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इस्लाम की बात : तेरी होली मैं मनाऊं, तू मना ले मेरी ईद

सैयद सलमान
मुंबई

रंगारंग होली का त्योहार बीत गया। वह होली जिसमें कहा जाता है कि रंगों में भरकर प्यार बरसाया जाता है। वह होली जिसमें कहा जाता है कि होली में दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। वह होली जिसके रंगों की छटा में हर गम भुला दिए जाते हैं। वह होली जो सार्वभौमिकता का प्रतीक है। नजीर बनारसी के शब्दों में कहें तो-
कहीं पड़े न मोहब्बत की मार होली में
अदा से प्रेम करो दिल से प्यार होली में।
लेकिन इस बार होली के त्योहार में मोहब्बत के रंग बिखेरने के बजाय कुछ तत्वों ने नफरत भरकर सियासी रंग से सराबोर पिचकारियां तैयार कर रखी थीं। कुछ घटनाएं ऐसी हुर्इं जिससे रंग में भंग पड़ गया। अनेक जगह से मुस्लिम समाज की महिलाओं, पुरुषों, विशेषकर युवतियों पर उनकी मर्जी के बिना रंग डालने या उनके साथ बदतमीजी की घटनाओं वाले वीडियो वायरल हुए। खास बात यह कि रंग लगाते या उद्दंडता करते समय ‘हर हर महादेव’ और ‘जय श्रीराम’ का नारा भी लगाया गया, ताकि अपने कृत्य को धार्मिक जामा पहनाकर खुद को सही ठहराया जा सके। उत्तर प्रदेश के बिजनौर में होली का जश्न मना रहे कुछ उपद्रवियों का एक परिवार को परेशान करनेवाला वीडियो सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा वायरल हुआ। वायरल वीडियो में दिखता है कि कुछ युवक मोटरसाइकिल पर सवार एक पुरुष और दो महिलाओं को घेरे हुए हैं। कुछ लड़के महिलाओं पर पाइप से पानी डालते नजर आते हैं। मुस्लिम महिलाएं इसका विरोध करती हैं, लेकिन उपद्रवी लड़के नहीं मानते। वे महिलाओं पर बाल्टियों से पानी डालते हैं, चेहरे पर जबरन रंग लगाते हैं, उनकी मर्जी के बगैर उन्हें छूते हैं। वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस चार लोगों को गिरफ्तार कर लेती है। इसमें से तीन आरोपी नाबालिग हैं। एक उत्साह भरा पर्व कड़वी यादों में तब्दील हो जाता है। कुछ पल की यह घटना मुस्लिम समाज के उस परिवार की नजर में हिंदू भाइयों के प्रति कड़वाहट घोल जाती है, जबकि गिरफ्तारी, थाना-पुलिस के चक्कर की वजह से हिंदू भाइयों के परिवारों में मुसलमानों के प्रति और भी घृणा भर जाती है। यह दु:खद है।
तस्वीर का दूसरा रुख भी कम रोचक नहीं है। मिसाल के लिए जामिया मिल्लिया में मुस्लिम लड़कियों के पहले अपना रोजा खोलने और फिर होली खेलने का वीडियो भी खूब वायरल होता है। अब यह बात भी कुछ लोगों को नागवार गुजरती है। एक तस्वीर खूब वायरल होती है जिसमें दाढ़ी-टोपी वाले एक पुरुष और हिजाब पहने उसकी साथ वाली महिला को लोग रंग लगा रहे हैं और वह बड़ी शांति से लगवा भी रहे हैं। तस्वीर में एक सिख भाई भी नजर आ रहे हैं। कहीं कोई कड़वाहट नहीं, कोई मलाल नहीं। सबसे बड़ी मिसाल तो उत्तर प्रदेश के बाराबंकी स्थित प्रसिद्ध सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार पर खेली जानेवाली होली की है, जिसका लोगों को हर वर्ष इंतजार रहता है। इस दरगाह पर ऐसी होली मनाई जाती है, जहां जाति और धर्म की सारी सीमाएं टूटती नजर आती हैं। यहां हिंदू और मुस्लिम मिलकर होली खेलते हैं और एक-दूसरे से गले मिलकर जश्न मनाते हैं। दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर भी यही नजारा होता है। उनके शागिर्द और मशहूर सूफी और हिंदवी शायर अमीर खुसरो की यह पंक्तियां मन को मोह लेती हैं जब वो होली पर कहते हैं-
रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ,
जिसके कपरे रंग दिए सो धन-धन वाके भाग।
सिर्फ अमीर खुसरो ही नहीं, बल्कि कई सूफी संतों और मुस्लिम शायरों और कवियों ने होली के अवसर पर गीत, गजल, ठुमरी, शायरी और कविताएं लिखी हैं जो देश की संस्कृति और एकता को दर्शाती हैं। कट्टरवाद भले ही इनकी आलोचना करे लेकिन वह अपने लक्ष्य से नहीं डिगे। वर्तमान दौर में भी एक तरफ देश के चुनिंदा राजनेता पूरे देश में धार्मिक उन्माद और विद्वेष पैâलाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं और पूरे देश को धर्म के नाम पर बांट रहे हैं, वहीं समाज में ऐसे लोग भी हैं जो देश की एकता और भाईचारे की मशाल को थामे हुए हैं। होली का त्योहार प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है। हालांकि, आधुनिक समय में मेल-मिलाप की परंपरा कमजोर होने के कारण होली का उत्साह और रंग फीका पड़ा है। ऐसा महसूस हो रहा है मानो देश की गंगा-जमुनी तहजीब की प्रतीक होली को नजर लग गई है। होली जमकर खेलिए, लेकिन इतना जरूर ध्यान रखिए कि किसी दूसरे मजहब के व्यक्ति पर उसकी मर्जी के खिलाफ रंग न डाला जाए। आज के दौर में हमवतन भाइयों से यही कहना है-
आ मिटा दें दिलों पे जो स्याही आ गई है,
तेरी होली मैं मनाऊं, तू मना ले मेरी ईद।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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