मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ
मैनपुरी के किशनी के जटपुरा चौराहे पर स्थित रामजानकी आश्रम के 80 वर्षीय महंत सुरेंद्र दास की मृत्यु के बाद उनकी आश्रम के भीतर अंत्येष्टि को लेकर शनिवार सुबह बवाल हो गया। पुलिस-प्रशासन ने तत्काल हस्तक्षेप कर शव का अंतिम संस्कार आश्रम के बाहर कराया और अगले आदेश तक मंदिर को सील कर दिया। मंदिर में लोगों के प्रवेश और पूजा-पाठ पर भी रोक लगा दी गई है। आश्रम के भीतर अंत्येष्टि नहीं करने दे रहे महंत रघुनंदन दास के अनुयायियों ने सुरेंद्र दास का शव शनिवार सुबह उठाने की कोशिश की, जिससे दोनों पक्षों में भीषण भिड़ंत हो गई। इस दौरान जमकर हाथापाई और पथराव हुआ, जिसमें तीन लोग घायल हो गए। पुलिस ने लाठीचार्ज कर भीड़ को तितर-बितर किया और दोनों पक्षों से 10 लोगों को हिरासत में लिया। एसपी सिटी आईपीएस अरुण कुमार की मौजूदगी में रघुनंदन दास को उनके अनुयायियों सहित आश्रम से बाहर निकाला गया। दोपहर में पुलिस ने आश्रम के गेट पर ताला लगा दिया और चाबी ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष, तहसीलदार किशनी को सौंप दी। इस झड़प में रघुनंदन पक्ष के रणवीर और सुभाष घायल हुए, जबकि दूसरे पक्ष से जितेंद्र उर्फ मुखिया घायल हुए। इन्हें उपचार के लिए भेजा गया है। पुलिस ने रघुनंदन पक्ष से प्रवेश यादव और दूसरे पक्ष से कुंतेश कुमार, जितेंद्र सिंह, विजय प्रकाश, रामचंद्र, आनंद, राधा मोहन, अंकुर, रामनरेश, आसाराम को हिरासत में लिया है।
विवादित भूमि और आनन-फानन में अंतिम संस्कार
रामजानकी मंदिर के अध्यक्ष तहसीलदार घासीराम ने विवादित जमीन का हवाला देते हुए आश्रम के अंदर अंतिम संस्कार से मना कर दिया। अंत में तय हुआ कि अंत्येष्टि आश्रम के बराबर वाली जमीन पर की जाएगी। सुबह 11 बजे एसडीएम गोपाल शर्मा, सीओ भोगांव सत्यप्रकाश शर्मा और तहसीलदार घासीराम व भारी पुलिस बल की मौजूदगी में तय स्थल पर अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। मुखाग्नि ग्राम प्रधान विजय प्रकाश ने दी। महंत सुरेंद्र दास का निधन बृहस्पतिवार रात को हो गया था। शुक्रवार को उनके अनुयायी शव को आश्रम के भीतर अंत्येष्टि के लिए ले जाने लगे, लेकिन रघुनंदन दास के पक्ष ने आश्रम में ताला लगा दिया और अंदर मौजूद लोगों ने शव को भीतर लाने से मना कर दिया। इस घटना से तनाव पैदा हो गया। पुलिस-प्रशासन ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। पोस्टमार्टम के बाद लौटे अनुयायी आश्रम के बाहर ही धरने पर बैठ गए और आश्रम के भीतर ही अंत्येष्टि की मांग पर अड़े रहे, जिससे शुक्रवार को शव का अंतिम संस्कार नहीं हो सका था। महंत के शिष्यों ने आरोप लगाया है कि आश्रम और उससे लगी 18 बीघा भूमि पर कब्जे की साजिश के चलते ही महंत ने प्राण त्यागे हैं। उन्होंने एक हिस्ट्रीशीटर के आश्रम में मौजूद होने का भी आरोप लगाया, जिसके खिलाफ शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।
क्षेत्र में यह भी चर्चा है कि कुछ भाजपा नेताओं की शुरुआत से ही इस मामले में रुचि रही और वे एक पक्ष को बढ़ावा देते रहे, जिसके चलते विवाद बढ़ता चला गया। बताया जा रहा है कि महंत सुरेंद्र दास की मौत के बाद भी जब उनके अनुयायी शव की आश्रम के भीतर अंत्येष्टि की मांग पर अड़े थे, तो कुछ भाजपा नेताओं ने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर फोन कर दबाव भी बनाया। यह भी कहा जा रहा है कि इस बेशकीमती जमीन पर कुछ भूमाफिया, भाजपा नेता की सरपरस्ती में व्यावसायिक उपयोग के लिए दुकानें बनवाना चाहते हैं।दिवंगत महंत सुरेंद्र दास के अनुयायियों के अनुसार, महंत ने वर्ष 1960 में तपस्वी जीवन अपनाकर इस जर्जर प्राचीन आश्रम में प्रवेश किया था और तभी से इसका संरक्षण व नवनिर्माण कराया था। अनुयायियों का कहना है कि आश्रम की करीब 18 बीघा भूमि पर लगातार कुछ अराजक तत्वों द्वारा कब्जे की कोशिश की जा रही है। सीओ भोगांव सत्यप्रकाश शर्मा ने बताया कि बवाल करने वालों को चिह्नित किया जा रहा है और उनके खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा। फिलहाल, मौके पर शांति व्यवस्था कायम है और पुलिस बल की तैनाती कर दी गई है।