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पंचनामा : इलेक्ट्रॉनिक कचरे पर यूएन की चेतावनी! … हिंदुस्थान नहीं जागा तो गंभीर होंगे परिणाम!

देश में खड़ा हो जाएगा ई-वेस्ट का कचरा
नागरिकों ने भी सरकार को चेताया

अभिषेक कुमार पाठक

आज की फास्ट लाइफ में हर आदमी खुद को अपडेट रखते हुए शानदार जिंदगी जीना चाहता है। ऐसे में पूरे वर्ल्ड में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का यूज लगातार बढ़ता जा रहा है। निश्चित ही कम्प्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल जैसी चीजों ने लोगों को काफी राहत भी पहुंचाई है, लेकिन एक सच यह भी है कि इन नई टेक्नोलॉजी के साथ ढेर सारी समस्याएं भी आई हैं, ई-वेस्ट इन्हीं में से एक है। यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) ने इसको लेकर वॉर्निंग दी है। इस वॉर्निंग में कहा गया है कि भारत और चीन जैसी डेवलपिंग कंट्रीज ने ई-वेस्ट को ठीक से रिसाइकल नहीं किया तो इसका पहाड़ खड़ा हो जाएगा, जिसके सेहत से जुड़े भारी दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं।
क्या है वेस्ट मैनेजमेंट?
कचरे का पुन: इस्तेमाल करने का तरीका ही वेस्ट मैनेजमेंट है। इसमें कचरे को नष्ट करने की बजाय इसे रिसाइकिल किया जाता है। हमारे देश में फिलहाल वेस्ट मैनेजमेंट के लिए पर्याप्त तकनीक नहीं है और न ही इसे लेकर जागरूकता है, लेकिन कचरा पैदा करने में अग्रणी देश होने की वजह से यह जरूरी होता जा रहा है कि हम इसके बारे में जानें। कचरा बढ़ने की प्रमुख वजह जनसंख्या वृद्धि और तेज आर्थिक विकास है। देश में पैदा होने वाला लगभग ८० फीसदी कचरा कार्बनिक उत्पादों, गंदगी और धूल का मिश्रण होता है।
भारत में बढ़ रही ई-वेस्टेज की मात्रा
विकासशील देश होने के कारण भारत में ई-वेस्टेज की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। उसी अनुपात में उसे दोबारा प्रयोग में लाए जाने की प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है। ई-वेस्ट के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक कचरा जैसे कम्प्यूटर, टीवी, डिस्प्ले डिवाइस, सेलुलर फोन, प्रिंटर, पैâक्स मशीन, एलसीडी, सीडी, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट, ऑटोमोबाइल कंपोनेंट, सेंसर, अलार्म, सायरन आदि आते हैं।
हेल्थ पर पड़ेगा असर
यूएनईपी की ऑपरेशन काउंसिल की मीटिंग के दौरान जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले १० साल में भारत, चीन और दूसरे डेवलपिंग कंट्रीज में इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट्स की बिक्री बहुत तेजी से बढ़ेगी। इस तरह इनसे निकलने वाले ई-वेस्ट का लोगों की हेल्थ पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
निर्माण कंपनियां आएं आगे
देशभर में कई सीविक बॉडी इन मुद्दों पर ध्यान देने लगी हैं। वे वेस्ट मैनेजमेंट को गंभीरता से ले रही हैं, लेकिन इससे ज्यादा जरूरी है कि प्राइवेट कन्स्ट्रक्शन और इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों को भी वेस्ट मैनेजमेंट सेक्टर में उतरना चाहिए, जिससे व्यापार के साथ शहर में वेस्ट मैनेजमेंट के प्रति जिम्मेदारी भी निभाई जा सकेगा। हाल ही में विष्णुसूर्या प्रोजेक्ट्स एंड इंफ्रा लिमिटेड ने वेस्ट मैनेजमेंट सेक्टर में कदम रखा है, जिसके लिए इस कंपनी ने हिताची जोसेन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और एजी एनवायरो इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ रणनीतिक समझौता पर हस्ताक्षर किए हैं। ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन (जीसीसी) क्षेत्र में हर दिन बहुत बड़ी मात्रा में ठोस कचरा जमा होता है, जिसमें से केवल २० फीसदी पर ही प्रोसेस किया जाता है। पेरुंगुडी डंपिंग ग्राउंड और कोडुंगैयुर डंपिंग ग्राउंड में ५,२०० मीट्रिक टन से अधिक ई-वेस्ट डंप किया जाता है, जिससे इन साइटों पर दबाव पड़ रहा है और पर्यावरणीय खतरा पैदा होने की संभावना बढ़ गई है। शहर में कचरे के प्रभावी प्रोसेसिंग के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे नहीं हैं और बढ़ती जनसंख्या से मौजूदा अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली पर और दबाव आ रहा है।

स्वच्छ और टिकाऊ भविष्य की उम्मीद
वेस्ट मैनेजमेंट के इस मुद्दे को हल करने के लिए स्थाई समाधान लाना जरूरी है। साझेदारियों के माध्यम से वेस्ट से ऊर्जा पैदा करने की प्रौद्योगिकी में हमारी संयुक्त विशेषज्ञता का लाभ उठाना और शहर के १०० फीसदी कचरे के प्रोसेसिंग के लक्ष्य को पूरा करने में योगदान देना हमारा लक्ष्य है। हमें उम्मीद है कि हम शहर के लिए एक स्वच्छ और अधिक टिकाऊ भविष्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
सनल कुमार, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, विष्णुसूर्या प्रोजेक्ट्स एंड इंफ्रा लिमिटेड

पर्यावरण का है बुरा हाल
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वेस्ट मैनेजमेंट अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अनिवार्य नियमों की स्थापना और पालन करना जरूरी है ताकि प्रदूषण और अपशिष्ट वस्तुओं का प्रबंधन सही ढंग से हो सके। भारत को ई-वेस्ट की सही रिसाइकलिंग के लिए यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम के माध्यम से भी चेताया गया है। हर दिन पेड़ों की कटाई के बाद पहले से ही पर्यावरण का बुरा हाल है। अगर यह प्रदूषण एक बड़ा रूप लेने लगा तो स्थिति संभाल पाना मुश्किल हो जाएगा।
प्रथमेश झा, समाज सेवक

तकनीक के साथ तालमेल बिठाना जरूरी
आज कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पुनर्नवीनीकरण के लिए डिजाइन नहीं किए गए हैं। स्मार्टफोन हल्के और पतले होते जा रहे हैं, और उनकी बैटरियां अब हटाने योग्य नहीं रह गई हैं, जिससे रिसाइक्लिंग अधिक कठिन हो गई है। मैनुअल सॉर्टिंग के लिए श्रमिकों को लंबे समय तक विषाक्त पदार्थों के संपर्क में रहना पड़ता है, जबकि इन रिसायकल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बदलती तकनीक के साथ तालमेल बिठाने के लिए अपनी मशीनों को लगातार अपग्रेड करने की आवश्यकता है। व्यवसायों के लिए ई-कचरे का पुनर्चक्रण करना, जिसे अलग करना पहले से ही मुश्किल है।
अग्रज कुमार, मुंबई

इस उद्योग से हैं आर्थिक लाभ
ई-कचरे का पुनर्चक्रण न केवल विषाक्त पदार्थों को हमारे शरीर और पर्यावरण में प्रवेश करने से रोकता है, बल्कि यह प्रक्रिया सामग्रियों के निष्कर्षण और खनन से उत्पन्न हानिकारक पर्यावरणीय प्रभावों को भी कम करती है। इसके अलावा, इस उद्योग से प्राप्त होने वाले संभावित आर्थिक लाभ भी बहुत अधिक हैं। अकेले २०१९ में छोड़े गए ई-कचरे का मूल्य ५७ बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक था। फिर भी उद्योग को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने से पहले अभी भी कई समस्याओं पर विजय प्राप्त करने की आवश्यकता है।
ओम शुक्ला, मुंबई

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