उर्वशी को माफी दे दो

अभिनेत्री उर्वशी रौतेला हमेश अपने अलग अंदाज की ड्रेस को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं। हाल ही में उर्वशी की एक ड्रेस को लेकर ऐसा हंगामा मचा कि उन्हें माफी मांगनी पड़ी। ओलिंपिक के बीच खबर है कि उर्वशी रौतेला ने पेरिस में मदर मैरी की तस्वीर वाली ड्रेस पहनने को लेकर माफी मांगी है। उनके प्रवक्ता के मुताबिक, ड्रेस पेरिस में एक डिजाइनर ने दी थी और उन्हें अंदाजा नहीं था कि तस्वीर मदर मैरी की है। मुंबई के वॉचडॉग फाउंडेशन ने महाराष्ट्र सरकार से उनके ऊपर केस करने की अनुमति मांगी थी। अब देखते हैं मामला यहीं खत्म हो गया या आगे बढ़ता है।

खुल्लम-खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों

अब ये नया जमाना है। यहां प्यार को छिपाया नहीं जाता। नए लड़के-लड़कियां अपने प्यार को साथ में लेकर आराम से घूमते-टहलते हैं। श्वेता तिवारी की बिटिया पलक तिवारी भी इन दिनों खूल्लम-खुल्ला घूमती हैं। तमाम तरह की तस्वीरें आती रहती हैं। उनके अफेयर के किस्से भी फिजा में घूमते रहते हैं। हाल ही में पलक को सैफ के बेटे इब्राहिम के साथ देखा गया था। अब श्वेता तिवारी ने अपनी बेटी पलक तिवारी के इब्राहिम को डेट करने के सवाल पर कहा है कि पलक को लेकर ऐसी खबरें आती हैं जैसे उसका हर दूसरे लड़के से अफेयर हो। श्वेता ने कहा, ‘पलक अभी मजबूत है…लेकिन मुझे भी नहीं पता कि वह यह सब कब तक बर्दाश्त कर पाएगी।’ मगर श्वेता की इन बातों से कुछ पता चला क्या? हमें तो समझ में नहीं आया। आपको समझ में आए तो हमें भी बताइए।

क्लीन बोल्ड : गोल्डन मैन को भैंस

अमिताभ श्रीवास्तव

पाकिस्तान के एकमात्र गोल्डन मैन को उपहार में भैंस मिली है। भैंस जो जीवन चलाए, जीवन सुधारे। और यह भैंस भी ससुर ने तोहफे में दी है। जी हां, पाकिस्‍तान के जेवलिन थ्रोअर अरशद नदीम ने पेरिस ओलिंपिक २०२४ में गोल्‍ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था। अरशद ने ओलिंपिक २०२४ में रिकॉर्ड ९२.९७ मीटर की दूरी पर भाला फेंककर गोल्‍ड मेडल अपने नाम किया। इस थ्रो के कारण अरशद ने भारतीय जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा को दूसरे स्‍थान पर धकेला था। ओलिंपिक गोल्‍ड मेडल जीतकर इतिहास रचने वाले अरशद नदीम अपने घर लौट आए हैं। पाकिस्‍तान की तरफ से अरशद नदीम पर नकद पुरस्‍कार की बारिश हो रही है। मगर उनके ससुर ने इस बीच रिकॉर्डधारी थ्रोअर को उपहार में भैंस देकर सुर्खियां बटोरी हैं। नदीम के गांव से ससुर मोहम्‍मद नवाज ने स्‍थानीय मीडिया को बताया, `उनके गांव में भैंस उपहार में देने का मतलब काफी मूल्‍यवान और सम्‍मानीय होता है। नदीम अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं और सफलता हासिल करने के बावजूद वह अपने गांव में अपने परिवार के साथ ही रह रहे हैं।’

कोच को हार्ट अटैक
ओलिंपिक्स खत्म हो गया है मगर उसकी खबरें अभी कुछ दिन छन-छन कर बाहर निकलती रहेंगी। ऐसी ही एक खबर अब आई है जबकि थी दिल दहलाने वाली। जश्न के मध्य हार्ट अटैक से एक कोच की जान जाते-जाते बच गई। उज्बेकिस्तान के बॉक्सिंग कोच तुलकिन किलिचेव के लिए गोल्ड मेडल का जश्न मनाना जानलेवा साबित हुआ था। उज्बेक कोच तुलकिन किलिचेव पेरिस ओंलिपिक में अपनी टीम द्वारा पहला गोल्ड मेडल जीतने का जश्न मना ही रहे थे कि उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। ब्रिटेन के ट्रेनिंग स्टाफ के दो सदस्यों ने किलिचेव को किसी तरह बचाया। तुलकिन किलिचेव अब अस्पताल में भर्ती हैं। उज्बेकिस्तान ने पेरिस ओंलिपिक में बॉक्सिंग में ५ गोल्ड मेडल जीते हैं। यह २० साल में किसी भी ओंलिपिक टीम का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। उज्बेकिस्तान के बॉक्सरों ने ४ गोल्ड मेडल तुलकिन किलिचेव को दिल का दौरा पड़ने के बाद जीते।

ये सिल्वर भी मिल जाए तो क्या?
पोडियम पर खड़े होकर मेडल प्राप्त करने की बात ही कुछ और होती है। लड़कर जीतना और जीतकर जश्न मनाना अलहदा रोमांच है। खिलाड़ी इसी एक दिन के लिए तो मेहनत करते हैं और यदि कोई मेडल मैदान में जंग कर नहीं बल्कि अदालत में जंग कर मिलता है तो एक सूनापन सा पैâला रहता है। न कोई देने वाला, न ही पोडियम और न ही कोई राष्ट्रगान आदि। बस औपचारिक तौर पर मिलता है, पदक तालिका में जोड़ दिया जाता है बस। आज ऐसा ही कुछ होगा यदि विनेश फोगाट को सिल्वर मेडल दिया जाता है तो। यूं तो बात गर्व की है पर उस रोमांच की नहीं जो होता है। यह तो खुद विनेश भी महसूस करेंगी। संभव है आज विनेश मामले में फैसला आ जाए। ओलिंपिक खत्म हो चुके हैं। यह मेडल बस विनेश तक पहुंचा दिया जाएगा और हिंदुस्थान के सात पदक हो जाएंगे। पर ये सिल्वर भी मिल जाए तो क्या है? रोमांच बगैर मिलना भी कोई मिलना है? किंतु गर्व होगा यदि फैसला विनेश के पक्ष में आएगा तो।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)

जय विज्ञान कहने से बात नहीं बनेगी!

मनमोहन सिंह
बात उस वक्त की है, जब सारा देश चंद्रयान तीन चंद्र मिशन की सफलता पर झूम रहा था। इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी माधवन नायर ने उस वक्त एक बड़ी बात कह दी थी। उन्होंने कहा था कि इसरो के वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिकों की तुलना में पांचवां हिस्सा कमाते हैं, जिससे उन्हें अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए कम लागत वाले समाधान खोजने में मदद मिलती है। भले ही उनकी इस बात को नकारात्मक न मानते हुए सकारात्मक माना जाए फिर भी उन्होंने यह मान लिया था इसरो के वैज्ञानिकों की तनख्वाह कम है! क्या हम इसे इस तरह से भी मान सकते हैं कि यदि वैज्ञानिक की तनख्वाह बढ़ जाएगी तो अन्वेषण की लागत बढ़ जाएगी? इसरो के ही चीफ ने यह भी कहा था कि कम सैलरी स्ट्रक्चर की वजह से नए वैज्ञानिकों की इसरो पहली प्राथमिकता नहीं होता!
उस वक्त मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने चंद्रयान-३ के लिए बधाई देते हुए कहा था कि वैज्ञानिकों को १७ महीने से सैलरी नहीं मिली है। हालांकि, दिग्विजय सिंह के बयान पर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष का कहना था कि दिग्विजय का बयान देशद्रोही, विदेशी ताकतों से प्रेरित है।
आज इन सभी बातों का जिक्र करने की वजह यह है कि सरकार द्वारा पिछले दिनों विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा पद्म पुरस्कार और अन्य राष्ट्रीय पुरस्कारों के समान ‘राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार’ (आरवीपी) की घोषणा की गई। चुनांचे इस महीने के अंत में ३३ वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (आरवीपी), जो मेधावी वैज्ञानिकों को सालाना पुरस्कार देने की आजाद भारत की लंबी परंपरा के प्रति वर्तमान सरकार का नया दृष्टिकोण है, से नवाजा जाएगा।
कहा जा रहा है कि यह बदलाव शांति स्वरूप भटनागर (एसएसबी) पुरस्कारों, जो कभी वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा ४५ साल से कम उम्र के वैज्ञानिकों को प्रदान किए जाते थे, को खत्म करने के लिए किया गया है! इसमें एक प्रमाणपत्र, एक नकद पुरस्कार और कुछ अतिरिक्त मौद्रिक लाभ शामिल होते थे। आरवीपी ने इसकी जगह एक पदक और एक प्रमाण पत्र का प्रावधान कर दिया तथा इसका नाम बदलकर विज्ञान युवा-एसएसबी कर दिया। अन्य आरवीपी पुरस्कार -विज्ञान श्री, विज्ञान रत्न और विज्ञान टीम पुरस्कार- भी हैं। ये पुरस्कार ४५ साल से ज्यादा उम्र के उन वैज्ञानिकों के लिए होंगे, जिन्होंने अपने पूरे करियर के दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान दिया है और साथ ही असाधारण योगदान वाले वैज्ञानिकों एवं प्रौद्योगिकीविदों की टीमों को भी दिए जाएंगे। इसमें दो राय नहीं कि सरकार के इस प्रयास को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। लेकिन सरकार की यह सोच कि वैज्ञानिक सिर्फ सम्मान और मान्यता पाने के लिए ही लालायित रहते हैं को भी बुनियादी तौर पर बदलने की जरूरत है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत में बहुत से वैज्ञानिक न्यूनतम निधि व घटिया उपकरणों के सहारे और हतोत्साहित करने वाले वातावरण के बीच काम करते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा आत्महत्या किए जाने की खबरों को हम वैâसे भूल सकते हैं? यह हमारे लिए गर्व का विषय हो सकता है कि वैज्ञानिक ऐसे माहौल में भी अपने कार्यों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब होते हैं। लेकिन गर्व करने उनकी तारीफ करने और उन्हें सम्मानित करने से क्या उनका माहौल उनकी आर्थिक चुनौतियों आदि की भरपाई हो जाएगी? यदि दिली तमन्ना है तो बेहतर यह होगा कि बजट के दौरान उनकी उपस्थिति को अनदेखा नहीं किया जाए। बजटीय आवंटन बढ़ा दिया जाए जिसके चलते वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक अनुसंधानों को अपेक्षाकृत ज्यादा फायदा होगा! तब जाकर ही हम कह सकेंगे जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान।

झांकी : बवाल ए वक्फ

अजय भट्टाचार्य

संसद के हाल ही में संपन्न बजट सत्र में भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया, जिसका विपक्ष ने विरोध किया। अब आंध्र प्रदेश में राजग की प्रमुख घटक तेलुगु देशम पार्टी ने भी इस विधेयक पर नजर तरेरी है। पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के महासचिव फतुल्लाह मोहम्मद ने विधेयक के कुछ हिस्सों को ‘चिंताजनक’ बताया है और अपनी पार्टी से संसद में इसका समर्थन करने से पहले मुस्लिम नेताओं से सलाह लेने का आग्रह किया है। आंध्र प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की संख्या लगभग १२-१३ फीसदी है, इसलिए तेदेपा यह सुनिश्चित करना चाहती है कि प्रस्तावित विधेयक के ‘विवादास्पद’ खंडों का समर्थन करके वह समुदाय को नाराज न करे। राज्य के रायलसीमा क्षेत्र में केंद्रित यह समुदाय तेदेपाका एक महत्वपूर्ण वोट बैंक माना जाता है और हाल ही में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भारी जीत सुनिश्चित करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इधर लंगड़ी सरकार की दूसरी बैसाखी जनता दल यूनाइटेड ने इस बिल का समर्थन तो कर दिया लेकिन इस मुद्दे पर जदयू में ही दो सुर सुनाई पड़ रहे हैं। जदयू एमएलसी गुलाम गौस की राय पार्टी से अलग है। गुलाम गौस का कहना है कि इस बिल को संसद में पेश करने से पहले इसको मुस्लिम समाज के आम जनमानस में चर्चा के लिए जाना चाहिए था। उसके बाद जब आम सहमति बनती तब इस बिल को संसद में लाना चाहिए था। हमारे पूर्वजों ने वक्फ बोर्ड को संपत्ति दान की है। संपत्ति दान में दी गई थी मुस्लिम और हिंदू समाज के प्रभावशाली लोगों की तरफ से ताकि गरीब-गुरबों का विकास हो, वे लाभान्वित हों। कोई खैरात वक्फ बोर्ड को नहीं दिया गया। वर्तमान केंद्र सरकार से मुस्लिम समाज आशंकित है। भाजपा वाले कभी दादरी बाबरी करते हैं। कभी लव जिहाद का मुद्दा उठाते हैं। कभी घर वापसी तो कभी तीन तलाक का मुद्दा। कभी एनआरसी, सीएए। अब वक्फ बोर्ड का मुद्दा उठाया जा रहा है। मौके पर चौका जड़ते हुए राजद ने इस मुद्दे पर जदयू को घेरते हुए कहा है कि संसद में इस बिल का समर्थन जदयू ने किया। जदयू अल्पसंख्यक विरोधी व मुस्लिम विरोधी है यह साफ हो गया है।
हवा-हवाई अन्नामलाई
भाजपा द्वारा तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष के अन्नामलाई को बदलने की चर्चा फिर से शुरू हो गई है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के तुरंत बाद ही अटकलें शुरू हो गई थीं, जिसमें भाजपा के केंद्रीय नेताओं के एक वर्ग ने अन्नामलाई के एआईएडीएमके के साथ गठबंधन के खिलाफ रुख को राज्य में पार्टी की एक भी सीट नहीं जीतने का कारण बताया था। अब जब पूर्व आईपीएस अधिकारी अगले महीने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में तीन महीने के आवासीय कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तैयार हैं, तो अफवाहें फिर से तेज हो गई हैं। भाजपा के अंत:पुर से छनकर आई खबरें बताती हैं कि फिलहाल पार्टी के पास अन्नामलाई को बदलने की तत्काल कोई योजना नहीं है और फेलोशिप अवधि के दौरान वह पार्टी प्रमुख के रूप में बने रह सकते हैं। इसलिए फिलहाल अन्नामलाई जोश में हैं और उन्होंने एक राजनीतिक गुगली उछाल दी है कि पार्टी का लक्ष्य २०२६ के विधानसभा चुनाव में तमिलनाडु में गठबंधन सरकार बनाना है। राज्य, आलाकमान और जिला पदाधिकारियों के साथ रविवार को तिरुप्पुर में हुई परामर्श बैठक में आगामी चुनाव की तैयारी शुरू करने पर चर्चा की गई। अन्नामलाई का गणित है कि मजबूत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन २०२६ में गठबंधन सरकार बनाने के अपने प्रयासों को दोगुना कर देगा और गठबंधन अपरिवर्तित रहेगा। २०२६ के चुनाव के दौरान राज्य में चतुष्कोणीय मुकाबला होने की संभावना है। डीएमके, एआईएडीएमके और एनडीए गठबंधन पहले से ही मैदान में हैं साथ ही नाम तमिलर कच्ची भी है। सवाल है कि अभी तक तमिलनाडु में राजनीतिक दंगल द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच ही होता रहा है। अन्नामलाई की कल्पना हवा-हवाई से ज्यादा कुछ नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)

कॉलम ३ : हिंडनबर्ग रिपोर्ट … खौफनाक कार्पोरेट वार?

नरेंद्र शर्मा
जैसे कि आशंका थी गुजरे शनिवार (१० अगस्त २०२४) को तड़के जंगल की आग की तरह पैâली हिंडनबर्ग रिपोर्ट की नई किस्त ने, जो कार्पोरेट सनसनी पैदा की थी, उसके चलते शेयर बाजार को जोर का झटका लगना ही था इसलिए जब सोमवार १२ अगस्त २०२४ को शेयर बाजार खुले तो शुरुआती एक घंटे में ही अडानी ग्रुप के शेयरों में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली। सुबह ११ बजे तक ही इस रिपोर्ट के चलते निवेशकों को ५३,००० करोड़ रुपए का झटका लग चुका था। अडानी विल्मर में ६ फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई थी, जबकि अडानी टोटल गैस का शेयर ७ फीसदी से ज्यादा लुढ़क चुका था। अगर कहा जाए कि हिंडनबर्ग की इस दूसरी रिपोर्ट ने अपने शुरुआती असर ने अडानी ग्रुप में भूचाल ला दिया है तो अतिशयोक्ति न होगी।
वास्तव में अडानी ग्रुप के खिलाफ पहले भी रिपोर्ट जारी करनेवाले अमेरिका की शॉर्ट सेलर फंड कंपनी हिंडनबर्ग ने अपनी नई रिपोर्ट में शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच पर आरोप लगाया है कि वह और उनके पति धवल बुच ने उन आफशोर कंपनियों में भारी निवेश किया है, जो अडानी समूह की हैं और जो वित्तीय अनियमितताओं के कारण सवालों के घेरे में रही हैं। जाहिर है कि इसका मतलब यह निकलता है कि शेयर बाजार को नियंत्रित करनेवाली अथॉरिटी सेबी की जब अध्यक्ष और उनके पति ने भी संदिग्ध कंपनियों में निवेश कर रखा है तो भला उनकी जांच ईमानदारी से वैâसे संभव होगी? हालांकि, इस रिपोर्ट के आते ही अडानी ग्रुप ने इसे तुरत-फुरत में महाबकवास बताया और इसे जानबूझकर भारत के मजबूत हो रहे कार्पोरेट जगत को अस्थिर करने की साजिश कहा।
ठीक इसी तरह रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह किसी भी तरह की जांच के लिए व्यक्तिगत रूप से तैयार हैं और हर वह दस्तावेज उपलब्ध करने की जिम्मेदारी लेती हैं, जो जांच के लिए जरूरी हो। मगर बात यह है, जैसा कि देश की विपक्षी राजनीतिक पार्टियां मांग कर रही हैं कि जब तक माधबी पुरी बुच सेबी की अध्यक्ष हैं तब तक भला सेबी ही उनके खिलाफ एक सघन और पारदर्शी जांच वैâसे करेगी? इसलिए उन्हें तुरंत अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। संसद में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभानेवाली कांग्रेस पार्टी ने इस सनसनीखेज रिपोर्ट के आते ही पहले की तरह फिर से ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी (जेपीसी) की मांग दोहराई है।
यह रिपोर्ट कितनी सही है, कितनी गलत है, इसका निर्णय तो एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच ही कर सकती है, लेकिन जैसी आशंका थी कि इस रिपोर्ट के आते ही शेयर बाजार धड़ाम बोल गए। हालांकि, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शेयर बाजार की तूफानी टूटन का अभी ज्यादातर असर सिर्फ अडानी ग्रुप की कंपनियों तक ही सीमित था, लेकिन वित्तीय बाजार का स्वभाव जाननेवाला हर शख्स इस बात को बेहतर तरीके से जानता है कि यह गिरावट किसी भी कीमत पर सिर्फ किसी समूह विशेष तक सीमित नहीं रहेगी। आखिरकार, शेयर बाजार किसी एक समूह की साझेदारी से नहीं बनता, शेयर बाजार बेहद सेंसटिव बाजार है।

इसकी संवेदनशीलता हमेशा समूचे बाजार को प्रभावित करती है, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि अगर एक बार निवेशकों को विशेषकर देश के मध्यवर्गीय निवेशकों के दिल में यह बात बैठ गई कि शेयर बाजार में सबकुछ घोटाला और सिर्फ घोटाला है तो जिस तरह से पिछले कुछ सालों में शेयर बाजार की तरफ ऐसे मध्यवर्गीय पांच करोड़ निवेशक आकर्षित हुए हैं, जो अपनी खून पसीने की कमाई बाजार में लगा रहे हैं और जो सही मायनों में ठोस और प्राकृतिक निवेशक हैं, उनका भरोसा बाजार में भला कितनी देर तक टिकेगा? यह बेहद खतरनाक है।
इसलिए जितना जल्दी हो हिंडनबर्ग की इस सनसनीखेज दूसरी किस्त के खुलासे पर जांच होनी ही चाहिए और यह जांच बेहद ईमानदार और खुलेपन के साथ होनी चाहिए, तभी भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में अपनी मजबूत साख बनाए रख सकेगा। पिछले कई सालों से लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे ज्यादा या चीन के बाद दूसरे नंबर पर वैश्विक निवेश आकर्षित कर रही है। आखिर दुनियाभर के निवेशक भारत इसी भरोसे पर ही तो आ रहे हैं कि यहां एक पारदर्शी लोकतांत्रिक व्यवस्था है? अगर उन्हें अपने इस भरोसे पर कुछ शक हुआ, तो जिस तरह से हाल के सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक निवेशकों का आगमन देखा है, उससे कहीं तेज हमें वैश्विक निवेशकों का पलायन देखना पड़ सकता है इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए विश्वसनीयता बहुत जरूरी है। यह विश्वसनीयता तभी कायम होगी, जब हम विपक्ष को ज्यादा हंगामा किए बिना ही हिंडनबर्ग की इस दूसरी रिपोर्ट पर सार्वजनिक जांच के लिए जेपीसी की घोषणा करें और सेबी की अध्यक्ष महोदया को जांच तक इस्तीफा देकर अपने पद से बाहर रहने के लिए कहें वरना वित्तीय बाजार की यह शुरुआती लुढ़कन समूचे भारतीय पूंजी बाजार के तूफानी पतन का कारण बन जाएगी।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट की दूसरी किस्त के आने के बाद यह तय था कि इसका नकारात्मक असर शेयर बाजार को देखना पड़ेगा और वह इस रिपोर्ट के आने के बाद पहली बार खुले शेयर बाजार में पहले एक घंटे में ही देखने को मिल गया। अडानी ग्रुप की १० कंपनियों का संयुक्त मार्वेâट वैâप १६.७ लाख करोड़ रुपए तक गिर गया। पहले २० मिनट में ही बीएसई सेंसेक्स २२९ अंक फिसल गया और निफ्टी की फिसलन ९१ अंकों तक रही। बीएसई की तरह निफ्टी की भी टॉप लूजर कंपनियां अडानी ग्रुप की ही रहीं। अडानी एंटरप्राइजेज २.६५ फीसदी की गिरावट के साथ निफ्टी में सबसे ज्यादा गिरावट वाला शेयर रहा। उसके बाद एनटीपीसी में १.९२ और अडानी पोर्ट्स में १.८१ प्रतिशत की गिरावट रही। गौरतलब है कि हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट में अडानी ग्रुप को जिस तरह से घेरा गया था, उसके कारण एक सप्ताह के भीतर अडानी खुद अर्श से फर्श पर आ गए थे। इस बार हिंडनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट ने शेयर बाजार को कंट्रोल करनेवाली इसकी नियामक संस्था सेबी को अपने खुलासे से घेर लिया है। अगर कहा जाए कि पहली रिपोर्ट से हिंडनबर्ग की यह दूसरी रिपोर्ट कहीं ज्यादा खतरनाक है तो अतिशयोक्ति न होगी, क्योंकि पहली रिपोर्ट जहां एक कारोबारी समूह के भ्रष्टाचार और उसकी कार्पोरेट तिकड़मों का पर्दाफाश कर रही थी तो इस रिपोर्ट ने उस संस्था को ही घेरे में ले लिया है, जिसे इस तरह के भ्रष्टाचारों और कार्पोरेट तिकड़मों की जांच करनी होती है। इससे पूरी दुनिया को यह संदेश जा रहा है कि भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें न सिर्फ बेहद गहरी हैं, बल्कि ये संस्थाबद्ध भी हैं। यह कहीं ज्यादा खतरनाक है।
२४ जनवरी २०२३ को जब हिंडनबर्ग अपनी पहली रिपोर्ट लेकर आया था तो उसमें अडानी समूह के शेयरों में हेर-फेर और ऑडिटिंग का आरोप लगाया गया था, जो कि कार्पोरेट इतिहास का सबसे भयानक आरोप था, लेकिन इस बार तो ऐसे आरोपों की जांच करनेवाली संस्था को ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने की तरफ इशारा किया गया है। पिछली बार हिंडनबर्ग की रिपोर्ट तब आई थी, जब अडानी ग्रुप अडानी एंटरप्राइजेज २० हजार करोड़ रुपए के शेयर खुदरा बिक्री के लिए जारी करनेवाला था, लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बाद यह संभव नहीं हो सका, लेकिन इन तमाम आरोपों की जांच करनेवाली सेबी ने जब अडानी समूह को ऐसे सभी भ्रष्टाचार की आशंकाओं से क्लीन चिट दे दी, तो बाजार में न सिर्फ आम निवेशकों का भरोसा बढ़ा, बल्कि यह माना गया कि भारतीय पूंजी बाजार मजबूत और पारदर्शी है, लेकिन अब की बार जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने उस संस्था को ही अपने चक्रव्यूह के घेरे में ले लिया है, जिसकी बदौलत वित्त और कार्पोरेट बाजार ईमानदार और पारदर्शी रह सकता है तो भला फिर आम निवेशक अब वैâसे इस सब पर भरोसा करे, यह बहुत ही संवेदनशील मसला है इसलिए बिना देरी गहराई से जांच होनी चाहिए, क्योंकि यह महज किसी घोटाले का खुलासा नहीं है बल्कि समूची व्यवस्था को बेनकाब करने जैसा है।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

ब्रेकिंग ब्लंडर : भ्रष्टाचार हमारी रग-रग में है

राजेश विक्रांत
हम ईडी सरकार हैं। हमारी पहचान भ्रष्टाचार है। हमारा कर्म व धर्म भ्रष्टाचार है। हम इसे डंके की चोट पर करते हैं। किसी से डरते नहीं। अधिकारी हो या मंत्री हमने सभी को भ्रष्टाचार करने की खुली छूट दे रखी है। सभी के लूटपाट का अपना अपना स्टाइल है।
हमारे बारे में जो लोग कहते हैं कि ये सरकार भ्रष्टाचार ट्रेनिंग सेंटर है तो कुछ गलत नहीं कहते। हम परियोजनाओं के टेंडर में एस्टीमेट को दोगुना-तिगुना इसलिए दिखाते हैं कि हमारे लिए भी पर्याप्त जुगाड़ बना रहे।
हमें यह भी मालूम है कि आप नेता, मंत्री, नगरसेवक, विधायक, सांसद, सरकारी अफसर, कमीशनखोर, ठेकेदार, पुलिसमैन, क्लर्क आदि प्रजातियों में से किसी एक को रिप्रजेंट करते हैं। इस नाते, भ्रष्टाचार आप सबका भी जन्म-सिद्ध अधिकार है और आप सभी इस कला के जानकार होंगे ही, पर क्या है कि यह इक्कीसवीं सदी है। मार्केटिंग की सेंचुरी, साइंस एंड टेक्नालॉजी की शताब्दी है, जिसमें हर चीज की वैज्ञानिक ढंग से ट्रेनिंग ली जाती है! चोरी-डकैती, नेतागीरी, पॉकेटमारी आदि के बाकायदा स्कूल होने लगे हैं।
जहां उपरोक्त सत्कर्मों का पाठ्यक्रम तैयार किया गया है, उनमें पढ़ाई के बाद लिखित एवं प्रैक्टिकल परीक्षा होती है और इन स्कूलों से पास आउट्स की उस क्षेत्र में इज्जत बढ़ जाती है, चूंकि भ्रष्टाचार और ईडी सरकार का चोली दामन का साथ है, जैसे दूध में चीनी घुलनशील है, उसी तरह भ्रष्टाचार ईडी सरकार में घुलनशील है।
इसलिए हमारे हर नेता को भ्रष्टाचार करने तथा पद से न हटने का जन्मसिद्ध अधिकार है। सरकारी हों या निजी सौदे सभी में दलाली नामक पवित्र चीज का लेन-देन कानूनी शक्ल अख्तियार कर चुका है। अफसर, बाबू, पुलिसमैन से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियों के मुखिया तक श्री श्री १००००८ करप्शन देव जी महाराज की नित्य पूजा करते हैं। हालांकि, अभी भी इस हिंदुस्थान में ईमानदार नामक लोग निवास करते हैं, पर वे किस गली-मोहल्ले में हैं, इसका पता फिलहाल चल नहीं पाया है। वैसे, हमारे देश में बहुत सारे लोग अपनी ईमानदारी की ऐसी मिसाल प्रस्तुत करना चाहते हैं कि जन्म-जन्मांतर तक लोग याद करें, लेकिन वस्तु एवं सेवा कर- जीएसटी, आयकर, संपत्तिकर, सीमाशुल्क, आबकारी, गृहकर, उपहारकर आदि की दरें इतनी ऊंची हैं कि बेईमानी करनी ही पड़ जाती है और एक बार पैर फिसला तो फिसलता ही चला जाता है।
इसका मतलब यह है कि आधुनिकता के दौर में कदम-कदम पर भ्रष्टाचार है। लोहा-लोहे को काटता है इसलिए भ्रष्टाचार युग में भ्रष्टाचार को जानकर, समझ कर ही प्रोग्रेस हासिल की जा सकती है, लिहाजा हमने ईडी सरकार में एक नया भ्रष्टाचार ट्रेनिंग सेंटर भी खोल दिया है। जहां पर आपको भ्रष्टाचार की वैज्ञानिक ट्रेनिंग दी जाएगी। भ्रष्टाचार शास्त्र, रिश्वत विज्ञान, दलाली शास्त्र आदि महत्वपूर्ण विषयों पर हमारी अनुभवी पैâकल्टीज आपको थ्योरी और प्रैक्टिकल की शिक्षा देंगे। अनुभवी लोग अवश्य आपको परफेक्ट करप्ट बना देंगे। वे यह भी बताएंगे कि कैसे २ लाख रुपए में एक पेड़ लगाया जाता है? मंत्रीगण कैसे वसूली करें? अधिकारी कैसे दलाली हासिल करें?
हमारे ट्रेनिंग सेंटर की फीस आपकी भावी कमाई में से सिर्फ २५ फीसदी होगी। यानी कि इसे अभी देने की जरूरत नहीं। कमाई करने के बाद भुगतान करना होगा।

एक खिलाड़ी सब पर भारी, गोल्ड मेडल का लगाया चौका!

खेलों के महाकुंभ कहे जानेवाले ओलिंपिक्स ने इस बार खूब धूम मचाई। हिंदुस्थान को जितनी उम्मीद थी उतने मेडल भले ही न मिले हों, लेकिन ओलिंपिक २०२४ में ऐसे कई वाकये हुए जिनकी वजह से हिंदुस्थान के एथलीट चर्चा में बने रहे थे। लेकिन इन सबके बीच एक और खिलाड़ी ने अपने नाम एक नई उपलब्धि हासिल की। यहां बात हो रही है फ्रांस के २१ वर्षीय तैराक लियोन मर्चैंड की, जिसने अकेले इस ओलिंपिक में ४ स्वर्ण और १ कांस्य पदक जीते हैं। इस खिलाड़ी ने १८७ देशों और ओलिंपिक कमेटी से ज्यादा मेडल जीते हैं। २२ साल के लियोन माशॉन पेरिस ओलंपिक २०२४ के सबसे सफल खिलाड़ी रहे। बता दें कि पेरिस ओलिंपिक में १९ देशों ने ही ४ या उससे ज्यादा गोल्ड मेडल जीते हैं। ऐसे में लियोन माशॉन ने गोल्ड मेडल जीतने के मामले में १८७ देशों और ओलिंपिक कमेटी को पीछे छोड़ा, जिसमें भारत और पाकिस्तान जैसे बड़े देशों का भी नाम शामिल है।

समाज के सिपाही : गरीबों की सेवा को समझते हैं अपना कर्तव्य

सगीर अंसारी

दिल में अगर लोगों की सेवा का जज्बा हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है। जरूरी नहीं कि पैसे से ही लोगों की सेवा की जाए, इंसान अपनी मेहनत से भी लोगों की सेवा कर सकता है। स्लम क्षेत्र में सुविधाओं के अभाव में गरीब मरीजों के लिए अच्छा इलाज एक अहम समस्या है। लोगों की इस परेशानी को देखते हुए बिना किसी स्वार्थ के इलाज व मार्गदर्शन को अपना कर्तव्य समझनेवाले डॉ. एहतेशाम अहमद शेख, गोवंडी जैसे स्लम इलाके में जगन्नाथ हॉस्पिटल में बिना किसी स्वार्थ के लोगों के इलाज में अहम भूमिका निभा रहे हैं। डॉ. एहतेशाम अहमद शेख का जन्म आजमगढ़ में चांदपार गांव में हुआ। पिता मोहम्मद पैâज शिक्षक थे और घर के हालात कुछ ठीक नहीं थे। गांव के मदरसे इस्लाहुल मुस्लिमीन से प्राइमरी तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद एहतेशाम अहमद शेख ने गांव से छह किलोमीटर दूर स्थित मौलाना आजाद इंटर कॉलेज से हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त की। डॉक्टर बनने की ख्वाहिश दिल में संजोए एहतेशाम अहमद शेख अपने गांव से दूर लखनऊ आए और यहां से कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट की तैयारी की और वर्ष १९९९ में टेस्ट को पास किया। टेस्ट में मिले नंबरों के आधार पर हरिद्वार के ऋषि कुल स्टेट आयुर्वेदिक पीजी मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल में उन्हें प्रवेश मिला और वहां से डॉक्टरी की शिक्षा प्राप्त की। २००५ में सना शेख से विवाह करनेवाले डॉ. एहतेशाम तीन बच्चों के पिता बने। वर्ष २००६ में एहतेशाम मुंबई घूमने आए और यहीं के होकर रह गए। बचपन से गरीबों की मदद का जज्बा रखनेवाले एहतेशाम अहमद शेख जब गोवंडी के स्लम इलाके में आए तो यहां रहनेवाले गरीब मरीजों की दुर्दशा को देख उन्होंने क्षेत्र में दवाखाना खोलकर गरीबों का इलाज करने का निश्चय किया। एक साल की मेहनत के बाद शिवाजी नगर के प्रमुख एसएन हॉस्पिटल से शुरुआत कर गरीबों का इलाज काफी कम पैसों में करते हुए उनका मार्गदर्शन किया। अपने साथी डॉक्टरों के साथ मिलकर गलीच बस्तियों में मेडिकल वैंâप लगानेवाले डॉ. एहतेशाम अहमद शेख ने नौजवानों को खेलकूद की ओर प्रोत्साहित किया। लोगों की सेवा के साथ-साथ अपने परिवार को न भूलनेवाले डॉ. एहतेशाम ने अपने बड़े भाई मो. सलमान शेख के लिए गांव में ही पोल्ट्री फॉर्म का व्यवसाय शुरू किया और छोटे भाई के लिए भी व्यवसाय की शुरुआत की। तीनों भाइयों ने मिलकर अपनी तीन बहनों का विवाह किया। डॉ. एहतेशाम का बड़ा बेटा हाजिम नीट की परीक्षा की तैयारी कर रहा है, जबकि दूसरा बेटा राहीम दसवीं कक्षा में है।

रौबीलो राजस्थान : जूं री हवाई-जातरा

बुलाकी शर्मा राजस्थान
पैली बार हवाई-जातरा करण रो मजो ई न्यारो है। अमेरिकन एयरलाइंस रो विमान है। लॉस-एंजिल्स एयरपोर्ट माथै मैडम री जांच करीजी जणै म्हैं डर’र बीं रै माथै री चामड़ी रै चिप’र बैठगी। थैंक्स गॉड वैâ म्हैं पकड़ीजी कोनी।
संजोग सूं म्हारी मैडम सूं मिलण सारू बीं‌ री प्रैंâड ‌न्यूयार्क सूं लॉस एंजिल्स आई। म्हनै हवाई-जातरा रो सपनो पूरो हुवतो लखायो। खा-पीय’र दोनूं भायल्यां डबल-बेड माथै पसरनै पुराणी बातां में रमगी अर म्हैं चतराई सूं मैडम री भायली रै सिर रा बालां में रमगी।
बंतळ में म्हारी मैडम आपरै हसबैंड अर बीं री भायली लिव इन रैवणियै आपरै प्रैंâड नै बां माथै ई डिपेंड बतावती अफसोस कर रैयी ही। म्हारी जमात ई परजीवी है। दूजां माथै डिपेंड रैवै। जिवैâ रै सायरै रैवां, बीं रो ई खून पीवां। विधाता रो ओ ई विधान है। पण मिनखा-जूण में ई म्हारी जमात रा जीव है अर बे निजू सम्बंधां रै सायरै आपरै निजूं लोगां रो खून चूसता रैवै, आ जाणनै भोत पीड़ा हुई। पण म्हैं तो हवाई-जातरा रै सपना में मस्त ही। बां री बंतळ सूं म्हनै कांई!
जातरा बिचाळै एयर हॉस्टेज रो मीठो-मधरो सुर सुण’र बीं नै देखण रो मन हुयो। इत्ता मीठा बोल है जणै खून ई मीठो हुवैला। बीं रै माथै रै बालां में घुसण री तजबीज बैठ जावै तो फेर बीं रो मीठो खून पींवता हवाई-जातरावां करती रैयसूं। माथै री चामड़ी छोड’र म्हैं बालां ऊपरां आयगी। एयर हॉस्टेज अर दूजा मुसाफिरां नै म्हैं सावळ देख्या ई कोनी कै एयर हॉस्टेज री निजर म्हारै माथै पड़गी अर बा चमकनै म्हारी मैडम कनै आई। म्हैं डरगी। मैडम नै तो म्हारै आवण रो ठाह ई कोनी हो जणै म्हारो टिकट तो लेवण सूं रैयी। अबै बिना टिकट जातरा करण री सजा मिलणी पक्की है। म्हैं पाछी चामड़ी रै चिप’र बैठगी।
एयरलाइंस म्हारै हुवणै नै भोत सीरियसली लियो अर न्यूयार्क सूं पैला बिचाळै ई फीनिक्स में इमरजेंसी लैंडिंग करवाय दीवी। म्हारी वजह सूं मुसाफिरां नै बारह घंटा होटल में रैवणो पड़ियो पण एयर लाइंस जातरा डायवर्ट करण री वजह म्हारी ठौड़ मेडिकल इमरजेंसी नै बताई। अफसोस कै म्हारै जिसा जीवां नै मिनख खतरनाक मानै पण मिनखा-जूण में ई परजीवी बणियोड़ां नै सिर-माथै बैठावै।
खैर, फीनिक्स रुक’र फेर न्यूयार्क तांंई हवाई-जातरा करनै म्हैं मैडम रै बंगले पूगगी हूं। म्हारो आगै कांई हुवणो है, गॉड नोज!