलने के लिए विदेश आते-जाते रहते है। आज वरिष्ठ नागरिक होने के बावजूद उत्तम रामरख्यानी परिवार की सेवा करने के साथ ही समाज की भी सेवा कर रहे हैं।

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