मुख्यपृष्ठस्तंभकभी-कभी : पिता को बिना बताए किया निकाह

कभी-कभी : पिता को बिना बताए किया निकाह

 

यू.एस. मिश्रा

तमाम उम्र प्यार के लिए तरसती मीना कुमारी को शेरों-शायरियां लिखने का बेहद शौक था। १९५२ में फिल्म ‘तमाशा’ के सेट पर प्रोड्यूसर-डायरेक्टर और राइटर कमाल अमरोही से उनकी मुलाकात हुई। यह और बात है कि फिल्म नहीं चली लेकिन कमाल अमरोही की लेखनी की कायल मीना कुमारी और कमाल अमरोही की प्रेम कहानी इस फिल्म के बाद परवान चढ़ी और एक दिन पिता को बताए बिना अपनी बहन की मौजूदगी में वो कमाल अमरोही की शरीक-ए-हयात बन गईं।
उम्र में मीना कुमारी से १५ वर्ष बड़े कमाल अमरोही के सेक्रेटरी बाकर अली एक दिन मीना कुमारी के पास पहुंचे और पहुंचते ही उन्होंने मीना कुमारी से पूछ लिया कि क्या वो कमाल की अगली फिल्म ‘अनारकली’ में काम करना चाहेंगी। १९४९ में रिलीज हुई फिल्म ‘महल’ की सफलता के बाद कमाल अमरोही का शुमार बेहतरीन निर्देशकों में होने लगा था। अत: कमाल अमरोही की लेखनी की कायल मीना कुमारी उनके साथ काम करने को तैयार हो गर्इं। अब बाकर अली ने मीना कुमारी को फिल्म के निर्माता मक्खनलाल से मिलवाया। लेकिन मक्खनलाल ने मीना कुमारी को रिजेक्ट कर दिया। निर्माता के रिजेक्ट करते ही कमाल अमरोही ने पैâसला सुनाते हुए कह दिया कि निर्माता अपनी मर्जी की हीरोइन के साथ खुद ही फिल्म बना लें। अगर मीना इस फिल्म में नहीं होंगी तो कमाल भी इस फिल्म में काम नहीं करेगा। अब मक्खनलाल ने कमाल के सामने शर्त रखते हुए कहा कि बतौर हीरोइन मीना कुमारी को तीन हजार रुपए मेहनताने के तौर पर दिए जाएंगे। तीन हजार रुपए मेहनताने की बात सुनकर मीना कुमारी के पिता अली बख्श अड़ गए और उन्होंने फरमान सुनाते हुए कह दिया कि पिछली फिल्म में मीना को दस हजार रुपए मिले थे। किसी भी सूरत में मीना इस फिल्म में काम नहीं करेगी। अली बख्श की बात सुनकर अब एक बार फिर कमाल अमरोही ने बागडोर संभाली और बात पंद्रह हजार पर बन गई। मीना कुमारी के कॉन्ट्रैक्ट साइन करते ही कमाल अमरोही फिल्म की लोकेशन देखने दिल्ली की ओर निकल पड़े और मीना कुमारी अपने परिवार के साथ महाबलेश्वर घूमने चली गर्इं। महाबलेश्वर से वापस लौटते समय उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया और मीना कुमारी को इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा। मीना कुमारी के घायल होने की खबर जैसे ही कमाल अमरोही ने पढ़ी वो तुरंत पूना स्थित अस्पताल की ओर निकल पड़े। मीना की एक उंगली एक्सीडेंट में कट चुकी थी। मीना कुमारी डिप्रेशन में आ गर्इं कि अब फिल्म ‘अनारकली’ का क्या होगा। खैर, दो दिन बाद नर्स ने उनसे कहा, ‘कोई उनसे मिलने के लिए आया है।’ मीना कुमारी ने कहा, ‘भेज दो।’ अब मीना कुमारी के सामने कमाल अमरोही हाथों में गुलदस्ता लिए खड़े थे। अस्पताल में मौजूद मीना कुमारी की बहन मधु ने हंसते हुए कहा, ‘लो भई, जिसका इंतजार था वो आ गया।’ इस हादसे के बाद कमाल अमरोही की जिंदगी में मीना कुमारी के आने की कहानी शुरू हुई। अब कमाल अमरोही रोज मुंबई से पूना जाते और मीना की खैरख्वाह लेकर शाम होते ही मुंबई लौट आते। अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी मीना को कमाल बंद लिफाफे में रखा खत पकड़ाते और बदले में मीना भी उन्हें एक खत थमा देतीं। धीरे-धीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा। मीना कुमारी अब कमाल के लिए मंजू बन गर्इं और कमाल अमरोही मीना के लिए चंदन। एक दिन मीना ने कड़वी दवा पीने से इनकार कर दिया। लेकिन उस कड़वी दवा को जैसे ही कमाल ने मीना कुमारी के होंठों से लगाया मीना कुमारी ने एक सांस में उस कड़वी दवा को हलक से नीचे उतार दिया। चार महीने बाद अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद फिल्म ‘अनारकली’ की शूटिंग हुई लेकिन चार-पांच रील बनते ही फिल्म डिब्बाबंद हो गई। फिल्म के डिब्बाबंद होने के बाद अब दोनों को टेलिफोन का सहारा था। एक दिन मीना कुमारी के पास बाकर अली पहुंचे और पहुंचते ही उनसे बोले, ‘क्या तुम कमाल से प्यार करती हो।’ मीना कुमारी ने उनसे ‘हां’ कह दिया। उन दिनों मीना कुमारी के पिता मीना और उनकी बहन मधु को एक फिजियोथेरपिस्ट के पास शाम ८ बजे छोड़ते और रात १० बजे उन्हें घर ले जाते। एक दिन मीना और मधु को वहां छोड़कर जैसे ही उनके पिता की गाड़ी वहां से निकली तुरंत ही एक दूसरी गाड़ी वहां पहुंची, जिसमें कमाल अमरोही अपने सेक्रेटरी बाकर अली के साथ बैठे थे। अब मीना और मधु उस गाड़ी में बैठ गर्इं। सभी काजी के पास पहुंचे। पहले सुन्नी फिर शिया रीति-रिवाजों से निकाह पढ़ा गया। विवाह की रस्म पूरी होते ही गाड़ी तेज रफ्तार से फिजियोथेरपिस्ट के क्लीनिक की ओर दौड़ पड़ी। दस बजे अली बक्श क्लीनिक पहुंचे। गाड़ी में अली बख्श के साथ उनकी बेटियां थीं लेकिन उन्हें तनिक भी गुमान नहीं था कि जिस कुंवारी बेटी मीना को अभी थोड़ी देर पहले उन्होंने क्लीनिक पर छोड़ा था अब वो कुंवारी नहीं, बल्कि कमाल अमरोही की शरीक-ए-हयात है।

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