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संपादकीय : सूरत की जबरदस्ती

भारत का चुनाव आयोग और देश का प्रशासनिक तंत्र मोदी सरकार का गुलाम बन गया है। गुजरात की ‘सूरत’ लोकसभा सीट पर जिस तरह से भाजपा ने निर्विरोध जीत हासिल की, वह एक तरह से लोकतंत्र पर डकैती और जबरदस्ती है। इस तरह भाजपा ने जीत का खाता खोला। सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार का आवेदन पहले रद्द किया और आठ अन्य उम्मीदवारों को अपना आवेदन वापस लेने के लिए मजबूर किया। इसलिए मैदान में बचे एकमात्र उम्मीदवार के रूप में भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल को विजेता घोषित किया गया। ये सब संदेहास्पद और धक्कादायक है। भाजपा की इस जीत में तानाशाही के असली दर्शन हुए। अपने जन प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार छीनने का मतलब डॉ.आंबेडकर के संविधान को नष्ट करने की दिशा में उठाया गया कदम है, ऐसी कड़ी आलोचना राहुल गांधी ने की है। सूरत का यह तरीका लोकतंत्र को बदसूरत करने वाला है। पिछले बीस वर्षों से गुजरात में लोकतंत्र के नाम पर भीड़तंत्र ही जारी है। कानून, न्याय, ईमान आदि का यहां कोई स्थान नहीं है। चुनाव यहां एक तमाशा बन गया है। इसलिए ‘सूरत’ मामले में जो हुआ वह एक तरह से चंडीगढ़ मेयर चुनाव की ही पुनरावृत्ति है। चंडीगढ़ में भाजपा ने मतपत्र लूट लिए, सूरत में विपक्षी उम्मीदवार या तो आउट कर दिए गए या चुनावी मैदान से गायब कर दिए गए। चंडीगढ़ में मेयर चुनाव में भाजपा ने अपने खिलाफ आए मतपत्रों को ही खारिज कर दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनाए गए सख्त रुख के चलते भाजपा का मुखौटा गिर गया। सूरत में सत्ता की दहशत पैदा कर सभी विपक्षी उम्मीदवारों को चुनाव से बाहर कर दिया गया। गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सी. आर. पाटील ने कहा कि सूरत ने प्रधानमंत्री मोदी को पहला ‘कमल’ उपहार में दिया है। मोदी का ये कमल हाथ में लेना लोकतंत्र का अपमान है। हम आज ही घोषणा कर रहे हैं कि सूरत का पहला कमल भाजपा की ३९९ कमल की हार का कारण बनेगा। देश को आज भयानक दौर से गुजरना पड़ रहा है। लोकतंत्र की हालत क्या है ‘सूरत’ डवैâती कांड ने बता दिया है। भाजपा को संविधान बदलना है और इसके लिए जरूरी सांसदों की संख्या ‘सूरत’ तरीके से हासिल की जा रही है। शिवसेना के विधायकों और सांसदों को तोड़कर पहले सूरत ले जाया गया। वहां खोखों का लेन-देन पूरा होने के बाद ये सभी खोखेबाज गुवाहाटी पहुंचे। इसलिए सूरत भारतीय लोकतंत्र का कत्लखाना बन गया है और सूरत गुजरात में है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। भारतीय लोकतंत्र को जानवरों का बाजार बनाकर उन जानवरों का बाजार सूरत में लगाने में मोदी-शाह ने पहल की है। सूरत का मामला साधारण नहीं है और इसकी चर्चा पूरे देश में होनी चाहिए। प्रत्येक नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि देश में क्या हो रहा है। यह लोकतंत्र का पहला पाठ है, लेकिन हमारी सरकार ने लोकतंत्र के सभी बुनियादी मूल्यों पर आघात किया है। सूरत में मैं लोकतांत्रिक तरीके से जीता हूं, ऐसा दावा भाजपा के विजयी उम्मीदवार मुकेश दलाल ने किया है। आतंक के बल पर सभी प्रत्याशियों को ‘खत्म’ कर स्वयं को विजयी घोषित करना यह लोकतंत्र भारतीय संविधान का नहीं बल्कि मोदीकृत भाजपा का है। मोदी ने अब देश के संविधान की हत्या कर दी है और हमारी न्यायपालिका को लगभग कुंद ही कर दिया है। चंडीगढ़ मेयर चुनाव में भाजपा ने जो किया वह साफ झूठ था और अब ‘सूरत’ चुनाव में उन्होंने जो किया, उसे लोकतंत्र पर डकैती कहा जाना चाहिए। मोदी को सत्ता छोड़नी नहीं है और ४ जून को हारते ही वे भीड़तंत्र तरीके से संसद पर कब्जा कर लेंगे, यह साफ दिख रहा है। सूरत लोकसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल की गलत तरीके से प्राप्त जीत ही मोदी का लोकतंत्र है। देश को यह स्वीकार नहीं। कहा गया कि भाजपा ने लोकसभा में खाता खोला। दरअसल, मोदी ने इस तरीके से तानाशाही का ही खाता खोला और इसकी शुरुआत गुजरात से की। मोदी राज में गुजरात सबसे ज्यादा बदनाम हुआ। ऐसा लगता है मानो देश के लोकतंत्र और आजादी की कब्रें गुजरात में बनाई गई हों। पैसे और सत्ता के बल पर हम हर तरह से मनमानी कर सकते हैं गुजरात का ‘अहंकार’ यह देश स्वीकार नहीं करेगा। मोदी और शाह की वजह से यह अहंकार बढ़ गया है तो मोदी-शाह की पराजय अब निश्चित है, इस व्यापारी मंडल को यह नहीं भूलना चाहिए। देश को याद भी नहीं होगा कि मोदी नाम का एक आदमी देश के प्रधानमंत्री पद पर आया और चला गया, ‘सूरत’ मामले के बाद इस पर मुहर लग गई!

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