डॉ. बालकृष्ण मिश्र
काशी के सुप्रसिद्ध ज्योतिर्विद
विद्यावारिधि (पी.एच.डी-काशी)
गुरुजी, मेरी शादी कब होगी और मेरी कुंडली में कौन सा दोष है बताएं?
– मानव नरेश भाटे
(जन्म- २० मार्च २००२, समय- रात्रि ५:३० बजे, स्थान- नासिक, महाराष्ट्र)
मानव जी, आपका जन्म सिंह लग्न में हुआ है और आपकी राशि वृषभ बन रही है। सिंह लग्न के लोग बड़े पुरुषार्थी और मेधावी होते हैं और अपने पुरुषार्थ से बहुत कुछ जीवन में प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन चंद्रमा आपकी कुंडली में दशम भाव पर बैठकर राहु के साथ ग्रहण योग बना रहा है। इसके साथ ही दशम भाव पर ही सप्तम भाव का स्वामी शनि भी बैठा हुआ है और चौथे स्थान पर केतु बैठ करके शंखपाल नामक कालसर्प योग बना रहा है। इस कालसर्प योग के कारण आपका करियर स्थिर नहीं हो पा रहा है। महादशा के आधार पर अगर हम देखें तो राहु की महादशा चल रही है और राहु की महादशा में केतु का अंतर चल रहा है। विवाह से पहले कुंडली में जो कालसर्प योग है उसकी पूजा करवाना जरूरी है।
गुरुजी, मेरी राशि क्या है और मेरी शादी कब तक होगी। क्या मेरी कुंडली मांगलिक है?
– उजाला जोशी
(जन्म- २७ जनवरी २००७, समय- रात्रि ७:१५, स्थान- जलगांव, महाराष्ट्र)
उजाला जी, आपका जन्म कर्क लग्न में हुआ है और आपकी राशि वृषभ बन रही है। वृषभ राशि पर चंद्रमा बैठा हुआ है जो उच्च राशि का है और लग्न में ही आपकी कुंडली में शनि बैठा हुआ है। आपकी कुंडली मांगलिक नहीं है। आपकी शिक्षा बहुत अच्छी है क्योंकि शिक्षा स्थान का स्वामी मंगल आपकी कुंडली में दशम भाव का स्वामी भी है। अगर यह देखें कि आपकी शादी कब तक होगी तो इस समय मंगल की महादशा चल रही है। शादी की बात कहीं न कहीं चल रही है, लेकिन आपकी शादी २०२६ में होनी चाहिए। आपकी कुंडली में दूसरे स्थान पर केतु और आठवें स्थान पर शुक्र के साथ राहु बैठा हुआ है। इस कारण कुंडली में बने कुलिक नामक कालसर्प योग की पूजा वैदिक विधि से कराएं।
गुरुजी, जीवन में संतान की क्या स्थिति है?
– अभिषेक पांडे
(जन्म- २५ जुलाई १९९१, समय- ९:१५ बजे, स्थान- जौनपुर)
अभिषेक जी, आपका जन्म गुरुवार के दिन हुआ है और आपकी राशि सिंह है। सिंह लग्न के लोग बड़े पुरुषार्थी और मेधावी होते हैं। अपने पुरुषार्थ से वो हर जगह अपनी पहचान कायम करने के साथ हर प्रकार की सुख-सुविधा प्राप्त करते हैं। यदि हम आपके संतान की बात को देखें तो संतान का विचार पंचम भाव से किया जाता है। पंचम भाव का स्वामी बृहस्पति है और पंचम भाव पर ही चंद्रमा के साथ राहु बैठ करके ग्रहण योग बना रहा है। पंचम भाव का स्वामी बृहस्पति है तो उच्च राशि का, लेकिन १२वें भाव पर बैठ करके संतान पक्ष को कमजोर बना दिया है और १२वें भाव पर ही बृहस्पति के साथ बैठा सूर्य पंचम भाव को कमजोर बना दिया है। पंचम भाव पर ही चंद्रमा के बैठने की वजह से पहली संतान कन्या का होना आवश्यक है। बृहस्पति रत्न पहनकर अगर बृहस्पति को ताकत दी जाए तो संतान होना संभव है। कुंडली में पंचम भाव पर चंद्रमा के साथ राहु बैठ करके ग्रहण योग भी बना रहा है और इसी वजह से पद्म नामक कालसर्प योग बना हुआ है। इसकी वैदिक विधि से पूजा कराएंगे तो संतान प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।