रक्षाबंधन

रक्षाबंधन इसको कहता जमाना है
देखो कितना दिन ये सुहाना है ।
रक्षाबंधन इसको कहता जमाना है ।।
नेह की डोर से बहन रिश्ता सजाएगी ।
भाई की कलाई पर राखी इठलाएगी ।।
शहद सी मिठास फिर घुलेगी रिश्तों में ।
दिखावा नहीं जो बंट जाएगा हिस्सों में ।।
प्रण रक्षा का अब हर भाई को निभाना है ।
रक्षाबंधन इसको कहता जमाना है ।।
अस्मिता पर बहन की आंच न आने देंगे ।
विश्वास को उसके हम व्यर्थ न जाने देंगे ।।
गमों को उसके हम अपने सर ले लेंगे ।
उसको अपनी सारी ख़ुशियां हंसते हंसते दे देंगे ।।
बहन के जीवन को सुरीला सावन बनाना है ।
विश्वास के तिलक का हमें मान बढ़ाना है ।
रक्षाबंधन इसको कहता जमाना है ।।

-डॉ. वासिफ काजी
इंदौर

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