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संपादकीय : बेमौसमी संकट …सरकार कहां है?

पिछले सप्ताह महाराष्ट्र में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने कहर बरपा दिया। विदर्भ, मराठवाड़ा और मध्य महाराष्ट्र में फलों के बगीचे बर्बाद हो गए। खेत में खड़ी फसल जमींदोज हो गई। राज्य में किसानों द्वारा मदद के लिए किए गए आर्तनाद का न तो शासकों और न ही स्थानीय प्रशासन के कानों पर कोई असर पड़ा है। सत्ताधारी जहां लोकसभा चुनाव और आपसी षड्यंत्रों में मगन हैं, वहीं सरकारी तंत्र चुनावी ‘कर्तव्य’ में व्यस्त है। उनके पास बेमौसमी मार से फिर से तबाह हुए बलिराजा (किसानों) पर ध्यान देने का समय कहां है? इस वर्ष राज्य के किसानों के पीछे संकट का ग्रहण खरीफ सीजन से ही लग गया है। पिछले जून में पहले बारिश ने दगा दिया। बारिश में देरी के कारण कई जगहों पर बुआई में देरी हुई। दोहरी बुआई से बलिराजा की तकलीफ बढ़ गई। इसमें मानसून सामान्य तौर पर मनमर्जी से बरसा। जिससे खरीफ सीजन की फसल का उत्पादन प्रभावित हुआ। पिछले वर्ष ‘अल नीनो’ के प्रभाव से वर्षा कम हुई, इसका असर पहले खरीफ और फिर रबी की फसलों पर पड़ा। फिर भी किसान ने हिम्मत से रबी की फसल बोई। लेकिन इन फसलों पर भी खराब मौसम का असर पड़ा। पिछले नवंबर में राज्य के कई हिस्सों में बेमौसम बारिश और ओले की मार पड़ी, जिससे अंगूर उत्पादकों और अन्य बागवानों तथा सब्जियों को भारी नुकसान हुआ। फरवरी में राज्य के १५ जिले फिर बेमौसम बारिश की चपेट में आ गए। रबी की फसल को भारी नुकसान हुआ। अब एक बार फिर बेमौसम और ओलावृष्टि ने फसलों को दोगुना-तिगुना नुकसान पहुंचाया है। हाथ आई फसल छीन ली। पहाड़ी क्षेत्र में लहलहाते केसरिया आम के बगीचे बारिश से बर्बाद हो गए हैं। ग्रीष्मकालीन बाजरा को नुकसान पहुंचा है। तरबूज, खरबूज, अंगूर, खीरा, मक्का, मिर्च, आम, मौसंबी, अनार आदि के साथ सब्जियों और फूलों को काफी नुकसान हुआ है। आम किसानों को संभलने का मौका तक नहीं मिला है। यहां तक ​​कि जो फसल सौभाग्य से फरवरी के कहर से बच गई थी, उसे भी मौजूदा खराब मौसम ने किसानों के हाथों से छीन लिया है। खेतों में न केवल फसलें, बल्कि सूखने के लिए रखी हल्दी और मिर्च के भीगने से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। पिछले हफ्ते महाराष्ट्र में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने बलिराजा को मुसीबत में डाल दिया, लेकिन उठते-बैठते किसानों का नाम लेने वाले राज्य के शासक कहां गायब हैं? शासक प्रचार में, प्रशासन चुनाव कार्य में और खराब मौसम की मार झेलते किसान हवा में। फिलहाल महाराष्ट्र की ऐसी दारुण स्थिति है। राज्य के गरीब किसानों की किस्मत प्रकृति और शासकों के ‘मूड’ पर हिचकोलें खा रही हैं। कर्जदार किसान कठिनाई से फसल उगाता है। लेकिन कभी खराब मौसम-ओलावृष्टि छीन लेता है और कभी सरकारी नीतियों के कारण उन्हें कौड़ी के दाम पर बेचना पड़ता है। कभी निर्यात प्रतिबंध तो कभी निर्यात शुल्क में बढ़ोतरी का चाबुक प्याज की फसल पर चलता है। मिंधे सरकार की केंद्र सरकार से ज्यादा मुआवजे की घोषणाएं पंचनामे के अफरा-तफरी में गुम हो जाती हैं। खेती को समर्थन मूल्य देने का अपना वादा भूल चुके प्रधानमंत्री मोदी फिर चुनावी सभाओं में किसान कल्याण की ‘गारंटी’ देकर वोट मांग रहे हैं, लेकिन वे पिछले दस साल में किसान कल्याण की बत्ती क्यों नहीं जला सके? किसानों के हित के उनके जुबानी बुलबुले हवा में क्यों उड़ गए? मूडी प्रकृति और मूडी राजा के जाल से किसान क्यों नहीं बच पाए हैं? पहले इन सवालों का जवाब दें और फिर ‘मोदी गारंटी’ की लफ्फाजी करें! सूखे से त्रस्त किसान सरकार से मदद की गुहार लगा रहा है, लेकिन सरकार कहां है? वे लोकसभा चुनाव की मस्ती में मशगूल हैं। महाराष्ट्र का किसान बेमौसम संकट का समाधान चाहता है और शासक ‘मोदी गारंटी’ की ‘लफ्फाजी’ से बलिराजा का क्रूर मजाक कर रहे हैं!

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