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संपादकीय : करकरे की वीरमृत्यु!

चुनाव के दौरान इस बात का कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि कब किस विषय को तूल दिया जाएगा और गड़े हुए मुर्दे उखाड़े जाएंगे। मुंबई पर ‘२६/११’ का हमला आतंकियों का हमला था और इसके पीछे पाकिस्तान की साजिश थी। पाकिस्तान द्वारा समुद्री रास्ते भेजे गए कसाब और उसके गिरोह ने ताज महल होटल, कामा अस्पताल, छाबड़ हाउस, छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस जैसे सार्वजनिक स्थानों पर हमला किया। लहू बहाया। मुंबई समेत पूरा देश इस हमले को प्रत्यक्ष देख रहा था। यह हमला तब हुआ जब मुंबई पुलिस दल सतर्क नहीं था। भगदड़ मच गई। कसाब गिरोह के हमले में तत्कालीन एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, अशोक कामटे, विजय सालस्कर समेत बीसेक पुलिस जवानों को शहीद होना पड़ा था। ये सभी अधिकारी आतंकियों की गोलियों का शिकार हो गए। उनकी शहादत ने देश को झकझोर कर रख दिया था। मरीन लाइन्स पर फौजदार तुकाराम ओंबले ने भाग रहे कसाब को रोका और उस पर हमला किया। उस मुठभेड़ में ओंबले मौके पर ही शहीद हो गए। उस दिन दुनिया ने देखा कि कसाब के हमले में ओंबले शहीद हो गए और दुनिया ने ओंबले की बहादुरी को सलाम किया। आतंकियों से लड़ते हुए कामटे, करकरे, सालस्कर शहीद हो गए जबकि सदानंद दाते सहित अन्य पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। अशोक कामटे के साथ, ‘एनकाउंटर’ फेम विजय सालस्कर की भी कामा अस्पताल की अंधेरी गली में वीरतापूर्वक मृत्यु हो गई। यह सच है कि आतंकियों ने अंधेरे का फायदा उठाकर उन पर गोलियां चलार्इं। ‘२६/११’ हमले में शहीद हुए हर पुलिसकर्मी को पाकिस्तानी आतंकियों की ही गोली लगी थी, लेकिन हेमंत करकरे को आतंकियों की गोली नहीं लगी बल्कि उनकी हत्या हुई, यह थ्योरी क्यों शुरू हुई? ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके पीछे किसका तंत्र है ये समझना चाहिए। २६/११ मामले की पैरवी करने वाले वकील उज्ज्वल निकम भारतीय जनता पार्टी से उत्तर मुंबई निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। अब यह पता चला है कि निकम एक छिपे संघवादी थे और उन्होंने कसाब मामले में कई सच्चाइयों को दबाया और प्रचार में कई झूठे मुद्दे लाए। निकम ने झूठ कहा कि कसाब को हर दिन खाने को बिरयानी मिल रही है और उसे सारी सुविधाएं मिल रही हैं। यह किसलिए? कसाब एक खतरनाक अपराधी था और आर्थर रोड जेल में उसके साथ किसी अन्य आम कैदी की तरह ही व्यवहार किया जाता था। फिर भी निकम झूठ बोलते रहे, लेकिन अहम मसला तो हेमंत करकरे का है। करकरे के मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ही झगड़ा शुरू था। संघ परिवार करकरे की कार्यप्रणाली और हिंदुत्ववादियों के खिलाफ उनकी कार्रवाइयों से खुश नहीं था। हेमंत करकरे आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख के रूप में मालेगांव विस्फोट मामले को देख रहे थे। करकरे ने संघ परिवार से जुड़े लोगों जैसे साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय, स्वामी दयानंद आदि को गिरफ्तार किया। करकरे और उनकी टीम का मानना था कि मालेगांव में बम विस्फोट संघ की साजिश थी और उन्होंने जांच के दौरान ऐसे सबूत सामने लाए। संघ का कहना था कि प्रज्ञा सिंह और कर्नल पुरोहित को हिरासत में प्रताड़ित किया जा रहा है और उनके मुंह से जैसा चाहिए वैसा निकलवाने की कोशिश की जा रही है। मालेगांव साजिश का पर्दाफाश करकरे ने ही किया था और करकरे ने ही यह खुलासा किया था कि वैâसे देश में हिंदू-मुस्लिम दंगे कराने की ‘साजिश’ रची जा रही थी। इसलिए संघ परिवार व करकरे के बीच चिंगारी भड़क उठी। करकरे के खेल के पीछे का असली मास्टरमाइंड कोई और है, इस तरह की बात संघ हलकों में कही जाने लगी थी और उसी समय करकरे ने मालेगांव मामले की जांच और गहराई से शुरू कर दी। संघ परिवार को डर था कि कई अन्य बातें उजागर हो जाएंगी और उसने करकरे के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब यह अभियान पूरे जोरों पर था, मुंबई पर २६/११ का हमला तब हुआ और करकरे उस आतंकवादी हमले में मारे गए। २६/११ के हमले में अन्य सभी पुलिसकर्मी आतंकवादियों का शिकार बने और अकेले करकरे संघ से संबंधित पुलिस की गोलीबारी में मारे गए यह तर्कसंगत नहीं। हेमंत करकरे की वीरतापूर्वक मौत हुई और देश को उनकी शहादत पर गर्व है। विपक्षी नेता विजय वडेट्टीवार ने भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार उज्ज्वल निकम की आलोचना करते हुए करकरे की शहादत का जिक्र किया। चूंकि भारतीय जनता पार्टी के पास फिलहाल कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए उन्होंने इस मुद्दे पर तड़का लगा दिया। ये भाजपा का स्वभाव है। असल में, करकरे की बदनामी मौजूदा भाजपा गुट के ‘स्टार प्रचारक’ हसन मुश्रीफ के घर से शुरू हुई। मुश्रीफ के भाई एस. एम. मुश्रीफ जो उस समय पुलिस महकमे में थे, ने करकरे की मौत के पीछे के रहस्य पर सवाल उठाए। इसलिए, यदि भाजपा नेताओं को कोई संदेह है, तो उन्हें कागल जाकर मुश्रीफ से चर्चा करनी चाहिए। करकरे देश के लिए शहीद हुए और देश को अपने इस वीर सपूत पर गर्व है। शिवसेना की यही भूमिका है। शहादत का कोई भी अपमान न करें।

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