बात ही बात
कभी बेबात
मेरी बात बन गई
औरों की खबर नहीं
आसानी से
मेरी बात बन गई
आप नाहक ही अक्ल लगाते रहे
करतब, तरकीबों में
कभी भोले, कभी बुद्धू बन
मेरी बात बन गई
जब से लगी दरख्तों के
काटने पर पाबंदी
पौधे उगाने के फन में
मेरी बात बन गई
गैर मुल्कों में हमने
बटोरा सरमाया
आई वतन की याद, यहां भी
मेरी बात बन गई
अपनों ने इतने जख्म दिए दोस्तों
इस दौर में नमक का
सौदागर बन
मेरी बात बन गई
इकतरफा इश्क में हमने उम्र जाया की
उनकी पड़ी अब नजर हम पर
भले देर से सही, बननी थी सो
मेरी बात बन गई
मुस्करा के दिल के किवाड़
खोले हैं जिंदगी ने, उठ के गले मिलो
तुम ही क्यों रह जाओ, जब
मेरी बात बन गई।
डाॅ. रवींद्र कुमार