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छेड़खानी की शिकायत करने से डरती हैं महिलाएं! …अधिकारियों की उदासीनता व रिपार्ट की जटिल प्रक्रिया भी कारण

सुरक्षा संबंधी चिंताओं को लेकर जीआरपी का सर्वेक्षण

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई में प्रतिदिन लाखों लोग लोकल से यात्रा करते हैं। इस दौरान अक्सर महिलाओं के साथ बदसलूकी की घटनाएं सामने आती रहती हैं इनमें कीमती सामान की चोरी, जानबूझकर किसी को धक्का देना, महिलाओं को बुरी नजर से देखना, छेड़छाड़ करना, उनका पीछा करना आदि शामिल हैं। लेकिन महिलाएं अक्सर इसे जाहिर करने या शिकायत करने से डरती हैं। हालांकि, मार्च में इसी विषय पर एक सर्वेक्षण किया गया था और मुंबई लोकल से यात्रा करने वाली महिलाओं से कुछ सवाल पूछे गए थे। कई महिलाएं ऐसे मामलों की शिकायत क्यों नहीं करतीं, उन्हें किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? इस सर्वेक्षण से क्या जानकारी निकलकर सामने आई।
मुंबई रेलवे में महिलाओं की सुरक्षा संबंधी चिंताओं को समझने के लिए सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने मार्च में २,९९३ महिला यात्रियों से ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रतिक्रियाएं एकत्र कीं। प्रत्येक महिला से २१ प्रश्न पूछे गए और सर्वेक्षण में शामिल आधी कार्यालय जाने वाली थे। अध्ययन में पाया गया कि २,९९९ महिलाओं में से लगभग पांचवीं ने पिछले छह महीनों में कई अपराधों का अनुभव किया है और उनमें से कई ने मामलों की रिपोर्ट नहीं करने का पैâसला किया था। यह पूछने पर कि शिकायत दर्ज क्यों नहीं की, उन्होंने कहा कि इसके पीछे का कारण ’पुलिस और लंबी अदालती प्रक्रियाओं का डर’ और ‘ये सभी प्रक्रियाएं सिर्फ समय बर्बाद करती हैं’।
७१ फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने कभी इसकी शिकायत नहीं की। साथ ही इन मामलों की रिपोर्ट न करने का मुख्य कारण यौन अपराधों की रिपोर्ट करने में शर्म है; चोरी के मामलों में महिलाओं ने सर्वे के जरिए किसी वस्तु को मूल्यवान न मानने का कारण यह बताया है कि वह खास महत्वपूर्ण नहीं है।
सर्वेक्षण करने वाली कार्यकर्ता प्रीति पाटकर ने कहा कि शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया जटिल है, और जब कोई शिकायत दर्ज करने जाता है, तो उसे अक्सर अधिकारियों से गुस्सा, जलन या उदासीनता का अनुभव होता है। प्रीति पाटकर ने कहा कि हम कई सालों से ऐसा देख रहे हैं. वेतन कटौती का सामना करने से बचने के लिए अधिकारियों को अपराधों की रिपोर्ट न करने के लिए मजबूर किया जाता है। इसके अलावा, अध्ययनों या सर्वेक्षणों से पता चला है कि पिछले छह महीनों में प्लेटफॉर्मों पर अपराध का सामना करने वाली ३७ प्रतिशत महिलाओं, रेलवे स्टेशनों के बाहर १३ प्रतिशत, फुटओवर ब्रिज पर १२ प्रतिशत और टिकट खिड़कियों पर ५ प्रतिशत ने कहा कि उन्हें रात ९ बजे के बाद लोकल ट्रेनों में असुरक्षित महसूस होता है।

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