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पंचनामा : विकास के नाम पर जंगली जानवरों का उजड़ रहा आशियाना … जंगल छोड़ इंसानी बस्ती में घुस रहे  हिंसक जानवर!

क्यों बिगड़ रहा है पारिस्थितिकी तंत्र?
मानव विकास के लिए जरूरी हैं जंगल और पशु

संतोष तिवारी

तेंदुओं का जंगल से निकलकर इंसानों की बस्ती में आने की घटनाओं का सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अभी हाल ही में वसई के किला क्षेत्र में तेंदुए को देखने के बाद स्थानीय लोग डर के साये में जी रहे हैं, और इस समस्या से निजात पाने की मांग कर रहे हैं।

डर के साये में जी रहे हैं लोग
बता दें कि तेंदुए को पहली बार २९ मार्च को वसई किले के खंडहरों के पास देखा गया था, लेकिन वन विभाग ने ६ अप्रैल को तेंदुए को पकड़ने के लिए दो पिंजरे लगाए। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाते हुए कहा कि वन विभाग को तेंदुए को पकड़ने के लिए दो पिंजरे लगाने में आठ दिन क्यों लगे। क्या तेंदुए को पकड़ने के लिए पिंजरे लगाने की प्रक्रिया इतनी धीमी होनी चाहिए? क्या वन अधिकारियों के लिए मानव जीवन महत्वपूर्ण नहीं है? लोगों का कहना है कि स्थानीय वन अधिकारियों ने तेंदुए को फंसाने के लिए पिंजरे लगाने के लिए नागपुर में अपने वरिष्ठ अधिकारियों से अनुमति नहीं मांगी थी। यदि यह सच है, तो एक गहन जांच की आवश्यकता है क्योंकि जब तक तेंदुआ पकड़ा नहीं जाता तब तक लोगोेंं का जीवन खतरे में है।

स्थानीय निवासी हैं नाराज
वसई किले के पास दो गांवों किलाबंदर और पाचुबंदर में लगभग १२,००० लोग रहते हैं। लोगों का यह भी कहना है कि तेंदुआ कहीं छिपा हुआ है। लगभग १५ से २० वन अधिकारी और एनजीओ कार्यकर्ता उस क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं। गांव के ही एक शख्स ने बताया कि २ अप्रैल को ग्रामीणों के साथ एक बैठक की गई, जहां हमें बताया गया कि कानून और वन विभाग के नियमों के अनुसार, वे किले से तेंदुए को नहीं पकड़ सकते और उसे पिंजरे में डालकर अभ्यारण्य में नहीं ले जा सकते। पिछली बैठक में वन अधिकारियों के साथ हमारी तीखी बहस हुई थी। गत १० दिनों से दहशत में जी रहे निवासियों ने अपना आपा खो दिया और अपना गुस्सा जाहिर किया। उन्होंने मांग की कि तेंदुए को शीघ्र पकड़ा जाए।

कई बार रिहायशी इलाकों में
घुस चुके हैं जंगली जानवर
वर्ष २०११ में फिल्म अभिनेत्री और राज्यसभा सांसद हेमा मालिनी के मुंबई स्थित बंगले में तेंदुआ घुस गया था। वहीं वर्ष २०१७ में एक तेंदुआ अंधेरी के एक स्कूल में घुस गया था। गनीमत थी कि उस दिन स्कूल की छुट्टी थी, वर्ना कुछ भी हो सकता था। तेंदुओं का जंगल से निकलकर इंसानों की बस्तियों में दिखना अब आम बात हो चुकी है।

जंगलों में मानवीय दखल ज्यादा
आखिर क्या कारण है कि तेंदुए सहित जंगल के अन्य जानवर गांवों और शहरों में घुस रहे हैं। इस बारे में वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट का कहना है कि जंगलों में शाकाहारी जीवों की काफी कमी हो गई है, जिससे शिकार ढूंढते बाघ और तेंदुआ गांव-शहरों में घुस रहे हैं, साथ ही पानी भी नहीं मिलता है। उन्होंने आगे कहा कि जंगलों में अतिक्रमण और मानवीय दखल ज्यादा हो गया है।

जानवरों के विलुप्त होने का खतरा
बाघ, तेंदुआ आदि जंगल छोड़कर आबादी की तरफ आ रहे हैें। एक रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में करीब साढ़े तीन लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के सर्वे के आधार पर १४ हजार तेंदुए हैं। इनके स्वभाव में होता है कि ये घने जंगलों में रहनेवाले बाघ से टक्कर नहीं लेते। इसलिए कुछ बाहरी क्षेत्र में ही रहते हैं। जंगल के कुछ बाहर मिलने वाले जानवर चीतल, चिंकारा, सांभर आदि बहुत ही कम हो गए हैं। धीरे-धीरे ये जानवर विलुप्त हो जाएंगे?

जानवरों की बस्ती में दखल दे रहा है इंसान
यह समझना होगा कि कौन किसके इलाके में घुस रहा है। दरअसल, वे हमारे नहीं बल्कि हम उनके इलाके में दखल दे रहे हैं। मुंबई में आरे जंगल में करीब ४० तेंदुएं रहते हैं। कई तेंदुओं की मौत तो पैदा होने के कुछ समय बाद ही हो जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जानवर कभी भी इंसान पर पहले हमला नहीं करता है, बल्कि जब उसे खतरा महसूस होता है तभी वह अटैक करता है। सरकार सहित आम लोगों को भी उनके सुरक्षित घर और पर्यावरण की जिम्मेदारी उठानी होगी।
जोरू बाथेना, पर्यावरणविद

जानवरों को नहीं मिल रहा खाना
इंसान जानवरों की बस्ती में या उनके इलाके में घुस रहे हैं। जंगल काटे जा रहे हैं, खेत-खलिहानों को बेच कर उनपर बड़े-बड़े मकान एवं शॉपिंग मॉल्स तथा अन्य इमारतें खड़ी की जा रही हैं। प्रदूषण के कारण वातावरण खराब हो गया है। जो बचे तालाब व पानी के कुदरती स्रोत जंगलोें में मौजूद थे, वो लगभग सूख चुके हैं। जिससे जंगली जानवरों को पानी और शिकार की कमी रहती है। शायद इसी कारणवश वे इंसानी बस्ती में आ रहे हैं।
गोविंद अग्निहोत्री, मुंबई

जिम्मेदार लोगों से करना होगा सवाल?
मानों अपने घर को लेकर इंसानों और जंगली जानवरों के बीच जंग सी छिड़ी हुई है। असंतुलित एवं अनियंत्रित विकास से जंगल नष्ट हो रहे हैं और वहां रहने वाले जंगली जानवर कंक्रीट के आधुनिक जंगलों में भूखे-प्यासे और बौखलाए हुए भटक रहे हैं। पूरे देश में ऐसी घटनाएं रुकने की बजाय बढ़ती ही जा रही हैं, ऐसे में जिम्मेदार लोगों से सवाल पूछा जाना चाहिए कि जानवर इंसानों की बस्ती में घुस रहे हैं या इंसान जानवरों की बस्ती पर कब्जा रहे हैं?
दीपक हरपुडे, ठाणे

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