मुख्यपृष्ठस्तंभशांताराम चॉल ने जगाई क्रांति की अलख

शांताराम चॉल ने जगाई क्रांति की अलख

विमल मिश्र
मुंबई

मुंबई का गिरगांव प्रार्थना समाज और होम रूल सहित कई सामाजिक व राजनीतिक सुधार आंदोलनों के साथ स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र रहा है। महाराष्ट्रीय आबादी वाले इस घने इलाके में आए दिन लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, सरदार पटेल, लाला लाजपत राय, एनी बेसेंट और मोहम्मद अली जिन्ना, सरोजिनी नायडू सरीखे दिग्गजों की राजनीतिक रैलियां होती रहती थीं। वासुदेव बलवंत फडके, चापेकर बंधुओं सरीखे बलिदानी और वीर नरीमन, सेनापति बापट, बेंजामिन हार्निमन, कृष्णशास्त्री भाटवडेकर और केशवसुत सरीखे स्वतंत्रता सेनानी इसके मंचों से देश की आजादी की अलख जगाते रहे। इनमें कई यहां की शांताराम चॉल के वासी थे। आस-पास की केशवजी नाईक, जगन्नाथ और गोरेगांवकर चॉलों के साथ शांताराम चॉल क्रांतिकारियों का अभयारण्य रही। केशवजी नाईक चॉल में तो लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक गणपति की परंपरा शुरू की और उसे देश-विदेश में फैला दिया। कुछ क्षेत्रों में मानना है कि मुंबई में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत १९०१ में शांताराम चॉल से ही हुई। इसे मुंबई की सबसे पुरानी चॉल भी बताया जाता है।
शांताराम चॉल का विशाल परिसर १९०६ से ही स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों की रैलियों के लिए मशहूर रहा। तिलक महाराज का तो यह एक तरीके से घर ही रहा। एनी बेसेंट की अखिल भारतीय होम रूल लीग की बैठकों में यहां १०,०००-१२,००० की मजबूत भीड़ उमड़ा करती थी। यहीं एक रैली में मोहम्मद अली जिन्ना ने बंबई (मुंबई) के गवर्नर लॉर्ड विलिंगडन के लिए एक सार्वजनिक स्मारक बनाने के प्रस्ताव की आलोचना की थी। ११ फरवरी, १९१७ को महात्मा गांधी ने यहीं सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी के तत्वावधान में आयोजित एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया, जिसमें अस्पृश्यों को दारुण स्थिति से उबारने पर चर्चा हुई। १६ जून, १९१८ को फिर गांधीजी ने यहां १२,००० से अधिक श्रोताओं के बीच ‘होम रूल’ आंदोलन के समर्थन में एक विशाल सभा की। यह दिन तभी से देश की स्वतंत्रता के इतिहास में ‘होम रूल डे’ के नाम से जाना जाने लगा।
राजनीतिक सभाओं के लिए प्रसिद्ध
अनुमान है देश के पराधीनता काल में शांताराम चॉल में ४० से अधिक महत्वपूर्ण राजनीतिक सभाएं हुई होंगी। उन दिनों मुंबई की यह एकमात्र जगह थी, जहां सार्वजनिक सभाएं करने की खुलकर अनुमति थी। ये सभाएं बक्सेनुमा इस चॉल के बीच की खाली जगह पर होती थीं, जो तब खूब बड़े से मैदान के रूप में थी। जब यहां होनेवाली तकरीरों से अंग्रेजों को पानी सिर के ऊपर से गुजरता लगा तो उन्होंने यहां के लोगों को चॉल के बीच में एक और बिल्डिंग बनाने को प्रोत्साहित किया। नतीजा यह हुआ‌ कि यहां सभाओं का होना बंद हो गया। बीच वाली यह इमारत आज ‘मालिनी चॉल’ कहलाती है।
शांताराम चॉल आज जहां है, संभवत: वह भूखंड पहले कृषि और बागवानी की भूमि था, जहां उड़द और मूंग जैसी दालों की खेती होती थी। आज भी आस-पास के कई इलाकों के नाम आपको पेड़ों और फलों के नाम पर मिलेंगे, जैसे ‘केलेवाड़ी’ और ‘पिंपलवाड़ी’। सवा सौ वर्ष पहले एक केंद्रीय प्रांगण के आस-पास बनाई गई शांताराम चॉल बक्से की तरह बने एक एकड़ के भूखंड पर निर्मित एक केंद्रीय प्रांगण के इर्द-गिर्द १० इमारतों में फैले सिंगल और डबल कमरों और लकड़ी की सीढ़ियों वाले दो और तीन मंजिला ब्लॉक को कहते हैं। यह मिल्कियत कभी भालचंद्र सुकथणकर नामक वकील की थी, जिसे उन्होंने अपने बेटे शांताराम का नाम दे दिया था, जो खुद भी एक जाने-माने वकील थे। शांताराम ने इसके कुछ हिस्से अपने किरायेदार वासुदेव विश्वनाथ बेडेकर को बेच दिए थे। चॉल के साथ वासुदेव बेडेकर का जुड़ाव १९१० से था, जब रत्नागिरी जिले के गोवल गांव के रहनेवाले उनके जमींदार पिता विश्वनाथ परशुराम बेडेकर ने परिसर में एक किराने की दुकान खोली थी। वासुदेव ‘बेडेकर’ १९१७ में नाम से प्रसिद्ध मसाले और अचार ब्रैंड के संस्थापक बने। यह वासुदेव ही थे, जिन्होंने अपने विस्तारित परिवार के लिए अतिरिक्त मंजिलें बनवार्इं। बेडेकर परिवार की यह चौथी पीढ़ी है। उसके २० सदस्य आज भी.पी. बेडेकर एंड संस प्रा.लि. के स्वामित्व वाले ‘बेडेकर सदन’ की पांच इमारतों में परिवर्तित फ्लैटों में रहते हैं, जिसका कार्यालय भी यहीं है। बेडेकर कुनबा अब कमोबेश विदेशों में ही बस गया है। उसके कब्जे की बिल्डिंग्स ‘बेडेकर सदन’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। १९३९ में बीच में निर्मित अपार्टमेंट ब्लॉक मालिनी ब्लॉक्स कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी कहलाता है। यह पूरा परिसर अभी भी कुल मिलाकर ‘शांताराम चॉल’ ही कहलाता है।
चॉल के कमरों का किराया इतना कम है कि एक बार तो विश्वास ही न हो। किसी-किसी का तो १०० रुपए से भी कम। बीते वर्षों में यहां के स्वरूप में काफी परिवर्तन आया है। यहां रहनेवाले कई सारे परिवारों के बच्चे पढ़-लिखकर आज अच्छी तनख्वाह वाले पदों पर हैं। उनके पास सुख-सुविधा के सारे सामानों के साथ अपनी कारें भी हैं। शांताराम चॉल अपनी १२५ वीं वर्षगांठ के पायदानपर है। बेडेकर परिवार की ही अनघा बेडेकर और फोटोग्राफर अमेय जोशी ने इस पर एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म ‘शांताराम चॉलची स्मरणगाथा’ नाम से बनाई है, बीती शिव जयंती के दिन जिसका विमोचन किया गया।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

अन्य समाचार

भजन