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संपादकीय- किसान अधर में, प्रधानमंत्री सफर में!

पंजाब-हरियाणा के किसान एक बार फिर न्याय मांगने के लिए दिल्ली के तानाशाही शासन से भिड़ रहे हैं। उन्होंने दिल्लीशाह के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है। बेशक उन पर तानाशाही जुल्म किया जा रहा है। दिल्ली तक उनका रास्ता रोकने के लिए दमन के सभी तरीकों का सहारा लिया जा रहा है। आंसू गैस, लाठीचार्ज से दिल नहीं भरा, उन पर रबर की गोलियां भी चलाई जा रही हैं। राजधानी की सीमाओं पर किसानों के खिलाफ ऐसा ही सुल्तानी जुल्म चल रहा है, वहीं महाराष्ट्र के किसानों पर बेमौसम ओले गिरने का ‘आसमानी’ संकट टूट पड़ा है। पिछले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र में किसानों के लिए बेमौसम, ओलावृष्टि और चक्रवाती कहर आम बात हो गए हैं। कभी बेमौसम बारिश तो कभी ओलावृष्टि की मार। उसमें बीच-बीच में चक्रवातों का कहर भी टूटता रहता है। इसलिए खेतों की फसल हाथ में आएगी ऐसा कोई भरोसा किसानों को नहीं रहा है। न प्रकृति पर भरोसा, न सरकार के आश्वासनों पर। राज्य के मराठवाड़ा, विदर्भ और नगर जिले बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से प्रभावित हुए हैं। लगातार दूसरे दिन टूटे इस संकट ने किसानों के हाथ आई रबी की फसल छीन ली है। सबसे ज्यादा नुकसान विदर्भ में खेती का हुआ है। नागपुर, भंडारा, वर्धा, चंद्रपुर, गोंदिया, यवतमाल और अमरावती जिलों में लगातार दूसरे दिन ओलावृष्टि हुई। बारिश और ओलावृष्टि के चलते सोयाबीन, चना, गेहूं, अरहर, कपास, ज्वार, सब्जियां और बगीचे लगभग खत्म हो गए हैं। कई ओला प्रभावित गांव पहले से ही वर्षों से सूखे की आंच झेल रहे हैं। इन सभी परिस्थितियों का जैसे-तैसे सामना करते हुए किसानों ने इस साल भी खेत में फसल उगाई और अब हाथ आई फसल ओलावृष्टि ने खत्म कर दी। मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि इस खराब मौसम का खतरा अभी दो दिन और है। इस साल शुरुआत में बारिश देरी से हुई, फिर कम हुई। इसके चलते कई जगहों पर खरीफ फसल बर्बाद हो गई। बाद में, कुछ जिलों में भारी बारिश से खरीफ की फसल बह गई। अब खराब मौसम और ओलावृष्टि ने रबी की फसल बर्बाद कर दी। किसानों के नसीब में कटने लायक गेहूं, चना, ज्वार को अपनी आंखों के सामने बर्बाद होता देखना था। कई स्थानों पर चने को नए सिरे से लगाया गया। वह फसल कटने लायक हो गई थी। लेकिन खराब मौसम और ओलावृष्टि ने उसे भी बर्बाद कर दिया। राज्य के सत्ताधारी हमेशा की तरह आंसुओं की बरसात करेंगे और सरकारी मदद के बड़े-बड़े आंकड़ों की घोषणा करेंगे। लेकिन किसानों को अभी तक खरीफ फसल बीमा का पैसा ही नहीं मिला है। इसलिए अब हुए नुकसान का मुआवजा कब मिलेगा, इसका भरोसा कहां है? फिर केंद्र और राज्य के सत्ताधारी केवल विपक्षी दलों और नेताओं को तोड़ने में मगन हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य साम, दाम, दंड, भेद से आगामी लोकसभा चुनाव जीतना और उसके लिए विपक्षी दलों में फूट डालना है। उन्हें न तो खरीफ के नुकसान मुआवजे का पता है जो किसानों को नहीं मिला और न ही रबी फसल का जो अब ओलावृष्टि से बर्बाद हो गई है। कृषि उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की अपनी पुरानी मांग को लेकर दिल्ली की सीमा पर डटे किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ नई लड़ाई शुरू कर दी है। वे पुलिस की लाठियों, रबर की गोलियों, आंसू गैस की मार झेल रहे हैं, जबकि महाराष्ट्र के किसान ओलावृष्टि और शासकों की लापरवाही की मार झेल रहे हैं। दिल्ली में सुल्तानी और महाराष्ट्र में आसमानी चक्रव्यूह में किसान फंस गए हैं। इस चक्रव्यूह में उन्हें इसी तरह छोड़कर प्रधानमंत्री आबू धाबी के ‘अहलान मोदी’ के आत्मानंद में मगन हैं। ‘किसान अधर में, प्रधानमंत्री सफर में’ जैसा यह संकट है। इससे किसानों को मुक्ति वैâसे मिलेगी, यह असली सवाल है।

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