मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : पुत्र की देशभक्ति

किस्सों का सबक : पुत्र की देशभक्ति

डॉ. दीनदयाल मुरारका

मगध सम्राट कुमारगुप्त का पुत्र स्कंदगुप्त जब किशोर ही था। तब उसे पता चला कि हूण बार-बार भारत पर आक्रमण करते हैं और युद्ध के नियमों के विरुद्ध छल का सहारा लेकर अपने देश को भारी नुकसान पहुंचाते है।
स्कंदगुप्त से देश का अपमान देखा नहीं गया। उसने पिता से आग्रह किया कि उसे हूणों पर आक्रमण की आज्ञा दी जाए।
पिता बड़े असमंजस में पड़ गए क्योंकि स्कंदगुप्त अभी किशोर ही था। शारीरिक बल, युद्ध कौशल की दृष्टि से उसे अभी बच्चा ही कहा जा सकता था। बर्फीली पहाड़ियों की चोटियां पार करके वहां जाना पड़ता था। ऐसे दुर्गम मार्ग को पार करना सेना के लिए भी कठिन था। फिर हूण युद्ध में धोखे से ही काम लेते थे। ऐसी स्थिति में उसे आक्रमण की आज्ञा वैâसे दी जाए?
लेकिन कुमारगुप्त अपने पुत्र की देशभक्ति और साहस देखकर झुक गए। उन्होंने उसे चढ़ाई की आज्ञा दे दी। स्कंदगुप्त दो लाख सैनिक लेकर चल पड़े।
पंजाब से आगे बर्फीली चोटियों को पार करता हुआ वह अपनी सेना के साथ हूणों के इलाके में पहुंचा और इस वीरता के साथ युद्ध लड़ा कि शत्रुओं के छक्के छूट गए और उन्हें परास्त होना पड़ा। इस तरह स्कंदगुप्त ने आज के इराक और अफगानिस्तान तक अपने राज्य का विस्तार किया था।
इस विजय अभियान के बाद जब स्कंदगुप्त भारत लौटा तो उसके स्वागत में मगध से पांच कोस तक मार्ग सजाए गए। पूरे देश में विजयोत्सव मनाया गया। सबने स्वीकार किया कि साहस और संकल्प से कोई भी कठिन लड़ाई जीती जा सकती है। मगध सम्राट स्कंदगुप्त के कार्यकाल में भारत की सीमा का काफी विस्तार हुआ था।

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