सबसे बड़े वैरागी हैं देश के प्रधानमंत्री … अंधश्रद्धा, पाखंड को शासक दे रहे हैं खाद-पानी …संजय राऊत का जोरदार तंज

सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र के नई मुंबई स्थित खारघर में महाराष्ट्र भूषण समारोह के दौरान हुई भगदड़ हो अथवा उत्तर प्रदेश में हाथरस में घटी घटना हो, ये सभी अंधश्रद्धा के परिणाम हैं। इस अंधश्रद्धा और पाखंड को शासक की ओर से खाद और पानी डालने का काम किया जा रहा है। वैरागी महाराजों को शासक और राजनीतिक लोग सम्मान देते हैं इसीलिए ही इस तरह के हादसे होते हैं। देश के प्रधानमंत्री ही सबसे बड़े वैरागी हैं और पाखंड वहीं से चल रहा है। इस तरह का तंज शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता व सांसद संजय राऊत ने कसा।
मुंबई में गुरुवार को मीडिया से बात करते हुए सांसद संजय राऊत ने हाथरस हादसे को लेकर सरकार पर तीखा तंज कसते हुए कहा कि इस घटना में मामला दर्ज किया गया, लेकिन जिसकी वजह से हुआ उस भोलेबाबा पर अपराध पंजीकृत नहीं हुआ, क्योंकि उसे राजनीतिक सुरक्षा मिली हुई है। इस समारोह के लिए ८० हजार लोगों की अनुमति थी, फिर ढाई लाख लोग वैâसे इकट्ठा हुए? इस तरह का सवाल भी उन्होंने पूछा। पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए संजय राऊत ने कहा कि वे ही सबसे बड़े वैरागी हैं और पाखंड वहीं से ही शुरु है। मोदी को प्रधानमंत्री की तरह व्यवहार करना चाहिए, लेकिन वे गुफा में जाकर तपस्या करते हैं। खुद को बाबा, महराज और ईश्वर का अवतार कहलवाते हैं। वे कहते हैं कि मेरा जन्म बायोलॉजिकल पद्धति से नहीं हुआ है। हिंदू-मुसलमान करते रहते हैं। यह पाखंड और बुआबाजी है। प्रधानमंत्री ही पाखंड की राजनीति करेंगे तो देश का क्या होगा? इस तरह का तंज भी संजय राऊत ने कसा।
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री पर भी होनी चाहिए
अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून के तहत कार्रवाई
इस दौरान संजय राऊत ने कहा कि खारघर में महाराष्ट्र भूषण कार्यक्रम के दौरान भगदड़ मच गई थी। इस मामले में राज्य सरकार पर सदोष मनुष्य वध का मामला दर्ज होना चाहिए था। मुख्यमंत्री ने मध्य दोपहरी में यह कार्यक्रम आयोजित किया था। हजारों साधक वहां इकट्ठा हुए थे। उनके लिए कोई भी व्यवस्था नहीं थी। धूप से बचने के लिए सिर के ऊपर छप्पर नहीं था। देश के गृहमंत्री भी वहां मौजूद थे। इस दौरान भगदड़ में कई लोगों की जान चली गई। इस मामले में राज्य सरकार पर कार्रवाई होनी चाहिए थी। उन्होंने आगे कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ४० विधायकों को लेकर असम में जाते हैं और कामाख्या देवी के मंदिर में भेड़ काटते हैं। उन पर कार्रवाई कौन करेगा? उन्होंने कहा कि जहां अंधश्रद्धा, बुआबाजी है, वहां शासक और राजनेता जाते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री हों अथवा मुख्यमंत्री उन पर भी अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, इस तरह की मांग भी संजय राऊत ने की।
लाडला किसान योजना लाएं
अमरावती में जून महीने में २४ किसानों ने आत्महत्या की। महाराष्ट्र में कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्या का सिलसिला चल रहा है। इससे व्यथित संजय राऊत ने लाडकी बहन योजना की तरह ही लाडला किसान योजना शुरू करने की मांग की। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में हर दिन १० किसान आत्महत्या कर रहे हैं। जनवरी में ३५० किसानों ने आत्महत्या की। विदर्भ के अमरावती में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

लोकसभा चुनाव में हार के बाद मोदी सरकार को आई गांवों की याद! …ग्रामीण आवास योजना में छूट बढ़ाने की तैयारी

 ग्रामीण क्षेत्रों की २०१ सीटें घटकर हुईं हैं १२६
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
गत लोकसभा चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की बुरी गत बनी थी। इसके बाद मोदी सरकार अब ग्रामीण क्षेत्र को लॉलीपॉप देने की योजना बना रही है ताकि आगामी विधानसभा चुनावों में हवा का रुख मोड़ा जा सके। खबर है कि ग्रामीण आवास योजना में सरकारी सब्सिडी बढ़ाने की तैयारी कर रही है।
मिली जानकारी के अनुसार, मोदी सरकार ने ग्रामीण आवास योजना पर ३२,००० करोड़ की सब्सिडी रखी थी। अब इसे आगामी बजट में बढ़ाकर ५५,००० करोड़ किया जाएगा। ऐसा इसीलए किया जा रहा है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा अपनी खोई जमीन फिर से हासिल कर सके। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा का प्रदर्शन काफी खराब रहा, जिस कारण लोकसभा में वह बहुमत से दूर रही और सिर्फ २४० सीटें ही पा सकी। इससे मोदी को साधारण बहुमत जुटाने के लिए क्षेत्रीय सहयोगियों पर निर्भर होना पड़ा। विश्लेषण से पता चला कि गत लोकसभा में भाजपा ने २०१ ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों पर कब्जा किया था, जो इस बार घटकर १२६ पर आ गया। इससे भाजपा में बेचैनी बढ़ गई। नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक राजनीतिक विशेषज्ञ के अनुसार, मोदी की पार्टी ने विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े प्रदेशों में अपनी जमीन खो दी है। अब भाजपा इन प्रदेशों में फिर से अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। इसी के तहत केंद्र सरकार इस माह पेश होने वाले बजट में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) पर मिलने वाली सब्सिडी को ५० फीसदी तक बढ़ाने की योजना बना रही है। ग्रामीण आवास योजना के लिए सब्सिडी की राशि को ३२,००० करोड़ रुपए से बढ़ाकर ५५,००० करोड़ रुपए करने की तैयारी है। सरकार ग्रामीण इलाकों के विकास पर खर्च बढ़ाने की भी योजना बना रही है, जिसके अंतर्गत गांव की सड़कों और उन युवाओं के लिए रोजगार कार्यक्रम शामिल हैं, जो खेती के अलावा अन्य क्षेत्रों में कम मौकों की वजह से खेती पर ही निर्भर हैं। अगर इसे मंजूरी मिल जाती है तो यह २०१६ में शुरू हुए ग्रामीण आवास कार्यक्रम पर केंद्र के सालाना खर्च में अब तक की सबसे बड़ी बढ़ोतरी होगी। बजट में गरीबों के लिए २ करोड़ ग्रामीण घर बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अगले कुछ वर्षों में ४ लाख करोड़ रुपए तक आवंटित किए जाने की उम्मीद है, जिसमें केंद्र सरकार का योगदान लगभग २.६३ लाख करोड़ रुपए होगा।

डीएम पर गाज! …सीएम ने दनादन बदले एक दर्जन जिलाधिकारी

सरकारी अधिकारियों पर फूटा हार का ठिकरा
सामना संवाददाता / लखनऊ
लोकसभा चुनाव २०२४ के परिणाम भाजपा के लिए बेहद चौंकानेवाले रहे, उसमें भी उत्तर प्रदेश की जनता ने तो भारतीय जनता पार्टी को पूरी तरह से नकारा है। लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के एक महीने के बाद भी अभी तक उत्तर प्रदेश में हार के पीछे के कारणों को जानने में आलाअधिकारी लगे हुए हैं। योगी सरकार में भाजपा विधायकों और मंत्रियों द्वारा भितरघात, सरकार और पार्टी के बीच तालमेल की कमी, राज्य सरकार के अधिकारियों का असहयोग, भाजपा उम्मीदवारों और मतदाताओं के बीच दूरी तथा दलित व ओबीसी वोटों का भाजपा से दूर होना, भाजपा के टास्क फोर्स के मुताबिक ये वे कारण हैं, जिनकी वजह से यूपी में बीजेपी की हार हुई। इस टास्क फोर्स में ४० नेता शामिल हैं। भाजपा आलाकमान के साथ साझा की गई यह रिपोर्ट यूपी की ८० लोकसभा में से ७८ सीटों के दौरे के आधार पर बनाई गई है। इस रिपोर्ट के बाद अब लोगों की नजरें इस बात पर हैं कि आखिर पार्टी क्या एक्शन लेगी। इस बीच योगी आदित्यनाथ सरकार ने १२ जिलों के डीएम बदल दिए हैं।
बता दें कि इनमें से ज्यादातर ऐसे जिलों के हैं, जहां से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। इन जिलों में बांदा, संभल, सहारनपुर, मुरादाबाद, हाथरस, सीतापुर, श्रावस्ती और बस्ती शामिल हैं। पार्टी के टास्क फोर्स ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पार्टी के भीतर असंतोष और जिला प्रशासनिक मशीनरी से सहयोग की कमी दो प्रमुख कारक थे। इसी वजह से लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा। साल २०१९ के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने ६२ सीटें जीती थीं, जबकि इस बार उसकी सीटें घटकर ३३ रह गर्इं। टास्क फोर्स द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के तुरंत बाद,सीएम योगी आदित्यनाथ ने १२ जिलाधिकारियों (डीएम) का तबादला कर दिया। इनमें से ज्यादातर उन जिलों से थे, जो २०२४ के चुनावों में भाजपा की हार वाले निर्वाचन क्षेत्रों में आते हैं। इसके अलावा सरकारी अधिकारियों के असहयोग को भी जिम्मेदार माना है। कई जिलों में वोटों की गिनती जो हुई है, उसमें बैलेट पेपर में भाजपा को झटका लगा है। इससे संकेत मिलता है कि सरकारी कर्मचारियों ने भाजपा को पसंद नहीं किया है। इसके अलावा खराब नतीजे की तीन और वजहें सामने आई हैं। एक वजह है टिकटों के बंटवारे में खामी।

असंतोष का कारण क्या?
टास्क फोर्स के निष्कर्षों से अवगत एक पार्टी पदाधिकारी ने कहा, ‘हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था, हमारी कश्ती भी वहां डूबी जहां पानी कम था’ उन्होंने कहा, ‘भाजपा का पतन नियति से कम और पटकथा से अधिक था।’ उन्होंने कहा, ‘भाजपा के पतन के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक आंतरिक असंतोष भी था, जिसे मुख्य रूप से टिकट वितरण और ठाकुर समुदाय के भीतर असंतोष के मुद्दों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।’

मुंबई के टुकड़े नहीं कर पा रहे हो क्या … इसलिए अडानी की झोली में डाल रहे हो? … आदित्य ठाकरे का जोरदार हमला

सामना संवाददाता / मुंबई
धारावी पुनर्विकास परियोजना के साथ ही मुंबई के खाली भूखंड़ों को ‘घाती’ सरकार द्वारा उद्योगपति अडानी को कौड़ियों की कीमत में दिया जा रहा है। यह मुद्दा कल विधान मंडल में गूंजा। उस पर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता व युवासेनाप्रमुख आदित्य ठाकरे आक्रामक हो गए। उन्होंने हमला करते हुए कहा कि मुंबई के टुकड़े नहीं कर पा रहे हैं, क्या इसलिए इसे अडानी की झोली में डाल रहे हैं। इस तरह का जोरदार हमला उन्होंने ‘घाती’ सरकार पर किया।
विधान भवन परिसर में आदित्य ठाकरे ने मीडिया से संवाद साधते हुए ‘घाती’ सरकार के भ्रष्ट कामकाज पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि विरोधी पक्ष इस मुद्दे पर लगातार आवाज उठा रही है। मुंबई अडानी की झोली में डालने की कोशिश चल रही हैं। आदित्य ठाकरे ने कहा कि धारावी का पुनर्वसन हो, लोगों को अच्छा घर मिले, ऐसा हमें लगता है, लेकिन भाजपा और घातियों के मालिक इस जमीन को ही नहीं, बल्कि मुंबई में अन्य भूखंड़ों को भी अडानी की झोली में डालने की कोशिश कर रहे हैं। वे मालिक के सामने हाथ जोड़कर दंडवत हो रहे हैं।
आदित्य ठाकरे ने तंज कसते हुए कहा कि अच्छा काम करनेवाले किसी भी उद्योगपति का हम विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन आज ईस्ट इंडिया कंपनी से भी अधिक भयानक कंपनी का काम मुंबई और महाराष्ट्र में शुरू है। उन्होंने कहा कि मुंबई में इस समय चार से पांच टाऊन प्लानिंग ऑथॉरिटी हैं। मुंबई मनपा को ही टाऊन प्लानिंग ऑथॉरिटी करने का सपना मविआ का है। आदित्य ठाकरे ने हमला बोलते हुए कहा कि धारावी में कोई अनुमति लेनी हो अथवा प्रस्तावित योजना हो तो टाऊन प्लानिंग अथॉरिटी, डीआरपी, मुंबई मनपा अथवा एमएमआरडीए को १५ दिनों में अडानी समूह को जवाब देना पड़ता है, अन्यथा अडानी जैसे कहेंगे, वैसा करना पड़ता है। इस तरह का ‘घातियों’ का कानून है।
आदित्य ठाकरे ने पूछे सवाल
मुंबई समेत देश में कई पुनर्विकास परियोजनाएं शुरू हैं, लेकिन किसी को भी इस तरह की सहूलियत नहीं मिली है। नया कानून राज्य और देश में किसलिए लाया गया है? क्या वास्तव में आप पुनर्विकास कर रहे हैं? क्या चांद पर काम कर हैं? इस तरह के सवाल भी आदित्य ठाकरे ने किए। खार लैंड, डंपिंग ग्राउंड, ऑक्ट्राय नाका, कुर्ला में मदर डेअरी का प्लॉट और मुलुंड में मौजूद प्लॉट कितने दिनों में अडानी समूह को देंगे।
खाली मैदान में बन रही नई इमारत
धारावीकरों को दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने की कोशिश सरकार कर रही है। उस पर भी आदित्य ठाकरे ने तंज कसते हुए कहा कि वरली बीडीडी में खाली मैदान में नई इमारत बनाई जा रही है। इसके बाद पुरानी इमारत को गिराकर वहां खाली मैदान बनाया जा रहा है। धारावी में ऐसा करना संभव है। वहीं पर ट्रांजिट वैंâप बनाया जा सकता है।

शिंदे राज में सर्व शिक्षा अभियान की उड़ रही धज्जियां … ५५० छात्रों पर मात्र दो शिक्षक!

विद्यार्थियों की पढ़ाई हो रही प्रभावित
मानखुर्द में मनपा स्कूल से मुंह मोड़ रहे लोग

सामना संवाददाता / मुंबई
शिंदे सरकार के राज में ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की धज्जियां उड़ रही हैं। मुंबई के पूर्वी उपनगर के मानखुर्द इलाके में स्थित मुंबई मनपा के ‘मुंबई पब्लिक स्कूल’ में ५५० छात्रों को पढ़ाने के लिए केवल दो शिक्षक ही उपलब्ध हैं। इसका असर छात्रों की पढ़ाई पर पड़ रहा है, उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है और इसके चलते अभिभावक मनपा के स्कूल से मुंह मोड़ रहे हैं और उन्होंने अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने का निर्णय लिया है।
तीन साल पहले हुई थी शुरूआत
मनपा स्कूलोें में पढाई के स्तर को उठाने के लिए कुछ साल पहले मुंबई के कई स्थानों पर ‘मुंबई पब्लिक स्कूल’ शुरू किए गए थे। इसी कड़ी में तीन साल पहले मानखुर्द इलाके के महाराष्ट्र नगर में भी इसकी शुरूआत की गई थी। इस स्कूल में वर्तमान में पहली से सातवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाले ५६० विद्यार्थी हैं। तीन साल पहले जब स्कूल शुरू हुआ था तो यहां बच्चों को दाखिला दिलाने के लिए अभिभावकों की भारी भीड़ उमड़ती थी। इसका कारण था कि अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को मिलने वाली गुणवत्तापुर्ण शिक्षा, वह भी पूरी तरह से निःशुल्क। कई अभिभावकों ने तो अपने बच्चों को निजी स्कूलोें से निकालकर इस स्कूल में दाखिला दिलाया था।
शिक्षकों के अभाव में स्कूल की दुर्दशा
पिछले दो वर्षों से इस विद्यालय में शिक्षकों की संख्या अपर्याप्त है और इसका असर विद्यालय में छात्रों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। वर्तमान में इस विद्यालय में कक्षा एक से सातवीं तक की १४ कक्षाएं संचालित हो रही हैं। लेकिन १४ कक्षाओं के लिए मात्र दो शिक्षक उपलब्ध रहने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। अक्सर शिक्षकों को कुछ दिनों के लिए संविदा पर बुलाया जाता है। लेकिन कभी-कभी वह भी उपलब्ध नहीं होते हैैं, इसलिए छात्रों को पूरे दिन शिक्षकों के बिना स्कूल में बैठना पड़ता है।
स्कूल छोड़ रहे विद्यार्थी
इस स्कूल में पिछले दो साल से यही स्थिति है। वर्तमान में कुछ अभिभावकों ने इस स्कूल से मुंह मोड़ लिया है। नतीजा यह हुआ कि पिछले दो साल में इस स्कूल के करीब ४० से ५० विद्यार्थियों ने क्षेत्र के निजी स्कूलों में दाखिला ले लिया है। एक अभिभावक ने कहा कि हमें शिक्षा नहीं मिल सकी। लेकिन हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए इस स्कूल में डालते हैं। लेकिन इस स्कूल में कोई शिक्षक नहीं होने के कारण बच्चे घर आकर भी कुछ नहीं पढ़ते हैं।

 

बिहार में धड़ाधड़ गिर रहे हैं ब्रिज … सारण में २४ घंटे में गिरा तीसरा पुल! पिछले १६ दिनों में १० पुल ढह गए

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका 
पुलों के हाई लेवल ऑडिट की मांग

सामना संवाददाता / पटना 
बिहार में पुलों के गिरने का सिलसिला लगातार जारी है। राज्य में धड़ाधड़ ब्रिज गिर रहे हैं। सारण में ही पिछले २४ घंटे के अंदर तीसरा पुल ध्वस्त हो गया। बनियापुर की दो पंचायतों सरेया और सतुआ को जोड़ने वाला पुल अनियमितता की भेंट चढ़ गया है। इससे दर्जनों गांवों का संपर्क टूट गया है। इस कारण ग्रामीणों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि पिछले १६ दिनों में अब तक १० पुल गिर चुके हैं। जिस तरह से पुलों का गिरना जारी है उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है और पुलों के हाई लेवल ऑडिट की मांग की गई है।
पानी का तेज बहाव नहीं झेल पाया पुल
ग्रामीणों के अनुसार, गंडक नदी पर इस पुल का निर्माण पांच वर्ष पूर्व स्थानीय मुखिया के निजी कोष से हुआ था। नदी में सफाई कार्य के बाद पुल के किनारे और पिलर के पास की मिट्टी कम होने और पानी का बहाव तेज होने के कारण पुल टूट गया। लगभग दस किलोमीटर दूर लहलादपुर प्रखंड के जनता बाजार में बुधवार को दो पुल टूटने की घटना हुई थी। सारण जिले में गंडक नदी पर महज २४ घंटे के अंदर सारण जिले का तीसरा पुल टूटने का मामला सामने आया है।
सीवान में बैक टू बैक तीन पुल ध्वस्त  
इससे पहले बुधवार को सीवान में बैक टू बैक तीन पुल ध्वस्त हो गए थे। लगातार बारिश के कारण कुछ ही घंटों में तीन पुल गिरने से कई गांवों के बीच संपर्क टूट गया है। पहली घटना  गंडक नदी पर बना ३५ साल पुराने पुल का एक पिलर धंसने लगा। दूसरी घटना महाराजगंज प्रखंड की तेवथा पंचायत की है। नौतन और सिकंदरपुर गांव के बीच गंडक नदी पर बना पुल गिर गया। वहीं तीसरा पुल धीमही गांव में गंडक नदी पर बना था। यह भी धाराशायी हो गया। ग्रामीणों का कहना है कि कुछ दिन पहले इस पुल की मरमत भी हुई थी।

बिहार में पुलों के ढहने को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता एडवोकेट ब्रजेश सिंह ने अपनी याचिका में आग्रह किया है कि सुप्रीम कोर्ट को राज्य में मौजूद छोटे और बड़े पुलों और हाल के सालों में किए गए सरकारी निर्माण के संरचनात्मक ऑडिट का आदेश देना चाहिए। याचिका में लिखा है कि इस मुद्दे पर तत्काल विचार की आवश्यकता है। दो सालों के अंदर तीन प्रमुख निर्माणाधीन पुलों और अन्य कई पुलों के ढहने की घटनाएं घटीं जिनमें कुछ लोगों की मौत हो गई और अन्य लोग घायल हो गए। सरकार की घोर लापरवाही और ठेकेदारों और संबंधित एजेंसियों की सांठ-गांठ और भ्रष्टाचार के चलते सरकारी खजाने और मानव जीवन को नुकसान हो सकता है।

फूड डिलिवरी बाजार की बल्ले-बल्ले! …२०३० तक फूड सर्विस जाएगी १० लाख करोड़ पार

सामना संवाददाता / मुंबई
वर्ष २०३० तक भारत में फूड डिलीवरी मार्केट २ लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है। इस दौरान कंज्यूमर बेस ४५ करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है बेन एंड कंपनी और स्विगी की रिपोर्ट ‘हाउ इंडिया ईट्स’ में कहा गया है कि ऑनलाइन फूड डिलीवरी मार्केट में सीएजीआर में १८ प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है। यह २०२३ में १२ प्रतिशत से बढ़कर २०३० तक २० प्रतिशत हो जाएगी।
फूड डिलीवरी मार्वेâट में बाहर खाना और घर पर ऑर्डर करके मंगाना शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ऑनलाइन फूड डिलीवरी मार्केट २०३० तक २.१२ लाख करोड़ रुपए का हो जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में फूड डिलीवरी मार्वेâट का वर्तमान मूल्य ५.५ लाख करोड़ रुपए है अगले सात वर्षों में इस कारोबार के सालाना १०-१२ प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जो २०३० तक ९ से १० लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वृद्धि मजबूत बुनियादी कारकों से प्रभावित होगी। इनमें विस्तारित ग्राहक आधार, बढ़ती खपत के अवसर और आपूर्ति में वृद्धि शामिल है। इसके अलावा ऑनलाइन खाद्य वितरण में (लगभग) १८ प्रतिशत की दर से वृद्धि होने की उम्मीद है, जो २०३० तक कुल खान-पान सेवा बाजार में २० प्रतिशत का योगदान देगा। स्विगी फूड मार्केट प्लेस के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) रोहित कपूर ने कहा कि भारतीय खानपान सेवा बाजार में विशेष रूप से खाद्य वितरण में पिछले कुछ वर्षों में तेजी से वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि उच्च आय, डिजिटलीकरण, बेहतर ग्राहक अनुभव और नए अनुभवों को आजमाने की प्रवृत्ति ने इस वृद्धि में योगदान दिया है।

जापानी केमिकल से मरेंगे मच्छर … मनपा ने आयात किए ४,५०० लीटर

 -ट्रायल टेस्ट में हुआ पास
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई में मानसूनी बीमारी खासकर डेंगू और मलेरिया का भी प्रकोप शुरू हो गया है। ऐसे में इस बार मुंबई मनपा ने इन बीमारियों को फैलानेवाले मच्छरों को मारने के लिए जापान से ५,४०० लीटर केमिकल आयात किया है। इस केमिकल ट्रायल टेस्ट में पाया गया कि पांच ही मिनट में मच्छर मर गया।
उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष मुंबई में मलेरिया के ७ हजार और डेंगू के ५,५०० से अधिक मरीज मिले थे। इस वर्ष जून में मलेरिया के ४२३ और डेंगू के ९३ मरीज मिल चुके हैं। इसके साथ ही कल हुई बैठक में मलेरिया और डेंगू बीमारी की रोकथाम के लिए विभिन्न उपाय योजना शुरू कर दिए गए हैं। इसी कड़ी में इन मच्छरों की रोकथाम के लिए मनपा कीटनाशक विभाग ने साइफेनोथ्रिन नामक केमिकल को जापान सुमिटोमो केमिकल कंपनी से आयात किया है।
मुंबई में रोजाना होता है
१,८०० लीटर का इस्तेमाल
मनपा कीटनाशक विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि करीब ४,५०० लीटर केमिकल आयात किया गया है, जो करीब तीन से चार महीने तक चलेगा। मुंबई में रोजाना १,८०० लीटर का इस्तेमाल किया जाता है। फिलहाल, बारिश की वजह से फॉगिंग का काम कम किया जाता है। इस केमिकल का ट्रायल बीते सप्ताह किया गया था, जो मच्छरों को मारने के लिए काफी कारगर साबित रहा।
मलेरिया-डेंगू का थमेगा प्रसार
मनपा कीटनाशक विभाग के प्रमुख चेतन चौबल ने जापान से केमिकल लाए जाने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि इस केमिकल के जरिए मलेरिया-डेंगू बीमारी का प्रसार रोका जा सकेगा। उन्होंने बताया कि मच्छर व्यक्ति का खून चूसने के बाद उसी कमरे में एक जगह पर रुक जाता है, क्योंकि खून चूसने की वजह से मच्छरों का शरीर भारी हो जाता है। ऐसे में बंद कमरे में फॉगिंग से यह मच्छर मर जाते हैं, जिससे न ही यह दूसरे व्यक्ति को डंक मार सकेंगे और न ही प्रजनन कर सकेंगे।

भायंदर रेलवे स्टेशन पर शौचालय नहीं … नागरिकों को हो रही है भारी परेशानी

सामना संवाददाता / भायंदर
भायंदर-पूर्व रेलवे स्टेशन पर शौचालय न होने से यात्रियों और स्थानीय निवासियों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यहां प्रतिदिन हजारों यात्री आते-जाते हैं, लेकिन शौचालय की सुविधाओं के अभाव के कारण यात्रियों विशेषकर महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
शिकायत कर रहे हैं लोग?
नियमित यात्री विजय गिरी बताते हैं कि प्रत्येक दिन मुझे काम पर जाने के लिए भायंदर-पूर्व रेलवे स्टेशन से यात्रा करनी पड़ती है। शौचालय की सुविधा न होने के कारण कई बार बहुत परेशानी होती है। हमें इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान चाहिए। वहीं एक महिला यात्री ने बताया कि महिलाओं के लिए यह स्थिति और भी दयनीय है। यहां शौचालय न होने के कारण हमें अन्यत्र जगहों की तलाश करनी पड़ती है, जो कि बहुत असुविधाजनक और असुरक्षित है। स्टेशन के पास एक दुकान चलाने वाले दुकानदार ने बताया कि दिनभर की व्यस्तता के बीच शौचालय न होने से हमें यहां-वहां जाना पड़ता है। यात्री भी अक्सर हमसे शौचालय के बारे में पूछते हैं, लेकिन हमें उन्हें निराश करना पड़ता है। प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
प्रशासन की लापरवाही 
इस समस्या को लेकर पूर्व नगरसेवक रोहिदास पाटील ने रेलवे प्रशासन को ज्ञापन भी सौंपा है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। मनपा और रेलवे प्रशासन के बीच तालमेल की कमी के कारण यह समस्या अभी तक अनसुलझी है। वे कहते हैं कि पहले टिकट घर के पास शौचालय था, लेकिन उसे तोड़कर उसकी जगह रेलवे की इमारत का कार्य शुरू हो गया और शौचालय की कोई पर्यायी व्यवस्था भी नहीं की गई है, जिससे डायबिटीज के मरीजों, बीपी के पेशेंट, यात्रियों को भारी असुविधा होती है, प्रशासन को प्लेटफॉर्म के पास खाली जगह पर अस्थायी व्यवस्था करनी चाहिए। प्रशासन की लापरवाही का नतीजा नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है।

ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां … जरा हटके जरा बचके ये है मुंबई मेरी जान! …मायानगरी है देश का सबसे महंगा शहर

इस्लामाबाद दुनिया का सबसे सस्ता शहर
मर्सर की ‘कॉस्ट ऑफ लिविंग सिटी रैंकिंग’ की रिपोर्ट

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई भारत का सबसे महंगा, इस्लामाबाद दुनिया का सबसे सस्ता शहर, जानें अन्य शहरों का हाल। मर्सर की कॉस्ट ऑफ लिविंग सिटी रैंकिंग के अनुसार, २०२४ में प्रवासियों के लिए दुनिया के सबसे महंगे शहर हांगकांग, सिंगापुर और ज्यूरिख हैं। इन शहरों ने पिछले साल की तुलना में अपना स्थान बरकरार रखा है जबकि इस्लामाबाद, लागोस और अबुजा लिविंग कॉस्ट के मामले में सबसे निचले स्थान पर हैं।
भारत में मुंबई सर्वोच्च स्थान पर है जबकि विश्व स्तर पर पिछले वर्ष से ११ स्थान ऊपर १३६ वें स्थान पर है। यह मुंबई को प्रवासियों के लिए भारत का सबसे महंगा शहर बनाता है जबकि दिल्ली दुनिया में १६५ वें स्थान पर है।

महंगे शहरों की सूची में शामिल अन्य भारतीय शहरों की स्थिति
चेन्नई पांच अंक और बेंगलुरु छह अंक फिसलकर क्रमश: १८९ और १९५ पर पहुंच गया। हैदराबाद २०२ पर है। प्रवासियों के लिए दुनिया के सबसे महंगे शहरों की सूची में पुणे २०५वें और कोलकाता २०७ वें स्थान पर है। मर्सर की कॉस्ट ऑफ लिविंग सिटी रैंकिंग २०२४ सूची ने वैश्विक गतिशीलता पर जानकारी प्रदान करने के लिए दुनिया के २२६ शहरों का विश्लेषण किया। सूची में आवास, परिवहन, भोजन, कपड़े और मनोरंजन जैसी २०० से अधिक वस्तुओं की लागत का आकलन किया गया।
सर्वेक्षण के लिए मेन शहर न्यूयॉर्क शहर था और सर्वेक्षण के अनुसार कई कारकों ने जीवनयापन की लागत में वृद्धि में योगदान दिया जैसे मुद्रास्फीति, विनिमय दर भिन्नता, आर्थिक और साथ ही भू-राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ते संघर्ष। सर्वेक्षण से पता चला कि हांगकांग जैसे शहरों में, रहने की उच्च लागत महंगे आवास, उच्च परिवहन लागत और महंगी वस्तुओं और सेवाओं के कारण है। इसमें कहा गया है कि मुद्रा अवमूल्यन के परिणामस्वरूप इस्लामाबाद, लागोस और अबुजा में रहने की लागत कम हो गई है।