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ईवीएम अध्याय बंद, लेकिन शीर्ष अदालत के २ ‘सुप्रीम’ निर्देश …उम्मीदवारों की मांग पर जांच करेगी विशेषज्ञों की टीम!

सामना संवाददाता / मुंबई
शुक्रवार को देश की शीर्ष अदालत ने पिछले कई वर्षों से चले आ रहे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) विवाद का अध्याय बंद कर दिया, लेकिन इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण फैसला भी सुनाया है। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की बेंच ने ईवीएम से संबंधित सभी तकनीकी पहलुओं और प्रोटोकॉल पर विस्तार से चर्चा की। इस दौरान न्यायूमर्ति द्वय ने कहा कि किसी भी प्रणाली पर आंख मूंदकर अविश्वास करने से अनुचित संदेह पैदा हो सकता है।
शीर्ष अदालत ने वीवीपैट, ईवीएम को लेकर दो महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए। पहला यह कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में चिह्न लोड करनेवाली स्टोर युनिट्स को ४५ दिनों के लिए स्ट्रॉन्ग रूम में सुरक्षित रखा जाए, जिससे कोई भी व्यक्ति परिणाम की घोषणा के ४५ दिनों के अंदर निर्वाचन आयोग को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सके। उल्लेखनीय है कि ईवीएम और पर्चियां ४५ दिनों के लिए सुरक्षित रखी जाती हैं, ताकि अदालत द्वारा रिकॉर्ड मांगे जाने पर उसे उपलब्ध कराया जा सके। विशेष रूप से अदालत ने कहा कि ईवीएम में चुनाव चिह्न लोड करने की प्रक्रिया एक जून को या उसके बाद पूरी होने पर एसएलयू को सील और सुरक्षित किया जाना चाहिए एवं सील पर उम्मीदवारों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एसएलयू वाले सीलबंद कंटेनरों को नतीजों की घोषणा के बाद कम से कम ४५ दिनों तक ईवीएम के साथ स्टोर रूम में रखा जाए। इसके अलावा अपने दूसरे निर्देश में अदालत ने कहा कि यदि उम्मीदवार अनुरोध करते हैं तो परिणाम घोषित होने के बाद ईवीएम माइक्रो कंट्रोलर ईवीएम में जली हुई मेमरी को इंजीनियरों की एक टीम द्वारा जांचा जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि यह अनुरोध दूसरे और तीसरे स्थान पर रहनेवाले उम्मीदवारों द्वारा परिणाम घोषित होने के ७ दिनों के भीतर किया जाना चाहिए, साथ ही अदालत ने कहा कि सत्यापन का खर्च उम्मीदवार को वहन करना होगा। हालांकि, अगर ईवीएम के साथ छेड़छाड़ पाई गई तो पैसे वापस कर दिए जाएंगे। अदालत ने चुनाव आयोग को वीवीपैट पर्चियों की गिनती के लिए एक मशीन का उपयोग करने की संभावना तलाशने का भी सुझाव दिया।
वीवीपैट विवाद कब हुआ शुरू
२०१९ के लोकसभा चुनाव से पहले वीवीपैट विवादों में आया था। तब २१ विपक्षी दलों के नेताओं ने सभी ईवीएम में कम से कम ५० प्रतिशत वीवीपैट मशीनों की पर्चियों से वोटों का मिलान करने की मांग की थी। चुनाव आयोग पहले हर निर्वाचन क्षेत्र में सिर्फ एक ईवीएम का वीवीपैट मशीन से मिलान करता था। इसके बाद कई टेक्नोक्रैटस ने वीवीपैट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे।
कितनी दाखिल की गई थीं याचिकाएं
सुप्रीम कोर्ट में कुछ टेक्नोक्रैटस ने सभी ईवीएम के वीवीपैट से वेरीफाई करने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर की थीं। इसके अलावा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म ने भी जुलाई २०२३ में वोटों के मिलान की याचिका दायर की थी। शीर्ष अदालत ने ईवीएम के जरिए डाले गए मतों का वीवीपैट पर्चियों के साथ शत-प्रतिशत मिलान का अनुरोध करनेवाली याचिकाएं खारिज कर दी हैं।

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