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राजधानी लाइव 

डॉ. रमेश ठाकुर नई दिल्ली

बात कोई दो साल पहले की है। शायद सभी को याद भी होगी। बात पिछली दिवाली से पिछली दिवाली की है, जब स्वदेशी का नारा पूरे देश में बहुत तेजी से अचानक गूंजा था। सरकारी स्तर पर प्रचार-प्रसार इतना जबरदस्त हुआ था कि मानो इसके बाद पूरा हिंदुस्थान विदेशी वस्तुओं से तौबा ही कर लेगा और अब स्वनिर्मित सामान ही खरीदना लोग शुरू कर देंगे। दरअसल, ऐसे टास्क जब भी केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए तो देश के लोगों ने उसे हाथों-हाथ लिया। कभी पीछे नहीं हटे। जैसा प्रधानमंत्री ने कहा, देश के लोगों ने आंख बंद करके भरोसा किया। चाहे ताली बजाना हो, दीए जलवाना हो, तिरंगा बांटना या घरों में लगाना हो, सभी मौकों पर देशवासियों ने उनकी अपील के मुताबिक साथ दिया। नतीजा क्या निकला, क्या हासिल हुआ, इसका गुणा-भाग किसी ने नहीं लगाया। किसी ने लगाया भी या किसी ने कोई टिप्पणी करने की हिम्मत भी की तो उसे देशद्रोही घोषित कर दिया गया। कोरोना काल में जब तालियां बजाने के लिए प्रधानमंत्री ने कहा तो सबसे ज्यादा अधिकारियों ने बजाई। ताली क्या उन्होंने अपनी छाती भी खूब पीटी। हालांकि, उसके बाद ये टास्क हास्यास्पद साबित हुआ।
जहां तक बात स्वदेशी अभियान की है, तो इस अभियान और नारे की पटकथा गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद लिखी गई थी। झड़प में हमारे करीब दो दर्जन सैनिक बलिदान हुए थे। घटना से पूरा देश आक्रोशित हुआ और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का ट्रेंड चला। अभियान चलाने से पहले सरकार ने देशवासियों को विश्वास में लिया। केंद्र ने तब ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए तमाम चीनी कंपनियों से करार तोड दिए और उनके प्रतिष्ठानों पर ताले जड़े। चारों तरफ चीनियों का बहिष्कार शुरू हो गया। इसके अलावा दोनों तरफ से होने वाले आयात-निर्यात के रोजमर्रा वाले सामानों पर भी रोक लग गई। केंद्र सरकार के उस निर्णय का देशवासियों ने खुलकर स्वागत किया। सरकार ने इस अभियान में अपनी समूची भगवाधारी सेना को लगाने के साथ-साथ आरएसएस कार्यकर्ताओं, बजरंग दल व विश्व हिंदू परिषद ने भी संयुक्त रूप से स्वदेशी के नारे को पूरे देश में बुलंद कर दिया। लोगों से अपील की कि चीनी सामान न खरीदें, स्वदेशी वस्तुओं को ही अपनाएं।
स्वदेशी नारे की गूंज अब कहीं सुनाई नहीं देती। पूरी तरह से शांत पड़ गया है। बाजारों में फिर से चीनी सामान लौट आए हैं। दुकानदार धड़ल्ले से चीनी खिलौने, पटाखे, लड़ियां आदि सामान बेचे जाने लगे हैं। इस दिवाली पर तकरीबन भारतीय बाजार चीनी सामानों से गुलजार दिखे, जबकि ये अभियान जब चलाया गया था, तब भगवाधारी लोग दुकानदारों को चीनी सामान नहीं बेचने की हिदायत देते थे। डराते और धमकाते भी थे, पर अब स्थिति फिर से सामान्य हो गई है। स्वदेशी अभियान के विफल होने पर सवाल उठता है कि क्या केंद्र सरकार की चाइना से अंदरखाने कोई सांठगांठ हो गई है? या हमारी सरकार ने उनके आगे घुटने टेक दिए हैं। या फिर मुनाफे में कमी होने के चलते अपने पैâसले से पीछे हटना पड़ा है? ऐसा हो भी सकता है कि केंद्र सरकार चीनी वस्तुओं से टैक्स के रूप में मोटा धन जो अर्जित करती है। घाटे के बाद सरकार को बात समझ में आई होगी कि स्वदेशी अभियान चलाकर उन्होंने बड़ा नुकसान कर लिया। भविष्य में ऐसा नुकसान न हो? इसलिए इस दिवाली पर सरकार ने चीनी वस्तुओं पर ज्यादा रोक-टोक नहीं लगाई?
खैर, ‘थूककर चाटना’ इसे ही कहते हैं? मौजूदा मोदी सरकार की एक खासियत है, वह अपना नुकसान बर्दाश्त नहीं करती? मुनाफे के सामने प्रत्येक मौलिक मूल्यों से समझौता करने से भी नहीं चूकती। अपने पैâसले से पलटने के बाद और बाजारों में चीनी सामान देखकर अभियान चलाने वाले संघी, बजरंग दल व बीएचपी के कार्यकर्ता भी खासे परेशान और भौंचक्के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे भारत-चीन के मध्य आई खटास अब कम हो गई है, जबकि धरातल पर ये सच्चाई कोसों दूर है। चीन, भारत को चौतरफा घेरने की रणनीति में है। चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा? वह लगातार हमारी सीमाओं में घुसकर खुराफात कर रहा है। सूत्र बताते हैं कि चीन हमारे अरुणाचल प्रदेश राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों को तेजी से कब्जाता जा रहा है। एकाध नहीं, बल्कि गांव के गांव बसा दिए हैं। पहले से रखे हमारे गांवों के नामों को मिटाकर अपने नए नाम रखने का दुस्साहस भी खुलेआम बीते कई समय से कर रहा है। ये सब देखकर भी सरकार चुप है। बात पल्ले नहीं पड़ती कि आखिर क्यों अपनी आंखें मूंदे हुए है केंद्र सरकार किस घड़ी के इंतजार में है, जबकि अरुणाचल प्रदेश की स्थानीय पुलिस और खुफिया एजेंसियां लगातार केंद्र सरकार को चेता रही हैं। बावजूद इसके प्रधानमंत्री चुप्पी साधे हुए हैं। इस मसले को कांग्रेस नेता राहुल गांधी संसद में भी उठाते हैं, लेकिन उनके प्रश्न का सरकार जवाब देना तक उचित नहीं समझती? चीनी हरकतों को सहना और मुनाफे के आगे ‘स्वदेशी अभियान’ की बलि चढ़ा देना कितना जायज है? इसका हिसाब आने वाला वक्त जरूर लेगा?
(लेखक राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, भारत सरकार के सदस्य, राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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