मुख्यपृष्ठस्तंभदेश का मूड : मुद्दाहीन भाजपा होगी सत्ताविहीन!

देश का मूड : मुद्दाहीन भाजपा होगी सत्ताविहीन!

अनिल तिवारी
कल एक चुनावी सभा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह कहते हुए सुना गया कि अयोध्या में ५०० वर्षों का इंतजार खत्म हुआ। अब मथुरा और वृंदावन की गलियां भी इंतजार तो कर ही रही होंगी। अर्थात यहां सीधे-सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मान रहे हैं कि केंद्र की मोदी सरकार के पास मतदाताओं के सामने गिनाने को विकास, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कोई मुद्दे नहीं हैं। उनके पास चुनावी मैदान में उतरने के लिए सिर्फ और सिर्फ राम मंदिर का ही एकमात्र मुद्दा है। भाजपा के स्टार प्रचारक योगी महाराज बड़ी ही चतुराई से उसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं और मतदाताओं को धार्मिक प्रलोभन भी दे रहे हैं। निश्चित तौर पर आज के चुनाव आयोग को चुनावी प्रचार की ये खामियां नजर नहीं आ रही होंगी।
भाजपा के एक प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी सपा प्रत्याशियों के नामों को लेकर कथित कन्फ्यूजन का बहुत मजा ले रहे हैं। कहते हैं कि सपा में तो कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है, सॉल्यूशन का नाम नहीं है। हर चुनाव में सपा में सिर-फुटौवल होती है। उनके अंतर्कलह से ही भाजपा की विजय का मार्ग सरल होगा। अर्थात यहां प्रवक्ता महोदय भी मान रहे हैं कि भाजपा के विजय का मार्ग उनकी सरकार के कामों से नहीं, बल्कि विपक्षियों के अंतर्कलह, टूट-फूट, लूट और सत्ता के झूठ से ही प्रशस्त हो रहा है। उस पर जहां तक सिर-फुटौवल का सवाल है तो यह वहीं तो होती है न, जहां डिमांड हो। जहां जीत की संभावना ज्यादा हो। लोग जीतने वाली पार्टी के टिकट के लिए ही तो सिर-फुटौवल करते हैं। हारने वाली पार्टी के तो टिकट मिलने के बाद भी लौटा दिए जाते हैं। गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश तक इन दिनों यह नजारा आम है।
जिन राज्यों में पार्टी का सर्वाधिक दबदबा हो, जहां से खुद पीएम आते हों, जहां से वे निर्वाचित होते हों, उन राज्यों के प्रत्याशी भी जब टिकट मिलने के बाद पीछे हट जाएं, तो सिर-फुटौवल की संभावना ही कहां बचती है? इसलिए भाजपा में सभी कुछ शांतिपूर्वक ढंग से चल रहा है। टिकट मिली तो ठीक, नहीं मिली तो और भी ठीक। जब पार्टी में ऐसी स्थिति निर्मित होती है, तब प्रत्याशी आयात करने पड़ते हैं।
आंकड़े उठाकर देख लीजिए पिछले १० वर्षों में भाजपा ने सबसे ज्यादा प्रत्याशियों को आयात किया है। उसमें भी इस बार तो सर्वाधिक। संभवत: रिकॉर्डतोड़। ऐसे में विपक्ष यदि भाजपा पर कांग्रेस युक्त या आयात निर्भर होने जैसे तंज कसे तो इसमें गलत क्या है? २०२४ के इस रण संग्राम के लिए एक राज्य में तो भाजपा ने १० में से ६ प्रत्याशी कांग्रेस से उधार लेकर उतारे हैं। ऐसी पार्टी में टिकट के लिए सिर-फुटौवल की संभावना ही कहां बचती है? यहां जीत के लिए संभावना बनती है तो केवल राम मंदिर निर्माण का ढोल पीटने और प्रचार में यह बताने में कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा, पर इससे क्या लाभ होगा यह न बता पाने की असमर्थता ही इन दिनों भाजपा को रामलला की शरण में ले आई है। यह तीसरी अर्थव्यवस्था बेरोजगारी वैâसे खत्म करेगी, महंगाई पर काबू वैâसे पाएगी, द्वेष का वातावरण वैâसे मिटाएगी, १० वर्षों में सरकार ने जो-जो वादे किए, उन्हें पूरा वैâसे नहीं कर पाई, इन प्रश्नों का भाजपाइयों के पास कोई जवाब नहीं है। इसलिए वे नए स्वप्न खड़े कर रहे हैं। वादा कर रहे हैं कि वे फिर से बड़े बहुमत से जीतकर आए तो भारत में तेज रिफॉर्म्स की गति को और तेजी देंगे। अर्थात क्या जीएसटी, नोटबंदी, टैक्सेशन और पॉलिटिकल एक्सटॉर्शन और बढ़ेगा? इनके घोषणा पत्र में कहा गया है कि भारत अपने दम पर अंतरिक्ष में पहुंचेगा। अर्थात गरीब जनता को झुग्गियों से पक्के मकानों तक आत्मनिर्भर होकर ही पहुंचना होगा? ये कहते हैं कि दुनिया में भारत की साख ब़़ढ़ी है। अर्थात जो अंतर्राष्ट्रीय समूह द्वारा असहिष्णुता, लोकतंत्र की हत्या और तानाशाही वृत्ति के आरोप लग रहे हैं, क्या वही साख बढ़ने के उदाहरण हैं?
जिस सरकार के मंत्री-मुख्यमंत्री अभिनेताओं को सांसद बनाकर उनसे आयोजनों में गीत संगीत के कार्यक्रम करवाते रहें, अन्य पार्टी के जीत के आए हुए सांसदों को साम, दाम, दंड, भेद से तोड़ने में विश्वास करते रहें और जनता के मन में यह छबि बना चुके हों कि वे किसी भी पार्टी के प्रतिनिधियों को, कभी भी, किसी भी तरह से तोड़ सकते हैं, खुद से जोड़ सकते हैं, बड़े से बड़े घोटालों में सालों तक जेलों में रहे आरोपियों को पुष्पगुच्छ देकर पार्टी में शामिल कर सकते हैं, ईडी-सीबीआई के जरिए अधिकारियों पर विपक्षियों को झूठे मामले में फंसाने का दबाव डाल सकते हैं, ऐसी सरकार के लोकप्रिय होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। और, जब आप लोकप्रिय नहीं होते हैं, तब न तो आपकी पार्टी में टिकट के लिए सिर-फुटौवल होती है, न ही प्रचार के लिए आपके पास मुद्दे। जनता का मूड बता रहा है कि इस बार भाजपा मुद्दाविहीन है और इस मुद्दाहीन सरकार को सत्ताविहीन भी करना है।

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