मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : लेखक की ईमानदारी

किस्सों का सबक : लेखक की ईमानदारी

डॉ. दीनदयाल मुरारका
भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य में खड़ी बोली के जनक माने जाते हैं। उनका हिंदी के विकास में अमूल्य योगदान रहा है। वे महान कवि एवं नाटककार थे। एक बार एक महाजन ने उनके विरुद्ध तीन हजार रुपए की वसूली के लिए कोर्ट में दावा दाखिल कर दिया। उसका कहना था कि भारतेंदु ने उनसे एक नाव खरीदी तथा कुछ रुपए उधार लिए थे और अब रुपए वापस मांगने पर नहीं लौटा रहे हैं।
न्यायाधीश ने वास्तविकता जानने के लिए भारतेंदु को अकेले में बुलाकर पूछा, ‘नाव की सही कीमत क्या है तथा उन्होंने कितने रुपए उस महाजन से उधार लिए थे?’ न्यायाधीश को अपने जवाब में भारतेंदु ने कहा, ‘दावे में लिखी गई नौका की कीमत और मांगी गई नगदी राशि सही है।’ बाहर आने पर उनके कुछ मित्रों ने उन्हें समझाया कि कुछ ले-देकर इस मामले को रफा-दफा कर दो, नहीं तो सजा मिलने पर नाहक परेशानी होगी एवं बदनामी होगी वह अलग से।
किंतु भारतेंदु अपने मित्रों की बात मानने के लिए तैयार नहीं थे। वे अपनी बात पर अड़े रहे कि उन्हें नौका मूल्य एवं बकाया राशि महाजन को देना है। उनके मित्र ने उन्हें समझाने के उद्देश्य से फिर कहा, ‘आप इतने जाने-माने लेखक हैं। यदि आप न भी बोल देते हो, तो वह आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।’ भारतेंदु ने कहा, ‘ऐसी स्थिति में सत्य पर चलने की मेरी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। अगर मैं असत्य की राह पर चलूंगा तो लोग कहेंगे कि लेखक की करनी और कथनी में कितना अंतर है? इससे मेरी ही नहीं, पूरे लेखक बिरादरी की भी बदनामी होगी। लोग प्रश्न करेंगे कि यह वैâसा लेखक हुआ? जो अपने द्वारा लिया गया कर्ज वापस देने के लिए तैयार नहीं है।’

अन्य समाचार