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भाजपा को सिखाएंगे सबक! … ‘आदिवासी क्रांति सेना’ की चेतावनी … मोदी सरकार में आदिवासियों पर बढ़ा अत्याचार

 …तो लोकसभा चुनाव में नहीं करेंगे मतदान
सामना संवाददाता / ठाणे
हिंदुस्थान की कुल आबादी में से ८ से ९ प्रतिशत जनसंख्या आदिवासियों की है। हम आदिवासी जो इस देश के मूल निवासी हैं, उन्हें अब उनके जंगलों से बेदखल किया जा रहा है। आदिवासियों को ‘वनवासी’ का प्यारा-सा नाम देकर उनके प्राकृतिक संसाधनों को समाप्त किया जा रहा है। आदिवासियों की जमीन को लेकर नए कानून की योजना बनाई जा रही है। पिछले दस वर्षों में असम, ओडिशा, मिजोरम आदि में आदिवासियों की जमीनें पूंजीपतियों के गले में डालने की कोशिश की गई है। ‘आदिवासी क्रांति सेना’ इसके खिलाफ ‘उलगुलान’ आंदोलन चलाएगी और भाजपा और उसके सहयोगी दलों को सबक सिखाएगी। इतना ही नहीं, राजनीतिक दल जो जनजातीय अधिकारों की रक्षा करने का वचन देंगे उन्हें वोट दिया जाएगा, अन्यथा हम सभी आदिवासी वोटिंग का बहिष्कार करेंगे, ऐसी चेतावनी ‘आदिवासी क्रांति सेना’ के अध्यक्ष अनिल भांगले ने एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में दी।
अनिल भांगले ने कहा कि २०१४ और २०१९ के चुनाव में आदिवासी समुदाय ने बीजेपी का साथ दिया था। भले ही आदिवासियों ने बीजेपी की चालबाजी को नजरअंदाज कर बीजेपी को वोट दिया, लेकिन उसके बाद से आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ गया है। आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अपराध का एक बड़ा हिस्सा भारतीय जनता पार्टी शासित केंद्र सरकार के दौरान हुआ है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में आदिवासी महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के सबसे ज्यादा रिकॉर्ड हैं। दूसरी ओर आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करने के लिए कानूनों में बदलाव शुरू हो गए हैं। इसकी शुरुआत ओडिशा से हो चुकी है। कानून में बदलाव कर आदिवासी समुदायों को उनके जंगलों से बेदखल करने की कोशिश की जा रही है, ताकि आदिवासियों की जमीन पूंजीपतियों द्वारा खरीदी जा सके। इस प्रयास को विफल करने के लिए हम पूरे राज्य में ‘उलगुलान’ आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं, जिसकी शुरुआत क्रांतिकारी नेता बिरसा मुंडा ने की थी। हम समुदाय से अपील करने जा रहे हैं कि वे भाजपा को वोट न दें। हम महाराष्ट्र के सभी हिस्सों में जागरूकता पैदा करेंगे। राजनीतिक दल जो जनजातीय अधिकारों की रक्षा करने का वचन देंगे वोट उन्हीं को दिया जाएगा, अन्यथा हम सभी आदिवासियों के वोट का बहिष्कार कर जनजागरण करेंगे, ऐसी जानकारी भांगले ने दी हैं।

वनवासी नहीं, आदिवासी!
जो पहले से ही जंगलों में रहते आ रहे हैं। वे यहीं के मूल निवासी हैं। आदिवासियों ने कभी भी जंगलों पर अतिक्रमण नहीं किया है। इसके विपरीत पूंजीपति जंगलों पर कब्जा कर रहे हैं। जंगल हमारा घर है, जो लोग कुछ समय के लिए जंगल में रहते हैं। वे वनवासी बन जाते हैं, लेकिन हमारा जन्म जंगल में हुआ है इसलिए हमें वनवासी नहीं कहा जाना चाहिए।

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