खुशी की खोज सचमुच व्यर्थ
माया पति खोले खुशी के द्वारे
खुशी कर्म भोग का चिंतन।
दुनिया में मुट्ठी भर खुशी के लिए,
जाने कितनी मुश्किले सहते हैं।
कभी कभी खुद ही टूट जाते हैं,
कभी खुद ही बिखर जाते हैं।
उम्मीदों के खुबसूरत बाहो को,
सपनों की दुनिया में सजा लेते हैं।
हकीकत से कभी रूबरू नहीं होते,
सपनों के मोती को ओस की तरह सजा लेते।
समय गुजर जाता है यारो,
मलाल इतना सा रहता है,
हम जहां थे वहीं रह जाते
मतलबी दुनिया में हम ठगे जाते।
दर बदर होकर ढुंढ रहै हम खुशी,
वह कहां गई खुशी,
हृदय के चौखट पर आकर रूक गई।
सारी उम्र भर इंतजार करते रहै हम।
गोविन्द सूचिक
अदनासा
खिरकिया